खंड (क)*वेद समाज में जीने का ज्ञान है !
*वेद सकारात्मक उर्जा के साथ, जीवन में विश्वास के साथ, जीवन यात्रा करने का सम्पूर्ण शास्त्र है |
*वेद मानव का उसके परिवार के साथ, उसके बड़े, व् सामूहिक परिवार के साथ प्रगति की और अग्रसर होने का स्रोत है|
*वेद मानव का उसके समाज के साथ जुड़ने का और मिल कर आगे बढ़ने का मार्ग है |
*वेद मानव को उसके परिवार, उसके समाज, उसके राष्ट्र और विश्व से जोड़ने की माला है |
*वेद मानव का अन्य प्राणियों के साथ , प्रकृति के साथ, तथा एक समाज का दुसरे समाज के साथ , और एक राष्ट्र का अन्य राष्ट्रों के साथ वसुधैव कुटुम्बकम को स्वीकारने और उस भाव से जीने का अटल प्रयास है |
*वेद पृथ्वी, सौर्यमंडल और ब्रह्माण्ड से सम्बंधित विज्ञान है|
नोट: जहां अन्य धर्म/मजहब समाज में जीने के नियम हैं, वेद समाज में जीने का ज्ञान है, नियम नहीं है |
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खंड (ख)
वेद विश्व के सबसे प्राचीन धार्मिक साहित्य है, सनातन धर्म का सर्वप्रथम ज्ञान और धार्मिक सोत्र है, तथा यह आस्था भी है कि ईश्वर की वाणी है |
कुल मिला कर चार वेद हैं, जिनकी व्याख्या विकिपीडिया इस प्रकार करता है :-
Link : https://hi.wikipedia.org/wiki/वेद
ऋग्वेद - सबसे प्राचीन वेद - ज्ञान हेतु लगभग १० हज़ार मंत्र । इसमें देवताओं के गुणों का वर्णन और प्रकाश के लिए मन्त्र हैं - सभी कविता-छन्द रूप में ।
सामवेद - उपासना में गाने के लिये संगीतमय मन्त्र हैं - १९७५ मंत्र।
यजुर्वेद - इसमें कार्य (क्रिया), यज्ञ (समर्पण) की प्रक्रिया के लिये गद्यात्मक मन्त्र हैं - ३७५० मंत्र।
अथर्ववेद - इसमें गुण, धर्म, आरोग्य, यज्ञ के लिये कवितामयी मन्त्र हैं - ७२६० मंत्र ।
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खंड (ग)
वेद तथा समस्त हिन्दुओ के प्राचीन ग्रन्थ जो संस्कृत में हैं वे कोडित हैं, अर्थात उनके सीधे अनुवाद से पूर्ण ज्ञान नहीं मिल सकता, कहीं तो एकदम विपरीत ज्ञान भी मिलता है, इसलिए उपरोक्त विकिपीडिया की व्याख्या का आदर करते हुए, हमलोग अपने हिसाब से आगे बढ़ते हैं |
वेद पूर्ण रूप से भौतिकता पर आधारित है, ना की भावनाओं पर ,
तथा
किसी प्रकार के चमत्कार या अलोकिक शक्ति को प्रोहित्साहित नहीं करता |
सत्य तो यह है की वेद का पूरा ज्ञान मानव-केन्द्रित है, यानी की मानव को इस ज्ञान को भौतिकता के आधार पर समझना है, और प्रयोग करना है | सिर्फ इतना नहीं, भौतिक मानको और मापदंडो के प्रयोग से प्रगति का आकलन भी करना है |
वेद नकारात्मक नहीं है, वैदिक ज्ञान में कोइ कमी भी नहीं है, परन्तु महाभारत युद्ध के पश्च्यात, ५००० वर्ष पहले जब सनाताब धर्म अकेला धर्म था,
तो हिन्दू समाज और सनातन धर्म सिकुड़ता क्यूँ गया ?
