सनातन धर्म पुनर्जन्म मैं आस्था रखता है, अच्छे या बुरे कर्म अनुसार, व्यक्ती के जीवन मैं सुख-दुःख का चक्र अनेक जन्मो तक चलता है, जिससे आत्मा परमात्मा से मिलकर मोक्ष को प्राप्त हो जाती है!
यह पोस्ट इसलिए आवश्यक हो गयी कि जिज्ञासु यह जानना चाहते थे स्वर्ग और देवताओ पर विचार तो व्यक्त हो जाते हैं, लकिन यह कोइ नहीं बताता की स्वर्ग है कहाँ, कहाँ है नर्क; तथा क्या इनकी परिभाषा है| इसमें से कुछ पोस्ट ‘धर्मगुरु समाज को यह तो बताओ कि राक्षस और असुर अलग हैं’ के कारण पाठक यह जानना चाहते हैं कि इस पोस्ट मैं असुरसे सम्बंधित जानकारी दी गयी है; यह भी बाताया गया है की सुर और असुर दोनों ही श्रि ष्टी के लिए आवश्यक हैं, लकिन देवता क्या हैं, कोइ जानकारी नहीं दी गयी|
पहले तो यह समझ लें की सनातन धर्म पुनर्जन्म मैं आस्था रखता है, इसलिए ‘जिसने ज्यादा पुन्य करे हैं, उसे स्वर्ग, और जिसने पाप करे हैं, उसे नरक’, ऐसा कोइ प्राविधान नहीं है|
यह इसलिए भी नहीं हो सकता चुकी अच्छे या बुरे कर्म अनुसार, व्यक्ती के जीवन मैं सुख-दुःख, का चक्र चलता रहता है, और यह चक्र अनेक जन्मो तक चलता है, जिससे धीरे धीरे ‘आत्मा’, ‘परमात्मा’ से मिलकर मोक्ष को प्राप्त हो जाती है|
हर धर्म और हर समाज मैं यह नियम है की एक ही पाप की अनेक सजा तो नहीं मिल सकती, इसलिए हर व्यक्ती जीवन मैं कर्म के हिसाब से ही बढ़ता है, और यह व्यावारिक भी है|
अन्य धर्मों मैं जो स्वर्ग और नर्क के बारे मैं बताया गया है, सनातन धर्म मैं आपके कर्म ही आपके जीवन को स्वर्ग और नर्क जैसा बना सकते हैं|
तो फिर सनातन धर्म मैं स्वर्ग क्या है? देवता कौन है?
समस्या यह है की यह विषय काफी बड़ा है और विज्ञान से सम्बंधित है| सुर और असुर दोनों के समन्वय और सामंजस्य से ही श्रिष्टी आगे बढ़ती है, तथा जहाँ सामंजस्य मैं कुछ भी गड़बड़ी होई, तो भूचाल, अन्य प्राकृतिक विपदा आती हैं| स्वंम मनुष्य के जीवन मैं रोग का भी यही कारण है| इसी को लेकर, विशेषकर असुर का श्रृष्टि मैं उपयोग से सम्बंधित विषय पर, अलग से एक और पोस्ट लिखने की इच्छा भी है|
तबभी एक छोटा सा उद्धारण तो देना ही पड़ेगा; हवा(रसायनो की मात्रा के लिए लिंक खोलें) जिससे हम सांस लेते हैं, उसमें करीब ७८% नाइट्रोजन होती है, जो मनुष्य के उपयोग की नहीं है, और २१% ऑक्सीजन(तथा १% अशुधता, या असुर) जिसको सांस से शरीर के अंदर हम पहुचाते हैं, और जीवित रहने के लिए आवश्यक है| लकिन वही नाइट्रोजन(दुसरे स्वरुप मैं) पेड़, पौधों के लिए आवश्यक है, और रसायन खाद का प्रयोग इसी लिए खेती मैं होता है |
वायु(पवन) देवता है,
जिसमें एक निश्चित मात्र अशुधता(असुर) की अवश्य रहती है और उस अशुधता(मात्र १%) के अन्य उपयोग भी हैं| इस १% का सामंजस्य विज्ञान को भी स्वीकार है, लकिन जब वायु प्रदूषित हो जाती है, तो यह १% से ज्यादा हो जाती ही, और बीमारी बढाती है, कष्टदायक हो जाती है| अर्थात असुर बढ़ जाते हैं, या यह कहें की शक्तिशाली हो गए और वायु देवता को परास्त कर देते हैं|
देवता:
वास्तव मैं स्वीकृत सामंजस्य(सुर और असुर) के अंतरगत प्रकृति मैं हर वास्तु है, चाहे नदी, जल, खनिज पदार्थ, पेड़ पौधे, पर्वत, आदि| कोइ आश्चर्य नहीं की कुछ का मानना है की हिन्दुओं के ३३ करोड़ देवता हैं |
