Sunday, July 21, 2013

क्या हनुमान छलांग लगा कर लंका पहुचे थे, या समुन्द्र मार्ग से

इस विषय पर चर्चा इसलिए आवश्यक हो गयी क्यूँकी ब्लॉग की अंग्रेज़ी की एक पोस्ट मैं यह बात कही गयी है कि रामायण के सारे संकेत यह बताते है की हनुमानजी तैर कर और जहाँ कम पानी था, पैदल चल कर लंका पहुचे| आज हिंदी मैं इस विषय पर विस्तार से चर्चा करते हैं|
सबसे पहले यह बात समझलें की रामायण के समय सामाजिक स्तिथी क्या थी ?

जिस युग मैं विमान भी थे, और वोह भी तरह तरह के, एक बात तो स्पष्ट हो जाती है की विज्ञान के कारण समाज विकसित था| जी हाँ, यह भी सत्य है उस समय मनुष्य की नई प्रजाती वानर, जिसके पूछ भी थी, वोह वन के किनारे किनारे, बस्तियां बना कर रह रही थी, परन्तु मनुष्य समाज ने उसे मनुष्य मानने तक से इनकार कर दिया था| श्री राम ने १४ वर्ष के वनवास मैं इन वानरों को समाज के नियम और सैन्य प्रशिक्षण भी दिया था|

१४ वर्ष के वनवास मैं राम ने लंका से युद्ध के बारे मैं कूटनीतिज्ञ और राजनेतिक परिपेक्ष मैं काम करा था| कुछ लंका के प्रमुख व्यक्ती राम के संपर्क मैं थे| इसी कारण हनुमान पहले विभीषण से मिलें| भावनात्मक तरीके से कृपया रामायण का आकलन करना छोड़ दे, तो आप पायेंगे की कुछ लंका के प्रमुख व्यक्ती भी श्री राम के संपर्क मैं थे| 
अब इस विषय पर बात करते हैं की क्या कारण है की सोच यह होती जा रही है कि हनुमान जी तैर कर और जहाँ कम पानी था, पैदल चल कर लंका पहुचे|
प्रमुख कारण तो यह है की जब इस सच को स्वीकार कर लिया गया कि किसी भी चरित्र के पास अलोकिक शक्ती नहीं थी, तो यह तो बताना पड़ेगा कि हनुमान जी लंका पहुचे कैसे, क्यूँकी बिना चमत्कार के तो इतनी लम्बी छलांग लग नहीं सकती, और इतिहास मैं चमत्कार का कोइ स्थान होता नहीं| 
रामायण से जो संकेत मिलते हैं वे यह स्पष्ट बताते हैं की हनुमान जी जब लंका जा रहे थे, तो उनकी एक विशाल मछली से भेट होई, जिसके मुख मैं जाते जाते वोह बाल बाल बचे| मछली तो जल मैं पाई जाती है, और विशाल मछली समुन्द्र मैं| वायु मार्ग से मछली से भेट नहीं हो सकती थी|
वैसे भी भोगोलिक दृष्टी से वहां का समुन्द्र बहुत कम गहरा था, और पूर्ण ज्वार मैं काफी जगह व्यक्ती कम पानी मैं चल सकता था, सिर्फ कुछ जगह तेरना पड़ता था ..पढ़ें: Adam's Bridge
दूसरी बात का सम्बन्ध युद्ध प्रशिक्षण और रणनीती से है| यह बात जग विदित थी की लंका की सुरक्षा के लिए रडार लगा हुआ था, जो न केवल घुसपैठियों का पता लगता था, बलिक उनसे स्वंम निबटने की क्षमता भी रखता था| हनुमान भले ही इस सैन्य क्षमता के साथ लंका जा रहे थे, की वे इस रडार का नाश कर सकते हैं, तो भी वे अपने विशेष कार्य को खतरे मैं डाल नहीं सकते थे, की वे लंका प्रवेश करते हुए रडार को ध्वस्त करदे| नहीं उन्होंने उसका नाश करा अवश्य लकिन लोटते समय| रडार जल मार्ग वालो को नहीं पकड़ पाता, इतना ज्ञान तो आज सबके पास है|
मानस मैं रडार का उल्लेख :
निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई। करि माया नभु के खग गहई।।
जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं।।
गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई। एहि बिधि सदा गगनचर खाई।।
अब स्तिथी स्पष्ट है; हनुमान जी के पास दो विकल्प कह सकते हैं , हालाकी सत्य तो यह है की एक ही तरीका था; तबभी चर्चा की लिए ही मान लेते हैं की वोह वायु मार्ग से विमान द्वारा लंका जाय, लकिन फिर वोह उतरेंगे कहाँ? पूछ होने के कारण वानर प्रजाती के होने के कारण उनकी शक्ल अलग दिखती, इसलिए भी पकडे जाने की संभावना अधिक थी | 
नहीं सारे तथ्य स्पष्ट कर रहे हैं की वे समुन्द्र मार्ग से लंका गए| 
जय श्री राम, जय माता सीता !

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.