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शेषनाग क्या हैं और क्यूँ श्री विष्णु शेषनाग की शय्या पर विश्राम करते हैं
http://awara32.blogspot.com/2016/08/blog-post.html
“पृथ्वी को धारण शेषनाग ने कर रखा है” !
“श्रीविष्णु शेषनाग को शय्या बना कर विश्राम कर रहे हैं, और माता लक्ष्मी उनके चरण दबा रही हैं” !
यह आपने अनेक बार सुना होगा, और कुछ इस प्रकार के चित्र भी देखे होंगे, लकिन कर्महीनता के कारण आपने इससे सम्बंधित प्रश्न अपने गुरु से कभी पूछे नहीं होंगे, और यदि पूछ भी लिए होंगे तो संतोषजनक उत्तर नहीं मिला होगा |
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वेद क्या है? क्या वैदिक ज्ञान को तोड़ मरोड़ कर समाज का शोषण हो रहा है ?
http://awara32.blogspot.com/2016/05/vedic-knowledge-distorted-for-exploitation.html
संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु पूरी तरह से समाज को जानबूझ कर दास बना कर रखने के लिए सबकुछ गलत बता रहे हैं, ताकि समाज का शोषण वे कर सकें |
इसके अनेक प्रमाण भी हैं, कुछ पर चर्चा करते हैं:-
रावण का पुतला आज भी जलाया जा है, लकिन संस्कृत विद्वान और धर्मगुरुओ ने उसे वेद ज्ञाता घोषित कर रखा है, जबकि उसमें सारे अवगुण थे, गुण करके कुछ भी नहीं था | लकिन क्यूंकि श्री विष्णु अवतार पर प्रश्न चिन्ह लगाना था, तो रावण वेद-ज्ञाता कहलाने लगे |
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सुर असुर युद्ध और कथा...भुविज्ञान है तथा सौर्यमंडल उत्पत्ति पर ज्ञान है
http://awara32.blogspot.com/2016/04/sur-asur-war-is-earthscience.html
सारे पुराण भरे पड़े हैं, सुर असुर के बीच में युद्ध और कथाओं से, लकिन ना तो सुर-असुर को किसी ने परिभाषित करने का प्रयास करा, और ना ही देवता और राक्षस को ही परिभाषित करा | उल्टा अनेक स्थानों पर असुर के स्थान पर राक्षस शब्द का प्रयोग कर दिया गया है, जो की गलत है, और आजादी के बाद भी संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु यह प्रयास कर रहे हैं कि पुराण, रामायण और महाभारत ‘मिथ्या’ की श्रेणी में ही रहे |
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नारी ही आदिशक्ति नारी ही दुर्गा, सुर असुर से भरी होकर नारी है शक्तिशाली
http://awara32.blogspot.com/2016/03/woman-is-power.html
नारी ही है दुर्गा, अनेक असुरो को शरीर के अंदर और बाहर झेलती और सामंजस्य बनाती है नारी ! नारी को ही ईश्वर ने इतनी शक्ति दी है की बाहर जो असुर प्रवति के लोग हैं, उनको सहती है, संघर्ष भी करती है, और अपनी शक्ति का परिचय देते हुए आगे बढ़ती रहती है | उसी तरह से, विज्ञानिक दृष्टिकोण से, नारी के अंदर जितने असुर हैं वे पुरुष से बहुत अधिक है, तथा उन सबका अंदरूनी सुरों के साथ समन्वय बना कर रखना भी एक शक्ति का प्रतीक है | मासिक चक्र या रजस्वला तथा गर्भ धारण करने के लिए हर समय शारीरिक रूप से तैयार रहना, भी अद्भुत शक्ति है |
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वेद समाज में जीने का सकरात्मक ज्ञान है...गुरुओं के लिए शोषण का पिटारा नही
http://awara32.blogspot.com/2016/01/vedas-are-exploited-by-gurus.html
वेद आपको भूविज्ञान और सौर्यमंडल की उत्पत्ति पर ज्ञान के अतिरिक्त, समाज में जीने का सकरात्मक ज्ञान भी प्रदान करते है | जहाँ भूविज्ञान और सौर्यमंडल की उत्पत्ति का सम्बन्ध विज्ञान से है, समाज में जीने के सकरात्मक ज्ञान का सम्बन्ध धर्म से है | तथा यही कारण है की सनातन धर्म की मूल धार्मिक पुस्तक वेद हैं, बाकी सब वेद पर टीका-टिप्पणी और समीक्षा है | ब्रह्मा जी अपने चारो मुखो से वेद की श्रुतियों का सदेव उच्चारण करते रहते हैं | अर्थ स्पष्ट है, सनातन धर्म में वेद ईश्वर की देन है |
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पुराण है पुराणिक इतिहास तथा खगोलीय भूगोलिक सूचना पृथ्वी और सौर्यमण्डल की
http://awara32.blogspot.com/2015/11/purans-are-science-history.html
पुराण जैसा की शब्द संकेत देता है, पुराणिक इतिहास है, जिसका आरम्भ सौर्यमण्डल और पृथ्वी की उत्पत्ति से पहले के ब्रह्माण्ड से शुरू होता है | ये मानने और स्वीकार करने में कोइ संकोच नहीं होना चाहीये की पुराण मात्र इतिहास नहीं है , अन्य महत्वपूर्ण जानकारी भी देता है |
पुराण से मुख्य जानकारी जो हमसब को मिलती हैं :
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सुर असुर में संतुलन मानव को स्वंम मैं, परिवार मैं, प्रकृति मैं बनाना है
http://awara32.blogspot.com/2015/10/sur-asur-and-harmony.html
यह सारी जानकारी संस्कृत विद्वानों द्वारा समाज तक पहुचनी थी, जो नहीं हो रहा है | समाज कि कर्महीनता संस्कृत विद्वान कभी समाप्त नहीं होने देंगे, तभी शोषण आसान रहेगा
26 अक्टूबर, 2015 को हिन्दुकुश अफगानिस्तान में केन्द्रित एक भूकंप आया जिससे तबाही मच गयी ! पाकिस्तान अफगानिस्तान इससे विशेष प्रभावित हुए | सोशल मीडिया पर सूचना आने लगी कि ज्यादातर भूकंप 26 तारीख को ही आए हैं....तथा कुछ विशेष गद्दारी और धोके से आंतकी हमले भी 26 को ही आरम्भ हुए हैं, जैसे मुंबई पर आंतकी हमला 26/11/2008 को हुआ था |
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नीच चालबाज रावण को संस्कृत विद्वान धर्मगुरु वेदज्ञाता क्यूँ बताते हैं?
http://awara32.blogspot.com/2015/10/ravan-was-weak-trickster.html
वेद क्या है?
क्या समाज को गुलाम बना कर रखने के लिए संस्कृत विद्वानों द्वारा एक शास्त्र, या फिर संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु वेदों का गलत अर्थ समाज के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं, ताकि समाज का शोषण हो सके, जिसके लिए आवश्यक है कि समाज कि मानसिकता गुलामी वाली हो?
और, गुलाम की मानसिकता समाज की रहे, इसके लिए यह आवश्यक है कि समाज को गलत सूचना दी जाय | हिन्दुओ के अवतार का इतिहास तोड़ मरोड़ कर गलत रूप में समाज तक पहुचाया जाए, और जहां संभव हो वहां तथ्यों को छिपा कर गलत इतिहास भी समाज तक पहुचाया जाए !
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शिव ने दुर्गा मन्त्र कीलक करे...अर्थ भूविज्ञान समझें प्रकृति कि रक्षा करें
http://awara32.blogspot.com/2015/10/kilak-opens-durga-info.html
कीलक, मान्यता है कि एक कुंजी है, और पार्वती प्रकृति, तथा दुर्गा, माता पार्वती का वोह रूप है जो असुरो का नाश करता है |
स्वाभाविक है कि सूचना-युग में आपको इस कुंजी का उपयोग करके वोह सारी भूविज्ञान, तथा सौर्यमंडल और पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बंधित सूचना समाज तक पहुचानी होगी जो दुर्गासप्तशती और पुराणों में कोडित भाषा में है तथा जो सूचना संस्कृत विद्वानों की सहायता से विदेशी विज्ञानिको के पास पहुच रही है तथा उसमें कुछ हेराफेरी करके वे विश्व के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं |
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दुर्गा पूजा बिना श्रृष्टि की रक्षा और पोषण के संकल्प के सभव नहीं
http://awara32.blogspot.com/2015/10/plundering-nature-and-durgapuja.html
प्राकृति का विनाश में और आप कर रहे हैं, फिर पूजा करके माँ दुर्गा को प्रसन्न करना कुछ इस तरह से हुआ कि एक प्रियजन को तडफा तडफा कर मार दे, फिर यह सोचें, कि पूजा अर्चना से उसकी आत्मा को शान्ति मिल जायेगी !
पहले तो यह समझ लें कि माता पार्वती ही प्रकृति हैं, और ईश्वर शिव का विवाह माता पर्वती से यह संकेत है कि ईश्वर प्रकृति का पोषण करेंगें और ईश्वर के भक्त भी प्रकृति की रक्षा करेंगे, तभी श्रृष्टि पनप सकती है |
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वेद भौतिक ज्ञान है..द्रोण रावण जैसे अधर्मी और कपटी वेदज्ञाता नहीं हैं
http://awara32.blogspot.com/2015/07/veda-is-physical-knowledge.html
वेद भौतिक ज्ञान है और वर्तमान समाज केन्द्रित है, परन्तु किसी भी संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु ने यह बात समाज को क्यूँ नहीं बताई, इसका उत्तर आपलोग खोजिये| कहीं ऐसा ना हो कि आप यह कहें कि भौतिक ज्ञान का अर्थ नहीं मालूम, तो इसका भी स्पष्टीकरण हो जाए | भौतिक ज्ञान का अर्थ है कि जिसका प्रयोग आप अपने जीवन मैं कर रहे हों| यदि एक व्यक्ति कपटी हो, दुराचारी हो तो आप यह तो कह सकते हैं कि इस व्यक्ति ने वेद पढ़ा है , लकिन यह भी निश्चित है कि उसको वेद का ज्ञान नहीं है, क्यूंकि वेद का ज्ञाता कपटी और दुराचारी तो नहीं हो सकता, और अधर्मी तो बिलकुल नहीं हो सकता | जो भी ये गलत बात बता रहाहै, और ज्ञानी भी अपनेआप को बताता है, उसका उद्देश समाज को ठगने का तो हो सकता है, समाज हित बिलकुल नहीं !
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शुद्र का शोषण रहित वेदिक अर्थ बिना अवतार के इतिहास के नहीं मिल सकता
http://awara32.blogspot.com/2015/07/meaning-in-vedas-of-shudra.html
यह सूचना युग है, और समाज को देखीये सूचना होते हुए भी अपना शोषण करवा रहा है| कोइ भी कुछ बता सकता है और बताने वाला व्यक्ति यदि धर्म से जुडा हुआ है, तो गलत सूचना से समाज का कितना नुक्सान होता है यह अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता| विडम्बना यह भी है कि सब सबके सामने हो रहा है, यह भी समझ मैं आता है कि गलत हो रहा है लकिन कोइ सुधार का प्रयास नहीं करता, डरते हैं, अपनी कर्महीन मान्सिक्ता के कारण कि कुछ गलत ना होजाए, चुकी धर्म के लोग जुड़े हैं |
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विद्वानों..समुन्द्र मंथन से अमृत के प्रमाण हैं, फिर शोघ क्यूँ नहीं?
http://awara32.blogspot.com/2015/06/samundra-manthan-amrit.html
कलयुग के अंत मैं मानव द्वारा करी गयी समस्या और फिर प्राकृतिक आपदा से भीषण बाढ़ आती है, जिससे पूरी पृथ्वी जलमग्न हो जाती है | उस समय चन्द्र अपनी धुरी सूर्य के सन्दर्भ मैं बदलना बंद कर देता है, अथार्त राहू और केतु गति-हीन हो जाते हैं समाप्त हो जाते है | समुन्द्र स्थिर हो जाता है, तथा स्थिर होने के कारण ऑक्सीजन जो समुन्द्र मैं नीचे के जल तक, पानी के साथ पहुचती थी, वोह बंद हो जाती है, सारे समुंद्री जीव जंतु मरने लगते हैं, और धीरे धीरे समुद्र की तलहटी पर पहुचने लगते हैं| समुन्द्र के जल मैं विशाल मात्रा मैं खनिज पदार्थ हैं, जो कि समुन्द्र स्थिर होने पर तलछट(sediment) बन कर नीचे की और बढ़ते हैं|
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पुराण बताते हैं कि सतयुग मानव के लिए अत्यंत अमानवीय और कष्टदायक युग था
http://awara32.blogspot.com/2015/06/satyug-worst-for-humans.html
सारा पुराणिक इतिहास यह बताता है कि सतयुग सबसे कष्टदायक युग था मानव के लिए, लकिन वाह रे संस्कृत विद्वान और धर्मगुरुजनों की ठगाई की जोड़ी, जो पुराणिक इतिहास और समाज सुधार के लिए समय समय पर जो कथाए होती हैं, और जिनसे पुराण भरा पड़ा है, उनमें और पुराणिक इतिहास के अंतर को समझ नहीं पाए | यह कहना तो संस्कृत विद्वानों का अपमान होगा कि ‘समझ नहीं पाए’, क्यूँकी वे वास्तव मैं विद्वान हैं और समाज के शोषण मैं ‘कम पढ़े लिखे और कम बुद्धीवाले’ धर्मगुरुओ का साथ दे रहे हैं |
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गुरुकुल शिक्षा प्रणाली से भारत क्यूँ नष्ट हुआ, गुलाम बना..चर्चा और विचार
http://awara32.blogspot.com/2015/06/gurukul-education-destroyed-bharat.html
यह पोस्ट गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के अंदर महाभारत से पहले से जो दोष आ गए, और जो आज तक हैं, उनको ना सुधार कर गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को बिना दोष मुक्त करे अच्छा बताए जाने का विरोध करती है| पोस्ट लिखते हुए अत्यंत कष्ट हो रहा है, क्यूंकि इससे पहले दो पोस्ट शिक्षा पर लिख चूका हूँ, जिसमें भौतिक तथ्यों के आधार पर यह प्रमाणित हो चुका है कि गुरुकुल शिक्षा प्रणाली से भारत नष्ट हुआ, गुलाम बना, लकिन एक ख़ास वर्ग यह अनुभव करने लगता है कि उसको समाज को भौतिक तत्यों से जो सत्य सामने आ रहा है, उसको नक्कारना है, समाज के सामने सत्य को नहीं आने देना है, और यहीं से समस्या बढ़ जाती है ! इस समाज को यह तो समझना होगा कि कोइ भी तथ्य छिपाया नहीं जा सकता , आज सूचना युग है, सबकुछ सामने आएगा ही |
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क्रोधित महाकाली को शांत करने हेतु शिव चरणों में लेट गए..एक खगोलिक बिंदु
http://awara32.blogspot.com/2015/06/shiv-pacifies-mahakali.html
रक्तबीज एक श्रृंखलित रसायन प्रतिक्रिया(chain chemical reaction) को कहा गया है, जिसमें श्रंखला बनती चली जाती है | ऐसा क्या हो रहा था, मैं अभी इसका अनुमान नहीं लगा पा रहा हूँ, निवेदन है, और EARTH SCIENCE से जुड़े हुए लोगो से कि इसके बारे मैं अनुमान लगाएं | विश्वास करीये यही आपका धर्म है, जो संस्कृत विद्वान समाज का शोषण हो सके इसलिए नहीं कर रहे हैं, लकिन आपको करना है| हाँ, पुराणों के अनुसार, इस असुरी श्रंखला को रोका गया और फिर समाप्त करा गया |
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कितने देवता हैं, ३३ या ३३करोड़? कैसे सही का पता लगाएं और परिभाषित करें
http://awara32.blogspot.com/2015/04/how-many-devta.html
संस्कृत विद्वान और वेद के ज्ञाता अपने को विशेश्य्ज्ञ समझ कर सैकड़ो साल से ऐसे विषयों पर अपने मत देते आए हैं, किसी ने ३३ माना तो किसी ने ३३करोड़ | मैं उनसब विशेश्य्ज्ञों का आदर भी करना चाहता हूँ, लकिन उनके अनुदाई जो आज हैं , वे उनका अप्रतक्ष रूप से इतना अपमान करते हैं कि चाहते हुए वोह भी संभव नहीं हो पाता|
वे यह तो मानते हैं कि अमुक ऋषि या महाऋषि ने ३३ या ३३करोड़ कहा और यह भी स्वीकार करते हैं कि उस महान संत और ज्ञानी ने यह भी कहा कि आगे सूचना अधिक होने पर मत मैं बिना संकोच परिवर्तन करा जा सकता है, लकिन उनके अनुदाई जो गुरु होने का सुख और लाभ ले रहे है, अपने समाज को बेवकूफ बना कर, वे यह कैसे स्वीकार कर लेंगे ?
