राष्ट्र का उद्देश समाज कल्याण है, तथा आजादी के बाद उसपर भरपूर राशी भी वय करी गयी है, परन्तु समाज गरीब होता गया, भ्रष्टाचार बढ़ता गया, तथा धर्मगुरु अत्यंत धनवान होते गए| यह तो सीधा संकेत शोषण का है !
यह पोस्ट आपसब पढिये ज़रूर और अपने विचार भी व्यक्त करें, क्यूँकी विषय गंभीर है| यदी ऐसा हुआ है, तो यह पूरी तरह से धर्म के नाम पर ठगाई होई है, और बिना आप सबके प्रयास के सुधार भी नहीं होना है|
हुआ यह है की जिस तरह से एक नवजात शिशु जन्म के बाद अनेक अवस्था से गुजरता है, तथा जहाँ बचपन मैं उन सब के लिए भावनात्मक तरीका ही अपनाया जाता है, क्यूँकी इतनी कम उम्र मैं भौतिक तथा कम भावनात्मक तरीका उपयुक्त नहीं है, उसी तरह से गुलाम समाज की धर्म परिवर्तन से रक्षा के लिए हिंदू समाज को पूरी तरह से भावनात्मक बना कर रखा गया था, परन्तु आजादी के बाद उसमें बदलाव अनिवार्य था| कुछ उसी तरह से जिस तरह से एक शिशु को जब धीरे धीरे बड़ा होने लगता है, तो भावनात्मक प्रयास को घटा कर कम भावनात्मक कर दिया जाता है, और भौतिक प्रयास बढा दिया जाता है| पढ़ें: मैं और मेरी संतान..चुकी हर व्यक्ति इश्वर का अंश व प्रतिबिम्ब है
परन्तु ऐसा नहीं करा गया, उल्टा भावनात्मक भाग बढ़ा दिया गया है, ताकी समाज का शोषण बिना रोक टोक के हो सके|
जैसा की कहा गया है, आजादी के बाद सबको उम्मीद थी स्वर्ग का द्वार अब हिंदू समाज के लिए हमारे धर्मगुरु खोल देंगे, क्यूँकी अब तो कोइ अवरोध था नहीं, लकिन ऐसा नहीं हुआ| आजादी के बाद , नेताओं को सत्ता के गलियारों मैं भव भवन मिल गए, धर्म गुरु भी उनसे जुड गए, और सत्ता का सुख भोगने लगे, लकिन उसके लिए आवश्यक था की समाज भावनात्मक रहे, और कर्महीन| कर्महीन इसलिए की पहले विदेशी जुल्म करते थे, और सोच यह थी, की वहाँ तक हमारे पहुच नहीं है, लकिन अब तो आपके समाज से उभरा हुआ नेता ज़ुल्म करता है, तो केवल कर्महीन समाज ही उसे सर झुका कर बर्दाश्त कर पायेगा| उसके लिए आवश्यक था की धर्म का भावनात्मक भाग और बढा दिया जाए, और वह कर दिया गया|
सुचना युग मैं इस सत्य को अस्वीकार कैसे करा जा सकता है की जहाँ ‘समाज कल्याण प्रमुख’ उद्देश सरकार का हो, तथा आजादी के बाद उसपर भरपूर राशी भी वय करी गयी हो, समाज गरीब होता जाए, भ्रष्टाचार बढ़ता जाए, तथा धर्म गुरु जिन्होंने उस समाज मैं धर्म प्रचार करा है, वे अत्यंत धनवान होते जाएँ| यह तो सीधा संकेत शोषण का है|
अब कुछ प्रमुख बदलाव धर्म-प्रचार मैं जो होने थे, और नहीं हुए:
जैसा की पहले भी अनेक पोस्टों मैं कहा गया है, धर्म का भावनात्मक भाग घटा कर भौतिक भाग बढ़ाना था, जिसका उल्टा करा गया; रहा सहा भौतिक भाग भी खत्म करा जा रहा है| पढ़ें: सनातन धर्म मैं एकही अवतार के भिन् स्वरुप अलग अलग सामाजिक स्थिती मैं, और पढ़ें: सनातन धर्म का अति प्राचीन हो कर भी जीवित रहने का कारण
