Saturday, June 16, 2012

सोचिये समझिये और समाज मैं जागरूकता लाईये

READ THINK UNDERSTAND AND WORK FOR CORRECTION IN HINDU SOCIETY 
1. सबसे सरल परिभाषा धर्म की यह है कि :
धर्मपुस्तकों से प्ररित हो कर धर्मगुरु द्वारा वर्तमान समाज के लिए बनाए गए नियम, जिनका पालन करने से व्यक्ति और समाज प्रगति कि और अग्रसर होता है , पनपता है, तथा इश्वर पर आस्था बनी रहती है | 
2. रामायण तथा प्राचीन हिंदू इतिहास भक्ति भाव मैं इसलिए उपलब्ध है क्यूँकी बीते हुए वक्त मैं हिंदू समाज अनेक कठिन परिस्थितियों से गुजरा है, और तब वास्तविक धर्म का पालन संभव नहीं था, तब धर्म को मानने वाले हिंदू समाज की पतन से रक्षा ज्यादा आवश्यक थी, लकिन आज क्या हो रहा है, आज धर्म पालन से समाज प्रगति कि और क्यूँ नहीं अग्रसर है ?  
कृप्या यह गलत जवाब न दें कि समाज धर्म का पालन नहीं कर रहा है | प्रमाणित आकडे बताते हैं कि हिंदू समाज का धार्मिक कार्य मैं व्यय आजादी के बाद बढा है , और अनेक टीवी चैनल(MULTIPLE TV CHANNELS) के आने के बाद तो बहुत तेज़ी से बढा है | 
3. पिछले १५०० वर्षों मैं उत्पीडन , हिंदू समाज के शासकों द्वारा शोषण के कारण, हिंदू समाज अपने को समेट कर अंदर की तरफ सुकुड गया है , फिर और ज्यादा उत्पीडन, शोषण, तथा और ज्यादा सिमटना और सुकुड़ना, तथा यह क्रम अनेक बार हुआ, जिसका परिणाम है हिंदू समाज पूरी तरह से कर्महीन हो गया है , और आजाद हिन्दुस्तान के धर्म गुरुजनों का यह कर्तव्य है कि इस विचारधारा को बदलें | 
4. समझने की बात यह है कि सनातन धर्म कि माने तो अपने लोक मैं बैठे इश्वर कभी भी इस कार्मिक संसार मैं हस्ताषेप नहीं करते | जब इश्वर को हस्ताषेप करना होता है तो वे पृथ्वी पर अवतरित होते हैं , और तब आवश्यक सुधार या दिशा परिवर्तन करते हैं | स्पष्ट है कि अवतरित होने के उपरान्त इश्वर आलोकिक और चमत्कारिक शक्तियुओं का प्रयोग नहीं करते ; क्यूंकि इश्वर तो सर्वशक्तिमान है , आलोकिक और चमत्कारिक शक्तियुओं का प्रयोग तो वे अपने लोक मैं बैठ कर भी कर सकते हैं , वे अवतार के रूप मैं पृथ्वी पर क्यूँ आयेंगे ? 
5. धर्म का सीधा सम्बन्ध समाज से होता है | प्रमाणित आकडे बता रहे हैं कि हिंदू समाज गरीबी और बर्बादी की और बढ़ रहा है , जब की धर्म गुरु जानो कि आर्थिक स्थिति मैं जबरदस्त सुधार हुआ है | सीधा अर्थ है समाज का शोषण हो रहा है | फैसला आप करें कि वास्तिवकता क्या है |
6. मनुष्य रूप मैं , इश्वर अवतार की भी सीमाए है | जो अनेक सुधार अवतार चाहते हैं , उन मैं से कुछ पर अंकुश लगाना होता है क्यूंकि चमत्कार तो अवतार के पास होता नहीं है | 
