सारे पुराण भरे पड़े हैं, सुर असुर के बीच में युद्ध और कथाओं से, लकिन ना तो सुर-असुर को किसी ने परिभाषित करने का प्रयास करा, और ना ही देवता और राक्षस को ही परिभाषित करा | उल्टा अनेक स्थानों पर असुर के स्थान पर राक्षस शब्द का प्रयोग कर दिया गया है, जो की गलत है, और
आजादी के बाद भी संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु यह प्रयास कर रहे हैं कि पुराण, रामायण और महाभारत ‘मिथ्या’ की श्रेणी में ही रहे |
वास्तव में सुर असुर की युद्ध गाथा भूविज्ञान है, EARTH SCIENCE है, जिसमें पृथ्वी और सौर्य मंडल में नकारात्मक उर्जा और सकारात्मक उर्जा के बीच में कैसे समन्वय होता है, इस विज्ञान को दर्शाया गया है,
और
चुकी पार्वती प्रकृति हैं, तो माता पार्वती, अपने विभिन स्वरुप में, कभी दुर्गा बन करके, कभी माँ काली बन कर, कैसे इन दोनों उर्जा में समन्वय बनाती हैं, इसपर भी चर्चा है |
पुराण बताते हैं, और भूविज्ञान इसका अनमोदन करते हैं कि नकारात्मक उर्जा से भूचाल, ज्वालामुखी, अन्य प्राकृतिक विपदा आती हैं | क्षमा करें, मैंने गलत कह दिया, नकारात्मक और सकारात्मक उर्जा में समन्वय ना होने से ऐसा होता है , तथा यह सब प्रकृति में होता रहता है|
प्रकृति सनातन में सदैव पूजनीय है, और वैसे भी श्रृष्टि के विकास और प्रगति के लिए आवश्यक है प्रकृति का फलना-फूलना, इसलिए माता दुर्गा के नौ रूपों की हमसब पूजा भी करते है; वचनबद्धता दर्शाते हैं की मानव प्रकृति की रक्षा करेगा |
सबसे पहले, आगे बढ़ने से पहले, परिभाषा आवश्यक हैं, कृपया निम्लिखित पोस्ट पढ़ें :
‘साम्यता , सामंजस्य , सुर जो की किसी भी परिस्थिति को पूर्णता की और ले जाता है , उसीके विपरीत शब्द हैं असाम्यता , असामंजस्य और असुर जो की किसी भी परिस्थिति को अराजकता की और ले जाते हैं | विज्ञान से जुड़े बुद्धीजन आपको यह बता सकेंगे की सुर और असुर दोनों की आवश्यकता होती है , किसी तरह के विकास के लिए; यहाँ तक की एक बच्चे को गर्भ मैं स्तापित होने से पैदा होने तक भी दोनों सुर और असुर का सही मिश्रण आवश्यक है |’
पर जो ईमेल आ रही हैं, उससे यह स्पष्ट हो रहा है कि अभी भी इसका अर्थ पूरी तरह नहीं समझा जा सका है , तो विज्ञान के सन्दर्भ में इसका कुछ विस्तार करते हैं !
परन्तु समझने के लिए यह आवश्यक है की आप पहले उपर की दोनों पोस्ट, और नीचे की पोस्ट पढ़ें; समझें की देवता कि क्या परिभाषा है, सुर असुर क्या है, राक्षस और असुर में अंतर|
इस पोस्ट को पढने के बाद आपको यह समझ में आ गया होगा की सुर और असुर क्या है | अब जैसे ऑक्सीजन, नाइट्रोजन प्रमुख सुर है, वायुदेवता में, जिसमें से ऑक्सीजन का प्रयोग सास लेने में होता है, जिन्दा रहने के लिए आवश्यक है, और नाइट्रोजन प्रकृति के विस्तार के लिए| इसी नाइट्रोजन का प्रयोग अनेक केमिकल के रूप में रसायन खाद में होता है|
परन्तु लोहे का खम्बा आपने जमीन से उपर खड़ा करा हुआ है तो कुछ समय बाद उसमें जंक लगने लगता है| यही ऑक्सीजन यहाँ पर असुर का काम करती है | वातावरण, और उसकी नमी से यह ऑक्सीजन लोहे को जंक बना देती है, लोहा कमजोर होता जाता है|
फिर से समझ लीजिये लोहे के लिए ऑक्सीजन असुर का काम कर रहा है, इसलिए इन खम्बों को हर साल पेंट करा जाता है|
और
ऐसे अनेक प्रक्रिया वायुमंडल मैं, पृथ्वी के अंदर होती रहती है, जिससे ज्वाला मुखी तक बन जाते हैं, भूचाल आ जाते है , जमीन फट जाती है आदि आदि |
कृप्या सहयोग दीजिये कि पुराण की यह सारी सूचना यूनिवर्सिटी तक पहुचे, जिसमें की धर्मगुरु और संस्कृत विद्वान अभी तक नकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं ; समाज का शोषण होता रहे, इसलिए अलोकिक शक्ति की चादर वे पुराणों से हटाने नहीं दे रहे हैं |
ॐ नम: शिवाय ! जय माता पार्वती !!
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