उस समय कन्याओं का अभाव था| अभाव ना कह कर आकाल ज्यादा उपयुक्त होगा | और खेद की बात यह है कि पूरी महाभारत कन्या-अभाव के प्रमाणों से भरी पडी है, लेकिन संस्कृत विद्वानों ने और धर्म गुरुजनों ने सत्य समाज तक नहीं पहुचने दिया |
तो जो निर्णय वेद विरुद्ध था, सनातन समाज विरुद्ध था, स्वम्बर के नियमो के विरुद्ध था, उसे धर्मराज युधिष्टिर और उनकी आदरनिये माता कुंती ने, बाकी पांडवो ने, तथा श्री कृष्ण ने क्यूँ स्वीकार, इसपर चर्चा करते हैं |
यह सत्य है कि द्रौपदी का विवाह पांचो पांडवो से हुआ | यह इतिहासिक सत्य है | परन्तु ऐसा क्यूँ हुआ इसका कारण भी बहुत स्पष्ट है; उस समय कन्याओं का अभाव था |
लक्षागृह के पश्च्यात, जब पांडव अज्ञातवास कर रहे थे, तो, एक प्रसंग यह भी है कि अर्जुन स्वम्बर में द्रौपदी को जीत कर लाए, और इस प्रसन्नता के कारण युधिष्टिर ने थोडा हलके में कहा कि माँ देखो आज तुम्हारे लिए भिक्षा में क्या लाए हैं, और कुंती ने झोपडी के अंदर से ही कह दिया कि पांचो मिल कर बाट लो | कुछ कथा कह्ती हैं कि यह बात अर्जुन ने कही थी |
जो भी हो, आगे कथा है कि चुकी माता की आज्ञा नहीं टाली जा सकती, इसलिए पांचो भाईयों से द्रौपदी का विवाह हो गया | स्पष्टीकरण में पूर्व जन्म का प्रसंग दिया गया, इस विवाह को उचित बताने के लिए |
ऐसा कुछ नहीं हुआ, ना संभव था, विशेषकर जब स्वम्बर को स्वीकारते है, और ये भी मानते है कि युधिष्टिर से अधिक न्यायप्रिय व्यक्ति विश्व मैं नहीं हुआ | और न्याय को परिभाषित करने के लिए यह आवश्यक है कि समाज में रहने के लिए क्या नियम होने चाहीये, उसे जाने और स्वीकारे | किसी भी दृष्टि से, किसी भी युग मैं सनातन धर्म के मानको के अनुसार ये न्यायसंगत नहीं है |
वेद, समाज में रहने के नियम बताता है, तो यह वेद विरुद्ध भी है |
और अंत मैं
इस ‘पांचो पांडवो का विवाह द्रौपदी से’ को श्री कृष्ण का आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ, और कृष्ण तो अवतार है गलत हो नहीं सकते, क्यूंकि धर्म स्थापना के लिए आए थे |
तो जो निर्णय वेद विरुद्ध था, सनातन समाज विरुद्ध था, स्वम्बर के नियमो के विरुद्ध था, उसे धर्मराज युधिष्टिर और उनकी आदरनिये माता कुंती ने, बाकी पांडवो ने, तथा श्री कृष्ण ने क्यूँ स्वीकार, इसपर चर्चा करते हैं |
यह सत्य है कि द्रौपदी का विवाह पांचो पांडवो से हुआ | यह इतिहासिक सत्य है |
परन्तु ऐसा क्यूँ हुआ इसका कारण भी बहुत स्पष्ट है; उस समय कन्याओं का अभाव था| अभाव ना कह कर आकाल ज्यादा उपयुक्त होगा | और खेद की बात यह है कि पूरी महाभारत कन्या-अभाव के प्रमाणों से भरी पडी है, लेकिन संस्कृत विद्वानों ने और धर्म गुरुजनों ने सत्य समाज तक नहीं पहुचने दिया |
कन्या-अभाव का पहला संकेत विश्वामित्र के तप से मिलता है, उसका यहाँ उल्लेख कर लेते हैं==>
विश्वामित्र का तप ... तप का अर्थ होता है, समाज हित में व्यक्तिगत कठोर प्रयास|
तप तो इस कलयुग में भी अनेक लोगो ने करा है :
- चाणक्य और चन्द्रगुप्त को देख लीजिये,
- गौतम बुध और सम्राट अशोक,
- गोस्वामी तुलसीदास, महाराणा प्रताप
- आज़ादी के लिए फासी पर झूले असंख्य शहीद,
- सिख गुरु; छत्रपति शिवाजी
परन्तु ना तो इंद्र का सिंघासन डोला, ना किसी के लिए अप्सरा भेजी गयी| मुझे नहीं समझ में आता कि संस्कृत विद्वानों का उद्देश क्या है ? पिछले ५००० वर्षो में समाज सिकुड़ कर मात्र भारत में सीमित रह गया है, एक हज़ार वर्षो की गुलामी झेल चुका है, समाज दुबारा गुलामी की और बढ़ रहा है और संस्कृत विद्वान अभी भी सबकुछ गलत बता रहे हैं |
वापस विषय पर,
विश्वामित्र का तप ...जिसके लिए संस्कृत विद्वानों ने समाज को गुलाम बना कर रखने के लिए यह झूट तक बता दिया कि इंद्र ने तप भंग करने के लिए अप्सरा भेजी | यह किस्सा द्वापर युग की उस महान बाढ़ का है, जिसका उल्लेख सिर्फ पुराणों में नहीं, विश्व की हर प्राचीन सभ्यता में है | उस बाढ़ के बाद जैसे कन्या का आकाल पड़ गया था और गर्भ के उपरान्त नवजात शिशु ज़िंदा नही बचपा रहेथे | वैसे सारे संकेत यह बता रहे हैं कि समाज तब विकसित था परन्तु एक समस्यासे निदान पाने में समय तो लगता है |
तो सारे सांसारिक सुख का त्याग करे हुए विश्वामित्र ने इस समस्या के निदान के लिए आरंभिक प्रयास करा; और अप्सरा से यहां सिर्फ इतना अर्थ है कि कन्या का वास्तविक परिचय आपको नहीं दिया जा रहा है | तप सफल हुआ, एक कन्या शकुन्तला का सफल जन्म हुआ और पूर्व नियोजित तरीके से अलग हो गए | इन्ही शकुन्तला के पुत्र भारत हुए जिनसे कुरुवंश आरम्भ हुआ |
इसके बाद तो पूरा महाभारत कन्याओं के आकाल से भरा पड़ा है, सिर्फ आलोकिक शक्ति से उसपर पर्दा डाला हुआ है| समय मिला तो इसपर अलग से पोस्ट भी लिखूंगा |
महाभारत काल में कन्याओं के आकाल की कुछ जानकारी इन पोस्टो से मिल सकती है:
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