केन्द्रीय सप्तऋषी समिती का गठन, जो की खास तौर पर साधू संतो, और धर्म प्रचारकों के लिए नियम बनाएँ, और यह भी सुनिश्चित करे, की समाज प्रगति करे| पढ़ें: सनातन धर्म मैं सप्त ऋषि की अवधारणा
जिन शब्दों का जोर शोर से शोषण के लिए प्रयोग हो रहा है, उन सबको परिभाषित करना| उद्धरण; एक साधू को अनेक प्रसंग मैं यह कहा जाता है की वोह धार्मिक और आद्यात्मिक भी है| यह भ्रमित करने वाले शब्द हैं; अरे साधू का अर्थ ही होता है की उसने अपना जीवन विश्व को सुंदर बनाने के लिए अर्पित कर दिया; वोह धार्मिक और आद्यात्मिक तो हो ही गया| सत्य तो यह है की इन शब्दों का प्रयोग सिर्फ सांसारिक व्यक्तियों के लिए ही हो सकता है, लकिन आज इनकी कोइ सही परीभाषा है नहीं शोषणकर्ताओं के पास| सही परिभाषा के लिए पढीये: धार्मिक आद्यात्मिक साधू तथा गुरु की परिभाषा
सनातन धर्म अकेला एक धर्म है जो क्रमागत उन्नति(EVOLUTION) पर विश्वास करता है, अन्य धर्म सर्जन(CREATION) पर| यह धर्म-गुरुजनों को बताना इसलिए जरूरी है, क्यूँकी, बाकी सारे धर्म चुकी सर्जन पर विश्वास रखते हैं, तो विज्ञान का प्रयोग करके यह साबित करने की कोशिश करी जा रही है, की हालाकी बाकी सब वास्तु की प्रगति और विनाश चक्रिये है, लकिन श्रृष्टि का नहीं| चुकी हिंदू समाज के पास प्राचीन इतिहास है जो यह साबित करता है की श्रृष्टि की प्रगति भी चक्रिये है, तो यदि ऐसा नहीं करा तो हिंदू समाज को अद्भुत श्रेष्ठा मिल जायेगी| दूसरा अवतार अर्थहीन हो जाते हैं, यदी हम क्रमागत उन्नति(EVOLUTION) मैं विश्वास नहीं करते होते| यह भी बताना जरूरी है, की सनातन धर्म मैं इश्वर स्वर्ग मैं बैठ कर हस्ताषेप नहीं करते, वोह अवतार लेते हैं| पढ़ें: पृथ्वी का विकास.. सृजन या क्रमागत उन्नति ; यह भी पढ़ें : क्या अवतार के पास अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति होती हैं ?
भौतिक, भूगोलिक ज्ञान जो सनातन धर्म का ‘कम सूचना के समय’ अंग बन गया था, उसे विश्वविद्यालय तक पहुचाने के लिए उसे धर्म से अलग करना होगा, तथा सीधा लाभ इसका यह भी होगा की समाज का शोषण कम सूचना वाले धर्म गुरु नहीं कर पायेंगे, और ज्ञान अपनी सही जगह पहुच जाएगा| उद्धरण; युग के स्वरुप के बारे मैं बताया गया है, सारे संकेत भी उपलब्ध हैं की सतयुग सबसे खराब युग था, परन्तु ठीक इसका उल्टा बताया जा रहा है| दूसरा हमारे धर्म गुरु जो की अपने आप को भगवान की तरह पुजवाना चाहते हैं, वोह युग को परिभाषित भी नहीं कर पा रहे हैं| पढ़ें: हिंदू ज्ञान के अनुसार युगों का निर्माण आप कैसे करेंगे
और भी बहुत सारे कारण हो सकते हैं| परन्तु काम तो शुरू करिए, चर्चा तो करिए |
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