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दुर्गा सप्तशति पृथ्वी की उत्पत्ति और आरंभिक विकास पर एतिहासिक रचना
http://awara32.blogspot.com/2015/04/earth-formation-and-durga.html
ॐ विश्वेश्वरीं जगद्धात्रीं स्थितिसंहारकारिणीम् ।
निद्रां भगवतीं विष्णोरतुलां तेजसः प्रभुः ।। १।।
ब्रह्मोवाच ।। २।।
त्वं स्वाहा त्वं स्वधा त्वं हि वषट्कारः स्वरात्मिका ।
सुधा त्वमक्षरे नित्ये त्रिधा मात्रात्मिका स्थिताः ।। ३।।
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मैकाले कारण नहीं संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु समाज की दास मानसिकता के कारण
http://awara32.blogspot.com/2015/04/moral-dharmik-education.html
मेकैउले से पहले गुरुकुल प्रणाली थी जिसमें हमारे टुकड़े होते रहे, इसपर कुछ और प्रकाश डालते हैं :
*महाभारत ५००० वर्ष पूर्व का इतिहास है, तथा उसके पहले सनातन धर्म मानने वाला पूरा विश्व समाज हिन्दू ही था...लकिन गलत ज्ञान और धर्म के कारण तीन धर्म अफ्रीका मैं पनपे(यहूदी, ईसाई, इस्लाम) |
*राष्ट्रीयता सबसे अधिक महत्वपूर्ण धर्म है, यह २३०० वर्ष पूर्व चाणक्य ने बताया और सब ने माना,..लकिन बाद मैं संस्कृत विद्वानों ने और धर्मगुरुजनों ने ही उसे निजी स्वार्थ के लिए दफना दिया,
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शनि के प्रकोप से बचने के स्वम निरक्षित सरल उपाय
http://awara32.blogspot.com/2015/04/resolve-problems-from-saturn.html
आपको कुछ ऐसे सरल उपाय बता दें जिसकी प्रमाणिकता की जांच आप स्वम कर सकते हैं, उपाय भी सरल हैं, और आपकी दैनिक दिनचर्या को प्रभावित भी नहीं करेंगे; और विश्वास रखीये, परिणाम का अनुभव आप स्वम करेंगे |
क्यूँकी बात हुई है कि ‘प्रमाणिकता की जांच आप स्वम कर सकते हैं’, तो सबसे पहले शनि को समझ लें |
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भारतीय शिक्षा प्रणाली तथा सामाजिक मूल्यों की शिक्षा मैं आभाव का कारण
http://awara32.blogspot.com/2015/03/hindu-moral-education.html
भारतीय समाज को यह बताया गया है कि अंग्रेजो के ज़माने मैं एक मेकैउले थे जिन्होंने यह कहा था कि भारत मैं ऐसी शिक्षा प्रणाली पर्याप्त है जो निचले स्तर के सरकारी कर्मचारी उपलब्ध करा सके | जब भी शिक्षा की बात होती है, हम इसी बात को लेकर बैठ जाते है | विश्वास कीजिये हमारी शिक्षा प्रणाली कोइ बुरी नहीं है, हां सुधार की गुंजाईश उसमें भी है | लकिन वोह सुधार विद्यार्थी को आज के परिपेक्ष मैं रोजगार, और समाज की अवश्यक्ताओ के प्रति अधिक उपयोगी बनाना है | उसके लिए सूचना और आज के उपकरणों की जानकारी और निपुर्नता भी महत्वपूर्ण है | सामाजिक मूल्यों की शिक्षा सदा धर्म से मिली है , और मिलेगी !
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सनातन धर्म को विज्ञान और प्रमाणिकता के आधार पर स्थापित करने का प्रयास
http://awara32.blogspot.com/2015/03/sanatan-dharm-and-science.html
इस पोस्ट पर कुछ भौतिक प्रमाण दिए जायेंगे जो आस्था पर नहीं आधारित हैं, विज्ञान और पृथ्वी के भूगोलिक और खुगोलिक विकास पर आधारित है:
1. कामदेव को पुरस्कृत करते हुए इश्वर शिव का उसको शारीरिक बंधन से मुक्त करना, और द्वापर युग मैं वापस शारीरिक बंधन देना :
नई श्रृष्टि का प्रारंभ सतयुग मैं होता है, और सतयुग के प्रारंभ मैं इश्वर शिव, प्रसन्न मुद्रा मैं, कामदेव को शारीरिक रूपी सीमाओं से मुक्त करदेते हैं, ताकी श्रृष्टि का अभूतपूर्ण विकास हो सके; और ऐसा होता भी है| एनेक विशाल काय जीव पृथ्वी पर उत्पन्न होते हैं, चारो तरफ वन का फैलाव हो जाता है, और उसके प्रमाण भी हैं!
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सनातन धर्म प्राकृतिक विकास पर आस्था रखता है...और विज्ञान भी यही मानता है
http://awara32.blogspot.com/2015/03/hindus-believe-in-natural-growth.html
पहले तो एक बहुत स्पष्ट बात जो संस्कृत विद्वानों और धर्मगुरुओं को कहनी चाहीये थी, समझानी थी, अपनी लेखनी द्वारा और अपने प्रवचनों द्वारा, लकिन समाज का शोषण हो सके, इसलिए नहीं बताई गयी....कि हमारे इश्वर अन्य धर्मो और मजहबो के इश्वर से कम शक्तिशाली है, जिसका मात्र इतना अर्थ है कि वे किसी तरह का चमत्कार का प्रयोग नहीं करते, मानव की व्यक्तिगत समस्या के समाधान के लिए इश्वर पूर्ण रूप से सहायक है, लकिन समाज, प्रकृति और श्रृष्टि की सहायता वे स्वर्ग मैं बैठ कर नहीं करते, उसके लिए अवतरित होते हैं, और पृथ्वी के नियमो मैं बंध कर प्रयास करते हैं |
सनातन धर्म मात्र एक अकेला ऐसा धर्म है जो की प्राकृतिक विकास पर आस्था रखता है ना की सृजन मैं|
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महाशिवरात्रि, पर्व जो व्यक्तिगत और सामाजिक लाभ के लिए मनाया जाता है
http://awara32.blogspot.com/2015/02/shivratri-pray-for-nature.html
महाशिवरात्रि उस पावन पर्व का नाम है जब भगवान शिव शंकर ने माता पार्वती से पाणिग्रहण संस्कार करा था !इस पर्व का महत्त्व इसलिए भी है कि इसमें पूजा करना अत्यंत लाभकारी माना गया है ! अविवाहित कन्या मंगलमय विवाह के लीये, विवाहित दंपत्ति संगतता समस्याओं के समाधान के लीये, तथा अन्य ईश्वर की अनुकंपा के लीये पूजा करते हैं !
अब कुछ चर्चा कर लेते हैं कि महाशिवरात्रि पर्व का व्यक्ति और समाज के संधर्भ मैं उद्देश क्या क्या है, और क्यूँ यह अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है |
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पृथ्वी का आरंभिक विकास तथा शिव सति और दक्ष
http://awara32.blogspot.com/2015/02/early-earth-sati-daksh.html
इसके अतिरिक्त भी और बहुत कुछ अनुमान हैं; लकिन जहाँ विज्ञानिको के पास अनुमान हैं, वहां पुराण अनेक विषयों पर स्पष्ट संकेत देते हैं, इसलिए पृथ्वी के आरंभिक विकास को लेकर विज्ञानिको के अनुमान गलत हैं, ऐसा मैं मानता हूँ |
मैं बहुत स्पष्ट रूप से यह भी बता देना चाहता हूँ, कि मैं यह मानता हूँ कि श्रृष्टि का वर्तमान विकास चक्रिये है, और पुराणों मैं जो युगों के बारे मैं बताया गया है, उसके अनुसार है | हाँ यह अवश्य हो सकता है कि युगों की अवधि जितनी अधिक दिखाई गयी हो, उतनी ना हो, कम हो| मेरे हिसाब से एक महायुग की अवधि ४३ लाख वर्ष ना होकर १५ लाख वर्ष के आस पास होनी चाहीये |
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पुराण बताते हैं पृथ्वी जन्मी दो अत्यधिक सक्रिय उल्का के मिलन और स्थिरता से
http://awara32.blogspot.com/2015/01/earth-formed-from-two-ulka.html
आज के विज्ञानिक अँधेरे मैं तीर चला रहे हैं की एक उल्का की छोटी छोटी उल्काओ के मिलन से संवृद्धि(Accretion) होई और पृथ्वी बनी, जो की गलत है| चुकी हमारे संस्कृत विद्वानों ने यह सूचना समाज तक नहीं पहुचने दी, ताकि धर्मगुरु समाज का शोषण कर सके, हिन्दू छात्र इसपर शोघ नहीं कर पा रहे हैं, जो की संस्कृत विद्वानों और धर्मगुरुओ की संकीण सोच का परिणाम है|
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पुराणिक इतिहास यह स्पष्ट बताता है कि दो असुर, मधु और कैटभ श्री विष्णु के कान के मैल से पैदा हुए, उपद्रवी हो गए और अंत मैं भगवान् विष्णु ने उन्हें अपनी जांघ पर लिटा कर मारा, और वही पृथ्वी का मूल भाग है |
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सामाज का शोषण होता रहे इसलिए संस्कृत विद्वान शिव को क्रोधित दिखाते हैं
http://awara32.blogspot.com/2015/01/shiv-blessed-kamdev.html
सबसे पहले तो यह समझ लें कि इश्वर सदेव श्रृष्टि हित, समाज हित और मानव हित मैं सोचते हैं, परन्तु आपकी मानसिकता दासता वाली रहे तभी शोषण संभव है, इसलिए आपको सबकुछ तोड़ मरोड़ कर इश्वर पर आपका विश्वास कम करने की नियत से बताया जाता है| तभी धर्मगुरु आपकी मानसिकता पर हावी होकर समाज का शोषण बे रोकटोक कर सकते हैं| और इसमें संस्कृत विद्वान, जो विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में समाज से जो अनुदान मिलता है उस पैसे से पढ़ कर ज्ञान प्राप्त करते हैं, समाज के शोषण के लिए धर्मगुरुओ का साथ देते हैं |
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शिव क्रोधित हुए क्यूँकी कामदेव ने तपस्या भंगकी, लकिन आप कुछ और बता रहेहैं
http://awara32.blogspot.com/2014/11/shiv-third-eye-burnt-kamdev.html
कामदेव के भस्म होने का अर्थ…एक विज्ञानिक खुगोलिक दृष्टिकोण; यह पोस्ट एक तो शिव क्रोधित हो सकते हैं इस बात का विरोध करती है, और कारण यह है की शिव का जन्म 'समय' के जन्म से पहले हुआ है, और शिव सदेव वैरागी हैं, तो पूर्ण वैरागी क्रोधित कैसे हो सकता है ? फिर किसी मैं इतना भी साहस नहीं है कि यह कहे की शिव का वैराग पूर्ण नहीं है, क्यूंकि अगर शिव का वैराग पूर्ण नहीं है तो किसी भी मानव का वैराग आंशिक भी नहीं हो सकता |
तो फिर ऐसी गलत बात संस्कृत विद्वानों ने क्यूँ फैलने दी ? खैर इसपर अलग से एक पोस्ट आयेगी |
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शिव की अर्धागिनी, सति फिर पार्वती, क्या श्रृष्टि पहले चक्रिये नहीं थी?
http://awara32.blogspot.com/2014/11/sati-symbolize-self-destructio.html
शिव इश्वर हैं और पार्वती प्रकृति, और स्वाभाविक है कि इश्वर प्रकृति के साथ मिल कर ही श्रृष्टि को प्रोहित्साहित कर सकते हैं | पार्वती ही आरंभिक जन्म/जन्मों मैं सति के नाम से प्रचलित थी, तो क्या प्रकृति, पार्वती से पूर्व, कुछ विस्तार पश्च्यात सति हो जाती थी, यानी की पूर्ण विनाश प्रकृति का कुछ प्रगति के पश्च्यात, स्वंम हो जाता था, क्यूंकि, संभवत: सुर और असुर मैं व्यवाहरिक सामंजस्य नहीं रह पाता था|
यह विज्ञानिक सत्य है कि मात्र इश्वर, प्रकृति का मिलन अपने आप मैं पर्याप्त नहीं है; श्रृष्टि को पनपने के लिए| पूरे ब्रह्माण्ड की सहायता की आवश्यकता होती है, और पृथ्वी का स्वंम का जो भूगोलिक व्यवहार और स्वरुप होता है, तथा पृथ्वी के अंदर जो नए समीकरण बनते बिगड़ते रहते हैं, उससे भूविज्ञानिक बदलाव से जीवमंडल मैं व्यावारिक स्थिरता आनी और रहनी अवश्यक होती है, तभी श्रृष्टि सुचारू रूप से चलती है |
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नरकासुर कौन और क्या है, तथा उसका वध और नरकासुर चौदश कैसे मनाए
http://awara32.blogspot.com/2014/10/war-and-slavery-narkasur.html
विष्णु अवतार श्री कृष्ण ने अपने जीवन काल मैं अनेक युद्ध देखे और लड़े, और फिर अंत मैं विश्वयुद्ध, जिसको महाभारत भी कहते हैं, लड़ा और जीता | युद्ध मैं कुछ भी नहीं बदला; श्रिष्ट के आरम्भ से आज तक; वही चला आ रहा है, और २१ वी सदी के लोगो को सूचना के कारण बहुत कुछ मालूम है, तथा वर्तमान वर्ष अनेक समाज जो की युद्ध मैं घिर गए, उनके लिए नरक बन कर आया है|
मुझे लगता है कि आप समझ गए होंगे, तबभी पोस्ट की आवश्यकता हैकी मैं भूमि पर नरक का विवरण यहाँ पर देदूं, हालांकि यह नरक का विवरण जोकी पृथ्वी पर वास्तव मैं असंख्यों बार हुआ है, आपको विचलित कर सकता है, तथा यह भी मन मैं बैठा लें की यह श्रृष्टि के आरम्भ से आज तक.... जी हाँ अभी तक और आगे भी चलता रहेगा !
