Thursday, December 19, 2013

सिता त्याग तथा साक्ष्य विधि जो सहपलायन मैं आजभी प्रगतिशील देशोंमै मान्य

Law of evidence as applicable for consent of women in cases of elopement, which is exactly the ruling given by Ram as presiding judge, for Sita before disowning her~~ये विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्यूँकी अवतार जो धर्म स्थापित करते हैं, वोह कितना महत्वपूर्ण होता है, यह वृतांत तथा बाद मैं सीता का त्याग इस पर विशेष प्रकाश डालता है|
एक बार पूरे भौतिक तथ्य फिर से समझ लें:
1. पंचवटी मैं राम के और लक्ष्मण के जाने के बाद रावण भिक्षुक के वेश मैं आया, और सीता से भिक्षा माँगी|

2. सीता ने सुरक्षा रेखा(लक्ष्मण रेखा) के अंदर से भिक्षा देनी चाही, लकिन रावण ने इनकार कर दिया, यह कह कर की वोह जहाँ बैठ गया है, वहीं भिक्षा लेगा|

3. भिक्षुक ब्राह्मण नाराज़ न हो जाय, सीता सुरक्षा रखा से बाहर निकल कर रावण को भिक्षा देने गयी, और सीता का अपहरण हो गया|

और अब उस समय के विकास को समझ लें:

1. सीता का अपहरण करके रावण वायु मार्ग से लंका गया|

2. जब विज्ञानिक विकास इतना था, तो संचार भी आज के समय से संभवत: अधिक विकसित और आधुनिक होगा| स्वाभाविक है अपहरण जैसे घृणित अपराध कोइ स्वीकार नहीं करता, और रावण तो लंकाधीश थे| रावण ने संचार का प्रयोग करके यह अवश्य पूरे विश्व को बताया कि ब्राह्मण होने के नाते वोह भिक्षा लेने वन मैं पंचवटी जा पंहुचा, और सीता ने स्वंम को, स्वेच्छा से भिक्षा के रूप मैं अपनेआप को अर्पित कर दिया| फिर भी पराई स्त्री का अपमान न हो, इसलिए वोह उसे महल मैं न रख कर, अपने एक बाग़ मैं रख रखा है, जिसकी सुरक्षा भी महिलाएं कर रही हैं|
यह जो बात कही जा रही है(रावण का कथन: सीता ने स्वंम को, स्वेच्छा से भिक्षा के रूप मैं अपने को अर्पित कर दिया), यानि की रावण के झूठे कथन, व् प्रचार का प्रमाण भी है| रावण वध के बाद जब राम अयोध्या पहुचे, तो अयोध्या के ब्राह्मणों ने उनका राजभिषेक करने से इनकार कर दिया, क्यूँकी राम एक निर्दोष ब्राह्मण के पूरे परिवार को नष्ट करके अयोध्या लोटे थे| मजबूरी मैं बनारस से राजभिषेक के लिए ब्राह्मण बुलाना पड़ा|
इस विषय पर आज भी आप पुर्वी उत्तर प्रदेश में सुन सकते हैं|

ऐसी मान्यता है कि जब राम अयोध्या वापस लोट आये तो श्री राम के राजभिषेक के लीये वहाँ के ब्राह्मण समुदाय ने इनकार कर दिया ! कारण यह था कि रावण एक प्रतिष्टित ब्राह्मण थे तथा सीता को भिक्षा में स्वेच्छा से लाए थे| अत: राम के पास कोइ अधिकार नहीं था कि वोह रावण तथा उसके ब्राह्मण परिवार का निर्ममता से संघार करके सीता को वापस लाए|

श्री राम को राजभिषेक के लीये सरयू पार अथार्त वाराणसी से ब्राह्मण बुलाने पड़े थे; तभी से वोह ब्राह्मण सरयू पारी कहलाने लगे |

इस विवाद से इतनी कडवाहट आ गयी, की आज भी अयोध्या के मूल ब्राह्मण जो अपने आपको कान्य कुब्ज ब्राह्मण कहते हैं उनका विवाह सरयू पारी ब्राह्मणों मैं नहीं होता|
कान्य कुब्ज, और सरयू पारी ब्राह्मणों का इस मूल पोस्ट से कुछ लेना देना नहीं है, मात्र राम और सीता के प्रति अयोध्या-वासियों के सोच क्या थी, वोह बताने के लिए आवश्यक है, तथा महत्वपूर्ण इसलिए है की पूर्व उत्तरप्रदेश मैं यह सत्य आपको सुनने और देखने को मिल जाएगा की एक ही गोत्र के ब्राह्मण, मैं एक अपने आपको कान्य कुब्ज बतायेगा, और दूसरा सरयू पारी, तथा शादी व्याह अभी भी आपस मैं नहीं होती|
यह वृतांत इसलिए भी आवश्यक था, कि इस सत्य को आपलोग समझ लें की एक धोबी, सिर्फे एक धोबी के कहने पर राम ने सीता का त्याग नहीं करा|

अब रही इस विषय से सम्बंधित तथ्य, जिस पर ब्लॉग मैं अनेक पोस्ट उपलब्ध हैं, 

तो चलिए वास्तव मैं क्या हुआ, यह पोस्ट: धर्म जो अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित करने पर मिलें, से उध्रत हो कर देखते हैं:
“जो विवाद श्री राम के सामने आया था, उसमें श्री राम को यह भी सुनिश्चित करना था, सबूतों के आधार पर, की सीता स्वंम की इच्छा से रावण के साथ गयी या अपहरण हुआ, और सीता कोइ भी सबूत नहीं दे पाई की अपहरण हुआ| लक्ष्मण रेखा उन्होंने स्वेच्छा से पार करी थी|“

श्री राम ने यह निर्णय दिया कि सीता कोइ भी भौतिक प्रमाण नहीं दे पायी हैं कि वोह स्वेच्छा से नहीं गयी थी ! उन्होंने यह भी माना कि आज क्यूँकी वोह गर्भवती हैं तथा पूरी तरह से उनके नियंत्रण मैं हैं उनके किसी भी बयान को स्वतंत्र नहीं माना जा सकता| श्री राम ने अग्नि परीक्षा के परिणाम को निरस्त करते होए सीता को त्याग दिया!” 

यहाँ पर एक न्यायधीश की सीमाएं बताई जा रही हैं, श्री राम यह जानते थे की सीता का अपहरण हुआ है, लकिन सीता यह साबित नहीं कर पाई| आज भी कानून को अंधा कहा जाता है, अर्थात उसे जो दिखाया जाएगा, कानून केवल उतना ही देखेगा, और वही धर्म हमें सीता के त्याग के वृतांत से मिल रहा है |”

क्या आपको यह मालूम है कि आज भी पूरे प्रगतिशील विश्व मैं, सहपलायन को लेकर जो कानून की सोच है कि लडकी का स्वतंत्र निर्णय, अर्थात बिना किसी बहारी दवाब के निर्णय क्या है, उसके लिए साक्ष्य विधी वही है, जो श्री राम ने सीता का त्याग करते समय स्थापित करी|
कोइ आश्चर्य नहीं की राम राज्य की स्थापना होई |

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.