जिस युग में विमान, विज्ञान विकसित था, रावण कि सेना आधुनिक अस्त्रों से युद्ध कर रही थी, वहाँ पत्थर फेकने वाले वानरकी सेना से तो लंका की सेना युद्ध नहीं हारी
सीता अपहरण के पश्चात , तथा यह जानकारी मिलने के बाद कि सीता का अपहरण रावण ने करा है, राम को अब यह निर्णय लेना था कि रावण से युद्ध कैसे करा जाय ! वोह अयोध्या से सेना बुलवा सकते थे !
ध्यान रहे वनवास कि ऐसी कोइ शर्त नहीं थी कि अयोध्या के राजघराने कि बहु, या महारानी सीता के प्रति अयोध्या का कोइ उत्तरदायित्व नहीं था, न यह बात तर्क संगत है !
इसलिए भी यह गंभीर विषय है कि राम ने अयोध्या कि सेना न बुला कर (जिसमें जनकपुरी तथा अन्य मित्र राज्यों कि सेना भी निश्चित रूप से सम्मलित होती)देखने में कम शक्तिशाली सेना क्यूँ चुनी, जो कि तर्कसंगत और नीतिसंगत नहीं था !
यह जानना इसलिये भी आवश्यक है क्यूंकि अधिकाँश हिंदू और में, श्री राम को इश्वर अवतार मानते हैं, जो कि मनुष्य रूप में ऐसे उद्धारण स्थापित कर गए हैं, जिन्हे आज के युग में भी धर्म माना जाता है, अत: वोह उद्धारण आज के समाज के लीये भी लाभदायक हैं !
श्री राम ने अपने वनवास का अधिक समय वानरों को प्रशिक्षित करने में बिताया था, जिसमें उन्हे ऋषि मुनि, तथा अन्य सहायता भी उपलभ्ध थी ! समस्या सिर्फ इतनी थी कि रावण से युद्ध के लिये विशाल वानर सेना को संघटित करना ! चुकि वानरों का प्रशिक्षण राम के निरक्षण में ही हुआ था, राम, राक्षसों से युद्ध के लिये वानर सेना ही चाहते थे ! दूसरा कारण यह भी था कि यदि वानर सेना से वोह रावण को परास्त कर देते हैं तो वानर जाती का समाज में उपनिवेश सुगमता से हो जायगा !
दूसरे कारण का श्री राम के निर्णय पर कितना प्रभाव था, यह तो आपको स्वम तय करना होगा! हाँ यह बाद अवश्य ध्यान देने की है कि इतिहास के परिपेक्ष में यह संभव नहीं था कि जिस युग में विमान भी थे, तथा विज्ञान इतना विकसित था कि यह निसंकोच समझा जा सकता है कि रावण कि सेना आधुनिक अस्त्रों से युद्ध कर रही थी, वहाँ पत्थर फेकने वाले वानर(तथा कुछ लोगो के मत से बंदरों) की सेना से तो लंका की सेना युद्ध नहीं हारी !
यहाँ यह जानना आवश्यक है कि राम का वन जाने का उद्देश क्या था !
वन में मनुष्य कि नई प्रजाति पनप रही थी, जिन्हे वानर कहते थे ! परन्तु उन्हें मनुष्य होने कि मान्यता देने के लीये कोइ भी राज्य तैयार नहीं था !
वन में राम का उद्देश इन वानरों का प्रशिक्षण देना था ! सामाजिक नियम तथा अस्त्र शस्त्र की शिक्षा प्रमुख उद्देश था ! इसलिये राम को वानर सेना कि शक्ति का आभास था, समस्या थी तो वानर कि एक विशाल सेना संघटित करना !
वनवासियों ने यह भी बताया कि वह भी तत्काल संभव है यदि किष्किन्धा का वानर राज्य उसके लीये तयार हो जाय ! अन्य वानर दल छोटे छोटे थे तथा वोह किष्किंधा के साथ युद्ध के लीये तयार हो जायेंगे !
राम को यह भी बताया गया कि एक समस्या जटिल थी, और वोह यह कि किष्किन्धा के वानर राजा बाली कि रावण से मैत्री, तथा वोह रावण से युद्ध के लीये अपनी सेना कदापि नहीं देगें ! उनको यह भी सुचना मिली कि इस समय बालि ने अपने छोटे भाई सुग्रीव को निष्कासित कर दिया है तथा उसकी स्त्री और संतान भी रख ली, तथा सुग्रीव किष्किन्धा पर्वत पर छुप कर रह रहे हें !
