सनातन धर्म मैं अवतार का स्वरुप, अशिक्षित समाज के लिए:अलोकिक शक्ती की चादर के साथ होता था; विकसित, शिक्षित समाज मैं,
बिना अलोकिक, चमत्कारिक शक्ती के, जैसा की आजादी के बाद होना था, परन्तु नहीं हुआ !
क्या है लचीलापन सनातन धर्म मैं, आज तक किसी गुरु ने इसके बारे मैं कुछ क्यूँ नहीं बताया?
आप किसी भी प्रवचन मैं चले जाईए, आपको यह बताया जातेगा की सनातन धर्म पूर्णता का प्रतीक है, और इसी लिए यह अमर है| जबकी यह गलत है| बिलकुल गलत !
सत्य यह है कि सनातन धर्म अस्तव्यस्तता मैं विश्वास रखता है, पूर्णता मैं कदापि नहीं|
बाकी सारे धर्म/रिलिजन/मजहब पूर्णता मैं विश्वास रखते हैं,
और
चुकी कोइ भी धर्म नया आया है, वह सनातन धर्म से अलग हट कर ही बना है, तो सबने पहले अस्तव्यस्तता का ही विरोध करा है, और बुराई करी है, और फिर नए धर्म का जन्म हुआ| और यही कारण है कि कोइ भी धर्म लम्बी अवधी तक जीवित नहीं रह पाया|
सनातन धर्म मैं बहुत कम नियम हैं, एक ही परिवार मैं लोग अलग अलग देवी देवता की पूजा करते हैं, जो की और कोइ धर्म सोच भी नहीं सकता|यह पोस्ट इसलिए आवश्यक हो गयी, की पोस्ट ‘सनातन धर्म पूर्णता मैं नहीं अस्तव्यस्तता मैं विशवास करता है’ के बाद लोग और भी कुछ पिछली पोस्ट का हवाला देते हुए यह जानना चाहते हैं, की क्या वास्तव मैं लचीलापन है, या सिर्फ यह ब्लॉग कह रहा है|
चलिए आप स्वंम ही निर्णय कर लीजिये:-
1. पहले कन्याओं के स्वम्बर होते थे, स्वाभाविक है जब, जब उनमें पूरी तरह समझ आजाय अपने योग वर चुनने की, और गुलामी के समय क्यूँकी अविवाहित लड़कियां जबरदस्ती उठाली जाती थी, तो बाल विवाह शुरू होगया|
2. सती प्रथा स्वैच्छिक और इच्छाधीन थी, सनातन धर्म मैं, लकिन गुलामी मैं जब बाल विवाह होने लगे तो भारत मैं काफी प्रान्तों मैं इसे सख्ती से लागू कर दिया गया|
और भी उद्धारण, लचीलेपन के; आजादी से पहले के, ..आजादी के बाद के !
3. आज़ादी से पहले गुलाम थे, ताकि कुवारी कन्या न उठे, बाल अवस्था मैं शादी होने लगी कन्याओं की,
आज किसलिए यह होरहा है? यह सनातन धर्म के अनुसार अधर्म है|
कन्याओं का बाल विवाह नहीं होना चाहिए| मैं हिन्दुस्तान के हिंदुओं की बात कर रहा हूँ |
बाग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं की नहीं |
जिनको सनातन धर्म, क्यूँकी कन्याओं के अगवा होने की वारदात दोनों जगह ज्यादा हैं, तो स्वंम बाल विवाह के लिए प्रोहित्साहित करता है |
क्यूँकी सनातन धर्म के पास हर स्थिती के लिए विकल्प है |
सत्य तो यह है की धर्म का भौतिक(कर्म) भाग गुलामी के समय स्वंम संतो ने घटाया था, जो की अपने आपमें लचीलेपन का प्रमाण है| कुछ उद्धारण इस पोस्ट मैं मिल जायेंगे, पढ़ें: हिंदुओं का भौतिक धर्म गुलामी के समय कैसे घटाया गया
उपरोक्त जो पोस्ट है, वोह नीचे की पोस्ट का भी उत्तर देने की चेष्टा है|
पोस्ट और जिस विषय को लेकर चर्चा हो रही है, वो इस प्रकार है:
पोस्ट: आजादी के बाद के कर्महीन हिंदू समाज की मानसिकता कैसे बदली जाए ?
विषय, एक और लचीलापन, जो अत्यंत अवश्यक :
“सनातन धर्म मैं अवतार का स्वरुप, कम विकसित और अशिक्षित समाज के लिए, अलोकिक शक्ती की चादर के साथ होता था, जैसा की आजादी से पहले था
और...
विकसित , शिक्षित समाज के लिए, बिना अलोकिक शक्ती और चमत्कारिक शक्ती के, जैसा की आजादी के बाद के समाज के साथ होना था, परन्तु नहीं हुआ|”
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