श्री राम और माता सीता के चरित्रों का वर्णन रामायण है| जब सूचना का आभाव था तो इसके इतिहास होने पर संदेह था, लेकिन आज नहीं| आज हिंदू रामायण को त्रेता युग का इतिहास और राम और माता सीता को अवतार मानते हैं
यह पोस्ट इसी विचारधारा को आगे बढाते हूऐ हिंदू समाज के कुछ प्रश्नों पर विचार व्यक्त करेगी|
सबसे पहले तो हमसब को यह समझना होगा कि इतिहास कभी भी अपने आप में पूरक विषय नहीं माना गया है; उसकी प्रस्तुती इतिहास का प्रमुख भाग है, जो कि सदैव वर्तमान समाज, जिसको उस इतिहास में रूचि है, के अनुकूल होता है ! यही कारण है कि हमारा प्राचीन इतिहास जिसे हम पुराण के नाम से जानते हैं , अलोकिक और चमत्कारिक शक्तियों से भरा पड़ा है !
विभिन् युगों में कुछ समय के लिये विज्ञान के विकास ने ऐसे उपकरण प्रस्तुत कर दिये, जिन्हे अधिकाँश समय, जब विज्ञान विकसित नहीं था, बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्तियों कि चादर डाले, नहीं समझाया जा सकता था ! साथ में यह भी अत्यंत आवश्यक है कि विज्ञान के विकास के बाद वोह चादर हट जानी चाहिये ! खेद, परन्तु आजादी के बाद ऐसा कुछ नहीं हुआ !
अलोकिक और चमत्कारिक शक्तियों कि चादर प्राचीन इतिहास से न हटा कर हिंदू समाज का दोहरा नुक्सान हो रहा है; पहला तो यह कि विज्ञान से विकसित क्षमता के अनुकूल हमे ज्ञान नहीं मिल पा रहा है, तथा हम अपने प्राचीन इतिहास को माध्यम बना कर शोघ नहीं कर पा रहे हैं ! इसके अलावा अनेक जगंह रिक्त स्थान हैं जिससे पूरी कड़ी समझ में नहीं आती है ! कुछ ऐसी ही समस्या रामायण के साथ भी है ! यहाँ पर इतिहास के परिपेक्ष में विस्वमित्र राम को राजा दसरथ से क्यूँ मांग कर ले गए थे, यह समझने का प्रयास करते हैं !
जब श्री राम १६ वर्ष के थे तो एक बार महाऋषि विश्वामित्र राजा दसरथ से मिलने अयोध्या आय ! यथो उचित सत्कार के बाद विश्वामित्र ने बताया कि वन में राक्षसों का आंतक बहुत बढ़ गया है !
वानर जो कि मनुष्य कि नई प्रजाति है उसको ...
यह राक्षस पकड़ कर य मार कर ले जाते हैं; चुकी वानर मानव की नई प्रजाती थी जो पृथ्वी के प्राकृतिक विकास के कारण वन मैं उत्पन्न होई थी, उनकी रक्षा, तथा समाज मैं उपनिवेश आवश्यक है | ऋषि मुनी तथा वन में अन्य मनुष्यों के साथ भी राक्षसों का दुर्व्यवाहर बढ़ रहा है ! सोनियोजित कठोर प्रयास (यज्ञ) की आवश्यकता है ! उन्होंने प्रस्ताव रखा कि कैसे इस विपदा का समाधान हो ! यह सुनिश्चित होने के उपरान्त कि श्री राम ही इस अभियान के लिये श्रेष्ट हैं, राम और लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ वन को प्रस्थान कर गए !
वन में जब वोह तारका के दुर्ग के निकट पहुचे तो उन्होंने उसे युद्ध के लिये प्रेरित करा तथा सहज ही मार दिया ! रावण के सम्बन्धी मारिची को उन्होंने विवश करा कि वोह रावण को इस विषय में वार्ता के लिये यथा शीघ्र यहाँ लेकर आय !मारिची को एक अत्यंत तेज विमान से उन्होंने लंका भेजा जो देखने में बिना फन वाले वाण जैसा लगता था ! जनक भी इस वार्ता के लिये जनकपुरी से आ गए ! चुकि यह रिक्त स्थान भरने का प्रयास है, इसलिये बिना भूमिका में समय गवाएं क्या निर्णय होए इसपर आते हैं :
- वानरों का भविष्य जब सुधर सकता है, जब वोह वर्तमान समाज में रहने के लिये प्रशिक्षित हो सके ! इसके लिये रावण ने सुझाव दिया कि क्यूँ नहीं राम ही १२ से १४ वर्ष वन में रह कर उनका प्रशिक्षण करते ! राम ने इस के लिये संकल्प ले लिया !
- विश्वामित्र ने सुझाव दिया कि राक्षसों के लिया उचित यह होगा कि वोह पातळ लोक जा कर रहें! रावण ने उसे स्वीकार नहीं करा ! बात युद्ध कि चुनौती तक पहुच गयी ! रावण ने यह कहा कि वानर का प्रशिक्षण सबसे महत्त्वपूर्ण है क्यूंकि उसके बिना कुछ भी आगे संभव नहीं है; इसलिये यदी राम युद्ध कि इच्छा रखते हैं तो १४ वर्ष के प्रशिक्षण के अंत में युद्ध भी हो सकता है !लेकिन इस सब में सहयोग के लिये यह आवश्यक है कि शिव धनुष जो कि प्रलय स्वरूपि विनाशकारी है तथा जिसका प्रयोग लंका पर हो सकता है उसका विवस्त्रीकरण हो! जब तक शिव धनुष कि समाप्ति नहीं होगी, उचित वातावरण अग्रिम कारवाही के लिये नहीं हो पायेगा !
- जनक ने सबको आश्वस्त करा कि वोह तत्काल सीता के स्वम्बर की घोषणा कर देते हैं जिसमें यह शर्त होगी कि जो शिव धनुष का विवस्त्रीकरण करेगा उसके साथ सीता का विवाह कर दिया जायेगा !
- रावण ने राम को अभियान में सफल होने का आशीर्वाद दिया !
इसके उपरान्त जैसा कि सर्व विदित है जनकपुरी जा कर राम ने शिव धनुष का विवस्त्रीकरण करा और सीता के साथ विवाह करा !"
उपरोक्त रिक्त स्थान को इतिहास के संधर्भ में भरने का प्रयास है ताकि रामायण के समस्त प्रसंग समझ में आ सकें !
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