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एक ऐसा शब्द जिसका पूरा दुरूपयोग हो रहा है, अध्यात्म और अध्यात्मिक
http://awara32.blogspot.com/2014/10/misuse-of-adhyatm-word.html
हिन्दू धर्म मैं यदि कभी कोइ गलती से ऐसा प्रश्न पूछ ले जिसमे धर्मगुरु असमंजस्य मैं आ जाय, उत्तर ना मालूम हो, तो बहुत सहज तरीका है, अध्यात्म की बात शुरू कर दीजिये, बस धर्मगुरु का काम बन जाएगा, प्रश्न पूछने वाला धर्मगुरु महाराज के गूढ़ ज्ञान की तारीफ करेगा, और अपनी कर्महीनता को छिपा कर ध्यान मग्न मुद्रा मैं बार बार सर हिलाएगा, यह बताने के लिए कि अब उसे सब समझ मैं आ रहा है, और धर्मगुरु भी अध्यात्म और अध्यात्मिक शब्द का प्रयोग करके अपने ज्ञान का सिक्का मनवा लेंगे | आप चाहे तो इस फोर्मुले को स्वंम अजमा सकते हैं | धर्मज्ञाता और ज्ञानी बनने और दिखने के लिए ‘अध्यात्म और अध्यात्मिक’ शब्द अति आवश्यक हैं | थोडा सा प्रयास करें, इन शब्दों को सही समय सही प्रयोग आपको आ जाएगा |
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शिवजी सर्प गंगा और चन्द्र धारण कर समाधी मैं लीन हैं, इसका अर्थ
http://awara32.blogspot.com/2014/08/why-shiv-in-samadhi.html
शिव जी सदैव समाधी मैं ही क्यूँ दिखाई देते हैं ? इश्वर शिव सदा समाधि मैं नज़र आते हैं, जितने भी उनके चित्र मिलेंगे, सबमे वे समाधि मैं बैठे दिखते हैं, गंगा उनकी लटाओंसे निकलती दिखाई देती है, सर्प उनके गले मैं विराजमान हैं और अमावस्य से पहले का चौदश(fourteenth tithi of the dark fortnight ) का चन्द्रमा उनके सर पर सुशोभित होता है |
अनेक मत है ज्ञानियों के, इस विषय मैं, सबने यह समझने का प्रयास करा कि शिव को समाधी मैं रहना क्यूँ अच्छा लगता है, उनको इससे क्या अनुभूती होती होगी, वगैरा वगैरा|
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कामदेव के भस्म होने का अर्थ…एक विज्ञानिक खुगोलिक दृष्टिकोण
http://awara32.blogspot.in/2014/06/kamdev-an-astronomical-view.html
सनातन धर्म सबसे प्राचीन धर्म है, और चुकी यह वर्तमान समाज केन्द्रित धर्म है, तो इसमें गलत सूचनाओं के कारण स्थिथी कष्टदायक भी हो जाती है| यह भी सत्य है कि सूचना समाज को धर्मगुरुजनों द्वारा प्राय गलत भी मिलती रही है, और इस समय भी ऐसा ही हो रहा है| यह पोस्ट इसलिए आवश्यक हो गयी क्यूंकि यह कुछ ऐसी सूचना है जो विज्ञानिको के पास अवश्य होनी चाहिए ताकी भविष्य के लिए नीती निर्धारित करने मैं सहायता मिले|
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संस्कृत विद्वानों और धर्मगुरुजनों, समाज के पतन का उत्तर तो देना होगा
http://awara32.blogspot.com/2014/06/experts-exploited-hindus.html
संस्कृत विद्वानों तथा धर्मगुरुजानो, हिन्दू समाज सूचना युग मैं है, इसलिए मुश्किल है प्रश्नों का उत्तर न देना | यह इसलिए भी आपसबको समझ लेना चाहिए क्यूँकी आज व्यक्ति की पहुच विश्व-व्यापी है, संचार और सूचना के अनेक सोत्र हैं, इसलिए चर्चा से भागने से कष्ट, संस्कृत से सम्बंधित उन लोगो को भी होगा जो संस्कृत भाषा सीख कर अपनी जीविका चलाना चाहते हैं | कृप्या शोषणकर्ताओं का साथ देना बंद करें और सत्य को छिपाने की कोशिश नहीं करें |सूचना युग मैं यह संभव नहीं हो पायेगा |
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उत्क्रांति मैं आस्था के कारण सनातन धर्म वर्तमान समाज केन्द्रित है
http://awara32.blogspot.com/2014/04/hindus-believe-in-evolution.html
सनातन धर्म चुकी उत्क्रांति(क्रमांगत उनत्ती, EVOLUTION) मैं आस्था रखता है, तो अन्य धर्मो की तरह यह नियम प्रधान धर्म नहीं है | यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि बाकी सब धर्म/मजहब सर्जन(CREATION) मैं आस्था रखते हैं |
ईश्वर, समाज व श्रृष्टि के किसी भी कार्य मैं हस्ताषेप नहीं करते| अगर किसी समय के, श्रृष्टि विरोधी नकारात्मक मार्ग को बदलना होता है, तो इश्वर अवतार लेते है| सनातन धर्म उत्पत्ति मैं आस्था रखता है |
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मनु स्मृति क्या है तथा स्मृति और धार्मिक ग्रन्थ मैं अंतर
http://awara32.blogspot.com/2014/04/blog-post.html
इस प्रश्न का संतोष-जनक उत्तर अभी तक किसी ने भी नहीं दिया, और उसके कारण भी हैं| सनातन धर्म के एक वर्ग ने मनुस्मृति को बहुत महत्वता दी होई है, जबकी अनेक विशेश्य्ज्ञों का मत है कि क्यूंकि मनुस्मृति जात और जाती समीकरण को बढ़ावा देती है, इसे समाप्त कर देना चाहिए | दूसरा प्रमुख कारण यह भी है कि हिन्दू समाज मैं कोइ केंद्रीय समिति नहीं है, जो महत्वपूर्ण विषयों पर निर्णय ले सके|
क्या है यह मनुस्मृति और यह आई कहाँ से ?
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संस्कृत भाषा से समाज को शोषित करने के प्रमाण
http://awara32.blogspot.com/2014/03/perversion-of-sanskrit.html
अब देखीये, और इन विद्वानों से प्रमाण माँगीए की यह कैसे ठगी और शोषण की नियत से गलत सूचना हिन्दू समाज तक पंहुचा रहे हैं | ध्यान रहे संस्कृत का श्लोक कोइ प्रमाण या मानक नहीं होता | फिर से अच्छी तरह समझ लीजिये: संस्कृत का श्लोक कोइ प्रमाण या मानक नहीं होता |
कलयुग सबसे खराब युग है |
आपको इस विषय पर श्लोक भी सुना दिया जाएगा कि कैसे कलयुग सबसे खराब युग है, और यह भी आपको समझा दिया जाएगा कि आपके उपर सारी मुसीबत इसी कारण हैं |
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संस्कृत भाषाका दुरूपयोग हिन्दू समाज को शोषित रखने केलिए विद्वान कररहे हैं
http://awara32.blogspot.com/2014/03/abuse-of-sanskrit.html
यह बहुत ही गंभीर आरोप है, और इसके बाद इस विषय को गंभीरता से सारे तथ्यों की रोशनी मैं समझना आवश्यक है की कहाँ भटक गए |
विद्वान जिनपर समाज को गर्व करना चाहीये, वोह ऐसा घृणित कार्य कर रहे हैं, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है और जिन विद्वानों ने संस्कृत भाषा का दुरूपयोग करके, समाज को शोषण की नियत से गलत दिशा दी, वे अवमानना के अधिकारी हैं |
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संस्कृत भाषा का प्रयोग सनातन धार्मिक कार्यकर्मों मैं बंद होजाना चाहिए
http://awara32.blogspot.com/2014/03/misuse-of-sanskrit.html
सनातन धर्मगुरु जनो ने महाभारत पश्च्यात अत्यंत अस्तव्यस्थता के वातावरण मैं हिन्दू समाज को बर्बाद कैसे होने दिया? बीच बीच के कुछ समय को छोड़ कर गौरवपूर्ण इतिहास पिछले ५००० वर्ष मैं हिन्दू समाज का नहीं रहा है| पूरे विश्व मैं एक मात्र समाज होने के बाद, धीरे धीरे नए धर्म/मजहब आते चले गए, और हिन्दू समाज सिकुड़ता चला गया
क्या संस्कृत भाषा का दुरूपयोग हुआ है?
क्या संस्कृत का उपयोग समाज के शोषण और गुलाम बना कर रखने के लिए करा गया है?
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युगों को परिभाषित करने केलिए राहू केतु आवश्यक खगोलिक बिंदु
http://awara32.blogspot.com/2014/03/rahu-ketu-and-yugs.html
अब क्या यह युगों को परिभाषित करने के लिए खोगोलिक बिंदु हैं?
राहू और केतु की मृत्य , अर्थात चन्द्र का सूर्य के सन्दर्भ मैं धुरी न बदलने पर समुन्द्र स्थिर हो जाएगा,
और कलयुग और सतयुग के बीच का अंतराल, जिसमें पृथ्वी जलमग्न रहती है !
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शिव लिंग का सही अर्थ, ब्रह्माण्ड के लिए परम उर्जा
http://awara32.blogspot.com/2014/02/correct-meaning-of-shivling.html
शिवलिंग पूरे ब्रह्माण्ड मैं अनंत श्रीश्तियों को उर्जा से युक्त रखता है, ब्रह्माण्ड के विकास को भी उर्जा प्रदान करता है| यह equation of energy मैं संतुलित नहीं हो सकता| इसका स्तोत्र इश्वर है, शिव हैं
विज्ञानिको के अनुसार ब्रह्माण्ड निरंतर बढ़ रहा है | विज्ञानिक भौतिक मापदंड जानते हैं, ब्रह्माण्ड के विकास को लेकर, उसके अनुसार ही उनका यह मत है | यहाँ उन मापदंडो पर बात नहीं होनी है, यहाँ विज्ञानिक जिस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पारहे हैं, या उत्तर देने मैं सकुचा रहे हैं, उस विषय पर बात होनी है |
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आजकल वायु देवता बार बार असुरो से क्यूँ परास्त हो रहे हैं
http://awara32.blogspot.com/2014/01/vayudev-asur.html
अनेक जिज्ञासु यह जानना चाहते हैं, कि आज के सूचना युग मैं वायु देवता असुरों से कैसे परास्त होते हैं|
जैसा कि पहले बताया जा चूका है, कि देवता वास्तव मैं सुर और असुर का स्वीकृत सामंजस्य है; रसायन का जो मिश्रण वायु मैं होता है वोह उपर दिया है, जहाँ Nitrogen और Oxygen सुर हैं, और बाकी नीचे की चारों गैस असुर , लकिन यह १% अशुद्धियाँ तक का सामंजस्य स्वीकार है और यदि यहीं तक अशुद्धियाँ रहे तो वायु देवता पूर्ण रूप से शक्तिशाली हैं|
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सनातन धर्म समझना आसान है और पालन करना और भी सरल
http://awara32.blogspot.com/2013/12/sanatan-dharm-is-easy.html
‘सनातन धर्म समझना इतना आसान नहीं है, मन को एकाग्रित करके ही आप उसको समझने का प्रयास कर सकते हैं, वोह भी अगर आपके गुरु मैं इतनी क्षमता होगी तो’; यह आपने अनेक स्वरों मैं सुना होगा, दूसरी बात; कि सनातन धर्म को समझने के लिए संस्कृत का ज्ञान अति आवश्यक है |
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ईश्वर शिव को विशेष अवसर पर नशीले पधार्थ भांग धतुरे का चढ़ावा क्यूँ?
http://awara32.blogspot.com/2013/10/blog-post_25.html
ब्रह्मा जी ब्रह्मलोक मैं वास करते हैं, जो की पृथ्वी पर नहीं है, और श्री विष्णु शीरसागर मैं, वोह भी पृथ्वी पर नहीं है, परन्तु ईश्वर शिव पृथ्वी पर वास करते हैं, और उनका प्रमुख उद्देश हमसब की रक्षा और प्रगति है, जो की वास्तव मैं मानव के हाथ मैं है, लकिन मानव कभी भी अपना उत्तरदायित्व पूरा नहीं कर पाता और स्वंम भी प्रलय की और बढ़ता है, और श्रृष्टि को भी प्रलय की और ले जाता है
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ईश्वर शिव ने गले मैं ही विष क्यूँ रखा, नीचे शरीर मैं क्यूँ नहीं जाने दिया ?
