Monday, March 16, 2015

सनातन धर्म प्राकृतिक विकास पर आस्था रखता है...और विज्ञान भी यही मानता है

सनातन धर्म चुकी प्राकृतिक विकास पर आस्था रखता है, इसलिए वर्तमान विज्ञान से तालमेल बैठाना आसान है ; 
और 
यही से समस्याएँ शुरू होती हैं क्यूँकी धर्मगुरु बार बार समाज को गलत बता रहे हैं कि सनातन धर्म, सृजन पर आस्था रखता है| 
एक और स्पष्ट बात जो संस्कृत विद्वानों और धर्मगुरुओं को कहनी चाहीये थी, समझानी थी, अपनी लेखनी द्वारा और अपने प्रवचनों द्वारा, लकिन समाज का शोषण हो सके, इसलिए नहीं बताई गयी....कि हमारे इश्वर अन्य धर्मो और मजहबो के इश्वर से कम शक्तिशाली है, जिसका मात्र इतना अर्थ है कि वे किसी तरह का चमत्कार का प्रयोग नहीं करते !

मानव की व्यक्तिगत समस्या के समाधान के लिए इश्वर पूर्ण रूप से सहायक है, लकिन समाज, प्रकृति और श्रृष्टि की सहायता वे स्वर्ग मैं बैठ कर नहीं करते, उसके लिए अवतरित होते हैं, और पृथ्वी के नियमो मैं बंध कर प्रयास करते हैं |

सनातन धर्म मात्र एक अकेला ऐसा धर्म है जो की प्राकृतिक विकास पर आस्था रखता है ना की सृजन मैं|

आप सारे पुराण, महाभारत और रामायण पढ़ लीजिये, आपको कोइ भी ऐसा प्रमाण नहीं मिलेगा जिसको देख कर यह कहा जा सके कि सृजन मैं आस्था रखते हैं | और प्राकृतिक विकास का चरित्र है , हर महायुग मैं जहाँ अधिकाँश घटनाएं चक्रिये हैं, कुछ पुरानी घटनाक्रम को भूल जाएगा, और नई घटनाक्रम, उन पुराने घटना कर्म का स्थान ले लेंगे |

यही प्राकृतिक विकास का स्वरुप है | और इसी सोच के साथ आप आधुनिक विज्ञान के साथ तालमेल बना सकते हैं |

यह भी सत्य है कि सनातन धर्म चुकी प्राकृतिक विकास पर आस्था रखता है, इसलिए वर्तमान विज्ञान से तालमेल बैठाना आसान है ; और यही से समस्याएँ शुरू होती हैं क्यूँकी धर्मगुरु बार बार समाज को गलत बता रहे हैं कि सनातन धर्म, सृजन पर आस्था रखता है|

क्यूँ ऐसा करा जा रहा है, यह समझ मैं नहीं आता, क्यूँकी सकारात्मक को नकारात्मक बनाने, और बना कर रखने के लिए इंसान को बहुत नीचे गिरना होता है; और इस सत्य को भी आप समझ लें कि इस नकारात्मक विचार को लोकप्रिय रखने मैं संस्कृत विद्वान भी पूरी तरह से धर्मगुरुओं का साथ दे रहे हैं |
बहराल मात्र दो प्रमाण बिन्दुओं के रूप मैं नीचे दे रहा हूँ, ताकि आप स्वम निर्णय कर सकें :
1. मधु और कैटभ से इश्वर श्री विष्णु हज़ारो साल तक लड़ते रहे और जीत नहीं पाए; इसके बाद इन दोनों असुरो ने स्वंम ही मरने के लिए सहमती दे तब विष्णु ने इनदोनो को मारा और इसी से पृथ्वी बनी|
मेरा कमेंट : इश्वर तो सर्वशक्तिमान हैं, तो हज़ारो साल लड़ कर भी श्री विष्णु क्यूँ नहीं जीत पाए? 

उत्तर एक ही: 
यह स्पष्ट संकेत है कि हमारी आस्था प्राकृतिक विकास मैं है, और प्राकृतिक विकास का तालमेल वर्तमान विज्ञान से संभव है; इश्वर का नाम मात्र समझाने के लिए लिया गया है| वैसे भी सारे पुराण कोडित हैं | यदि हम सृजन पर आस्था रखते तो विष्णु की जीत एक पल मैं होती|

ध्यान रहे, यहाँ इश्वर अवतार की बात नहीं हो रही जिनको पृथ्वी पर जन्म लेने के पश्च्यात पृथ्वी के नियमो का पालन करना पड़ता है , बल्कि स्वंम इश्वर की बात हो रही है !

