Monday, June 11, 2012

अवतार की परिभाषा

EVOLUTION REQUIRES AVATAR NOT GOD TO MAKE CORRECTIONS~~.प्राकृतिक विकास को मानने वाला धर्म, सनातन धर्म, के लिए यह अति आवश्यक है की स्वर्ग मैं बैठा इश्वर सुधार ना करे , एक मानव, जिसे हम इश्वर अवतार मानते हैं, वोह सुधार करे..!
अवतार दर्शाते हैं, या उपलब्ध कराते हैं ऐसी परिस्थिती जिसमें मानव के जीवित रहने मैं उल्लेखनीय सुधार हो| मनुष्य अवतार आवश्यक सुधार मानवता की प्रगति के लिए लाते हैं मानवता को उस समय के संकट से उभार कर !

अवतार का क्या सही अर्थ है, यह जानना अत्यंत आवश्यक है , क्यूंकि सूचना युग मैं हिंदू समाज को अगर आगे आना है , तो परिभाषा तो सबकी सही होनी चाहिए , और परिभाषा भी ऐसी, जो सम्बंधित समस्त प्रश्नों का भौतिक स्तर पर उत्तर दे सके | ध्यान रहे भौतिक स्तर पर , न की भावनात्मक स्तर पर | खेद का विषय यह है कि अभी तक अवतार कि कोइ परिभाषा ही नहीं है |

समस्या यह भी है कि हमारे धार्मिक ग्रन्थ इतने अधिक हैं , कि उनका उपयोग समाज के शोषण के लिए करना ज्यादा लुभावना है, और वही हो रहा है | यदि , स्पष्टीकरण हर विषय पर , समाज को केन्द्र बिंदु मान कर करा गया , तो शोषण समाप्त हो जाएगा , और यह धर्म गुरु नहीं चाहते |

एक उद्धरण उपयुक्त रहेगा |

मत्स्य अवतार का उल्लेख है , जो कलयुग के अंत में , जब पृथ्वी पूरी तरह जलमग्न हो जाती है , तो इस युग के कुछ लोगो को, अगले महायुग मैं ले जाने मैं सहायक सिद्ध होता है | पुरानो की माने तो ‘अंतराल’ अथार्त बीच का समय , यानी की वर्तमान कलयुग का अंत और नए महायुग के शुरुआत की दूरी ७,२०,००० वर्ष की है | इतने लंबे समय मैं , जब पृथ्वी जल-मग्न हो, तो भोजन का अभाव और समुन्द्र पर रहने की क्या अवश्यकताएँ हो सकती हैं , कोइ नहीं बताता, लकिन अनुमान हर व्यक्ति लगा सकता है |

समुन्द्र का जल भी स्थिर था , तथा जल-जीवन भी समाप्त हो गया था | केवल भारत , जो जलमग्न था, उसके ऊपर जल मैं कुछ जीवन शेष था, और मछलियाँ दिखाई देती थी | अब परिभाषा , ‘मत्स्य अवतार’ की आप स्वंम निर्धारित करें , भावनात्मक परिभाषा चाहिए, जिससे कर्महीनता बढ़ेगी, या भौतिक, जिससे कर्महीनता कम होगी | अधिक जानकारी के लिए पढ़ें : कलयुग का अंत..एक नए कल्प का प्रारम्भ और मत्स्य अवतार 

अब सोचना आपको है की इस अंतराल के लिए मत्स्य को अवतार क्यूँ कहा गया , उसका भौतिक या भावनात्मक उत्तर आप देंगे; मैं यह पाठकों पर छोड़ता हूँ | परन्तु एक बात तो आप सब समझ लीजिए, धर्म समाज की प्रगति के लिए करा हुआ कर्म है| आप भौतिक परिस्थितियों से किस तरह से , समाज कि प्रगति के लिए , निबटते हैं , वही धर्म है |

युगों को परिभाषित करने के लिए भौतिक मापदंड चाहिए, जो कहीं पुस्तकों मैं लुप्त पड़े हैं , लेकिन समाज चुकी कर्महीन है , इसलिए धर्म गुरु बिना उसके भी काम चला रहे हैं |

उसमे, जो मुझे पता है , बता रहा हूँ ;
सतयुग मैं राहू , केतु का जन्म , तथा उनका अंत/मृत्यु कलयुग के अंत मैं |

ध्यान रहे कि राहू , केतु के जन्म का अर्थ है , कि शांत और स्थिर समुन्द्र मैं मंथन शुरू हो गया , या कहीये की समुन्द्र क्रियाशील हो गया, और लहरे उठने लगी | स्पष्ट है कि कुर्म अवतार यह दर्शाता है कि समुन्द्र सक्रिए हो गया है | संभवत: कुर्म का स्वंम उसमें कोइ योगदान नहीं रहा हो | हाँ , कुर्म अवतार राहू और केतु का जन्म भी दर्शाता है |

