अजीब समस्या है, काफी लोगो का विरोध इस बात पर हो रहा है कि अभी हाल की एक पोस्ट मैं मैंने ‘अस्पष्ट’ तरीके से मैकाले को भारतीय शिक्षा पद्धति मैं जो कमी है उसको दोषमुक्त करने का प्रयास करा गया |
मैकाले और अंग्रेजो ने जो शिक्षा प्रणाली लागू करी, उसी के कारण भारतीय समाज मैं समस्या हैं, यह अधिकाँश लोगो का मानना है |
मित्रो यह ब्लॉग हर विषय पर स्पष्टता देने के लिए है, इसलिए किसी भी विषय को अस्पष्ट तरीके से नहीं प्रस्तुत करा जाता है |
विवश हो कर मुझे यह पोस्ट प्रस्तुत करनी पड़ रही है, और वोह भी मैकाले को पोस्ट का मुख्य आधार बना कर |
पहले तो यह समझ लीजिये कि किसी भी विषय को समझने के लिए, तथा किसी भी निर्णय या परिणाम को समझने के लिए आप कृप्या भावनाओं का प्रयोग ना करें, भावनात्मक उत्तर गलत भी हो सकता है, क्यूँकी उसका भौतिक आधार नहीं होता|
प्रमाणित मापदंड (verifiable parameters) से यदि आप सारे निष्कर्ष निकालने की आदत डाल ले तो यह आपके व्यवहारिक जीवन मैं, तथा पारिवारिक जीवन मैं बहुत सारी समस्यां का समाधान करेगी | आप आसानी से भावनात्मक होकर गलत निर्णय नहीं लेंगे |कम से कम इस सच को तो स्वीकार करीये कि प्रमाणित मापदंड के आधार पर निर्णय गलत नहीं हो सकता|
पर यह विवाद हो रहा है, जिसमें मेरे अनुसार तो यह स्पष्ट कहा गया है कि मैकाले हमारी शिक्षा की समस्या का कारण नहीं है, लकिन, चलिए, अब तो स्पष्ट हो गया | तबभी आप सबसे अनुरोध है कि दोनों पोस्ट एक साथ पढ़ें|
वास्तविक समस्या है गिरते हुए सामाजिक मूल्य, जिसको लेकर हम मैकाले को रोते रहते हैं | विश्वास करीये सामाजिक मूल्य और धामिक मूल्य की शिक्षा हर समाज को सदैव धर्म से ही मिली है, और धर्म से ही आगे भी मिलेगी ! अब उसमें सुधार नहीं हो रहा, सिर्फ शोषण हो रहा है, तो उसको सुधारों, गलत जगह दोष देने से आपकी समस्या का समाधान नहीं होने वाला,
हाँ समाज को भावनात्मक बना कर बेवकूफ बनाया जा सकता है|
मेकैउले से पहले गुरुकुल प्रणाली थी जिसमें हमारे टुकड़े होते रहे , धर्म परिवर्तन होता रहा...यह प्रमाणित इतिहासिक सत्य है !
जिस वक्त अंग्रेजो ने भारत पर कब्ज़ा करा, उस समय भारत 560 से उपर टुकडो मैं बटा था...और आज़ाद हुआ भी 560 टुकडो मैं, क्युकी भारत छोड़ते समय अँगरेज़ सारी संधी, जो राज्यों के साथ करी थे, उसको निरस्त कर के सबको आज़ाद कर गए थे| पर बना 560 टुकडो को मिला कर एक देश....और आज़ाद भारत के सारे नेता अग्रेजो की शिक्षा प्रणाली से शिक्षा लेकर निकले थे !
पिछले ६५ वर्षो मैं हमने कश्मीर का कुछ हिस्सा गवाया है तो सिक्किम और गोवा को भारत मैं मिलाया है....!
