ऐसा कौन सा सदगुण संस्कृत विद्वानों को रावण और द्रोण मैं दिखा कि उन्हें वेद ज्ञाता कहा जा रहा है ? क्या वेदों को अपमानित करने के लिए ?
या,
अवतरित ईश्वर पर प्रश्न चिन्ह लगाने के लिए , ताकि समाज भ्रमहित रहे, और उसका शोषण आसान हो जाए ?
उत्तर चाहीये !
वेद भौतिक ज्ञान है और वर्तमान समाज केन्द्रित है, परन्तु किसी भी संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु ने यह बात समाज को क्यूँ नहीं बताई, इसका उत्तर आपलोग खोजिये| कहीं ऐसा ना हो कि आप यह कहें कि भौतिक ज्ञान का अर्थ नहीं मालूम, तो इसका भी स्पष्टीकरण हो जाए | भौतिक ज्ञान का अर्थ है कि जिसका प्रयोग आप अपने जीवन मैं कर रहे हों|
यदि एक व्यक्ति कपटी हो, दुराचारी हो तो आप यह तो कह सकते हैं कि इस व्यक्ति ने वेद पढ़ा है , लकिन यह भी निश्चित है कि उसको वेद का ज्ञान नहीं है, क्यूंकि वेद का ज्ञाता कपटी और दुराचारी तो नहीं हो सकता, और अधर्मी तो बिलकुल नहीं हो सकता |
जो भी ये गलत बात बता रहाहै, और ज्ञानी भी अपनेआप को बताता है, उसका उद्देश समाज को ठगने का तो हो सकता है, समाज हित बिलकुल नहीं !
क्या कोइ मुझे बताएगा कि द्रोण, रावण जैसे अधर्मी और कपटी वेदज्ञाता कैसे कहला रहे हैं, और क्यूँ ?
क्या वेद ज्ञान का उपयोग जीवन मैं नहीं होना है ? यह किसकी घृणित और समाज को दास बना कर रखने हेतु साजिश है, जिसमें भरपूर सहयोग संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु, और अन्य धर्मज्ञाता समाज को दास बना कर रखने के लिए कर रहे हैं ?
चलिए अब कुछ इन दोनों महापुरुषों के बारे मैं भी बात कर ली जाए | लकिन पहले एक बात समझ लीजिये इतिहास मैं किसी के पास अलोकिक शक्ति नहीं होती; यहाँ तक तो है कि इश्वर अवतरित होकर कभी भी अलोकिक शक्ति का प्रयोग नहीं करते यदि ऐसा ना होता तो परशुराम के बाद श्री राम को अवतरित ना होना पड़ता और श्री कृष्ण को सिर्फ आंशिक सफलता नहीं मिलती |
पहले महापुरुष रावण; यह ढोंगी हैं, इनकी सारी की सारी वीरता की गाथा झूटी हैं, इस पोस्ट को पढ़ सकते हैं :
रावण एक कुशल चतुर राजनीतिज्ञ अवश्य था, वीर कदापि नहीं
परशुराम और राम का त्रेतायुग आज से भी अधिक विज्ञानिक दृष्टि से विकसित था, संचार भी आज से अधिक विकसित था | वही संचार बताता है कि रावण औरतो के मामले मैं बहुत बदनाम था कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि महिलाएं की संतान को वोह फिकवा देता था, गढ़वा देता था |
ये तथाकथित वेद-ज्ञाता, रावण, वन से प्राकृतिक सप्रदा लूटते थे, तथा वानरों को पूरे विश्व मैं जानवरों की तरह खरीद-फरोक्त का कार्य लंका से होता था | ऐसा कौन सा सदगुण संस्कृत विद्वानों को रावण और द्रोण मैं दिखा कि उन्हें वेद ज्ञाता कहा जा रहा है ? क्या वेदों को अपमानित करने के लिए ? उत्तर चाहीये !
रावण अधर्मी था, कपटी था, एक स्त्री के कारण वोह अपने पूरे पूरे खानदान को मरवा देता है, युद्ध नीती उसे बिलकुल नहीं पता थी | प्राकृतिक साम्प्रदा को लूट कर वोह व्यापार करता था |
और आचार्य द्रोण, उनके बारे मैं क्या कहा जाए ?
तथाकथित महान वेदज्ञाता, आचार्यद्रोण ने एकलव्य का अंगूंठा काट कर कुरुवंश के राजघराने को यह सन्देश भेजा कि वोह निजी स्वार्थ के लिए धर्म का दुरूपयोग किसी भी हद तक कर सकते हैं !
जुए मैं जो लोग पत्नी को दांव पर लगा रहे थे, जो, अपनी बड़ी भाभी को दासी बनाने के उद्देश से जुआ खेल रहे थे, तथा जिन्होंने द्रौपदी की भरी राज्यसभा मैं वस्त्र हरण करने का प्रयास करा... सब इसी आचार्य के शिष्य थे |
धन और धन के अभाव, दोनों मैं वेद-ज्ञान परिवार की जिम्मेदारीयाँ निभाने को कह्ता हैं, लेकिन इन्होने ऐसा नही करा| धन के अभाव का उपाय और बदले की भावना दिल में लिए हुए, यह भटकते रहे कोइ अवसर ढूँढ़ते रहे , परिवार मैं नहीं लौटे, और फिर गुरु दक्षिणा मैं राजा द्रौपद का आधा राज्य हथियाने के बाद ही घर गए | क्या यह गुरु दक्षिणा का दुरूपयोग नहीं था?
युद मैं ना तो यह पांडवो को मार रहे थे, ना ही पांडव इनको, यह थी इनकी शिक्षा ! कोइ भी इनमें गुण ऐसा नहीं है कि यह वेद-ज्ञाता कहलाएं !
युद्ध के स्तर को द्रोण अपने कुशल युद्धज्ञान के कारण उस स्तर तक ले गए जहाँ सौर्यमण्डल तक का विनाश संभव था, विश्व का विनाश तो होना ही था| और यह भी एक कारण है कि श्री कृष्ण ने इन्हें निहता करके युद्ध भूमि मैं मरवाया, ताकि विश्व को यह सन्देश जा सके कि ऐसे अधर्मी और भ्रष्ट शिक्षक और धर्मगुरु को नियम तोड़ कर मारना भी उचित है |
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