कुछ उसी तरह से वराह अवतार का भी स्थान है | कुर्म जल का प्राणी था, जो जब पृथ्वी पर दिखाई देने लगा, कुछ कुछ समय के लिए, तो समुन्द्र गतिशील हो गया , और लोगो ने कुर्म के दर्शन का इसे फल मान कर , कुर्म को अवतार मान लिया | परन्तु वराह जल का प्राणी नहीं था , वोह वन का प्राणी था | एक तरफ भूमि का छेत्रफल बढ़ रहा था, उधर वन से कभी कभी व्रारह निकल कर आता और मनुष्यों को उसके दर्शन हो जाते | मनुष्य ने समुन्द्र को घटने की प्रक्रिया को वराह से जोड़ दिया और वराह अवतार हो गए | यह भी पढीये: हिंदू इतिहास ...सत्ययुग में इश्वर अवतार

मेरा उद्देश यहाँ पर समस्त अवतार पर चर्चा करने का नहीं है , मेरा अभिप्राय मात्र अवतार का महत्त्व/महत्ता पर प्रकाश डालने का है, ताकि अवतार की परिभाषा पर पंहुचा जा सके |

एक और महत्वपूर्ण अवतार हैं नरसिंह अवतार | अवतार की परिभाषा कि आवश्यकता ही इसलिये पड़ रही है क्यूंकिहिंदू सृजन(CREATION) को नहीं, क्रमागत उन्नति(EVOLUTION) को पृथ्वी का विकास का कारण मानते हैं , तथा यह समझना आवश्यक है कि अवतार की निश्चित आयु और जन्म होता है | हमारे धार्मिक ग्रंथो मैं बहुत कुछ है , लकिन उसे वर्तमान समाज को केन्द्र बिंदु मान कर समझना और समझाने का कार्य धार्मिक गुरु नहीं कर रहे हैं |

नरसिंह वन मैं मनुष्य की नई प्रजाति मैं से थे, उनके पूँछ भी थी और मुख सिंह जैसा | हिर्नाकश्यप से युद्ध मैं पहली बार मनुष्य और मनुष्य की नई प्रजाति, एक साथ लड़े | युद्ध मैं नरसिंह ने हिर्नाकश्यप को परास्त करा और मार दिया | नरसिंह अवतार, आज भी मनुष्य की संकट मैं , अन्य प्रजाति के मनुष्य के साथ मिल कर सामान्य शत्रु से लड़ने का एक प्रतीक है | यह सत्य है कि राक्षस भी मनुष्य थे, लकिन चुकी वे नरभक्षी थे, इसलिए मनुष्य के शत्रु ही हैं | अधिक जानकारी के लिए : नरसिंह अवतार.. क्रमागत उन्नति की प्रक्रिया से उत्पन्न मनुष्य

बाद मैं पृथ्वी पर परशुराम, फिर राम , फिर द्वापर युग मैं दुबारा परशुराम, बलराम और श्री कृष्ण आए | इन सब ने अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और मानव समाज मैं सुधार लाए
  • मत्स्य अवतार ने मानव को वोह परिस्थिती उपलब्ध कराई , जो उस समय जीवित रहने के लिए आवश्यक थी |
  • कुर्म अवतार, वराह अवतार ने सिर्फ दर्शाया , उन परिस्थितिओं को, जिससे मानव जीवन मैं उल्लेखनीय सुधार आया |~~~ध्यान दे : कृपा दर्शाने और उपलब्ध कराने के अंतर को समझें |
  • वामन अवतार और नरसिंह अवतार ने एक समय का सुधार मानव के हित मैं करा |
  • परशुराम , राम , फिर परशुराम , बलराम और कृष्ण लंबी अवधी तक मनुष्यों के साथ रहे और आवश्यक सुधार लाए | ध्यान दे लंबी अवधी का अर्थ है कि इतिहास, उनकी लंबी अवधी का उपलब्ध है , भले ही उसमें काफी कुछ जोड़ा घटाया गया है |
अब परिभाषा :
    अवतार , या तो दर्शाते हैं , या उपलब्ध कराते हैं, ऐसी परिस्थिती जिसमें मानव के जीवित रहने मैं उल्लेखनीय सुधार हो| मनुष्य रूप मैं अवतार अवतरित हो कर आवश्यक सुधार मानवता की प्रगति के लिए लाते हैं , जब , जब की मानवता अत्यंत संकट मैं हो | और भौतिक प्रयास समाज की प्रगति के लिए जो करा जाता है , वह धर्म है |
तो फिर अवतार और मानव में अंतर क्या है?

ईश्वर अवतार का कोइ भी निर्णय गलत नहीं होता | धर्मगुरु या संस्कृत विद्वान समाज के शोषण हेतु यह कहते हैं कि अमुक निर्णय श्री राम या श्री कृष्ण का गलत था | यह संभव ही नहीं है | उल्टा ईश्वर अवतार का इतिहास, बिना अलोकिक शक्ति के, दूसरा वेद माना जाता है | क्यूंकि वेद को समझने का और कोइ तरीका ही नहीं है, ना ही कोइ समझा |

और मानव के सारे निर्णय कभी भी सही नहीं होंगे, यह असंभव है , श्रृष्टि विरोधी है |

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.