नोट: कृप्या इस पोस्ट को पढ़ें, और जितने भी शिक्षित संस्कृत विद्वानों को आप जानते हैं, उनसे साथ यह पोस्ट शेयर अवश्य करें| हर बिंदु पर चर्चा का स्वागत है !
यह बहुत ही गंभीर आरोप है, और इसके बाद इस विषय को गंभीरता से सारे तथ्यों की रोशनी मैं समझना आवश्यक है की कहाँ भटक गए |
विद्वान जिनपर समाज को गर्व करना चाहीये, वोह ऐसा घृणित कार्य कर रहे हैं, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है और जिन विद्वानों ने संस्कृत भाषा का दुरूपयोग करके, समाज को शोषण की नियत से गलत दिशा दी, वे अवमानना के अधिकारी हैं |
सनातन धर्म किसी नियम से बंधा हुआ धर्म नहीं है, वोह वर्तमान समाज को केंद्र बिंदु मान कर समाज के लिये दिशा निर्धारित करता है, तो स्वाभाविक है की शोषण की संभावना बहुत बढ़ जाती है क्यूँकी समाज को दिशा देने मैं धर्म की सदेव महत्वपूर्ण भूमिका रही है , और फिर बिना नियम वाले धर्म मैं गलत दिशा देना बहुत सासान है, क्यूँकी ज्यादातर समाज के अंदर के लोगो को तो यह भी नहीं मालूम होता की धर्म नियम प्रधान है कि नहीं | समाज को तो जो बता दिया जाता है, वही समझ लेता है |
REPEAT: सनातन धर्म वर्तमान समाज को केंद्र बिंदु मान कर समाज के लिये दिशा निर्धारित करता है, स्वाभाविक है शोषण की संभावना बढ़ जाती है क्यूँकी समाज को बिना नियम वाले धर्म मैं गलत दिशा देना बहुत आसान है !
और इसके अनेक उद्धारण है, कुछ यहाँ नीचे दिए जा रहे हैं:
1. जिस समाज मैं कन्या को वर चुनने के लिए स्वम्वर तक आयोजित होते थे, वही गुलामी मैं एक ऐसा वक़्त भी आया, जब युवा कन्या को अगवा कर लिया जाता था, जिसने अगवा करा है, वोह उस कन्या से निकाह करले तो अपराध नहीं माना जाता था, तथा उससे कोइ फरक नहीं पड़ता था, कि वोह अगवा करने वाला व्यक्ती युवा है, या बुड्ढा, तथा इससे पहले उसकी कितनी शादी हो चुकी हैं | ऐसे मैं हिन्दू संतो ने ही यह उचित निर्णय लिया की कन्याओं का विवाह बाल अवस्था मैं हो जाना चाहिए |
पढ़ें: आवश्यकता है हिंदुओं की मानसिकता बदलने की, ताकी वो बदलाव और सुधार ला सकें
2. चुकी समाज का शोषण तो होते रहना चाहिए, इसलिए आजादी के ६५ वर्ष बाद भी यह बाल विवाह अभी भी चल रहा है , जबकी हिन्दू समाज की धर्म मैं पूरी आस्था है | अब निष्कर्ष आप निकालें की क्या यह भयंकर शोषण जिसके अनेक विनाशकारी परिणाम हैं वोह बिना विद्वानों की सहायता के कैसे अभी भी चल रहा है | अन्य समरूप उद्धारण भी दिए जा सकते हैं | पढ़ें: हिंदुओं का भौतिक धर्म गुलामी के समय कैसे घटाया गया
3. अब आते हैं समाज गुलाम क्यूँ हुआ;
२३०० वर्ष पूर्ण चाणक्य ने राष्ट्रीयता की सबसे पहले बात करी| तब तक जनता, जिस राज्य की प्रजा होती थी, उसकी सीमा तक ही उसका सम्बन्ध रहता है | चाणक्य को अपने प्रयास मैं काफी सफलता भी मिली , और भारत राष्ट्र की सीमा गंधार तक फैल गयी, तथा राष्ट्र और राज्य की सीमा के अन्तर को आम जनता भी समझने लगी, केवल विद्वान नहीं | फिर से समझ लें; राष्ट्र और राज्य की सीमा के अन्तर को आम जनता भी समझने लगी, केवल विद्वान नहीं |
लकिन चाणक्य की मृत्य के बाद इस विषय, यानी की 'राष्ट्रीयता' को पूरा परिश्रम करके
फिर से :- पूरा परिश्रम करके संस्कृत विद्वानों द्वारा भुलाया गया,
ताकी शोषण हो सके, और इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि हिन्दुस्तान फिर छोटी छोटी रियासतों मैं बट गया, हरेक रियासत का एक राजा होता था, और एक राजगुरु, जो पूरे वैभेव के साथ रहते थे, बाकी जनता मरती पिसती रहती थी|
उत्तर दिशा से विदेशी हमलावर आते थे, लूट मार करते थे , मर्दों को मार कर औरतो और बालको को गुलाम बना कर ले जाते थे, मंदिर शिवालय तोड़ कर मज्ज़िदें बनाते थे, लोगो को बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करते थे |
यह सब हमला करने वाले इसलिए सफल हो पाते थे कि यदी यह एक राज्य मैं हो रहा है, तो बाकी राज्यों को कोइ मतलब नहीं था, जबकी जैसा कहा गया है , की हर राज्य मैं एक विद्वान राजगुरु था, और वोह चाणक्य की राष्ट्रीयता को भुलाने मैं और वैभव/सुख भोगने को ही अपना धर्म समझते थे|
4. इश्वर शिव के बारे मैं यह मान्यता है कि जब समय की उत्पत्ती होई, इश्वर शिव् उससे पहले से हैं, तथा सदा वैरागी ही थे | यदि शिव का वैराग को कोइ कमजोर कह रहा है तो या वैराग की परिभाषा ही गलत है, या बाकी उनके उपरान्त जितने लोगो ने वैराग का दावा करा वे सब ढोंगी हैं| और इन्ही इश्वर शिव को बार बार अनेक प्रसंगों मैं क्रोधित या भावनात्मक होकर श्रृष्टि का विनाश करते दिखा देते हैं | क्या मैं पूछ सकता हूँ विद्वानों से कि ऐसा गलत क्यूँ दिखाया जाता है? पढ़ें: दक्ष का श्रृष्टि यज्ञ जिसमें सती ने प्राणों की आहुति दे दी
ऊपर दिए हुए समस्त प्रश्न महत्वपूर्ण हैं| आशा करता हूँ कि इनसब बिन्दुओं पर विचार करके उचित कारवाई होगी| अभी तो और बहुत सारे बिंदु बाकी है, कि कैसे विद्वानों ने संस्कृत का दुरूपयोग करा |
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