Monday, August 4, 2014

शिवजी सर्प गंगा और चन्द्र धारण कर समाधी मैं लीन हैं, इसका अर्थ

शिव जी सदैव समाधी मैं ही क्यूँ दिखाई देते हैं ? इश्वर शिव सदा समाधि मैं नज़र आते हैं, जितने भी उनके चित्र मिलेंगे, सबमे वे समाधि मैं बैठे दिखते हैं, गंगा उनकी लटाओंसे निकलती दिखाई देती है, सर्प उनके गले मैं विराजमान हैं और अमावस्य से पहले का चौदश(fourteenth tithi of the dark fortnight ) का चन्द्रमा उनके सर पर सुशोभित होता है |
ध्यान रहे शिव पार्वती मैं आस्था रखने का अर्थ हो गया कि आप क्रमागत उन्नति मैं आस्था रखते हैं, और चुकी पार्वती का दूसरा स्वरुप प्रकृति है, तो प्रकृति और इश्वर के तालमेल से ही श्रृष्टि चलती है, यह सनातन धर्म मानता है |
अनेक मत है ज्ञानियों के, इस विषय मैं, सबने यह समझने का प्रयास करा कि शिव को समाधी मैं रहना क्यूँ अच्छा लगता है, उनको इससे क्या अनुभूती होती होगी, वगैरा वगैरा|

पहले तो यह समझ लें की निरंकार और साकार भक्ति मैं यही मुख्य अंतर है कि साकार मैं हम इश्वर की छबी वैसी ही देखना चाहते हैं, जो हमारी इच्छा होती है, और निरंकार मैं ईश्वर का कोइ स्वरुप होता नहीं |
इसलिए मैं तो कम से कम स्वंम को इतना काबिल नहीं समझता की मैं यह समझ सकूं की इश्वर क्यूँ समाधी मैं रहना पसंद करते हैं, हाँ, मैं यह जरुर बताने का प्रयास कर सकता हूँ कि इस स्वरुप मैं इश्वर को देख कर क्या क्या विचार या धारणा मन मैं बनती, या आती हैं, और मुझे लगता है कि साकार भक्ती के लिए सनातन धर्म मैं यही आवश्यक है, इससे अधिक नहीं |
गंगा, शिवजी की लटाओंसे निकल रही हैं, और पृथ्वी को निर्मल स्वच्छ जल दे रही हैं, तथा निर्मल स्वच्छ जल जीवन के लिए अति आवश्यक है| गंगा पूरे ब्रह्माण्ड के श्रृष्टि रचेता ब्रह्मा जी के कमंडल से आई हैं, तो इसका सांकेतिक भाषा मैं क्या अर्थ हुआ? कथा यह है की गंगा पितरो का तर्पण करने के लिए पृथ्वी पर आई, तो इसका भी अर्थ समझना होगा| 

सनातन धर्म मानता है कि सारी श्रृष्टि चक्रिय(CYCLIC) है, अवधि हरेक की अलग अलग भी हो सकती है, और यदी पितरो का तर्पण नहीं होगा तो वे सब पितृ, आत्मा बन कर दुबारा पुनरजन्म के लिए उपलब्ध नहीं होंगे; स्पष्ट है की गंगा के आने से पहले चक्र पूर्ण नहीं था, श्रृष्टि चक्रिये नहीं हो पा रही थी, जो की गंगा के आने के बाद हुई |
शिव की लटाओंसे गंगा बहती रहने का अर्थ यही मिलता है की श्रृष्टि चक्रिये रहेगी, और पृथ्वी को ईश्वर, जीवन के लिए सदेव स्वच्छ जल प्रदान करते रहेंगे |
नाग का लिपटे होना का अर्थ है एकाग्रता, रहस्यमयता, जल्दी और अप्रत्याशित रूप से होने वाली घटना, बिना चेतावनी के ! यह संकेत अपने आप मैं अनोखा संकेत है; आपको बताता है की जीवन के लिए एकाग्रता अति आवश्यक है, परन्तु इसके बाद भी अनेक विषय रहस्यमय बने रहेंगे, तथा बिना चेतावनी के अप्रत्याशित रूप से घटनाएं हो सकती है | यह भी समझ लें की अन्य धर्मो मैं इश्वर सब समस्याओं का समाधान है , परन्तु यहाँ स्वंम इश्वर संकेत से ‘सब समस्याओं का समाधान’ पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे है | यही सनातन धर्म की विशेषता है, और कारण है कि हमलोग सर्जन मैं नहीं, क्रमागत उन्नति मैं विशेष आस्था रखते हैं |
अब चन्द्रमा, वोह भी चौदहवी तिथि का, यानी बहुत ही पतली और छोटी चाप आपको चन्द्रमा की शिवजी के सर पर दिखाई देती है ; और शिव समाधि मैं हैं | अर्थ स्पष्ट है, मात्र इतनी चेतना ही पर्याप्त है श्रृष्टि के संचालन के लिए | इश्वर को पृथ्वी पर जो श्रृष्टि है, उसके संचालन के लिए, अमावस्य से पूर्व के चौदहवी तिथि के चन्द्र जितनी चेतना की ही आवश्यकता है; तो क्या पृथ्वी पर श्रृष्टि बाल अवस्था मैं है ?
मेरी समझ मैं तो बाल अवस्था मैं है, तथा इश्वर हमसबको यह बता रहे हैं की सर्प के संकेत के बाद भी श्रृष्टि का संचालन पूर्वानुमान जैसा है वैसा ही होगा बहुत ज्यादा हेर-फेर बदलाव की उम्मीद नहीं है | उद्धारण: कलयुग के अंत मैं पृथ्वी जल मग्न होनी है तो होगी, कोइ विशेष बदलाव आज के मानव और श्रृष्टि से आप मत करें |

अब समझते हैं, शिवजी समाधि मैं क्यूँ हैं ? 
मान्यता है की समाधि मैं जीव का आत्मा और परमात्मा से सम्बन्ध हो जाता है , या यह कह लीजिये की जीव का ब्रह्माण्ड से सम्बन्ध हो जाता है | प्रतक्ष रूप से इस सम्बन्ध से पुनःपूर्ति होती है, एकाग्रता बढ़ती है, चित शांत रहता है, और भावना तथा कर्म का संतुलन सही हो जाता है |
REPEAT: समाधि मैं जीव का परमात्मा से सम्बन्ध हो जाता है, या कह लीजिये ब्रह्माण्ड से सम्बन्ध हो जाता है| इससे पुनःपूर्ति होती है, एकाग्रता बढ़ती है, चित शांत रहता है, और भावना तथा कर्म का संतुलन सही हो जाता है

समाधि दर्शाती है की शिव पूरे ब्रह्माण्ड के संपर्क मैं हैं और जो उर्जा शिव लिंग से पूरे ब्रह्माण्ड के विकास के लिए इश्वर देते हैं, उसके पुनःपूर्ति के लिए इश्वर को भी प्रयत्नशील होना पड़ता है |

संकेत स्पष्ट है, आपको भी कुछ कुछ शिव बनना है !

ॐ नम: शिवाय !

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.