अब समझते हैं ‘इंद्र का सिंघासन डोल गया’ का क्या अर्थ है . >
पोस्ट ‘क्या स्वर्ग में बैठे देवता मनुष्यों के तप से घबरा जाते हैं’ मैं यह बताया गया है
आप यह समझ लें की देवता सकारात्मक उर्जा के प्रतीक हैं, और उनके राजा का सिंघासन तभी डोलेगा, जब समाज कर्महीन हो जाएगा, नकारात्मक हो जाएगा |
समाज नकारात्मक कब और कैसे होता है; इसके लिए भी आपको अपनी पुरानी पोस्ट 'सत्यम शिवम सुन्दरम से अपने जीवन को समझीये' से एक उद्धारण देता हूँ :
“कुछ चर्चा जीवन की गुणवत्ता पर कर ले ! इस शब्दावली को आज का संसार समझ नहीं पा रहा है ! विज्ञान अभी तक भौतिक मापदंड निर्धारित नहीं कर पारहा है कि जीवन की गुणवत्ता क्या होनी चाहिये !इसे समझने के लिये आज के कुछ मानकों पर विचार करते हैं ! विज्ञान कि प्रगत्ति ने जीवन मैं अनेक सुधार करें हैं , यह प्रमाणित सत्य है ! यदी हरेक छेत्र को अलग अलग देखा जाय तो हम पाएंगे कि सब छेत्र मैं सुधार हैं ! स्वास्थ, संचार, परिवहन, मैं विशेष प्रगति है !निजी आराम और उपयोगिताओं, मनोरंजन, बुनियादी ढांचे, मैं भी प्रगति है !
और अब अचम्भित कर देने वाला तथ्य !विज्ञान की सहायता से जहां हर छेत्र मैं प्रगति होई है वही विज्ञानिक जब सम्पूर्ण प्रगति का आकलन करते हैं तो उनका यह मानना है कि २० वर्ष मैं हमें प्रलय समाप्त कर देगी ! कारण विज्ञानिक ही बताते हैं कि इन सब छेत्र मैं प्रगत्ती करने हतु संसाधनों के उपयोग से पर्यावार्हन बुरी तरह से नष्ट हो गया है ! हो सकता है कि जीवन की गुणवत्ता की परिभाषा ही हमारी गलत रही हो ?”
तो अब इस सत्य को समझ लीजिये कि आजकल इंद्र का सिंघासन डोल रहा है, और कारण है प्रकृती की रक्षा हेतु विश्व का नकारात्मक व्यवाहर|
परिभाषाएं:
देवता की उपर दी जा चुकी है|
स्वर्ग और नर्क: स्वर्ग और नर्क यहीं पर है !
चुकी सनातन धर्म कर्म को प्रमुखता देता है, इसलिए आपके कर्मो के फल स्वरुप ही आपके जीवन मैं सुख या दुःख होता है, या यह कह लीजिये स्वर्ग और नर्क यहीं पर है| सनातन धर्म का यह भी आवश्यक सिद्धांत है की आपके कर्मो का फल आपको अवश्य मिलेगा भले ही आगे के जन्मो मैं मिले|
जिस तरह से असुर-राज पताल मैं हैं उसी तरह से देवता तताकथित स्वर्ग मैं रहते हैं जो पृथ्वी लोक से बाहर है| यह विज्ञान की दृष्टि से भी आवश्यक जानकारी है, कि पृथ्वी मैं जो भी जीवन, या श्रृष्टि है, उसके लिए पृथ्वी का सौय्रमंडल और ब्रह्माण्ड से सामंजस्य मुख्य कारण है, चुकी पृथ्वी अपने आप मैं असमर्थ है; असुरो का निवास है|
स्वर्ग के विषय मैं एक और भी विचार है| हिमालय इश्वर शिव का निवास स्थान है, और हिमालय मैं ही कहीं एक छेत्र है जो स्वर्ग कहलाता है, जहाँ सिद्ध आत्मा मृत्य के बाद निवास करती है, और श्रृष्टि का संचार सुचारू रूप से हो सके उसमें सहायक होती है| उसमें भी दो छेत्र है एक मुख्य और दूसरा बाहरी| बाहर के छेत्र मैं अबभी मनुष्य प्रयत्न करके जा सकता है, और यहाँ पर अनेक जीवित सिद्ध व्यक्ती रहते हैं जिन्हें तरह तरह का ज्ञान है| अर्जुन ने एक वर्ष तक नपुंसक रहने के लिए औषधी और शिक्षा यही से प्राप्त करी थी|
राक्षस:
राक्षस की परिभाषा इससे पहले और पोस्ट मैं दी हुई है|
जो मानव मनुष्य का मांस खाने लगे, वोह राक्षस; और असुर प्रकृति मैं असमंजस्य|
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