Monday, July 13, 2015

अवतरित प्रभु कृष्ण को आंशिक सफलता मिली और समाज शोषित होता रहे बताया नहीं

महाभारत जो कि श्री विष्णु के अवतार श्री कृष्ण का इतिहास है, उसमें यह बात एकदम स्पष्ट और अविवादित तरीके से बताई गयी है कि महाभारत काल मैं अवतरित पुरुष श्री कृष्ण पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाए थे|विश्वयुद्ध महाभारत, श्री कृष्ण ने अवश्य जीता, 
लकिन उसके उपरान्त सामाजिक ढाचा इतना कमजोर हो गया कि स्वम श्री कृष्ण के सामने द्वारिकावासी लूटमार करते रहे, और श्री कृष्ण कुछ नहीं कर पाए|

आम जनता के असंतोष पर सारी जनता को मारा तो नहीं जा एकता, और असंतोष इतना व्यापक था कि अर्जुन को बुलाया और वोह भी असफल रहे|

यह पोस्ट सिर्फ और सिर्फ इस बात को प्रमाणित करेगी कि १६ कलाओं के साथ अवतरित श्री कृष्ण पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाय उन्हें आंशिक सफलता ही मिली, कारणों के विस्तार पर यह पोस्ट नहीं जायेगी | विस्तार भविष्य में पोस्ट में दिए जायेंगे |
बस एक ही बात समझने की है कि समाज का काम हमें और आपको ही करना चाहेये, भगवान् पर नहीं छोड़ना चाहीये क्यूंकि सनातन धर्म में भगवान् समाज के काम में हस्ताषेप करना पसंद नहीं करते, मजबूरी में उनको अवतार लेकर सुधार करना पड़ता है, लकिन क्यूंकि अलोकिक शक्ति का प्रयोग वे कर नहीं सकते तो उनके पास भी सीमित विकल्प होते हैं |
दुःख इस बात का है कि यह बात धर्मगुरु नहीं बता रहे हैं |

तो यह प्रमाणित करना है कि श्री कृष्ण को आंशिक सफलता मिली, इसलिए नहीं कि श्री कृष्ण की कोइ कमजोरी थी; श्री कृष्ण १६ कलाओं के साथ अवतरित हुए थे, श्री विष्णु के श्री कृष्ण सबसे शक्तिशाली अवतार हैं, 
नहीं, बल्कि इसलिए कि समाजिक समास्याएं बहुत जटिल थी, इससे ज्यादा सुधार संभव नहीं था |
त्रेता युग मैं १४ कलाओ के साथ श्री राम अवतरित हुए, उन्होंने सारी समस्या का समाधान करा, और इसका प्रमाण है रामराज्य| आज भी लोग ऐसे राज्य की कल्पना करते हैं | 
कृष्ण महाभारत युद्ध जीत तो गए, लेकिन तबाही इतनी भयंकर मची की अराजकता पूरे विश्व मैं फैल गयी| युद्ध समाप्त होने वाली रात को ही अश्वस्थामा ने द्रौपदी के सोते हुए पांचो पुत्रो को मार दिया |
सबसे पहले यह समझ लें कि महाभारत युद्ध हुआ क्यूँ; क्यूँ पूरा विश्व इसमें भाग ले रहा था, क्यूँ यह धर्मयुद्ध था, और किस धर्म के लिए युद्ध हो रहा था ?

“महाभारत युद्ध एक धर्मयुद्ध ही था , जिसने यह सुनिश्चित करा कि मानव और मानवता, जिसे हम जानते हैं , उसका असली परिचय क्या होना चाहिए |“दोनों, पांडव और कौरव, कह रहे थे, कि जो वे कर रहे हैं , या मानते है, वही धर्म है , और मानव के प्रगति का मार्ग है | ध्यान रहे , कभी भी, धर्म का अर्थ समाज, मानव तथा संबंधित प्रकृति की प्रगति के अतिरिक्त और कुछ हो ही नहीं सकता |“कौरव ने पिछले १३ वर्ष मैं मानव प्रगति का उल्लेख करा और “जीनस(Genes) मैं फेर बदल, और मानव क्लोनिंग” को धर्म माना तथा इसी सोच के साथ महाभारत युद्ध मैं उतरे |“पांडव की परम्परागत सोच थी जिसका कि व्यापक समर्थन था, कि संतान प्राकृतिक तरीके से माता के गर्भ मैं ही पनपे | इसी को धर्म मान कर वे महाभारत युद्ध मैं गए |”
स्पष्ट है कि विश्व का एक बड़ा भाग “जीनस(Genes) मैं फेर बदल, और मानव क्लोनिंग”के कारण रोजी रोटी कमा रहा था , जो युद्ध उपरान्त समाप्त हो गया | कोइ विकल्पिक रोजगार भी उपलब्ध नहीं हो पाया | 