http://awara32.blogspot.com/2013/09/blog-post_25.html
पहले तो इस तथ्य को समझना होगा की पृथ्वी पर जितनी आबादी है, उसकी ९ गुना आबादी समुन्द्र मैं है| राहू, केतु के समाप्त होने पर समुन्द्र स्थिर होजाता है, जीवन भी समाप्त होजाता है| अनेक आपदाओ के कारण पृथ्वी की आबादी तो समाप्त होही चुकी है, और कलयुग का तथा एक महायुग का विधिवद अंत हो जाता है|
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प्राचीन समय मैं मुनि और ऋषी मैं अंतर जो अवसरवाद ने समाप्त कर दिया
http://awara32.blogspot.in/2013/09/blog-post_4.html
ऋषि, महाऋषि, किसी भी विषय मैं महारथ प्राप्त करने पर व्यक्ति कहलाता था, यदि उस महारथ का सम्बन्ध श्रृष्टि और प्रकृती की सिम्रिद्धी से होता था, और मुनि, महामुनि, प्राय समाज सम्बंधित विषय के विशेषज्ञ होते थे, या ऋषि, महाऋषि, जिन्होंने सांसारिक सुख त्यागने शुरू कर दिए हों, तथा महामुनी वोह जिसने समस्त सांसारिक सुख त्याग दिए हों|
जैसा आप देखेंगे, कोइ विशेष अंतर नहीं था, दोनों मैं, और संभवत: यह भी एक कारण रहा हो, समय के साथ साथ, यह अंतर धूमिल पड़ता गया| और भी कारण हैं; प्रथम सप्तऋषी जो थे, आगे चल कर उनके नाम ब्राह्मणों के गोत्र बन गए, और वे गोत्र आज भी हैं |
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सनातन श्रेष्ट सिद्ध धर्म है क्यूँकी सुर असुर के सामंजस्य को स्वीकारता है
http://awara32.blogspot.com/2013/09/blog-post.html
पोस्ट ‘सनातन धर्म पूर्णता मैं नहीं अस्तव्यस्तता मैं विशवास करता है’ को लेकर अनेक टिप्पणी आ रही हैं, और लोग इसपर और प्रमाण चाहते है की यह कैसे कहा जा रहा है, कि ‘पूर्णता मैं नहीं अस्तव्यस्तता मैं विशवास करता है’, और अंग्रेज़ी मैं भी इसपर विरोध हो रहा है, की ‘How can one say that Sanatan Dharm is not PERFECT and believes in Chaos’. इसी को हिंदी मैं कहा जाय तो ‘Perfect’ की जगह ‘उत्तम’ हो जाएगा, और यह तो कहीं बात हो नहीं रही की सनातन धर्म उत्तम और सिद्ध धर्म नहीं है, फिर से सुन लीजिये यह कहीं नहीं कहा गया है|
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कामधेनु, ज्ञान जिससे प्राकृतिक सम्पदा बिना घटाए संसाधन का प्रयोग
http://awara32.blogspot.com/2013/08/blog-post_19.html
संभावना है सामाजिक परिस्थितियां, जिनके कारण श्री विष्णु को अवतरित होना पड़ा, मैं पर्यावरण भी हो, और चुकी कामधेनु का उल्लेख बार बार है, और विकसित समाज मैं इसकी संभावना होती भी है, यह समस्या रही हो
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स्वर्ग, नर्क, देवता, राक्षस पर विचार और परिभाषा
http://awara32.blogspot.com/2013/08/blog-post.html
जिस तरह से असुर-राज पताल मैं हैं उसी तरह से देवता तताकथित स्वर्ग मैं रहते हैं जो पृथ्वी लोक से बाहर है| यह विज्ञान की दृष्टि से भी आवश्यक जानकारी है, कि पृथ्वी मैं जो भी जीवन, या श्रृष्टि है, उसके लिए पृथ्वी का सौय्रमंडल और ब्रह्माण्ड से सामंजस्य मुख्य कारण है, चुकी पृथ्वी अपने आप मैं असमर्थ है; असुरो का निवास है|
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लचीलापन, समाज की रक्षा की प्रतिबद्धता ने सनातन धर्म को अमर बना दिया
http://awara32.blogspot.com/2013/07/blog-post_25.html
सनातन धर्म मैं अवतार का स्वरुप, अशिक्षित समाज के लिए, अलोकिक शक्ती की चादर के साथ होता था; विकसित, शिक्षित समाज मैं, बिना अलोकिक, चमत्कारिक शक्ती के, जैसा की आजादी के बाद होना था, परन्तु नहीं हुआ
क्या है लचीलापन सनातन धर्म मैं, आज तक किसी गुरु ने इसके बारे मैं कुछ क्यूँ नहीं बताया? आप किसी भी प्रवचन मैं चले जाईए, आपको यह बताया जातेगा की सनातन धर्म पूर्णता का प्रतीक है, और इसी लिए यह अमर है| जबकी यह गलत है| सत्य यह है कि सनातन धर्म अस्तव्यस्तता मैं विश्वास रखता है, पूर्णता मैं कदापि नहीं|
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सनातन धर्म पूर्णता मैं नहीं अस्तव्यस्तता मैं विशवास करता है
http://awara32.blogspot.com/2013/06/blog-post_29.html
‘पूर्णता क्षणिक और अस्तव्यस्तता अनन्त है’, और हिंदू अस्तव्यस्तता मैं ही विश्वास रखते हैं, और यह भी एक कारण है सनातन धर्म के अनन्तता का| धर्म के परिपेक्ष मैं क्या अंतर है पूर्णता मैं और अस्तव्यस्तता मैं? पूर्णता आपको बाकी सब धर्म/रिलिजन/मजहब मैं देखने को मिल जायेगी, और सनातन को छोड़ कर, बाकी सब नियम प्रधान धर्म होते हैं, जिसको मानना अनिवार्य है| इन नियमो मैं समाज की बदलती हुई स्तिथी मैं छोटे मोटे बदलाव भी कष्टदायक हो जाते हैं| कुछ उद्धरण बात समझने के लिए उपयुक्त रहेंगे :
पहले समाज राज्य प्रधान था, यानी की राज्यों की सीमाए बदलती रहती थी, और उन्ही का आदर करता था| राष्ट्रीयता क्या है उससे किसी को मतलब नहीं था| इस युग मैं चाणक्य ने २३०० वर्ष पूर्व भारत मैं राष्ट्रीयता का नारा बुलंद करा, और क्यूँकी सनातन धर्म वर्तमान समाज को केंद्र बिंदु मान कर चलता है, तो किसी ने उसका विशेष विरोध नहीं करा| और अब यूरोप मैं देखीये; जॉन ऑफ आर्क, एक १९ वर्ष की कन्या ने फ्रांस मैं राष्ट्रीयता का नारा लगाया तो इसाई पादरियों ने उसे जिन्दा जलाने का आदेश दे दिया, और जिन्दा जला भी डाला| वोह सत्य है की बाद मैं उसे संत की उपाधी भी दी, लकिन उद्धारण का कारण यह है घोर कष्ट के बाद बदलाव आया|
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क्या प्राचीन युगों मैं अस्त्र-शस्त्र सिद्ध मन्त्र से संचालित होते थे ?
http://awara32.blogspot.com/2013/06/blog-post_21.html
‘रावण ने माया रची', प्राचीन युगों मैं अस्त्र-शास्त्र का सिद्ध मन्त्र से संचालन, अन्य लंबी दूरीके ध्वनिक यंत्र, अब आम बात है, और अज्ञान के कारण धर्मगुरु इसे समाज को समझा नहीं पारहे हैं~~रामायण और महाभारत, को बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के समझना अनिवार्य है, ताकि हिंदू छात्रों को प्राचीन विज्ञान की जानकारी मिले, शोघ के लिए ज्ञान मिले, और हिंदू समाज विश्व मै उचित प्रतिष्ठा पा सके
आवाज का अपना ही विज्ञानिक महत्त्व है; तथा आपकी आवाज अद्वित्तीय है| हर व्यक्ति की आवाज़ मैं एक निश्चित और अलग अंदाज़ से आवृति(FREQUENCY) और पिच(PITCH) होती है, जो की शब्दों के साथ साथ बदलती है, और इन सब कारणों से वोह अद्वित्य हो जाती है| पुरानो मैं, प्राचीन समय मैं मन्त्र सिद्ध अस्त्र-शास्त्र का उल्लेख है; परन्तु चमत्कारिक और अलोकिक शक्ति की चादर के कारण हम उसको समझ नहीं पा रहे है, और इसी मिथ्या की चादर के कारण, जो की धर्मगुरु उतारना नहीं चाहते, युवा हिंदू छात्र न तो प्राचीन शास्त्रों मैं दिलचस्पी ले रहे हैं, और ना ही उसपर आगे शोघ कर पा रहे हैं| यह अत्यंत खेद का विषय है|
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आजादी के बाद के कर्महीन हिंदू समाज की मानसिकता कैसे बदली जाए ?
http://awara32.blogspot.in/2013/06/blog-post_13.html
अवतार का स्वरुप, अशिक्षित, कम विकसित समाज केलिए, अलोकिक शक्ती की चादर के साथ होता है, और आजादी सेपहले था और विकसित, शिक्षित समाज के लिए, बिना अलोकिक शक्ती के, जो आजादी केबाद होना था, परन्तु नहीं हुआ
सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि हिंदू समाज कर्महीन क्यूँ है? यदि इतिहास उठा कर देखे तो हिंदू समाज पिछले २००० वर्ष मैं, कभी भी अच्छे समय से नहीं गुजरा| छोटे छोटे राज्य थे, कुछ अच्छे, कुछ बुरे, और कुछ बहुत बुरे| धर्म ने कभी भी राष्ट्रीयता का आवाहन नहीं करा, और राष्ट्र और राष्ट्रीयता क्या है कभी भी किसी राजा ने, न धर्मगुरु ने समझाने का प्रयत्न नहीं करा| चाणक्य का प्रयास अंतिम प्रयास था, राष्ट्रीयता को समझने का और समझानेका जो की इसा-पूर्व सन ३०० मैं समाप्त हो गया|
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हिंदू समाज मैं जाति समीकरण सतयुग से ही प्रारंभ था
http://awara32.blogspot.in/2013/06/blog-post.html
कठोर परिस्थीतिओं और सामाजिक न्याय के नियमों में अंतर होताहै; समुन्द्र में रहते होए लोग अपराध करते पकडे जाते, उनसे दंड स्वरुप वोह कार्य करवाया जाता जो कोइ नहीं करता था| यहीं से जाति प्रथा आरम्भ होई
कलयुग के अंत मैं मानव द्वारा संसाधन का अंधाधुन्द, अविचारपूर्ण, और विवेकहीन उपयोग से ऐसा समय आएगा, जब पृथ्वी धीरे धीरे जलमग्न होने लगेगी| इसमें कुछ प्राकृतिक विपदा भी सहायक होंगी| उस समाज पूरे विश्व से, जिनकी क्षमता है, जो पानी के जहाज के मालिकों के नज़दीक है, या सत्ता के नज़दीक हैं, यह सोच कर की कुछ समय की समस्या है, पानी के जहाज़ मैं सुरक्षा हेतु चले जायेंगे| लकिन उन्हे यह नहीं मालूम होगा की यह इस महायुग और अगले महायुग के अंतराल का संधिकाल है, जो की लाखों वर्ष का है, और अब वे, और उनके अनेक, अनेक पीढ़ी, समुन्द्र मैं सतयुग की प्रतीक्षा करेंगे|
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प्राचीन इतिहास, युग एवम युग परिवर्तन कैसे पुराणों से समझा जाय
http://awara32.blogspot.com/2013/05/blog-post_23.html
सभ्यताएं नष्ट होने पर भावनात्मक प्रचार करा गयाकी धीरज रखो, कलयुग है| कलयुग बुरा है ऐसे श्लोक भी पुराणोंमें उपलब्ध हैं| गुलामी मैं धर्म परिवर्तन से बचने केलिए धर्म का भावनात्मक भाग और बढ़ा दिया गया~~वैसे सत्य यह हैकी सनातन धर्म के अनुसार सबसे श्रेष्ट युग कलयुग, तथा मानव समाज केलिए पूरी तरह से बेकार युग था सतयुग| हैन चौकाने वाली बात !
इस समस्या का समाधान आपके हाथ मैं है| समस्या विश्वास की है, की हम कह तो देते हैं की सनातन धर्म, जब समय का जन्म हुआ, उसके पश्चात, या साथ साथ ही उत्पन्न हुआ था, लकिन इस पर विश्वास नहीं करते|
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युग युगान्तर से वही समस्या, समाधान भी मालूम है, पर कोइ लाभ नहीं
http://awara32.blogspot.com/2013/05/blog-post.html
Destruction of Dharm invariably CORRUPTS Dharm Gurus, which then destroys the society. Even now Hindu Society is moving towards destruction and slavery~~धर्म नाश मैं धर्मगुरु पतन की और बढते हैं, फिर समाज पतन की और जाता है| इसलिए धर्मगुरु-जनो पर नियंत्रण और संतुलन समाज का रहता था, नहीं तो स्वंम और समाज को डुबो देते हैं| आज भी समाज पतन की और बढ़ रहा है
जी हाँ, असली समस्या यही है; समस्याओं मैं कभी कोइ बदलाव नहीं आता, चाहे वे समस्या सतयुग की हों, चाहे त्रेता युग की, और चाहे वर्तमान समाज की| समस्या वही होती हैं; समाधान भी हम सबको मालूम होता है, परन्तु सफलता नहीं मिलती| इसे आप क्या कहेंगे? इश्वर की लीला, या समाज के शक्तिशाली मनुष्यों का विशेष लोभ, जो की बार बार समाज को नकारात्मक दिशा मैं ले जाता है| पूरा इतिहास उठा कर देख लीजिए; लोगो ने वर्तमान धर्म छोड कर नए धर्म बनाएँ, लकिन कोइ लाभ नहीं है| होगा भी कैसे; समाज को यह समझा दिया जाता है की इस बदलाव के बाद समाज की दिशा सही हो जायेगी, लकिन जब शक्तिशाली व्यक्ति निजी स्वार्थ को ध्यान मैं रख कर ही सारे निर्णय होने देते हैं, तो समाज सकारात्मक दिशा मैं कैसे जा सकता है? इश्वर को अवतरित होना पड़ता है|
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आज़ाद हिंदू समाज को गलत चाबी लगा कर स्वर्ग नहीं नर्क वाले कमरे मैं डाल दिया
http://awara32.blogspot.com/2013/03/blog-post_21.html
Independent India is a WELFARE State, and huge amount of money had been spent on welfare program. Yet the society had kept on becoming poorer, and Dharm Gurus extraordinary rich. This clearly indicate EXPLOITATION~~राष्ट्र का उद्देश समाज कल्याण है, तथा आजादी के बाद उसपर भरपूर राशी भी वय करी गयी है, परन्तु समाज गरीब होता गया, भ्रष्टाचार बढ़ता गया, तथा धर्म गुरु अत्यंत धनवान होते गए| यह तो सीधा संकेत शोषण का है
यह पोस्ट आपसब पढिये ज़रूर और अपने विचार भी व्यक्त करें, क्यूँकी विषय गंभीर है| यदी ऐसा हुआ है, तो यह पूरी तरह से धर्म के नाम पर ठगाई होई है, और बिना आप सबके प्रयास के सुधार भी नहीं होना है|
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सनातन धर्म मैं सप्त ऋषि की अवधारणा
http://awara32.blogspot.com/2013/03/blog-post_12.html
To oversee the performance of Sanatan Dharm, Sapt Rishi was a centralized committee, which was immortalized and buried~~ सप्तऋषी केन्द्रीय समिती थी; अंदरूनी शोषण के कारण समिती दफनाई जा चुकी है, ताकी बिना नियंत्रण और संतुलन के समाज का शोषण बिना रोक टोक के हो सके, और आजादी के बाद के प्रामाणिक आकडे यह दर्शा भी रहे हैं
सनातन धर्म मैं सप्त ऋषि के बारे मैं हम सब ने सुना है, कि कैसे उनका यह पवित्र कर्तव्य है कि धर्म को प्रगति की और ले जाएँ| यह भी बताया गया है कि वे अमर हैं तथा वे सफलतापूर्वक अपना कार्य करते रहते हैं| लकिन कोइ यह नहीं बताता की जो धार्मिक पुस्तके नष्ट हो गयी हैं, उनकी भरपाई वे क्यूँ नहीं कर रहे हैं, और कोइ यह भी नहीं बताता की वे वर्तमान धर्म गुरुओं को दिशा निर्देश क्यूँ नहीं दे रहे हैं, ताकी आजादी के बाद, तथा धर्म मैं पूरी श्रद्धा और रुची होने के उपरान्त भी समाज गरीब होता जा रहा है, जात के नाम पर बाटा जा रहा है, और धर्म गुरु अत्यंत धनवान, और शक्तिशाली होते जा रहे हैं|
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क्या लक्ष्मी का अवतरित स्वरुप संघारकारणी का होता है ?
