सत्य तो यह है
की
परशुराम पूरी तरह से सफल हुए थे क्षत्रियों मैं सुधार लाने मैं,
और
वही परशुराम पूरी तरह असफल रहे धर्म से जुड़े लोगो मैं सुधार लाने मैं, जिसके प्रमाण भी हैं |
परशुराम के पिता अपनी पत्नी की हत्या अपनी संतान से करवाना चाहते थे,....
रामायण का, कमसेकम ५००,००० वर्ष पुराना इतिहास है, लकिन उसे इस तरह से प्रस्तुत करा जाता रहा है कि किसी को कुछ समझ मैं ना आए कि रामायण के समय श्री विष्णु को अवतरित होने के कारण क्या थे, और श्री विष्णु को एक नहीं दो बार, एक के बाद एक अवतार लेना पड़ा, पहले परशुराम के रूप मैं, और फिर श्री राम के रूप मैं, क्यूँ?
यह समझा दिया गया कि पहले अवतार परशुराम क्षत्रियों के अत्याचार को समाप्त करने आय थे,
और
दुसरे अवतार रावण का वध करने हेतु, क्यूंकि रावण को वरदान प्राप्त था, इसलिए इश्वर को अवतरित होना पड़ा |
परन्तु स्वंम इतिहास बताता है की क्षत्रियों से युद्ध पश्च्यात सुधार आ गया और उसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि स्वंम परशुराम ने शिव धनुष, जो की प्रलय स्वरूपी विनाशकारी था(WEAPON OF MASS DESTRUCTION), एक क्षत्रिय राजा के पास रखवाया, रावण जैसे ब्राह्मण राजा के पास नहीं, जबकी रावण की ब्राह्मणों मैं प्रतिष्ठा थी, और वोह भी अभूतपूर्ण, की मरणोपरांत भी अयोध्या के ब्राह्मणों की सहायता से राम को विवश कर दिया सीता को त्यागने के लिए|
सत्य तो यह है की परशुराम पूरी तरह से सफल हुए थे क्षत्रियों मैं सुधार लाने मैं,
और
वही परशुराम पूरी तरह असफल रहे धर्म से जुड़े लोगो मैं सुधार लाने मैं, जिसके प्रमाण भी हैं | परशुराम के पिता अपनी पत्नी की हत्या अपनी संतान से करवाना चाहते थे,....
...तो जो धर्मगुरु संतान से माता को मरवाना चाहते थे, जैसे की परशुराम के पिता, उनके लिए माँ शब्द का क्या धार्मिक अर्थ रह गया था?
और परशुराम के पिता जमदग्नि तेजस्वी धार्मिक व्यक्ति एवम ऋषि के नाम से प्रतिष्टित थे | उनके जन्म के समय भी कुछ हेरफेर हुई थी, जिसका उल्लेख ना ही करा जाय तो अच्छा है ! इधर महाऋषि गौतम ने अपनी पत्नी अहलिया को मार दिया था, और पुस्तकों मैं गलत उल्लेख है की श्राप दिया था, चुकी पुस्तकों की देखरेख यही धर्मगुरु करते हैं|
यदि उस समय के धर्मगुरुओ के अभ्रद व्यवाहर की बात शुरू कर दी जाए तो यह पोस्ट समाप्त ही नहीं होगी | बहराल ‘जबजब होइ धर्म की हानी’ संभव ही नहीं है बिना धर्मगुरुजनों के पतन के | और अगले अवतार श्री राम को ब्राह्मणों से ही युद्ध करना पड़ा, तथा विशेष सुधार उनके आचरण मैं लाना पड़ा |
कुछ उसी प्रकार के संकेत महाभारत के समय के मिलते हैं,
एकलव का अंगूठा गुरु दक्षिणा मैं लेने वाले गुरु द्रोणाचार्य को श्री कृष्ण ने युद्धभूमि मैं छल से मरवाया, तथा गुरुपुत्र अश्वथामा को अत्यंत घृणित कार्य करने के लिए रिस-रिस के मरने के लिए छोड़ दिया |
उस समय के दुसरे प्रतिष्टित धर्मगुरु क्रिपाचार्य ने कोइ कम घृणित कार्य नहीं करे, वोह भी सो रहे पांडव पुत्रो को मारने मैं सहायक बने थे |
सत्य यह है कि सनातन धर्म सृजन मैं नहीं, क्रमागत उन्नति पर आष्टा रखता है, इसलिए यदि समाज पूरी तरह से ‘धर्म की हानी’ के कारण नकारात्मक दिशा मैं जा रहा हो, तो इश्वर स्वर्ग मैं बैठ कर उसमें दिशा परिवर्तन नहीं कर सकते, पृथ्वी पर इश्वर को अवतरित होना पड़ता है| और कुछ रहा हो या ना रहाहो, सनातन धर्म मैं धर्मगुरुजनों का बोल-बाला सदा रहा है, इसलिए ‘जब-जब होइ धर्म की हानी’ तभी संभव है जब यह महापुरुष अधिक अधर्मी हो जाते हैं|
श्रीमद् भगवदगीता के चौथे अध्याय के सातवें एवं आठवें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अपने श्रीमुख से कहते हैं-
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।अभ्युत्थानधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।
'हे भरतवंशी अर्जुन ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ। साधुजनों (भक्तों) की रक्षा करने के लिए, पापकर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की भली भाँति स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ।'
इसी तथ्य को गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी अपनी रामचरित मानस में सीधे-सादे शब्दों में कहा है :-
जब-जब होइ धर्म की हानी। बाढ़ैं पाप, असुर-अभिमानी!तब-तब प्रभु धरि विविध सरीरा। हरiहं व्याधि, सज्ज्न की पीरा !!
तो अब इस सत्य को आप स्वीकार कर लीजिये |
फिर से;
हमारे यहाँ, सनातन धर्म में , यह स्वीकृत तथ्य है, कि ....
धर्म का नाश तब होता है, जब विद्वान और धर्मगुरु मिल कर समाज का शोषण कर रहे हों,
इश्वर को अवतरित भी तभी होना पड़ता है ...
कम से कम श्री राम और श्री कृष्णा का इतिहास तो यही बता रहा है ...
और मजेदार बात यह भी है कि इस सत्य को आप विश्व के इतिहास में जितने भी बड़े युद्ध हुए हैं, उसमें भी परख सकते हैं |
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