Macaulay पर मैं भी बहुत दिनों तक सोचता रहा क्यूँकी हम सबको यही बताया गया था कि इसी कारण सर्वनाश हो रहा है....और विश्वास करीये यह हर परिवार मैं बताया जा रहा है, ताकी लोगो भावनात्मक रहें, वोह सही दिशा की और जा ही न पाएं, भटकते रहें, और समाज का शोषण संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु करते रहें|लकिन भौतिक तथ्य अलग हैं..उसे भूल जाईये कि Macaulay ने क्या सोचा था....हुआ क्या यह सोचीये; जीवन मैं ऐसा अनेक बार होता है कि जिससे आपको नुक्सान का डर हो, उसी से नियति कुछ ऐसा करा देती है कि उसके कर्म से आपको लाभ होता है|
फिर से,
समस्या मात्र धार्मिक शिक्षा की कमी की है जो समाज को गुलाम बना कर रखने के लिए गलत दी जा रही है...और मुझे साबित इसलिए कुछ नहीं करना क्यूँकी २८५ पोस्ट जो वर्तमान सोच को चुनौती दे रही हैं,...आपलोग पढ़ रहे हैं ..
भौतिक प्रमाण का उत्तर नहीं होता.....इसलिए जानबूझ कर पुराण, रामायण और महाभारत भावनात्मक बना कर पढाई जा रही है..ताकि समाज गुलाम रहे...!
संस्कृत विद्वान,..जब कोइ विदेशी भारत के प्राचीन इतिहास मैं अद्भुत विज्ञान की बात प्रमाणित करता है, तो उसका अनमोदन करते हैं,...और अनमोदन करने के लिए अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति के बिना पुराणिक इतिहास को स्वीकार करते हैं|
लेकिन
वही प्राचीन इतिहास,..बिना अलोकिक शक्ति के हिन्दू छात्रों के पास पहुचने नहीं देंते,
नहीं तो
हिन्दू छात्र भी शोघ कर पायेंगे..समाज कर्मठ हो जाएगा| एक एक बात का प्रमाण है !
मेकैउले से पहले गुरुकुल प्रणाली थी जिसमें हमारे टुकड़े होते रहे, इसपर कुछ और प्रकाश डालते हैं :
- महाभारत ५००० वर्ष पूर्व का इतिहास है, तथा उसके पहले सनातन धर्म मानने वाला पूरा विश्व समाज हिन्दू ही था...लकिन गलत ज्ञान और धर्म के कारण तीन धर्म अफ्रीका मैं पनपे(यहूदी, ईसाई, इस्लाम) |
- राष्ट्रीयता सबसे अधिक महत्वपूर्ण धर्म है, यह २३०० वर्ष पूर्व चाणक्य ने बताया और सब ने माना,..लकिन बाद मैं संस्कृत विद्वानों ने और धर्मगुरुजनों ने ही उसे निजी स्वार्थ के लिए दफना दिया,
- और पिछले १००० वर्ष का इतिहास सब जानते है कि छोटे छोटे आक्रमणकारी आए, और बिखरे हुए हिन्दू समाज को रौंदते रहे....ऐसे ऐसे जुल्म हुए जो किसी समाज पर नहीं हुए, जब की हर राज्य मैं एक राजगुरु था, शिक्षा प्रणाली गुरुकुल थी!
- सिख ईसाई मुस्लिम भी इसी शिक्षा प्रणाली से पढ़ रहे हैं, लकिन वे अल्पसंख्यक होकर भी द्वित्य श्रेणी के नागरिक नहीं हैं, लकिन हिन्दू ७५-८०% होकर भी द्वित्य श्रेणी के नागरिक हैं | क्या हमारी शिक्षा प्रणाली इसका कारण है, या धार्मिक शिक्षा?
- यहूदी पूरे विश्व से अलग अलग शिक्षा प्रणाली से पढ़ कर इस्राईल मैं रहने पहुचे, उसको अपना वतन बनाया, और मुसलमानों से घिरा हुआ है, लकिन अकेले टक्कर ले रहा है | भारत भी अब उससे कुछ सीखने का प्रयास कर रहा है| अगर विश्व के नक़्शे मैं ढूंढे तो आप नहीं खोज पायेंगे इस देश को | लकिन धार्मिक शिक्षा उनको ऐसी जबरदस्त मिली है कि पूरे विश्व से लोहा मनवा रहा है|
तो यह गलत बात अब कहना बंद करीये की हमारे सामाजिक और धार्मिक मूल्यों की कमी का कारण संस्कृत विद्वान और हमारे धर्मगुरु के अतिरिक्त कोइ और है!
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