http://awara32.blogspot.in/2013/03/blog-post.html
GODDESS LAKSHMI CAN GIVE ALL TYPE OF PROSPERITY AND WEALTH, BUT SHE SHOWERS HER BLESSINGS TO ONLY HUMANITY AND ENVIRONMENT FRIENDLY PERSONS~~माता लक्ष्मी, सबकुछ दे सकती हैं, लकिन वे केवल उसी पर कृपा करती हैं, जो श्रृष्टि और प्रकृति की प्रगती मैं रुचिकर है| आप सब भी इस बात का ध्यान रखियेगा |
यह पोस्ट इसलिए आवश्यक हो गयी कि अनेक जिज्ञासु यह जानना चाहते हैं, कि क्या माता लक्ष्मी जब पृथ्वी पर अवतरित होती हैं, तो उनका स्वरुप संघारकारणी का होता है? स्वंम महाऋषि वाल्मिकी ने अद्भुत रामायण मैं सीता को महाकाली का अवतार बताया है| यह भी सत्य है कि तुलसीदास जी ने माता सीता की वंदना इस श्लोक से करी :
उद्भवस्थिति संहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्।।
लोगो का प्रश्न यह भी है कि श्री श्री राधा रानी ने श्री कृष्ण से विवाह क्यूँ नहीं करा ? यह भी सत्य है कि कुछ पुस्तकों मैं राधा कृष्ण के विवाह का उल्लेख है लकिन अधिक पुस्तकों मैं ऐसा कुछ नहीं है; इस चर्चा मैं हम यह स्वीकार करके ही आगे बढ़ रहे हैं, कि माता लक्ष्मी की अवतार, श्री श्री राधा का विवाह श्री कृष्ण से नहीं हुआ|
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महाशिवरात्रि विवाह के लिए शुभ मुहूर्त नहीं है
http://awara32.blogspot.com/2013/02/blog-post_27.html
महाशिवरात्रि को भक्त पूरी रात इश्वर शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करते हैं, और अगली सुबह सूर्य उदय के बाद चन्द्रमा के दर्शन, सूर्य के ऊपर (उस दिन चंदामा का, चांदी जैसा लघु स्वरुप, जैसा की भगवान शिव की छबी मैं हम सब देखते हैं) सूर्य उदय के तुरंत बाद, कुछ समय के लिए होता हैं| वोह मास का अंतिम चन्द्र होता है, जो पूर्व दिशा मैं दिखेगा| उसके बाद कम से कम दो दिन के लिए चन्द्रमा नहीं दीखता| नया चन्द्रमा दोयज को सूर्य अस्त के बाद पश्चिम दिशा मैं कुछ संमय के लिए दीखता है, जिसको देख कर मुस्लिम समाज अपना नया मास आरम्भ करता है|
आपको अब यह भी समझ मैं आ गया होगा की चन्द्र देखने की प्रथा शिवरात्रि की, हर मास पूजा होने के कारण, अत्यंत प्राचीन है, और मुस्लिम समुदाए ने उसे सरल बनाने के लिए दोयाज़ का नया चाँद को देखने की प्रथा शुरू कर दी, चुकी यदी किसी कारण दोयाज़ का चाँद नहीं दिखा तो अगली तिथी मैं तो अवश्य दिख जाएगा| शिवरात्रि की तरह एक महीना इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा|
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सनातन धर्म मैं एकही अवतार के भिन् स्वरुप अलग अलग सामाजिक स्थिती मैं
http://awara32.blogspot.com/2013/02/blog-post_19.html
HOW SANATAN DHARM COATS AVATAR WITH SUPERNATURAL POWERS WHEN THE SOCIETY IS WEAK, UNINFORMED, UNEDUCATED, AND LESS DEVELOPED; AND PRESENTS AVATAR WITHOUT SUPERNATURAL POWER WHEN THE SOCIETY IS DEVELOPED, EDUCATED AND INFORMED~~अवतार का स्वरुप कम विकसित, अशिक्षित समाज के लिए अलोकिक शक्ती की चादर के साथ होता है, और विकसित, शिक्षित समाज के लिए बिना अलोकिक शक्ती के ..
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यह भी ध्यान देने की बात है कि त्रेता युग मैं श्री राम के समय, समाज, शिक्षा और विज्ञानिक विकास के स्थर पूरी तरह से विकसित था, स्वंम हम सब मानते हैं, की उस समय विमान भी थे| यह भी हम जानते हैं, कि विमान विज्ञानिक विकास के प्रथम चरण का विकास नहीं है|
उस समय, एक के बाद तुरंत श्री राम को श्री विष्णु के दूसरे अवतार के रूप मैं अवतरित होना पड़ा, यह एक जबरदस्त प्रमाण है, की वह बहुत बुरा वक्त था, समाज के लिए|
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शिव और पार्वती की अराधना प्रकृति की सुरक्षा के लिये बचनबद्धता है
http://awara32.blogspot.com/2013/02/blog-post.html
नोट: आज १०, जनवरी, २०१३, को प्रयाग मैं मौनी अमावस्य का महा-कुम्भ पर्व पर महा-नहान है, और सुबह से टीवी बता रहा है की मुख्य धारा कितनी प्रदूषित हो गयी है | मन खिन्न हो गया| यह भी सही है की प्रदुषण ऊपर के शहरों और उद्योगों से आ रहा है, और हम हिंदू हो कर इसके लिए कोइ प्रयास नहीं कर रहे हैं|
‘कम ऊची श्रंखला’ श्रृष्टि के विकास मै अवरोधक हो रही थी| इसी परिपेक्ष मैं दक्ष से सम्बंधित कथाए समझ मैं आती हैं, यह भी समझ मैं आता है, की दक्ष क्यूँ, प्राकृती के नियमों के विरुद्ध, ऐसी श्रृष्टि का विकास कर रहे थे, जो संघार रहित हो, अथार्थ शिव का उसमें कोइ भाग न हो| चुकी सति का दूसरा स्वरुप प्रकृति है, वोह यह कैसे सहन करती| एक तरफ शिव संघार के देवता, और पृथ्वी के इश्वर, जिनका अपमान हो रहा था, दक्ष के इस प्रयास से, दूसरी और दक्ष, सति के पिता| ऐसे मैं सति करती भी तो क्या करती|
दक्ष उनके पिता, स्वंम सति के प्रमुख स्वरुप प्रकृति का संघार करें, नई श्रृष्टि के विकास के लिए, जो की इश्वर विरुद्ध, प्रकृति विरुद्ध, और स्वंम श्रिष्टी विरुद्ध था, तो सति के पास क्या विकल्प था? उन्होंने स्वंम देह त्याग दी| आप समझना चाहें तो यह भी समझ सकते हैं, कि प्रकृती के देह का क्या अर्थ है? प्रकृती के देह का अर्थ है, प्रकृति का संतुलन, अथार्थ देह त्यागने का अर्थ हुआ, प्रकृति का संतुलन बिगड गया; यह भी कह सकते हैं सुर(HARMONY) और असुर(DISHARMONY) मैं सामंजस्य बिगड गया|
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आपकी लड़ाई कोइ और क्यूँ लड़ेगा, आपको खुद ही लड़नी होगी
http://awara32.blogspot.com/2013/02/why-should-others-fight-your-battles-no.html
WHY SHOULD OTHERS FIGHT YOUR BATTLES; NO YOU HAVE TO DO THIS!
“हर सार्थक प्रयास से, समाज का भावनात्मक भाग कम हो जाता है और कार्मिक भाग बढ़ जाता है, जो कि समाज के अंदर रह कर समाज को खोखला करने वाले शोषणकरता को पसंद नहीं है; इसलिए सार्थक प्रयास का विरोध होगा”
कितने हिंदू समाज मैं लोग हैं, जो की ‘कुछ गलत’ धर्मगुरुजनों, तथा हिंदू समाज के अंदर जो शोषण करता हैं, उनके द्वारा जो गलत कार्य हो रहा है, उसका विधीवध विरोध कर रहे हैं|
विधिवद विरोध का अर्थ है की ऐसे सकारात्मक प्रयास जिससे आज नहीं तो कुछ समय पश्यात, समाज कर्मठ होकर, हर गलत और शोषण पूर्ण कार्य, जो समाज को गुलामी की तरफ ले जा रहा हैं , उससे लड़ने की क्षमता विकसित कर सके; ध्यान रहे: “क्षमता विकसित कर सके”|
विधिवद विरोध का यह भी महत्वपूर्ण अर्थ है की मात्र इस प्रमाणित आकडे के पश्यात, कि आजादी के बाद हिंदू समाज गरीब होता जा रहा है, और हिंदू गुरुजानो की आर्थिक स्थिती, ज्यामितीय प्रगति(GEOMETRIC PROGRESSION) के आधार पर अनेक गुना बढ़ गयी है, हिंदू गुरुजनों और धार्मिक नेताओं, और संगठनो की गतिविधि, और कथन, सूक्ष्म समीक्षा का अधिकारी है|
परन्तु सफलता आपके सहयोग के बिना संभव नहीं है|
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सनातन धर्म का अति प्राचीन हो कर भी जीवित रहने का कारण
http://awara32.blogspot.com/2013/01/blog-post_28.html
REASONS FOR SANATAN DHARM SURVIVING FOR SUCH AN ABNORMAL LONG PERIOD~~ जब से पृथ्वी पर श्रृष्टि उत्पन्न होई है, तभी से सनातन धर्म भी है, परन्तु कारण क्या है कि इतना प्राचीन हो कर भी यह प्रभावी और प्रिये धर्म है
यह तो सर्व विदित है कि सनातन धर्म अत्यंत प्राचीन है, कबसे है यह, किसी को नहीं मालूम| अनुमान है कि जब से पृथ्वी पर श्रृष्टि उत्पन्न होई है, तभी से सनातन धर्म भी है| परन्तु कारण क्या है कि इतना प्राचीन हो कर भी यह प्रभावी और प्रिये धर्म है| ऐसी भी मान्यता है कि किसी भी धर्म का विश्व मैं ३००० वर्ष से ज्यादा जीवित रहना संभव नहीं है, जबकि सनातन धर्म कितना प्राचीन है, यह तक किसी को पता नहीं| लोग भावनात्मक कारण तो बताते है, कि यह धर्म इतना प्राचीन क्यूँ है, लकिन उससे तो कुछ होता नहीं; पाठकों को सही कारण चाहिये|
मैने कुछ सामाजिक वैज्ञानिको से यह प्रश्न करा; यह भी सही है, कि जिनसे करा, वोह हिंदू ही थे, लकिन आपको विश्वास दिलाता हूँ, जो विचार दिये जा रहे हैं, वे सम्पूर्ण तथ्यों के आकलन के पश्च्यात ही हैं|
सबसे पहले तो यह समझना आवश्यक है, कि धर्म तभी तक जीवित रह सकता है, जब तक उसे मानने वाला समाज जीवित है, जब धीरे धीरे जो समाज उस धर्म को मान रहा था, वोह समाप्त हो जाता है, या उसका विश्वास उस धर्म से हट जाता है, तो धर्म लुप्त हो जाता है|
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हिंदू धर्म में अवतार के कारण
http://awara32.blogspot.in/2013/01/blog-post_22.html
THE REASON FOR AVATARS IN SANATAN DHARM is that HINDUS BELIEVE IN EVOLUTION AND DO NOT BELIEVE IN CREATION
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
“जब-जब धर्म की हानि होती है, तब मैं धर्म की संस्थापना के लिए पृथ्वी पर किसी न किसी रूप में अवश्य अवतरित होता हूं” श्री कृष्ण, गीता मैं
पोस्ट ‘अवतार की परिभाषा’ पर काफी पाठकों के जिज्ञासा पूर्ण प्रश्नों से काफी उत्साह बढ़ा|
यह पोस्ट इसलिए आवश्यक हो गयी क्यूंकि ईमेल के माध्यम से और अनेक सोसिअल सीट्स पर निम्लिखित प्रश्न बार बार आ रहे हैं|
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क्या अवतार के पास अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति होती हैं ?
http://awara32.blogspot.com/2013/01/blog-post_21.html
यहाँ युगों की अवधी देना इसलिए आवश्यक हो गया था, ताकि आप इस बात को समझ सकें कि श्रृष्टि बीच बीच मैं बुरे और बहुत बुरे वक्त से भी गुजरती है| आवश्यक है कि मनुष्य रूप मैं अवतार के संधर्भ मैं ‘बुरे वक्त’ और ‘बहुत बुरे वक्त’ को परिभाषित भी कर दिया जाए|
बुरा वक्त: जब अनेक कारणों से धर्म की हानि होती है, परन्तु समाज विज्ञानिक तौर पर पूरी तरह से विकसित नहीं होता, तो मनुष्य रूप मैं इश्वर के अवतार की आवश्यकता नहीं पड़ती है, या बहुत ही सीमित कार्य के लिए प्रभु अवतरित होते हैं, जैसे नरसिंह अवतार, हिर्नाकश्यप के वध के लिए, वामन अवतार, आदि...
बहुत बुरा वक्त: जब समाज विज्ञानिक तौर पर पूरी तरह से विकसित होता है, तब धर्म की हानी के कारण, आवश्यक सुधार, दिशा परिवर्तन के लिए इश्वर मनुष्य रूप मैं अपना पूरा जीवन काल उस सुधार के लिए लगा देते हैं, जैसे, भगवान परशुराम, श्री राम, श्री कृष्ण| यह भी ध्यान देने वाली बात है की त्रेता युग मैं एक के बाद तुरंत दुसरे विष्णु अवतार के रूप मैं श्री राम को आना पड़ा, क्यूँकी पहले अवतार, भगवान परशुराम, समस्त समस्याओं का समाधान करने मैं सक्षम नहीं हो पा रहे थे|
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हिंदू ज्ञान के अनुसार युगों का निर्माण आप कैसे करेंगे
http://awara32.blogspot.in/2012/12/blog-post_27.html
HOW TO CONSTRUCT YUGS AS PER HINDU GYAN
युगों का निर्माण आप स्वंम इसलिए करें , ताकी आपको यह सच तो पता पड़े कि कौन सा युग मानवता के लिए अच्छा है और कौन सा मानवता के लिए खराब| अभी तक तो आपको जो बता दिया गया है , वह आपने मान लिया कि सतयुग सबसे अच्छा युग था, और कलयुग सबसे खराब, जब की सच्चाई यह है कि सतयुग सबसे खराब युग था , और कलयुग सबसे अच्छा| आज के सूचना युग मैं यह सहज भी है , तो कमसे कम खुद तसल्ली तो कर लीजीये कि सही क्या है |
ध्यान रखीये यहाँ आप वही ज्ञान इस्तेमाल करेंगे जो सनातन धर्म मैं बताया गया है , और वैसे भी हिंदू धर्म के बाहर कोइ युगों को मानता नहीं है , और चुकी हमारे धर्म गुरुजनो ने केवल हिंदू समाज को ठगने के लिए युगों का प्रयोग करा है , और युगों को भौतिक आधार पर आज तक परिभाषित तक नहीं करा है , इसलिए आपसब के प्रयास के बिना हिंदू धर्म के बाहर लोग इसे मानेंगे भी नहीं |
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एक सन्देश ..क्यूँ पालन कारक स्वरुप इश्वर का अवतरित होता है
http://awara32.blogspot.in/2012/12/blog-post.html
WHY ONLY LORD VISHNU COMES AS AVATAR TO MAKE CORRECTIONS.