अब समझें:-

दो अत्यंत सक्रिय उल्का,या अध्-बने गृह , मधु और कैटभ त्रीव गति से अलग अलग परिक्रमा लगा रहे थे , तथा यह कर्म हज़ारो साल तक चलता रहा | बीच बीच मैं वे घने कणिक उल्काओ के बादल समूह से गुजरती थी, जहाँ इनकी गति कम हो जाती थी | एक बार घने कणिक उल्काओ के बादल समूह से गुजरते हुए दोनों कम गति मैं आपस मैं टकरा गयी, जुड़ गयी, जिसके कारण सक्रियता बहुत कम हो गयी, और यही पृथ्वी का मूल भाग है|

यह मत आप वर्तमान विज्ञानिको के सामने भी रख सकते हैं, और इसे नक्कारा नहीं जा पायेगा|
पुराण बताते हैं पृथ्वी जन्मी दो अत्यधिक सक्रिय उल्का के मिलन और स्थिरता से
2. शिव जी का प्रसन्न हो कर कामदेव को महायुग के आरम्भ मैं शारीरिक सीमाओं से मुक्त करना, और द्वापर के अंत मैं उसको शारीरिक सीमाओं के बंधन मैं दुबारा पहुचा देना !
यह दोनों , जैसा प्रतीत होता है कि निश्चय ही खागोलिक बिंदु हैं, जिनको इश्वर कथा से जोड़ दिया गया, ताकि लोग इस सत्य को आसानी से समझ सके, और प्रकृति की रक्षा कर सकें| 
लकिन दुर्भाग्यवश इसको भी संस्कृत विद्वानों ने धर्मगुरुजनों के ‘समाज शोषण’ के लिए घृणित और नकारात्मक अंदाज़ से प्रस्तुत करा | दर्शाया जाता है कि शिव ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया, ताकि समाज भ्रमित और उलझा रहे.... कि एक पूर्ण वैरागी, योगी और इश्वर शिव का वैराग और योग पूर्ण नहीं है, और फिर धर्मगुरु समाज को स्पष्टीकरण दे...समाज की मानसिकता गलत बात बता कर कमजोर करें !
फिर से “कामदेव को महायुग के आरम्भ मैं शारीरिक सीमाओं से मुक्त करना, और द्वापर के अंत मैं उसको शारीरिक सीमाओं के बंधन मैं दुबारा पहुचा देना”...विज्ञान से तालमेल रखता है, क्यूँकी महायुग के आरम्भ मैं प्रकृति का अभूतपूर्ण विकास होता है, बड़े बड़े जीव जंतु उत्पन्न होते हैं, स्वंम वाल्मीकि रामायण मैं चार हाथी दातो वाले हाथी का उल्लेख है, जिसकी विज्ञान पुष्टि करता है | और द्वापर के अंत और कलयुग के आरम्भ से प्रकृति सिकुड़ने लगती है, तथा सिकुड़ने की गति भी धीरे धीरे तेज होती जाती है, और चुकी यह आज से सम्बंधित है, हमसबको मालूम है और विज्ञान इसकी पूर्ण पुष्टि कर रहा है |
Read: Gomphotherium 
कामदेव के भस्म होने का अर्थ…एक विज्ञानिक खुगोलिक दृष्टिकोण
अब एक बार फिर से, इस सत्य को मन मैं बैठा लीजिये :
सत्य:सनातन धर्म मैं इश्वर उतना शक्तिशाली नहीं है...स्वाभाविक है, शक्तिशाली होगा भी नहीं , क्यूंकि प्राकृतिक विकास पर हमलोग आस्था रखते हैं !और इसके प्रमाणों से सारे पुराण , रामायण और महाभारत भरे पड़े हैं...इस विषय पर चाहो तो चर्चा भी हो सकती है |
तो एक तरफ चमत्कार है, कर्महीन समाज है, और धर्म और विज्ञान के तालमेल को अनदेखा करा जा रहा है....

दूसरी तरफ धर्म का विज्ञान से तालमेल है, समाज की सोच बदलेगी, शोघ करने के मार्ग खुलेंगे , और विश्वगुरु भी आगे बन सकता है, हिन्दू !

सत्य यह है कि पुराण , रामायण और महाभारत को अगर बिना अलोकिक शक्ति के समाज तक पहुचा दिया जाय तो ...समाज को आज के परिपेक्ष मैं, इतने धर्म मिल जायेंगे की समाज सुधर जाएगा और उन्नत्ति कर जाएगा |

और उसका मुख्य कारण यह भी है कि समाज पूरी तरह से धर्म मैं आस्था रखता है ...और इसका यह दुष्यपरिणाम है कि लोगो की संस्कारिक आस्था इतनी मजबूत है कि धर्मगुरु संस्कृत विद्वानों की सहायता से समाज का शोषण कर रहे हैं !

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.