हिन्दू समाज कमजोर, अशक्त होता जा रहा है, तो वोह निश्चय ही धर्मगुरु द्वारा बहुत ज्यादा शोषित हो रहा है, और समाज का शिक्षित वर्ग यदि उसके विरुद्ध कुछ नहीं कर रहा है तो वोह घोर अधर्म और पाप का भागीदार है
‘सनातन धर्म समझना इतना आसान नहीं है, मन को एकाग्रित करके ही आप उसको समझने का प्रयास कर सकते हैं, वोह भी अगर आपके गुरु मैं इतनी क्षमता होगी तो’; यह आपने अनेक स्वरों मैं सुना होगा, दूसरी बात; कि सनातन धर्म को समझने के लिए संस्कृत का ज्ञान अति आवश्यक है |
उपर जो भी कहा गया है, ‘मुश्किल है’, ‘संस्कृत आनी चाहिए’, सब गलत है, आपको भ्रमित रखा जा रहा है, ताकी धर्मगुरु जो समाज के शोषण के कार्य मैं लगे हैं, उनकी दूकान चलती रहनी चाहिए|
वास्तिविकता यह है कि सनातन धर्म समझना बहुत आसान है, और फिर आपने यह सोच कैसे लिया कि जो धर्म जब से श्रृष्टि उत्पन्न होई है, तब से चल रहा है, वोह समझने मैं कठिन हो सकता है| जो धर्म आदि काल से चला आ रहा है, उसमें यह विशेषता तो होगी ही होगी, कि कम शिक्षित साधारण व्यक्ति भी उसे समझ ले|
तो पहले तो आप अच्छी तरह से समझ लीजिये की जो भाषा आप जानते हैं, उतना ही पर्याप्त है, सनातन धर्म समझने के लिए, और संस्कृत के ज्ञान की कोइ भी आवश्यकता नहीं है|
क्या है सनातन धर्म और उसमें क्या आवश्यक नियम हैं जिसका अनुसरण करना अनिवार्य है ?
अब इसका उत्तर भी समझ लीजिये:-
सनातन धर्म मात्र एक ऐसा धर्म है, जिसमें कोइ भी नियम नहीं हैं,
यह धर्म आपसे अपेक्षा रखता है की आप स्वंम का विकास करेंगे,
आप स्वंम का विकास करते हुए अपने परिवार और अपने बड़े परिवार के विकास मैं भी सहायक होंगे,
आप ऐसा करते हुए अपने समाज के विकास मैं भी सहायक होंगे,
और यह सब करते हुए प्रकृति, प्राकृतिक सम्पदा, और पर्यवाह्रण की रक्षा भी करेंगे|
तो यह है सनातन धर्म| नियम इसलिये नहीं हो सकते क्यूँकी समाज की स्तिथी समय समय पर बदलती रहती है, उद्धरण; जो समाज कन्याओं को यह अधिकार देता है कि स्वंम वर चुने और स्वेम्म्बर के लिए प्रोहित्साहित करता है, उसी सनातन धर्म ने कन्याओं के बाल विवाह को प्रोहित्साहित करा जब युवा अविवाहित कन्या जबरदस्ती उठा ली जाती थी|
अब बाताईए इसमें कहाँ आवश्यकता है, संस्कृत या अन्य भाषा को जानने की?
हर धर्म मैं ३ भाग होते हैं, जो की समाज को उस धर्म से जुड़ने के लिए करने होते हैं:-
१. पूजा
२. विधि जैसे की विभिन्न त्योहारों पर हर परिवार की विधी कुछ अलग हो सकती है
३. भौतिक कार्य, धर्म, जो की अनिवार्य है, जैसे हरे पेड को ना काटना, नव शादी शुदा दम्पती की सहयता करना, और इसी उद्देश से आप दावत खाते हैं, तथा परिवार या समाज मैं जो शिशु हैं उनको विकास और वृद्धि का पूरा अवसर देना...आदि आदि
ध्यान रहे, क्यूँकी अब जो कहा जा रहा है, उसमें कोइ संशय नहीं है|
जब समाज धार्मिक होता है, जैसा की हिन्दू समाज है, और वोह कमजोर और अशक्त होता जा रहा है, जैसा की अब हिन्दू समाज के साथ हो रहा है, तो वोह निश्चय ही धर्मगुरु द्वारा बहुत ज्यादा शोषित हो रहा है, और समाज का शिक्षित और शक्तिशाली वर्ग, यदि उसके विरुद्ध कुछ नहीं कर रहा है तो वोह घोर अधर्म और पाप का भागीदार है|
इसके अतिरिक्त हिन्दू समाज के पास, इतनी लूटपात के बाद भी समाज के विभिन्न युगों का इतिहास उपलब्ध है, जो समाज को शिक्षित करने मैं अत्यधिक भूमिका निभा सकता है| यह अलग बात है कि ६५ वर्षो से हिन्दू समाज शोषणकर्ताओं के हाथ मैं है, इसलिए इसका लाभ वर्तमान समाज को नहीं मिल पा रहा है|
पढीये: आजादी के बाद के कर्महीन हिंदू समाज की मानसिकता कैसे बदली जाए ? अब सीधे इसी पोस्ट से उद्धत होता हूँ :
समझ लें:
सनातन धर्म मैं अवतार का स्वरुप, कम विकसित और अशिक्षित समाज के लिए, अलोकिक शक्ती की चादर के साथ होता था, जैसा की आजादी से पहले था
और...
विकसित , शिक्षित समाज के लिए, बिना अलोकिक शक्ती और चमत्कारिक शक्ती के, जैसा की आजादी के बाद के समाज के साथ होना था, परन्तु नहीं हुआ|
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