यह एक ऐसा विषय है जिसके बारे मैं पता तो सबको है , लकिन ऐसा क्यूँ इसके बारे मैं कभी किसी ने गंभीरता से सोचने का प्रयास नहीं करा |
नई श्रृष्टि का आरम्भ होता है सतयुग से, और चुकी सतयुग मैं पुरानी श्रृष्टि के कुछ लोग भी आ जाते हैं , मनु के साथ , तो सतयुग मैं नई श्रृष्ट के साथ साथ पुराने युग के मनुष्य, जिनमें राक्षस , अथार्थ मनुष्य का मॉस खाने वाले . और आर्य(आर्य वास्तव मैं राक्षस शब्द के रा को उल्टा कर के बनाया गया है , चुकी राक्षस की प्रवति आम मनुष्य से उलटी थी) भी सम्मलित हैं| आर्य और राक्षस के सतयुग मैं मौजूद होने से श्रृष्टि को लाभ भी होता है और हानि भी| पढीये : कलयुग का अंत..एक नए कल्प का प्रारम्भ और मत्स्य अवतार
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धर्मगुरु समाज को राक्षस और असुर कि भिन्नता की सूचना तो दें
http://awara32.blogspot.in/2012/10/blog-post_28.html
PLEASE INFORM SOCIETY THAT RAKSHAS AND ASUR ARE DIFFERENT
इक्कीसवी सदी सूचना युग कहलाती है , और सूचने के अनेक सोत्र उपलब्ध हैं |
यह पोस्ट इसलिए जरूरी हो गयी कि बहुत से लोग यह प्रश्न पूछ रहे हैं कि यदि यह सत्य है तो यह सूचना हमें गुरुजनों से क्यूँ नहीं मिली | सारी प्रतिक्रिया तब शुरू होई जब इस विषय मैं एक पोस्ट ब्लॉग मैं आई ; लीजिए लिंक पर जा कर आप भी पढ़ें : धर्मगुरु समाज को यह तो बताओ कि राक्षस और असुर अलग हैं
एक प्रमुख कारण हमारी कर्महीन मानसिकता का यह भी है , कि हमारे धर्म गुरु, धन और शोषण के उद्देश हेतु, समाज तक सही सूचना नहीं पहुचने देते हैं | गुरुजानो का कम ज्ञान भी एक कारण है , की गलत सूचना समाज तक पहुच रही है |
कम ज्ञान के कारण या शोषण हेतु , यह गलत सूचना हिंदू समाज को पहुचाई जा रही है , कि राक्षस और असुर एक हैं | नहीं राक्षस और असुर दोनों भिन्न हैं , और जहाँ राक्षस उन मानव को कहते हैं जो की मनुष्य का मॉस खाने लगे थे, असुर प्रकृति मैं सामंजस्य की विपरीत स्थिति को कहते हैं | फिर से बता रहा हूँ : > “असुर, प्रकृति मैं सामंजस्य की विपरीत स्थिति को कहते हैं” |
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देवों के देव इश्वर शिव और वैराग
http://awara32.blogspot.in/2012/09/blog-post.html
DEVON KE DEV, BHAGWAAN SHIV is a VAIRAGI VAIRAAG means a man who is in total control of himself and HE could NEVER take any decisions on being emotional. Yet our Dharm Gurus say that SHIV destroyed the entire creation after the death of SATI because HE became EMOTIONAL. IS THEIR A DEEPER CONSPIRACY HERE?
हिंदू धर्म एक ऐसा धर्म है जिसमें की स्वंम भगवान विष्णु और श्रृष्टि रचेता ब्रह्मा जी की उत्पत्ति का उल्लेख है | लकिन भगवान शिव का उत्पत्ति का कहीं कोइ उल्लेख नहीं है | ऐसी मान्यता है कि जब ब्रह्माण्ड मैं समय की उत्पत्ति होई तभी भगवान शिव की भी उत्पत्ति होई | किसी भी व्यक्ति के लिए, कुछ भी कल्पना बिना समय के संभव नहीं है | यह हमारी सोच की सीमा से बाहर है | स्पष्ट है कि शिव का आंकलन समय को मापदंड बना कर नहीं हो सकता ; और कोइ मापदंड हमें आता नहीं है | संभवत: यही इश्वर की परिभाषा भी हो ?
शिव के बारे मैं विख्यात है कि वे वैरागी हैं और परम योगी भी | सांसारिक सुख दुःख से वे विमुख हैं | जो सहज ही कृपा कर देते हैं , और जो भी मांगो , वो दे देते हैं | परन्तु खुद समाधी मैं विलीन रहना ही उन्हें पसंद है ; अपने पास खुद कुछ नहीं रखते, यहाँ तक प्रचलित है कि भिक्षा मांग कर ही उनके भोजन की व्यस्था होती है | रहने के लिए खुद की कुटिया तक नहीं है |ऐसा नहीं की सनातन धर्म मैं यह सिर्फ कहने की बात है | धर्म को मानने वाले इस बात पर पूर्ण विश्वास रखते हैं |
फिर क्यूँ हमारे धर्म गुरु बार बार यह बताने की चेष्टा करते हैं कि इश्वर शिव का वैराग और योग मिथ्या है , और सती के देह त्यागने से वे सारा वैराग भूल कर भावनात्मक हो कर श्रृष्टि का विनाश कर देते हैं | ध्यान रहे सिर्फ एक बार उनके वैराग का इम्तिहान हुआ और , और पूरी तरह से असफल हो कर उन्होंने भावनात्मक हो कर श्रृष्टि का विनाश कर दिया | क्या ऐसा संभव है? यदि इश्वर शिव के वैराग मैं संदेह है, तो वैराग किसी भी मनुष्य के लिए एक मिथ्या है जिसे प्राप्त ही नहीं करा जा सकता |
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धर्मगुरु समाज को यह तो बताओ कि राक्षस और असुर अलग हैं
http://awara32.blogspot.in/2012/08/blog-post_26.html
HINDU RELIGIOUS LEADERS MUST TELL THE SOCIETY THAT RAKSHAS AND ASURS ARE DIFFERENT
आज का युग सूचना युग है | इन्टरनेट और कंप्यूटर के कारण सूचना हर विषय मैं सुलभता से उप्लभ्द है | आज धर्म गुरुजनों का यह प्रथम कर्तव्य है कि समाज को अधिक से अधिक सूचना उप्लभ्द कराएं | खेद की ऐसा हो नहीं रहा है ; और यह भी प्रमुख कारण है हिंदू समाज के कर्महीन होने के |
पुरानो मैं राक्षस और असुर दो का रह रह कर वर्णन है , परन्तु सूचना और परिभाषा के अभाव मैं दोनों को एक मान लिया गया है | साम्यता , सामंजस्य , सुर जो की किसी भी परिस्थिति को पूर्णता की और ले जाता है , उसीके विपरीत शब्द हैं असाम्यता , असामंजस्य और असुर जो की किसी भी परिस्थिति को अराजकता की और ले जाते हैं | विज्ञान से जुड़े बुद्धीजन आपको यह बता सकेंगे की सुर और असुर दोनों की आवश्यकता होती है , किसी तरह के विकास के लिए; यहाँ तक की एक बच्चे को गर्भ मैं स्तापित होने से पैदा होने तक भी दोनों सुर और असुर का सही मिश्रण आवश्यक है |
सुर और असुर , साम्यता , असाम्यता, तथा सामंजस्य और असामंजस्य से ही श्रृष्टि का विकास होता है , और जब भी इसमें गडबडी होती है तो प्राकृतिक विपदा के रूप मैं यह तुरंत प्रकट हो जाती है , और नया संतुलन स्थापित करने का प्रयास करती है | इसी लिए यह कहावत प्रसिद्ध है कि PERFECTION IS MOMENTARY AND CHAOS ETERNAL , अथार्थ ‘पूर्णता क्षणिक और अराजकता अनन्त है’ |
स्पष्ट है कि राक्षस और असुर , दोनों अलग हैं | जहाँ राक्षस उन मनुष्यों को कहा जाता है , जो कि मनुष्य का मॉस खाने लगते हैं , वहाँ असुर प्रकृति मैं उत्पन्न होई अधिक असाम्यता और असामंजस्य स्थिति को कहते हैं | प्रश्न फिर यह उठता है कि हमारे पुरानो मैं उनको मनुष्य शरीर क्यूँ दे दिया गया है ?
इसका उत्तर भी स्पष्ट है ; पुराण कुछ विशेष लक्षण , विशेषताओं को दर्शाने के लिए पर्वतो को , नक्षत्रों को , नदियों को, तथा असुरों को शरीर दे कर व्याख्या करते हैं | लकिन इसका अर्थ यह तो नहीं हुआ कि यह सब मनुष्य हैं ? यह कार्य तो धर्म गुरुओं का है कि समाज को उनकी शमता, और सूचना ग्रहण करने की योगता अनुसार समझाया जाए |अफ़सोस , धर्म गुरुजनों की योगता पर ही प्रश्न चिन्ह है | ऐसे मैं समाज की प्रगति कैसे होगी ?
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सोचिये समझिये और समाज मैं जागरूकता लाईये
http://awara32.blogspot.in/2012/06/blog-post_16.html
READ THINK UNDERSTAND AND WORK FOR CORRECTION IN HINDU SOCIETY
1. सबसे सरल परिभाषा धर्म की यह है कि :
धर्मपुस्तकों से प्ररित हो कर धर्मगुरु द्वारा वर्तमान समाज के लिए बनाए गए नियम, जिनका पालन करने से व्यक्ति और समाज प्रगति कि और अग्रसर होता है , पनपता है, तथा इश्वर पर आस्था बनी रहती है |
2. रामायण तथा प्राचीन हिंदू इतिहास भक्ति भाव मैं इसलिए उपलब्ध है क्यूँकी बीते हुए वक्त मैं हिंदू समाज अनेक कठिन परिस्थितियों से गुजरा है, और तब वास्तविक धर्म का पालन संभव नहीं था, तब धर्म को मानने वाले हिंदू समाज की पतन से रक्षा ज्यादा आवश्यक थी, लकिन आज क्या हो रहा है, आज धर्म पालन से समाज प्रगति कि और क्यूँ नहीं अग्रसर है ?
कृप्या यह गलत जवाब न दें कि समाज धर्म का पालन नहीं कर रहा है | प्रमाणित आकडे बताते हैं कि हिंदू समाज का धार्मिक कार्य मैं व्यय आजादी के बाद बढा है , और अनेक टीवी चैनल(MULTIPLE TV CHANNELS) के आने के बाद तो बहुत तेज़ी से बढा है |
3. पिछले १५०० वर्षों मैं उत्पीडन , हिंदू समाज के शासकों द्वारा शोषण के कारण, हिंदू समाज अपने को समेट कर अंदर की तरफ सुकुड गया है , फिर और ज्यादा उत्पीडन, शोषण, तथा और ज्यादा सिमटना और सुकुड़ना, तथा यह क्रम अनेक बार हुआ, जिसका परिणाम है हिंदू समाज पूरी तरह से कर्महीन हो गया है , और आजाद हिन्दुस्तान के धर्म गुरुजनों का यह कर्तव्य है कि इस विचारधारा को बदलें |
4. समझने की बात यह है कि सनातन धर्म कि माने तो अपने लोक मैं बैठे इश्वर कभी भी इस कार्मिक संसार मैं हस्ताषेप नहीं करते | जब इश्वर को हस्ताषेप करना होता है तो वे पृथ्वी पर अवतरित होते हैं , और तब आवश्यक सुधार या दिशा परिवर्तन करते हैं | स्पष्ट है कि अवतरित होने के उपरान्त इश्वर आलोकिक और चमत्कारिक शक्तियुओं का प्रयोग नहीं करते ; क्यूंकि इश्वर तो सर्वशक्तिमान है , आलोकिक और चमत्कारिक शक्तियुओं का प्रयोग तो वे अपने लोक मैं बैठ कर भी कर सकते हैं , वे अवतार के रूप मैं पृथ्वी पर क्यूँ आयेंगे ?
