Wednesday, January 11, 2012

महाशिवरात्रि..प्रकृति और इश्वर का मिलन

महाशिवरात्रि पर भगवान शिव ने माता पार्वती से पाणिग्रहण संस्कार करा था| 
विवाह उपरान्त शिव, पहले पूर्णत: विमुख थे अब श्रृष्टि की प्रगति में भी रुचिकर हैं , और यही एक आशा है श्रृष्टि की प्रगति के लीये ~~महाशिवरात्रि उस पावन पर्व का नाम है जब भगवान शिव शंकर ने माता पार्वती से पाणिग्रहण संस्कार करा था ! 

हिंदू मान्यता बताती है कि त्रिमूर्ति में ब्रह्मा श्रृष्टि की रचना करते हैं, विष्णु उसका पालन, तथा शिव उसका संघार ! मानव स्वभाव कि चर्चा न करते हूए यह बताना ही पर्याप्त होगा कि भगवान शिव के विवाह को श्रृष्टि की प्रगति और विकास के लीये लाभकारी मानते हूए श्रधालु बड़ी धूमधाम, और जोश से इस पर्व को मनाते हैं !

यदि आप आकड़ो पर जाते हैं तो आप पायेंगे की भारत में सबसे ज्यादा मंदिर शिव के हैं, फिर विष्णु तथा उनके अवतार जैसे राम और कृष्ण के, और संभवत: ब्रह्मा का एक सिद्ध और मान्यता प्राप्त मंदिर है, जो कि पुष्कर में है ! मनुष्य पूजा डर से या कुछ लाभ के लीये या फिर वोह श्रृष्टि रचेता को आदर और प्यार देने हेतु करता है , इसपर निर्णय पाठक ही करें !
इस पर्व का महत्त्व इसलिए भी है कि इसमें पूजा करना अत्यंत लाभकारी माना गया है ! अविवाहित कन्या मंगलमय विवाह के लीये, विवाहित दंपत्ति संगतता समस्याओं के समाधान के लीये, तथा अन्य ईश्वर की अनुकंपा के लीये पूजा करते हैं !

अब मुख्य विषय पर आते हैं ; शिवरात्रि, या महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है, अर्थात क्या खगोलिक बिंदु हैं इस पर्व कि तिथि सुनिश्चित करने के लीये !चुकि ८०% जनसंख्या भारत कि हिंदू है, तथा हिंदू पर्याप्त धन धार्मिक कार्यों में व्यय करते हैं, खेद, परन्तु सत्य, हिंदू को यह भी नहीं बताया जाता कि कौन सा पर्व किस तिथि पर क्यूँ मनाया जा रहा है, और उस पर्व को मानने के खगोलिक बिंदु क्या हैं और क्यूँ हैं ?

सबसे पहले महाशिवरात्रि तथा शिवरात्रि के अंतर को समझते हैं ! शिवरात्रि सिर्फ पूजा हेतु हर कृष्ण पक्ष त्रियोदशी को मनाई जाती है, इस बात को निश्चित करके कि अगले दिन सूर्य उदय पश्चात चतुर्दशी होनी चाहिए, या फिर शिवरात्रि के तीसरे दिन अमावश्य होनी चाहिए !
महाशिवरात्रि इसी तिथि में फागुन मास में मनाई जाती है ! फागुन वर्ष का अंतिम मास है, तथा नव वर्ष मंगलमय हो इसकी कामना वर्ष के अंतिम मास में ही होती है, इसलिए महाशिवरात्रि का एक तो यह महत्त्व है !
फागुन मॉस मैं, कृष्ण पक्ष कि त्रियोदशी को सूर्य कुम्भ राशि में होता है तथा चंद्र मकर राशि में ! समझने कि बात यह है कि सूर्य शिव को दर्शाता है तथा चंद्र, माता पार्वती को ! कुम्भ सूर्य कि राशि सिंह से सबसे दूर है, और यहाँ पर सूर्य भौतिकवादी नहीं होता ! धन, भौतिक सुख के लीये लाभकारी नहीं है ! कुम्भ राशि को दर्शाती है, एक मट्टी का पानी रखने का बर्तन, जो कि खाली है ! तुरंत जो पहली बात मन में आती है, कि यह अत्यंत दरिद्रता का प्रतीक है ! लेकिन कुम्भ शनि कि मूल त्रिकोण राशि है इसलिए हर गृह यहाँ फल जब देता है जब कर्म करते समय, व्यक्ति अपने को कर्मफल से विमुख कर ले ! शिव को वैरागी कहा जाता है जो कि अपने पास कुछ नहीं रखते, सब दे देते हैं, उनके खुद के पास रहने के लीये खुद की कुटिया भी नहीं है !

