आपने यह संवाद तो पढ़ा होगा कि
श्री राम ने असली सीता को अग्नि देव को सौप दिया,
जो कि गलत सूचना है| श्री राम, विष्णु के अवतार थे और अवतार कभी अलोकिक शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकते, क्यूंकि अलोकिक शक्ति के प्रयोग से मानव को क्या धर्म मिलेगा?
मानव के पास तो वोह शक्ति है नहीं ! और वैसे भी इससे आपको कोई धर्म तो मिल नहीं रहा; हाँ अधर्म अवश्य मिल रहा है कि राम ने असली सीता को अग्नि देव को सौप कर सीता के अपहरण की स्वीकृति दी |
एक और बात; जब तक आप इस सत्य को पूरी तरह से अपने मन में नहीं उतार लेंगे कि अवतार, मात्र उद्धारण से धर्म की स्थापना कर सकते हैं, आपको कोइ धर्म नहीं मिलेगा|
धर्म का जो खजाना संस्कृत विद्वानों और धर्मगुरुओ ने समाज को गुलाम बना कर रखने के लिए अलोकिक शक्ति की चादर से छिपा रहा है, वोह आप तक नहीं पहुच पायेगा, और आपको ‘अच्छाई की बुराई पर जीत’ जैसे नारे से संतुष्ट होना पडेगा !
जब आप व्यावहारिक धर्म में आते हैं, तो पूर्व-अनुमान एक महत्वपूर्ण धर्म है, जिसके बिना आप जीवन में सफलता नहीं प्राप्त कर सकते |
चुकी आपको ना तो धर्मगुरु, धर्म की परिभाषा बता रहे हैं, और ना ही यह बता रहे हैं कि बिना अलोकिक शक्ति के अवतार का इतिहास वेद का पूरा ज्ञान देंगें, और प्रश्न आप पूछते नहीं, तो फिर एक ही विकल्प है, आपको वर्तमान समाज हित में निर्णय लेना है|
वैसे भी हर धर्म का पहला अविवादित उद्देश होता है कि जो समाज उस धर्म को स्वीकार करता है, उसकी उनत्ती धर्म के अनुसरण से हो| तो, इसमें तो कोइ विवाद है नहीं कि बिना गूढ़ अर्थ के अगर अवतार के इतिहास से धर्म मिल रहे हैं, तो समाज को उसका लाभ मिले|
सूर्पनखा के अभद्र व्यवाहर के कारण राम को सूर्पनखा को दण्डित करना पड़ा, और अपमानित सूर्पनखा का किस्सा पूरी लंका में चर्चा का विषय बन गया |
कैसे खर-दूषण, चचेरे भाई तुरंत इसका बद्ला लेने के लिए राम से युद्ध लड़ने गए, और वीर गति को प्राप्त हो गए, परन्तु रावण कुछ नहीं कर पा रहा है | रावण ना तो इतना साहस जुटा पाया कि वोह राम को युद्ध के लिए ललकारे, ना ही कुछ और विकल्प नज़र आ रहाथा | रावण की छबी लंकामें धूमिल होती जारही थी | उसे कुछ ना कुछ तो करना ही था !
कुछ इसी तरह की संभावनाओं पर राम भी विचार कर रहे थे |राम को भी यह अनुमान लगाना था कि रावण आगे क्या कर सकता है | एक डरपोक, नीच और कपटी व्यक्ति, किस तरह से बदला ले सकता है, ये अब राम को सोचना था, पूर्व-अनुमान लगाना था | यह भूल जाईये कि अवतरित पुरुष को तो सबकुछ मालूम है; अवतार मात्र उद्धारण से ही धर्म सिखा सकते हैं |
एक प्रबल संभावना, जो रावण के नीच और डरपोक चरित का आकलन भी करती थी, वोह था सिता का अपहरण जिसके उपरान्त वोह पूरे विश्व में यह शोर भी मचा सकता था, कि सीता स्वेच्छा से उसके पास आई है | उसके लिए सुरक्षाकी व्यवस्था को और मजबूत करा गया, तथा यह भी अनुमान लगाया गया कि यदि रावण सीता अपहरण में सफल हो जाता है, सारी सुरक्षा की व्यवस्था के बाद भी, तो अपहरण उपरान्त समस्याओं का क्या समाधान है |
और इसका उत्तर तो सबको मालूम था; धार्मिक मान्यता प्राप्त अग्नि परीक्षा, जिसको बिना कौशल पारित नहीं करा जा सकता था | राम ने वही करा जो एक कुशल नायक को करना चाहीये था | उन्होंने सीता को अग्नि परीक्षा पारित करने का कौशल दिया, उसमें निपूर्ण बनाया |
रामायण चुकी कोडित इतिहास है, इसलिए उसमें यह बात का उल्लेख इस तरह से है, कि राम ने असली सीता को अग्नि देव के सुपुर्द कर दिया | और चुकी संस्कृत विद्वानों और धर्मगुरूओ का उद्देश हिन्दू समाज को गुलाम बना कर रखना है, तो किसी ने इसका स्पस्तीकरण नहीं दिया |
कम से कम इस बात को तो आप अच्छी तरह से समझ लें कि अग्नि परीक्षा को पारित करने के लिए विशेष कौशल की आवश्यकता होती है | आज भी जिन लोगो के पास अग्नि पर चलने का कौशल है, वे आसानी से ऐसा करते हैं, कौशल का प्रदर्शन भी करते हैं |अग्नि परीक्षा से किसी के चरित्र का आकलन न कभी हुआ है, न हो सकता है ..हाँ धर्म का दुरूपयोग करके महिला का शोषण हो सकता है, और होता था |
दूसरा महत्वपूर्ण धर्म और सन्देश जो पूरे हिन्दू समाज की सोच बदल देगा, वोह है कि जब श्री राम ने सीता को अग्नि परीक्षा पारित करने का कौशल दिया, यह धर्म और सन्देश भी अपने आप मिलता है कि ...>>> ‘सीता अगवा होने के बाद वापस जब आएंगी, तो उन्हें बिना किसी छानबीन के स्वीकार होगी, उनको इससे मतलब नहीं होगा कि सीता के साथ रावण ने क्या क्या करा या नहीं करा’ | क्या इससे अधिक महत्वपूर्ण कोइ धर्म हो सकता है?
श्री राम ने अवतार होने का अपना दाएत्व निभाया, समाज को पूर्व-अनुमान जैसे महत्वपूर्ण धर्म से अवगत कराया, वोह बात दूसरी है कि संस्कृत विद्वानों और धर्मगुरूओ का उद्देश हिन्दू समाज को गुलाम बना कर रखना है, इसलिए ये धर्म समाज तक नहीं पहुचने दिया जा रहा है |
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