समाज के शक्तिशाली लोग सुधार, तथा उससे होने वाले परिवर्तन का विरोध करते हैं, और अवतार, बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के मात्र उद्धारण से धर्म स्तापित करने का प्रयास करते हैं | स्वाभाविक है ऐसे मैं कुछ समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता | इसके भौतिक उद्धरण : परशुराम अवतार के बाद तुरंत राम अवतार की क्या आवश्यकता पद गयी थी ? और श्री राम “एक पुरुष, एक विवाह” को कानून तो बना पाए , लकिन धर्म की मान्यता नहीं दिला पाए, क्यूँ ? पढ़ें: एक पुरुष एक विबाह..को राम धर्म क्यूँ नहीं बना पाए ? 
7. समाज मैं नकारात्मक प्रगति के कारण हम सब को मालूम हैं क्यूंकि हम आज उससे गुजर रहें हैं ! वे इस प्रकार हैं : 
1.कमजोर और गरीब वर्ग का शोषण ,
2.स्त्री के साथ दुर्व्यवाहर, जिसमें प्रत्यक्ष या अनदेखी करके धर्म गुरुजनों का भी योगदान होता है
3.सत्ता के दुरुपयोग, जिसमें विधिवत धार्मिक नेताओं का अप्रत्यक्ष, या प्रत्यक्ष आशीर्वाद प्राप्त हो या उससे हिंदू समाज का शोषण हो रहा हो ! 
ध्यान दे मनुष्य रूप मैं इश्वर क्यूँ अवतरित होते हैं, ऊपर दिए हुए कारण ही प्रमुख कारण होते हैं ! पढ़ें: इश्वर परुशुराम अवतार तत्पश्चात् राम के रूप मैं क्यूँ अवतरित हुए 
8. जब जुल्म और अत्याचार असहनीय हो जाते हैं तो ईश्वर अवतरित होते हैं मनुष्य रूप में, समाज की सहायता के लीये....स्पष्ट है कि स्वर्ग में बैठा हुए ईश्वर कुछ नहीं कर सकते ! हिंदू सृजन में नहीं, क्रमागत उन्नति में विश्वास रखते हैं ! 
ध्यान देने वाली बात है ईश्वर जब तक जुल्म हद से ज्यादा न हो जाय, अवतरित नहीं होते ! इसका सबसे बड़ा उद्धरण पिछले १००० वर्ष की गुलामी है ! हिंदू समाजको यह मालूम है, कि जितना अत्याचार हिंदू समाज पर इन १००० वर्षों कि गुलामी में हुआ है , उतना अत्याचार का विवरण किसी धार्मिक ग्रन्थ में नहीं मिलता ! कारण यह भी हो सकता है कि भावी समाज को इतिहास का अत्यंत नकरात्मक रूप नहीं दिखाना है, और यही पिछले १००० वर्ष के गुलामी के इतिहास के साथ अब हो रहा है, और संभवत: ठीक भी है ! और इन १००० वर्ष में भगवान अवतरित नहीं हुऐ थे ! स्पष्ट है कि जब जब ईश्वर अवतरित हुऐ थे उस समय समस्या और जटिल थी, तथा समाज पर अत्याचार और ज्यादा था !  
जब आप अपने प्राचीन ग्रन्थ, पुराण इस सोच से पढेंगे, तो आपको समझ में आएगा कि हम इनसे क्या कुछ नहीं पा सकते ! विश्व की प्रगति के लीये हिंदू धार्मिक ग्रन्थ, जैसे जैसे गुलामी की जंजीरों के निशाँन हलके होते जायेंगे, ज्यादा योगदान दे पायेंगे ! पढ़ें: पृथ्वी का विकास.. सृजन या क्रमागत उन्नति 
नोट: यह पोस्ट अपने आप मैं मूल पोस्ट नहीं है , इसमें विभिन् पोस्टों से जो विचार व्यक्त करे गए हैं उन्हें यहाँ प्रस्तुत करा जा रहा है |

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.