चंद्र कि स्वंम कि राशि है कर्क ! चंद्र भौतिक सुख का प्रतीक है और कर्क राशि में जो भी गृह होता है वोह भौतिक सुख देने कि चेष्टा करता है ! कर्क से सबसे दूर है शनि ही कि मकर राशि, जिसमें मंगल उच्च का होता है ! और मकर भौतिक सुख त्यागने के बाद ही फल देता है ! अत्यंत धनवान राजधराने कि राजकुमारी सब सुख त्याग कर शिव को वरने के लीये कठोर तप करती हैं, अच्छी तरह से यह जानते हूए कि शिव वैरागी हैं ! मकर पार्वती कि प्रकृति को दर्शाता है !

यह समझने के बाद कि किस तरह से कुम्भ और मकर शिव और पार्वती को दर्शाते हैं, अब हम और खगोलिक बिंदुओं पर बात करते हैं ! शिव को सदैव मूर्ती में दर्शाते समय उनके सर के ऊपर कृष्ण पक्ष के चौदवी के चाँद का दिखने वाला अंश होता है, जो कि समाधि में भी शिव की संसार के प्रति चेतना को दर्शाता है ! हिंदू मान्यता के अनुसार चन्द्र चेतना का प्रतीक है, तथा अमावश्य और शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि में, चुकि चंद्र भौतिक रूप से दिखाई नहीं देता इसलिए कोइ भी शुभ कार्य आरम्भ नहीं करा जाता !

ध्यान रहे पिछले महाकल्प में जब सती ने दक्ष के यज्ञ में प्राण त्याग दिए थे तो शिव पूर्ण समाधि में चले गये थे, संसार से श्रृष्टि समाप्त हो गई थी, जो कि इस महाकल्प में माता पार्वती से विवाह के पश्यात ही संभव हो पाई ! अब इस महत्वपूर्ण खगोलिक बिंदु को हम महाशिवरात्रि के पर्व में कैसे दर्शाते हैं यह जान लें !

अमावश्य से पूर्व चौदश कि सुबह का चंद्र का लघु अंश अंतिम चन्द्रमा होता है ! उसके पश्च्यात चंद्र अगले दो दिन नहीं दीखता है, और फिर उसका लघु अंश शुक्ल पक्ष कि दोयज़ की शाम को कुछ समय के लीये दीखता है, जिसको देख कर मुस्लिम समुदाय का नया मास प्रारम्भ होता है ! अर्थात शिवरात्रि के अगले दिन सुबह का चंद्रमा अंतिम चंद्रमा होता है ! इसीलिये श्रधालु शिवरात्री की पूजा पूरी रात करके, अगले दिन सुबह सूर्य उदय पश्यात सूर्य के ऊपर चंद्र का लघु अंश देख कर ही पूजा समाप्त करते हैं !

चुकी अनेक बार महाशिवरात्रि से अगले दिन का चन्द्रमा, बादल या अन्य कारण से दिखाई नहीं देता है, इसलिए, मुस्लिम समुदाए ने नया चाँद, अथार्त शुक्ल पक्ष का दोयज़ का चाँद देख कर मास, तथा सारे शुभ कार्य करने शुरू करे; क्यूँकी किसी कारणवश दूज का चाँद नहीं दिखा तो तीज का तो दिख जाएगा, जबकी महाशिवरात्रि का चाँद अगले दिन सुबह नहीं दिखा, तो अगले एक माह बाद ही प्रयास करा जा सकता है|

भगवान शिव, जो कि वैरागी हैं और योगी भी है, का विवाह एक अत्यंत सुंदर, सुशील राजकुमारी के साथ तब संभव हो पाया जब माता पार्वती सब भौतिक सुख त्याग कर शिव को पाने कि प्रबल इच्छा व्यक्त कर के, तप कर के, शिव को विवाह के लीये प्रेरित कर पाई !
विवाह उपरान्त शिव जो की पहले पूर्णत: विमुख थे अब श्रृष्टि की प्रगति में भी रुचिकर हैं , और येही एक आशा है श्रृष्टि की प्रगति के लीये !
ॐ नमः शिवाय ! जय माता पार्वती !!
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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.