नारी ही है दुर्गा, अनेक असुरो को शरीर के अंदर और बाहर झेलती और सामंजस्य बनाती है नारी ! नारी को ही ईश्वर ने इतनी शक्ति दी है की बाहर जो असुर प्रवति के लोग हैं, उनको सहती है, संघर्ष भी करती है, और अपनी शक्ति का परिचय देते हुए आगे बढ़ती रहती है |
उसी तरह से, विज्ञानिक दृष्टिकोण से, नारी के अंदर जितने असुर हैं वे पुरुष से बहुत अधिक है, तथा उन सबका अंदरूनी सुरों के साथ समन्वय बना कर रखना भी एक शक्ति का प्रतीक है | मासिक चक्र या रजस्वला तथा गर्भ धारण करने के लिए हर समय शारीरिक रूप से तैयार रहना, भी अद्भुत शक्ति है |
लकिन इतिहास बताता है की नारी का सदा ही शोषण होता रहा है, आज भी हो रहा है, और सनातन धर्म जो की नारी शक्ति की पूजा करता है, वोह भी इस शोषण को रोकने मैं असमर्थ है | ऐसा क्यूँ, तथा इसके पीछे क्या कारण हैं ?
माँ बहन और बेटी होते हुए भी नारी को पुरुष ने सदा उपभोग की वस्तु समझा है, तथा यह प्रवृति, जैसे जैसे समाज में एक मनुष्य शक्तिशाली होता जाता है, और बढ़ती जाती है | आज भी हर युद्ध में विजई सेना औरतो के साथ दुष्कर्म करती है, और मानवता पर कालिख पूत जाती है | धन, वैभव और शक्ति का आकलन, कितनी स्त्रियों का उपभोग करता है, उससे भी परखा जाता है | कुछ भी नहीं बदला है |
लकिन इन सबके बाद भी नारी है शक्ति, और यह मेरे और आपके कहने से नहीं है, ईश्वर ने ऐसी ही रचना करी है | यह भी सही है की नारी का शोषण कभी भी समाप्त नहीं हुआ है, और संभव है कि आसानी से समाप्त होगा भी नहीं | शोषण जब समाप्त, या कम होगा जब विश्व स्तर पर, सामाजिक ढाँचे में नारी को बराबर का दर्ज़ा दिया जाए , जो हो नही रहा है, तथा आसान नहीं है |
आगे बढ़ते हैं; क्यूँ माँ दुर्गा असुरो से लडती है, क्यूँ कोइ पुरुष देवता को असुरो से लड़ने के काबिल नहीं समझा गया?
क्या सन्देश है, कि माँ दुर्गा ही असुरो से लडती हैं |
जितनी मुझे समझ है, नारी का शरीर सुर और असुरो से भरा पड़ा है | यदि सुर सकारात्मक कोशिकां हैं, शरीर के अंदर, तो असुर नकारात्मक, और यह हर जीव के लिए सत्य है, नर और नारी के लिए भी | परन्तु यहीं समानता समाप्त हो जाती है | नारी में असुर का जमघट ज्यादा है, जिससे सुर, असुर के बीच में समन्वय बनाने में कठनाई होती है, मासिक चक्र या रजस्वला होता है, और शरीर के अंदर सुर और असुर गर्भ धारण करने के लिए तत्पर रहते है, ताकि नया समन्वय बन सके |
कोइ संकोच नहीं यह कहने मैं की नारी को ही सांकेतिक भाषा में उपयुक्त पाया गया, यह समझाने के लिए की प्रकृति में जब सुर और असुर के बीच में समन्वय नहीं हो पाता तो दुर्गा और काली के रूप में इस प्रयास को करा जा सकता है | पुराण और अन्य धार्मिक साहित्य इस विषय पर तरह तरह से अनेक संकेत देता है |
यह धार्मिक सन्देश ही है की नारी शक्ति है, उसका सम्मान होना चाहीये | शिव पार्वती से सम्बंधित कथा भी नारी शक्ति को स्वीकार करती हैं | प्रकृति में असुरो के बढ़ जाने से जब सब सामंजस्य समाप्त हो जाते हैं, और प्राकृतिक विपदा आरंभ हो जाती है, जिसके उपरान्त हर कलयुग के बाद , नए सतयुग तक पृथ्वी श्रृष्टिविहीन सी होजाती है(श्रृष्टिविहीन सी होजाती है, श्रृष्टिविहीन नहीं होती) | तब माँ दुर्गा अनेक रूपों में असुरो के बढ़ते विनाश को रोकती हैं, बढे हुए असुरो को समाप्त करती हैं | जहाँ यह आस्था का विषय है, यह विज्ञान का भी विषय है |
लकिन आस्था मात्र भावनात्मक नहीं होनी चाहीये | आस्था का भौतिक स्वरुप ही सनातन धर्म में मान्य है | तब हिन्दू समाज में नारी का शोषण क्यूँ? क्या यह अधर्म नहीं है ?
सोचीये , समाज में बदलाव लाईये !
कृप्या यह भी पढ़ें:
विकास और आधुनिकरण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं...अलग नहीं हो सकते
सुर असुर में संतुलन मानव को स्वंम मैं, परिवार मैं, प्रकृति मैं बनाना है
No comments :
Post a Comment