द्वारिका इसका केंद्र था, और यही कारण था कि श्री कृष्ण को अनोखा निर्णय लेना पड़ा; कौरवो को सेना, जो समाज चाहता था...तथा द्वारिका की बेटी, सुभद्रा का मान रखने के लिए कृष्ण बिना अस्त्र पांडवो की और से युद्ध | संभव है कि युद्ध मैं द्वारिका की सोच रही हो कि कौरव जीतेंगे, और पांडवो की विजय उन्हें द्वारिकाके पेट पर लात मारना जैसा लगा; अराजिकता फैल गयी, जिसको ना तो कृष्ण रोक पाए ना अर्जुन !

दूसरी विकट समस्य युद्ध उपरान्त हुई अश्वस्थामा के कारण| अश्वस्थामा ने महाऋषि व्यास के मना करने के बाद भी युद्ध उपरान्त एक रसायन अस्त्र छोड़ दिया| इस अस्त्र का उद्देश था, उत्तरा, यानी की बची हुई औरतो के गर्भ को क्षति पहुचाना | निन्दनिये कार्य था लकिन अफरा तफरी का यह भी प्रमुख कारण था |

तीसरी समस्या थी सामाजिक ढांचा पूरी तरह से युद्ध उपरान्त ध्वस्त हो गया था जिसको दुबारा खड़ा करना संभव नहीं हो पाया | महाभारत से पहले विज्ञान उच्चतम स्तर पर था, लकिन युद्ध उपरान्त वोह स्तर संभव नहीं रहा |कारण जो सुख सुविधा उससे मिल रही थी वोह महंगी थी, और युद्ध उपरान्त आबादी भी कम हो गयी बिखरी हुई भी थी, और लोगो की कमाई भी नहीं रही | सामाजिक ढांचा गिरने लगा |

चौथी समस्या धार्मिक समाज के अधार्मिक और समाज के शोषण हेतु कार्यो पर अंकुश ना लगा पाना | इसके उद्दारण तो क्रिपाचार्य और अश्वस्थामा द्वारा युद्ध उपरान्त सोते हुए द्रौपदी पुत्रो की हत्या, फिर अश्वस्थामा द्वारा रसायन अस्त्र | उस समय गुरुकुल शिक्षा पद्धति थी जो की आचार्य द्रोण के समय से ही भ्रष्ट हो गयी थी| धर्म से सम्बंधित विद्वानों पर किसी तरह का अंकुश नहीं लग पाया, हालाकि श्री कृष्ण ने द्रोण और अश्वस्थामा को दण्डित करा | और यह समस्या आज भी है...महाभारत काल कि ! 

और पांचवी समस्या थी अनेक विस्फोटक जगह जगह पड़े हुए थे, जो फूटे नहीं थे , और बिना चेतावनी फूट भी जा रहे थे , जिसमें रसायन अस्त्र भी थे| कोइ व्यवस्था नहीं थी उनको संभालने की| महाराज पारिक्षित की ऐसे वातावरण के कारण ही मृत्यु हुई ! महाराज पारिक्षित के पुत्र जनमेजय द्वारा सर्प यग्य मैं इन सब अस्त्रों का नाश करा गया !

छठी ,परन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण समस्या :महाभारत के समय धर्म के एक मुखिया, गुरु द्रोण को युधिष्टिर और विष्णु अवतार श्री कृष्ण ने अत्यंत गन्दी मौत दी, ताकि यह सन्देश तो पहुच सके की गुरुकुल शिक्षा और धर्मगुरु, दोनों ही भ्रष्ट हो चुके हैं, लकिन इससे आगे कुछ नहीं कर पाए | लकिन संस्कृत विद्वानों ने और धर्मगुरूओ ने गुरु द्रोण को समाज के सामने वेद-ज्ञाता बना कर प्रस्तुत करा, ताकि समाज का शोषण होता रहे |
अन्य सम्बंधित समस्या भी रही होंगी, जो इनके विस्तार से संभव है |

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.