5. धर्म का सीधा सम्बन्ध समाज से होता है | प्रमाणित आकडे बता रहे हैं कि हिंदू समाज गरीबी और बर्बादी की और बढ़ रहा है , जब की धर्म गुरु जानो कि आर्थिक स्थिति मैं जबरदस्त सुधार हुआ है | सीधा अर्थ है समाज का शोषण हो रहा है | फैसला आप करें कि वास्तिवकता क्या है |
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अवतार की परिभाषा
http://awara32.blogspot.com/2012/06/blog-post_11.html
“अवतार , या तो दर्शाते हैं , या उपलब्ध कराते हैं, ऐसी परिस्थिती जिसमें मानव के जीवित रहने मैं उल्लेखनीय सुधार हो | मनुष्य रूप मैं अवतार अवतरित हो कर आवश्यक सुधार मानवता की प्रगति के लिए लाते हैं , जब , जब की मानवता अत्यंत संकट मैं हो | और भौतिक प्रयास समाज की प्रगति के लिए जो करा जाता है , वह धर्म है”
EVOLUTION REQUIRES AVATAR NOT GOD TO MAKE CORRECTIONS
अवतार का क्या सही अर्थ है, यह जानना अत्यंत आवश्यक है , क्यूंकि सूचना युग मैं हिंदू समाज को अगर आगे आना है , तो परिभाषा तो सबकी सही होनी चाहिए , और परिभाषा भी ऐसी, जो सम्बंधित समस्त प्रश्नों का भौतिक स्तर पर उत्तर दे सके | ध्यान रहे भौतिक स्तर पर , न की भावनात्मक स्तर पर | खेद का विषय यह है कि अभी तक अवतार कि कोइ परिभाषा ही नहीं है |
समस्या यह भी है कि हमारे धार्मिक ग्रन्थ इतने अधिक हैं , कि उनका उपयोग समाज के शोषण के लिए करना ज्यादा लुभावना है, और वही हो रहा है | यदि , स्पष्टीकरण हर विषय पर , समाज को केन्द्र बिंदु मान कर करा गया , तो शोषण समाप्त हो जाएगा , और यह धर्म गुरु नहीं चाहते |
एक उद्धरण उपयुक्त रहेगा | मत्स्य अवतार का उल्लेख है , जो कलयुग के अंत में , जब पृथ्वी पूरी तरह जलमग्न हो जाती है , तो इस युग के कुछ लोगो को, अगले महायुग मैं ले जाने मैं सहायक सिद्ध होता है | पुरानो की माने तो ‘अंतराल’ अथार्थ बीच का समय , यानी की वर्तमान कलयुग का अंत और नए महायुग के शुरुआत की दूरी ७,२०,००० वर्ष की है | इतने लंबे समय मैं , जब पृथ्वी जल-मग्न हो, तो भोजन का अभाव और समुन्द्र पर रहने की क्या अवश्यकताएँ हो सकती हैं , कोइ नहीं बताता, लकिन अनुमान हर व्यक्ति लगा सकता है | समुन्द्र का जल भी स्थिर था , तथा जल-जीवन भी समाप्त हो गया था | केवल भारत , जो जलमग्न था, उसके ऊपर जल मैं कुछ जीवन शेष था, और मछलियाँ दिखाई देती थी | अब परिभाषा , ‘मत्स्य अवतार’ की आप स्वंम निर्धारित करें , भावनात्मक परिभाषा चाहिए, जिससे कर्महीनता बढ़ेगी, या भौतिक, जिससे कर्महीनता कम होगी |अधिक जानकारी के लिए पढ़ें : कलयुग का अंत..एक नए कल्प का प्रारम्भ और मत्स्य अवतार http://awara32.blogspot.com/2011/12/blog-post_23.html
अब सोचना आपको है की इस अंतराल के लिए मत्स्य को अवतार क्यूँ कहा गया , उसका भौतिक या भावनात्मक उत्तर आप देंगे; मैं यह पाठकों पर छोड़ता हूँ | परन्तु एक बात तो आप सब समझ लीजिए, धर्म समाज की प्रगति के लिए करा हुआ कर्म है| आप भौतिक परिस्थितियों से किस तरह से , समाज कि प्रगति के लिए , निबटते हैं , वही धर्म है |
युगों को परिभाषित करने के लिए भौतिक मापदंड चाहिए, जो कहीं पुस्तकों मैं लुप्त पड़े हैं , लकिन समाज चुकी कर्महीन है , इसलिए धर्म गुरु बिना उसके भी काम चला रहे हैं |
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दक्ष का श्रृष्टि यज्ञ जिसमें सती ने प्राणों की आहुति दे दी
http://awara32.blogspot.com/2012/06/blog-post.html
“मेरे इश्वर, शिव और सती, संसार कि श्रृष्टि के सकारात्मक प्रगति मैं सदेव रुचिकर हैं , और वचनबद्ध हैं ; तथा वे श्रृष्टि का विनाश भावनात्मक कारणों से नहीं कर सकते | इतना विश्वास तो आपको भी अपने इश्वर पर होना चाहिए, नहीं तो हिंदू समाज का शोषण समाप्त नहीं होगा | याद रहे, ऐसा घृणित कार्य तो राक्षस ही कर सकते हैं , इश्वर कदापि नहीं”
सबसे पहले हम यज्ञ का अर्थ समझते हैं | यज्ञ का अर्थ होता है ‘सामूहिक कठोर प्रयास’ | यज्ञ, जो कि संस्कृत का शब्द है उसके लिए यह गलत धारणा अपने दिमाग से निकाल दीजीये कि यज्ञ का अर्थ होता है ‘अग्नि के सामने बैठ कर आहुति देना’ | उसी प्रकार ‘तप’ के लिए भी गलत धारणा है कि तप का अर्थ होता है सब कुछ भूल कर वन मैं जा कर , तथा सब कुछ त्याग कर इश्वर की कठोर और निरंतर अराधना ; नहीं तप का अर्थ होता है ‘व्यक्तिगत कठोर प्रयास’ |
DEVON KE DEV-MAHADEV(देवो के देव महादेव), एक लोकप्रिय सीरियल है, जो LIFE OK , TV CHANNEL पर दिखाया जा रहा है | जैसा की हर धार्मिक सीरियल मैं होता है , प्रयास हर सीरियल मैं इस बात का करा जाता है कि भावनात्मक तरीके से दर्शक को इस सीरियल से जोड़ा जाए, ताकि सीरियल से होने वाला आर्थिक लाभ अधिक से अधिक हो सके | इसमें कोइ बुराई भी नहीं है, व्यवसाय मैं ऐसा होता भी है , लकिन हिंदू धार्मिक गुरुजनों की यह नैतिक जिम्मेदारी तो है, कि हिंदू समाज को यह बताएं कि यह यज्ञ किस कारण हो रहा था, जहाँ सती ने देह त्याग दी |
सबसे पहले तो आपको यह भूलना होगा कि सती के देह त्यागने के कारण भावनात्मक थे | सती जगत जननी भी हैं , तो जो आपको बताया जा रहा है कि सती का देह त्यागने का कारण भावनात्मक है उसे आपने अस्वीकार क्यूँ नहीं करा ? क्या इश्वर श्रृष्टि का विनाश मात्र भावनात्मक कारण से कर सकते थे | क्या इश्वर श्रृष्टि का विनाश मात्र इस कारण से कर सकते हैं की उनकी पत्नी ने देह त्याग दी ? नहीं कभी नहीं | ऐसे भगवान की कम से कम मैं तो पूजा नहीं करूँगा; और मेरे भगवान ऐसा ‘राक्षसी कार्य’ कर भी नहीं सकते, कि ‘पति के अपमान’ के कारण से सती ने देह त्याग दी और शिव रुष्ट हो गए , जिससे प्रलय आ गयी | वैसे भी भावनात्मक कारणों से देह त्यागना अधर्म है और यह हर धर्म बताता है |माता सती ने भावनात्मक कारणों से देह नहीं त्यागी |
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नरसिंह अवतार.. क्रमागत उन्नति की प्रक्रिया से उत्पन्न मनुष्य
http://awara32.blogspot.com/2012/05/blog-post_14.html
NARSINGH WAS AN EVOLVED HUMAN AND NOT GOD WHO EMERGED FROM PILLAR
“श्रृष्टि के सकारात्मक उनत्ति के लिए भगवान विष्णु का वानर प्रजाति मैं, नरसिंह के रूप मैं अवतरित होना , यह उदहारण स्थापित करता है , कि समाज मैं विषमता को दूर करने के लिए पिछड़ा वर्ग जो प्रयास करे वह सदेव सराहनीय है , इश्वर अवतार नरसिंह की तरह पूजनीय है | उसका सम्मान होना चाहिए विकसित मनुष्य वर्ग द्वारा”
यह पोस्ट अनेक जिज्ञासु प्रश्नकर्ताओं के फल स्वरुप आवश्यक हो गयी थी |
प्रश्नकर्ताओं की जिज्ञासा इस विषय मैं है कि लोक-प्रिय पोस्ट : “ हिंदू इतिहास ...सत्ययुग में इश्वर अवतार ” लिंक : http://awara32.blogspot.com/2012/01/blog-post.html मैं यह बात कही गयी है की नरसिंह वानर प्रजाति के वन मैं विकसित मनुष्य थे , जिन्होंने हिरणकश्यप का वध किया ! नरसिंह का मुख सिंह जैसा था ! आज भी हम नरसिंह को विष्णु अवतार मानते है !
कुछ पाठकों का कहना है कि नरसिंह अवतार तो खम्बे से प्रकट हुए थे, तो इस तथ्य को क्यूँ बदला जा रहा है , तो कुछ समर्थक कारण जानना चाहते है | इस कथन के कारण बहुत साधारण हैं , इश्वर और अवतार के बीच मैं जो अंतर है उसकी परिभाषा के अभाव मैं यह भ्रान्ति है |
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पृथ्वी का विकास.. सृजन या क्रमागत उन्नति
http://awara32.blogspot.in/2012/03/blog-post_12.html
WHAT IS RESPONSIBLE FOR GROWTH, DEVELOPMENT OF EARTH…CREATION OR EVOLUTION
विश्व में केवल प्राचीन भारत के वृत्तांतों से आपको यह अवगत हो पायेगा कि प्राचीन हिंदू समाज एक अद्भुत सोच विश्व को दे कर गया है जो की क्रमागत उन्नति(EVOLUTION) को पृथ्वी के विकास का कारण मानती है ! हिंदू एक अकेला समाज है जो कि यह मानता है कि सृजन व् क्रमागत उन्नति में विरोध निराधार है; क्रमागत उन्नति ब पृथ्वी के विकास और उनत्ति की बात जब आती है तो हमारा विज्ञानिक वर्ग से कोइ विरोध नहीं है ! भारतवासियों को सृजन या क्रमागत उन्नति , किसी से भी कोइ विवाद नहीं है ! जैसा कि ऊपर उल्लेख है, इस विषय पर प्राचीन ग्रंथो में अनेक वृतांत भी हैं !
हिंदू समाज, धर्म तथा ज्ञान, क्रमागत उन्नति को विशेष महत्त्व देता है ! हम मानते हैं कि क्रमागत उन्नति ही श्रृष्टि के सृजन का कारण है ! इस पर स्पष्ट रूप से अनेक संकेत आपको हिंदुओं के प्राचीन इतिहास में मिलेंगे ! हिंदुओं की मान्यता है कि ईश्वर ने ब्रह्मांड का निर्माण करा परन्तु उसके आगे सृजनका कार्य क्रमागत उन्नति द्वारा ही हुआ है ! अत: क्रमागत उन्नति ही पृथ्वी के विकास का कारण है, न की सृजन !
यह भी ध्यान देने की बात है कि हिंदू ईश्वर के अवतार में विश्वास रखते हैं; हिंदू यह नहीं मानता कि स्वर्ग में बैठे ईश्वर समाज या मनुष्य की कोइ मदद कर सकता है ! यदि समाज घोर पतन की और जा रहा है, तो ईश्वर मनुष्य रूप में अवतरित होते हैं, समाज की दिशा में आवश्यक सुधार मनुष्य के रूप में ही लाते हैं, और मनुष्य को प्रेरित करते हैं, समाज को प्रगति के मार्ग पर बढाने के लीये ! यही अवतार का उद्देश है !
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क्या स्वर्ग में बैठे देवता मनुष्यों के तप से घबरा जाते हैं
http://awara32.blogspot.com/2012/01/blog-post_30.html
DO DEVTAS SITTING IN SWARG GET THREATENED BY TAPS OF WE EARTHLINGS?’
ऐसे अनेक प्रसंग हैं कि देवता, मनुष्य के तप से घबरा जाते हैं, और इसी बात से यह कहावत भी आम है कि इन्द्र का सिंघासन डोल गया ! क्या इसमें कुछ सचाई है ? क्या वास्तव में तप को खंडित करने के लीये अप्सरा भेजी जाती हैं ?
इससे दो सन्देश मिलते हैं !
इस प्रश्न के उत्तर से पूर्व तप की परिभाषा क्या होनी चाहीये, इसपर जरा सोच लें ! हिंदू शास्त्रों में सामूहिक कठोर प्रयास को यज्ञ कहा जाता है ओर व्यक्तिगत कठोर प्रयास को तप ! तप का अर्थ हर समय आँख बंद करके इश्वर में लीन होना नहीं है; तप का अर्थ है व्यक्तिगत कठोर प्रयास !
यदि व्यक्ति पूरी निष्ठां और सकारात्मक भाव से किसी भी धार्मिक कार्य में यथाशक्ति प्रयत्नशील है , तो वह नियति में भी परिवर्तन कर देता है, तथा हर धर्म किसी न किसी रूप में इसको स्वीकार करता है ! हर मनुष्य की स्वंम की ऊर्जा होती है, जो की पृथ्वी की उर्जा से सकारात्मक या नकरात्मक स्थर पर संबंध स्थापित करती है ! पृथ्वी की उर्जा का संबंध सदा सौर मंडल की उर्जा से रहता है , और सौर मंडल का ब्रह्मांड से ! धार्मिक कार्य चुकि समाज के लीये लाभकारी होता है, समस्त विश्व की उर्जा उसका सत्कार करती है तथा उस तप को प्रतिष्टित करने में सकारात्मक भाव रखती है ! इसी लीये महान पुरुष के कार्य के साथ अनेक दन्त कथा जुड जाती हैं, तथा उस तप को अलोकिक रूप दे देती हैं !
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अवतार व भगवान और हिंदू समाज की प्रगति
http://awara32.blogspot.com/2012/01/blog-post_5848.html
AVATARS BY EXAMPLE ESTABLISH DHARM
ईशवर की मनुष्य रूप में या अन्य प्राणी के रूप में उत्पत्ति को अवतार कहा जाता है ! उद्देश श्रृष्टि को उस समय के घोर संकट से निकालने का होता है ! लेकिन अवतार को लेकर विवाद भी हैं, कुछ हिंदू अवतार को मानते हैं, कुछ नहीं !
अवतार को लेकर विवाद इस लीये भी है क्यूंकि कोइ निश्चित परिभाषा अवतार कि नहीं है !
चुकी परिभाषा हर युग के समाज के लीये प्रगतिशील होनी है, इसलिए अवतार के पास अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति होने कि कोइ संभावना नहीं है ! इस संधर्ब में, त्रेता युग के विज्ञान का उल्लेख करना चाहता हूं, जब विमान तक थे, लेकिन आज के सूचना युग में हमें उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है, क्यूँकी अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति की मिथ्या चादर बना कर उस विज्ञान को ढक दिया गया है ! और आज के गुरुजन ज्ञान और समाज हित व्यवाहर के अभाव में मिथ्या कि चादर उतारने के लीये तैयार नहीं हैं ! इसके कारण हिंदू समाज का नुक्सान ही नुक्सान होरहा है ! ध्यान रहे ऐसे अनेक समय हर युग में आये हैं जब अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति की मिथ्या चादर के सहारे ही विज्ञान को उस समय के समाज को समझाया जा सकता था; और तो और १०० वर्ष पूर्व तक भारत में भी इस मिथ्या चादर ही एक मात्र साधन था त्रेता युग के विज्ञान को समझाने का, लेकिन आज तो यह अधर्म है और सामाजिक अपराध भी !
यह सत्य है कि ईशवर सर्व शक्तिमान है, फिर क्या कारण है कि वोह अपनी शक्तियों पर अंकुश लगाता है, अवतार बन कर ? कोइ तो ऐसा कारण होना चाहीये जिसका उत्तर विवाद रहित हो !
धर्म शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया गया है कि अवतार जो उद्धारण प्रस्तुत करते हैं उसे दूसरा वेद मानना चाहीये ! क्या अर्थ हूआ इसका ?
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देवो के देव- महादेव... हिंदी में समीक्षा
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DEVON KE DEV – MAHADEV... A REVIEW IN HINDI
एक अत्यंत ही रोचक धारावाहिक आ रहा है स्टार टीवी कि नई चैनल ‘लाइफ ओके’ पर, जिसका नाम है, “देवो के देव...महादेव” !
हिंदू धर्म, तथा देवी देवता पर धारावाहिक बनते ही रहते हैं !
समझना आपको यह है कि आप इन सब धारावाहिक को किस दृष्टि से देखते हैं ! चुकी जिसने भी यह धारावाहिक/सीरियल बनाया है वोह आपकी धार्मिक भावनाओं को मान्यता देकर आपसे यह अपेक्षा रखता है कि आप इसे देखें, तथा धर्म को समझे, और उसका अनुसरण करें !
यह सीरियल तथा अधिकतम हिंदू प्राचीन इतिहास से सम्बंधित सीरियल आपको बार बार यह जानकारी अवश्य देते हैं कि श्रृष्टि की रचना दोष रहित नहीं है ! दोष वहाँ भी हैं ! उद्धारण, ईशवर शिव ने ब्रह्मा जी का पांचवा सर काट दिया ! कथा बताती है कि ब्रह्मा ने प्रथम रचना ‘सतरूपा’ कि करी और उसके रूप से वे इतने मोहित हो गए कि वो उससे दृष्टि हटा नहीं पा रहे थे ! सतरूपा, ब्रह्मा कि दृष्टि से बचने के लीये जिधर जाती, ब्रह्मा उधर एक मुख् उत्पन्न कर लेते ! इस तरह से चारो दिशा में उनके चारों मुख् हो गये! सतरूपा अब ऊपर की और चली, तो ब्रह्मा ने एक मुख् ऊपर भी कर लिया ! भगवान शिव से यह देखा नहीं गया, उन्होंने ब्रह्मा का ऊपर का सर अलग कर दिया ! शिव के विचार से सतरूपा ब्रह्मा द्वारा रचित थी इसलिए वे ब्रह्मा कि संतान होई ! इसी सोच से उन्होंने ब्रह्मा को श्राप दे डाला कि पृथ्वीवासी ब्रह्मा कि उपेक्षा पूजा में करेंगे !