सनातन धर्म से लोग असंतुष्ट क्यूँ थे , और क्यूँ हैं आज ?
1. यदु वंश , जो की द्वारिका से महाभारत युद्ध के बाद अफ्रीका पलायन कर गया था , उनमें से कुछ लोगो ने सबसे पहले यहूदी धर्म की स्थापना करी ;
2. फिर कुछ समय बाद, कृष्ण को क्राईसट कह कर नए धर्म की स्थापना होई, जिसे अब हम ईसाई धर्म कहते हैं,
3. और बाद, इश्वर शिव के लिंग के पुजारको ने इस्लाम धर्म की स्थापना करी |
4. और आज अपने ही देश मैं हम इस बात के लिए लड़ रहे हैं कि हम द्वित्य श्रेणी के नागरिक ना कहलाएं !सुझाव चाहिए ! आगे कैसे बढ़ा जाए !!
एक बात तय है, समस्या अंदरूनी है, कहीं हमारा शोषण तो नहीं हो रहा?
फिर से...>>>
वेद नकारात्मक नहीं है, वैदिक ज्ञान में कोइ कमी भी नहीं है, मात्र समाज के शोषण के लिए गलत उल्टा सीधा अर्थ बता कर,
कमसेकम पिछले ५००० वर्षो का जो इतिहास हमें पता है,
संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु पूरी तरह से समाज को जानबूझ कर दास बना कर रखने के लिए सबकुछ गलत बता रहे हैं, ताकि समाज का शोषण वे कर सकें |
इसके अनेक प्रमाण भी हैं, कुछ पर चर्चा करते हैं:-
रावण का पुतला आज भी जलाया जा है, लकिन संस्कृत विद्वान और धर्मगुरुओ ने उसे वेद ज्ञाता घोषित कर रखा है, जबकि उसमें सारे अवगुण थे, गुण करके कुछ भी नहीं था | लकिन क्यूंकि श्री विष्णु अवतार पर प्रश्न चिन्ह लगाना था, तो रावण वेद-ज्ञाता कहलाने लगे |
दुसरे वेद-ज्ञाता हैं,
आचार्यद्रोण जिनके अवगुणों के कारण श्री कृष्ण ने , जब वोह निहत्ये थे , तब मरवा दिया | और यह ना सोच कर कि इस अधार्मिक व्यक्ति ने क्या क्या असामाजिक कार्य करें हैं, उसको संस्कृत विद्वानों ने वेद-ज्ञाता घोषित कर दिया |
तो क्या यह भगवान् के अवतार श्री कृष्ण पर प्रश्न चिन्ह लगाने का प्रयास नहीं है ?
लकिन,....
लकिन,...
आचार्य चाणक्य , जिन्होंने २३०० वर्ष पहले, राष्ट्रीयता का नारा दिया, और उससे भारत को जोड़ने का प्रयास भी करा, और काफी कुछ सफलता भी मिली वोह वेद-ज्ञाता नहीं कहलाते ! उनका ‘जय माँ भारती’ का नारा आज भी हमलोग गर्व से दोहराते हैं |
सोचीये, बताईये,....
क्या आचार्य चाणक्य को यदि वेद-ज्ञाता घोषित कर दिया जाता तो भारत गुलाम होता...?
बिलकुल नहीं ....!
संस्कृत विद्वानों और धर्मगुरुओ को फिर शोषण के लिए स्थान नहीं मिलता, इसलिए आचार्य चाणक्य के इतिहास को दबाने का प्रयास पूरा करा, और जबतक गुरुकुल शिक्षा प्रणाली भारत में रही, उस इतहास को उचित स्थान मिला भी नहीं |
अपनी कर्महीनता से निकलीये, और यह प्रश्न अपने धर्मगुरु से पूछीये !
कुछ लिंक जो इस पोस्ट से सम्बंधित हैं:-
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