इस संभावना को आप पूरे विश्वास से मान सकते हैं, कि हर सभ्यता के शुरू मैं, सामाजिक न्याय को शक्ति के साथ जोड़ दिया जाता था, और सुग्रीव के पास बस अब एक ही विकल्प था,कि उस समय के सामाजिक न्याय के परिपेक्ष मैं बाली को मल-युद्ध के लिए ललकारे, और यदी जीत गया तभी उसे अपनी पत्नी और संतान वापस मिल सकती थी| यह भी स्पष्ट था कि वानर सेना का संघटन किष्किन्धा कि सहायता से ही संभव था ! बाली चुकि सहायता करेंगे नहीं , और सुग्रीव संकट में थे, इसलिए राम, लक्ष्मण को साथ ले कर सुग्रीव से मिलने के लीये निकल पड़े ! यह सोच लिया कि आगे नियति जो अवसर देगी उसपर वानरों का हित ध्यान में रख कर निर्णय लेंगे !
किष्किन्धा पर्वत के नीचे उनकी मुलाक़ात हनुमान जी से हो गई, जो कि यह टोह लेने आय थे कि कौन किष्किन्धा कि और आ रहा है ! आपसी परिचय के बाद हनुमान उन्हें सुग्रीव से मिलाने ले गए ! डूबते को सहारे कि आवश्यकता होती है, सुग्रीव ने अपने सारे दुखड़े गा दिए, हर संभव सहायता के लीये वचनबद्धता भी दी, सिर्फ शर्त यह थी कि बाली को मार दिया जाय !
राम के समक्ष सीमित विकल्प थे ! यदि वोह बलि और सुग्रीव के बीच समस्या के समाधान के लीये मध्यस्ता का प्रस्ताव रखतें हैं तो सुग्रीव कि समस्या का संभवतः समाधान हो भी जाय, परन्तु बाली ही राजा रहेंगें, और वानर सेना का संगठन नहीं हो पायेगा ! दूसरा विकल्प था सुग्रीव और बाली के बीच में मल युद्ध ! सब का मत था कि यदि सुग्रीव ने बाली को मल युद्ध के लीये ललकारा तो बाली तत्काल इसकी स्वीकृति दे देंगे! बाली मल युद्ध में इतने निपुण थे कि लोग यह मानने लगे थे कि वरदान स्वरुप उनको प्रतिद्वंद्वी की आधी शक्ति प्राप्त होजाती थी !
राम और लक्ष्मण ने भी सुग्रीव को मल युद्ध में सफल होने कि अनेक चाल बताई !
युद्ध में कुछ ही समय में बाली सुग्रीव पर हावी होने लगा ! बाली के वार जब अधिक पीड़ा देने लगे तो वोह राम के पास भाग आया ! सुग्रीव को समझा कर और अपनी कंठ माला तक पहना कर दुबारा मल युद्ध में भेजा ! कुछ समय तो वोह सही लडे, लेकिन फिर बाली हावी होने लगे और जब राम को लगा कि सुग्रीव युद्ध से दुबारा भाग सकते हैं, तो पेड के पीछे से ही उन्होंने बाली कि छाती पर एक वाण छोड दिया ! बाली मृत्युपूर्व, घायल अवस्था में पृथ्वी पर गिर पड़े !बाकी का इतिहास सब को विदित है !
प्रश्न यह कि राम ने उस समय कि मर्यादा क्यूँ तोडी ? राम तब तक मर्यादा पुरुष के नाम से विख्यात हो चुके थे, फिर क्यूँ बाली को छिप कर मारने का मर्यादा रहित कार्य करा !
ध्यान रहे राम एक जुआ खेल रहे थे, वानर सेना का प्रयोग कर के, जब कि सीता कि जिंदगी दावं पर लगी थी ! निश्चय ही ज्यादा सुरक्षित विकल्प था अयोध्या सेना जिसका साथ जनकपुरी तथा अन्य मित्र राज्य भी करते, परन्तु उससे वानरों कि समस्या का समाधान तो नहीं होता ! राम का इसमें निजी स्वार्थ कुछ भी नहीं था ! और यही महत्वपूर्ण धर्म इस घटना से मिलता है !
दूसरा, नई सभ्यता जो पनप रही थी, जैसे की वानर, उसे यह समझाना आवश्यक था, की सामाजिक न्याय मल-युद्ध से नहीं मिल सकता था| यदी सुग्रीव हार जाते, जैसा की दिख रहा था, तो बाली ने, अपने छोटे भाई को दण्डित करने के लिए, उसकी पत्नी, और संतान भी रखली, वोह तो सामाजिक न्याय हुआ नहीं; तथा बिना बाली वध के यह बात नई सभ्यता को समझाई भी नहीं जा सकती थी|
जो व्यक्ति अपने समय कि समस्त मर्यादाओं का पालन करता है, उसको मर्यादा पुरुष कहते हैं, परन्तु जो व्यक्ति अपना निजी स्वार्थ भी दाव पर लगा कर समाज य देश के हित में मर्यादा का उलंघन करे वो मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाता है !
सम्पूर्ण इतिहास में मुझे श्री राम के अतिरिक्त कोइ भी व्यक्ति मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाने योग्य दिखाई नहीं देता !
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