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महाशिवरात्रि..प्रकृति और इश्वर का मिलन
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REASONS FOR CELEBRATING MAHASHIVRATRI
महाशिवरात्रि उस पावन पर्व का नाम है जब भगवान शिव शंकर ने माता पार्वती से पाणिग्रहण संस्कार कर था ! हिंदू मान्यता बताती है कि त्रिमूर्ति में ब्रह्मा श्रृष्टि की रचना करते हैं, विष्णु उसका पालन, तथा शिव उसका संघार ! मानव स्वभाव कि चर्चा न करते हूए यह बताना ही पर्याप्त होगा कि भगवान शिव के विवाह को श्रृष्टि की प्रगति और विकास के लीये लाभकारी मानते हूए श्रधालु बड़ी धूमधाम, और जोश से इस पर्व को मनाते हैं !
यदि आप आकड़ो पर जाते हैं तो आप पायेंगे की भारत में सबसे ज्यादा मंदिर शिव के हैं, फिर विष्णु तथा उनके अवतार जैसे राम और कृष्ण के, और संभवत: ब्रह्मा का एक सिद्ध और मान्यता प्राप्त मंदिर है, जो कि पुष्कर में है ! मनुष्य पूजा डर से या कुछ लाभ के लीये या फिर वोह श्रृष्टि रचेता को आदर और प्यार देने हेतु करता है , इसपर निर्णय पाठक ही करें !
इस पर्व का महत्त्व इसलिए भी है कि इसमें पूजा करना अत्यंत लाभकारी माना गया है ! अविवाहित कन्या मंगलमय विवाह के लीये, विवाहित दंपत्ति संगतता समस्याओं के समाधान के लीये, तथा अन्य ईश्वर की अनुकंपा के लीये पूजा करते हैं !
अब मुख्य विषय पर आते हैं ; शिवरात्रि, या महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है, अर्थात क्या खगोलिक बिंदु हैं इस पर्व कि तिथि सुनिश्चित करने के लीये !
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हिंदू इतिहास ...सत्ययुग में इश्वर अवतार
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AVATARS OF SATTYUG AS PER HINDU HISTORY
जब जब पृथ्वी पर श्रृष्टि कि प्रगति संकट में होती है तो भगवान पृथ्वी पर अवतरित होते है; और जब जब धर्म कि हानि होती है तो भगवन मनुष्य रूप में अवतरित होते हैं !
सत्ययुग में विभिन्न अवतार क्यूँ प्रकट होए इस पर चर्चा होगी !
इससे पहले आप को यह जानना आवश्यक है कि सत्ययुग के प्रारम्भ में स्तिथि क्या थी ! पिछले कलयुग और नये महायुग/कल्प के बीच में लाखो वर्ष का संधि काल होता है, तथा उसमें पृथ्वी पुन: उत्साहित और उर्जावान होती है ! सत्ययुग नई श्रृष्टि का प्रारम्भ है, इसलिये अत्यंत धीमी गति से श्रृष्टि का विकास होता है ! परन्तु पिछले युग के कुछ मनुष्य इस श्रृष्टि का अंग भी बनते हैं, वो आर्य तथा राक्षस कहलाते हैं !
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कलयुग का अंत..एक नए कल्प का प्रारम्भ और मत्स्य अवतार
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MATSYA AVATAR and HISTORY OF THE WORLD FROM THE END OF THIS CIVILIZATION TO NEXT
कलयुग के अंत में इस महायुग/कल्प के अंत का समय भी आयेगा. अंत के प्रारम्भ होते ही पहले तो मनुष्य द्वारा जो विपदा उत्पन्न करी गयी हैं, उससे विनाश होगा फिर प्रकृति उस विनाश में सहायक होगी, और अंत में पृथ्वी जलमग्न होने लगेगी ! उस समय जितने भी शक्तिशाली लोग हैं पूरे विश्व में, अर्थार्थ जो सत्ता और सत्ता के निकट हैं, उनको यह अवसर मिलेगा कि वे समुन्द्री जहाजों में बैठ कर जल से होने वाली विपदा समाप्त होने का इंतज़ार करें! ऐसे अनेक जहाज पूरे विश्व से निकलेगें ; लेकिन उन्हे यह नहीं मालूम होगा कि यह एक लंबा सफर है, और उनके आने वाली सैंकडो, हज़ारो पीढीयाँ अब जीवित रहने का संघर्ष करती रहेंगी!
इसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथो में भी है, जहां मनु को यह आभास हो जाता है कि पृथ्वी जलमग्न होने वाली है ! यह पोस्ट इसलिये भी आवश्यक है कि आप समझ सकें कि मनु शब्द का प्रयोग क्यूँ करा गया है ! मनु, मानव, मेंन, मादा, मनिटो, आदि अनेक शब्द विभिन् भाषा में प्रयोग करे जाते है, मनुष्य के लिये ! चुकी विश्व भर से समुन्द्री जहाज़ निकले थे तो हर युग के वासियों को समझाने के लिये इससे उत्तम और कुछ नहीं था, कि जहाज़ के बेडे का नायक मनु था !
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कलयुग मैं कर्म ही पूजा, पसंदीदा युग मनुष्य के लिये
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KARMA IS WORSHIP IN KALYUG..BEST YUG FOR HUMANS TO LIVE
कलयुग को कर्मश्रेष्ट युग माना जाता है! इस युग में सिर्फ कर्म का ही फल मिलता है ! पूजा, भक्ति, गुरु के आश्रम में जा कर सेवा, यह सब आपको सही कर्म करने के लिये प्रेरित करता हैं, यह अपने आप में धर्मअनुसार कर्म नहीं है ! धर्मअनुसार कर्म वोह है जो की व्यक्ती अपनी उन्नति के लिये, अपने परिवार, तथा अपने पूरे परिवार, तथा जिस समाज, मोहल्लें, या सोसाइटी मैं वो रह रहा है, उसकी उनत्ति के लिये पूरी निष्ठा व् इमानदारी से करता है! ऐसा करते हुए वो समाज मैं प्रगती भी कर सकता है व् घन अर्जित भी कर सकता है !
यहाँ यह स्पष्टीकरण आवश्यक है कि निष्ठा व् इमानदारी से कार्यरत रहने का यह भी आवश्यक मापदंड है कि वह व्यक्ति समस्त नकरात्मक सामाजिक बिंदुओं का भौतिक स्थर पर विरोध करेगा , जैसे कि भ्रष्टाचार, कमजोर वर्ग तथा स्त्रीयों पर अत्याचार, पर्यावरण को दूषित करना या नष्ट करना, आदी, !
एक और उदहारण लेते हैं ! १००० वर्ष की गुलामी की लम्बी अवधि में ऐसे अनेक अवसर आये जब यदी समस्त राज्य मिल कर विदेशी हमलावरों का मुकाबला करते तो भारत का इतिहास कुछ और होता ! यह भी सही है कि समस्त राजा वीरतापूर्वक लड़े, लेकिन लड़े अलग अलग, और इतिहास आपको बताता है कि कितना व्यापक विनाश था ! यह किसी भी मानक से सही कर्म , या धार्मिक कर्म नहीं कहला सकता !
आपसब को फिर से आश्वस्त करदेना चाहता हूं कि कलयुग मानव के लिये सब से श्रेष्ठ युग है !
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कलयुग सबसे श्रेष्ट युग मनुष्य के रहने के लिये
http://awara32.blogspot.com/2011/12/blog-post_11.html
BETTER YUG FOR HUMANS TO LIVE IN.. KALYUG
कलयुग सबसे श्रेष्ठ युग है मनुष्य के लिये! यहाँ यह बात इस लिये नहीं कही जा रही क्यूँकी हम कलयुग मैं रह रहे हैं, परन्तु इसलिये की यही सच है ! इस तत्य के बारे मैं विस्तृत चर्चा भी करी जा सकती है, ताकी हर कोइ इस सत्य को समझ सके! गुलामी के समय, क्यूँकी अनेक अत्याचार हिंदू समाज को सहने पड़ रहे थे, तो उस समय भावनात्मक तरीके से हिंदुओं को समझाने के लिये यह कह दिया जाता था कि “कलयुग है, या घोर कलयुग है, कष्ट तो सहने पडेंगे”, लेकिन आज क्यूँ? आज तो हमें यह मालूम होना चाहिये कि सच क्या है !
यहाँ जितने भी संभावित मापदंड हैं उनसे यह समझने की कोशिश करेंगे कि क्या कलयुग वास्तव मैं मनुष्य के लिये कष्टदायक युग है ! यह इसलिये भी आवश्यक है क्यूँकी कुछ धार्मिक नेता, श्रोषण करने की नियत से, बार बार यह कह रहे हैं कि कलयुग तो कष्टदायक युग है ! युग की संकल्पना हिंदू शास्त्रों पर आधारित है, इसलिये समस्त मापदंड , हिंदू शास्त्र मैं ही मिलेंगे !
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सत्यम शिवम सुन्दरम से अपने जीवन को समझीये
http://awara32.blogspot.com/2011/12/blog-post_08.html
अब हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि हम अपना जीवन सत्यम शिवम सुन्दरम से और मधुर कैसे बना सकते हैं ! जीवन की गुणवत्ता हर हिंदू के लिया महत्व रखती है, और विशेष बात यह है कि कलयुग मैं यह भौतिक है, आद्यात्मिक नहीं !
आगे बढ़ने से पहले कुछ चर्चा जीवन की गुणवत्ता पर कर ले ! इस शब्दावली को आज का संसार समझ नहीं पा रहा है ! विज्ञान अभी तक भौतिक मापदंड निर्धारित नहीं कर पारहा है कि जीवन की गुणवत्ता क्या होनी चाहिये !इसे समझने के लिये आज के कुछ मानकों पर विचार करते हैं ! विज्ञान कि प्रगत्ति ने जीवन मैं अनेक सुधार करें हैं , यह प्रमाणित सत्य है ! यदी हरेक छेत्र को अलग अलग देखा जाय तो हम पाएंगे कि सब छेत्र मैं सुधार हैं ! स्वास्थ, संचार, परिवहन, मैं विशेष प्रगति है !निजी आराम और उपयोगिताओं, मनोरंजन, बुनियादी ढांचे, मैं भी प्रगति है !
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सत्यम शिवम सुन्दरम का सरल अर्थ
http://awara32.blogspot.com/2011/12/blog-post_07.html
सत्यम शिवम सुन्दरम भगवान शिव के वर्णण करने का एक तरीका है ! परन्तु इसका यदी अर्थ समझ लिया जाय तो व्यक्ती अपने जीवन को सुंदर, पृथ्वी और ब्रह्मांड के अनुकूल बना सकता है ! आपका जीवन मधुर और सार्थक हो जायेगा ! इस पोस्ट को लिखते समय इस बात का ध्यान रखा गया है कि सब कुछ सरल भाषा मैं हो!
हिंदू मान्यता के अनुसार, विश्व का कार्य तीन भागो मैं है, जो इस प्रकार है :
1. श्रृष्टि रचेता: चुकी श्रृष्टि की रचना अत्यंत जटिल कार्य है, ब्रह्मा जी ब्रम्ह्लोक से उसका मार्गदर्शन करते हैं ! ब्रम्ह्लोक या गृह ब्रम्ह्लोक कहाँ है यह किसी को पता नहीं, पृथ्वी पर तो यह नही है; अतः वैज्ञानिक दृष्टि से श्रृष्टि की रचना पूर्णत: पृथ्वी सम्बंधित नहीं है ! कुछ मानक पृथ्वी से बाहर हैं, जिनका प्रभाव पड़ता है !
2. पालनकर्ता : भगवन विष्णु श्रृष्टि का पालन करते है! उनका निवास विष्णुलोक, या वैकुण्ठ है ! यह भी पृथ्वी पर नहीं है! अतः कुछ मानक पृथ्वी से बाहर हैं, जिनका प्रभाव पड़ता है !
3. संघारकर्ता : भगवन शिव इस की जिम्मेदारी लेते है ! उनका निवास स्थान हिमालय है! अतः संघार के समस्त मानक पृथ्वी पर है; कोइ भी मानक बाहर नहीं है !
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धार्मिक आद्यात्मिक साधू तथा गुरु की परिभाषा
http://awara32.blogspot.com/2011/10/blog-post_31.html
हिंदू धर्म मैं यह परेशानी इस लिये भी है की धर्म शब्द के दो अलग अर्थ और प्रयोग हैं | एक तो सनातन धर्म या HINDU RELIGION जो की इस बात की जानकारी देता है की सनातन धर्म क्या है और कौन उसमें आतें हैं ! दूसरा धर्म का अर्थ है भौतिक तरीके से अपनी समाज मैं जिम्मेदारियों को निभाना ! यही दूसरा धर्म स्वर्ग की सीडी है !
अब आप सरल भाषा मैं पूर्ण परिभाषा समझीये :
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हिंदू आजादी के बाद भी घुट घुट कर जी रहा है
http://awara32.blogspot.com/2011/10/blog-post_28.html
1000 वर्ष की गुलामी के बाद हमें आज़ादी मिली और आजादी के ६४ वर्ष पूरे हो चुकें हैं | वक्त आ गया है कि समीक्षा करी जाए कि हिंदू समाज इन ६४ वर्षों मैं कहाँ पहूँचा; तथा हमने क्या पाया और क्या खोया |
निम्लिखित तत्त्व आप सबको भी मालूम है फिर भी एक बार गौर फर्मा लें :
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हिंदुओं का भौतिक धर्म गुलामी के समय कैसे घटाया गया
http://awara32.blogspot.com/2011/10/blog-post_3954.html
संषेप मैं नीचे प्रस्तुत है कि भौतिक(PHYSICAL) धर्म को गुलामी के समय कैसे घटाया गया :
1. चुकी अविवाहित कुमारी कन्याओं को जबरदस्ती उठा कर ले जाया जाता था, तो कम उम्र मैं शादी का प्रचलन चालू हो गया |
2. कन्यायों के साथ जो जुल्म और अत्याचार हो रहा था, तथा चुकी उससे निबटने का का कोइ विकल्प नहीं था, इसलिये लोग कन्या के पैदा होते ही उसे मारने लगे |
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आवश्यकता है हिंदुओं की मानसिकता बदलने की, ताकी वो बदलाव और सुधार ला सकें
http://awara32.blogspot.com/2011/10/blog-post_27.html
हिन्दुस्तान मैं जो भी समस्याएँ हैं वो इस लीये हैं क्यूंकि हिंदू पूरी तरह से कर्महीन जीवन बिता रहा है; इस मानसिकता को बदलना होगा | यह मानसिकता १००० वर्ष की गुलामी की देंन है | आजादी के बाद इसे बदलने का कोइ प्रयास नहीं करा गया |
निम्लिखित कुछ PHYSICAL VERIFIABLE PARAMETERS हैं जो कि धर्म की सफलता/असफलता समाज मैं दर्शाते है:
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