इस प्रश्न का उत्तर इतिहास के संधर्भ मैं ही दिया जा सकता है, तथा इस विश्वास के उपरान्त कि श्री राम और श्री कृष्ण श्री विष्णु के अवतार थे | प्रश्न मात्र इतिहास के परिपेक्ष मैं हो सकता है, भावनात्मक कथा के परिपेक्ष मैं नहीं !
मात्र इतिहास के परिपेक्ष मैं इस बात का महत्त्व है कि क्यूँ श्री कृष्ण, जो की १६ कलाओ के साथ अवतरित हुए थे, वे कृष्णराज्य की स्थापना नहीं कर पाए और ना ही भविष्य के संसार के लिए अपनी सफलता का प्रमाण छोड़ पाए |
उधर १४ कला के साथ अवतरित श्री राम ने उस समय की सम्पूर्ण समस्या का समाधान करा और रामराज्य इस बात का प्रमाण है |
अवतार श्री कृष्ण पृथ्वी पर अवतरित हुए, और पूर्ण जीवन समाज की दिशा बदलने में लगा दी, और सफलता का कोइ प्रमाण नहीं छोड़ पाए, तो निष्कर्ष कुछ ऐसे ही हो सकते है:-
1. समाज की समस्या इतनी जटिल थी की पर्याप्त सफलता संभव नहीं थी, क्यूंकि सनातन धर्म में ईश्वर अवतरित होकर कभी भी अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति का प्रयोग नहीं करते, परन्तु क्यूंकि ‘समाज का शोषण’ संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु का उद्देश है, इसलिए यह बात बताई नहीं जाती, उल्टा समाज को और भावनात्मक बना कर रखने के सारे हथकंडे अपनाए जाते हैं, ताकि समाज उचित प्रश्न पूछने की क्षमता कभी ना विकसित कर पाए , मानसिकता गुलामु वाली कर दी जाए, और हिन्दू समाज हाथ जोड़ कर ‘जी हाँ’ के अतिरिक्त कुछ ना कह सके |
और इसका पूरा असर भी है | हिन्दू, सिख, मुसलमान और इसाई , जो प्रमुख धर्म भारत में हैं, और सबका शिक्षा का स्तोत्र एक ही होते हुए भी मात्र हिन्दू समाज द्वित्य श्रेणी का नागरिक है, बाकी सारे धर्म को मानने वाले द्वित्य श्रेणी के नागरिक नहीं हैं, हालाकि हिन्दू ७५ से ८०% है, बहुल समाज है | यह हमारी धार्मिक शिक्षा है, जो हिन्दू समाज को गुलाम बना कर रखना चाहती है |
उपर कहा गया है की ‘ईश्वर अवतरित होकर कभी भी अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति का प्रयोग नहीं करते’, और यह समझने की बात है, क्यूंकि अगर अलोकिक शक्ति का प्रयोग करते तो सफलता पूर्ण मिलती | यह भी एक प्रमाण है की अवतार अलोकिक शक्ति का प्रयोग नहीं करते |
2. आधुनिकरण और विकास अपनी चरम सीमा पर था | स्वाभाविक है की विकास अधिक था, तो एक कारण सदा ईश्वर के अवतरित होने का यह भी होता है कि विकास और आधुनिकरण में समन्वय नहीं बन पाया | यदि विकास इतना था की मानव की खेती हो रही थी, और आधुनिकरण भी इतना था की समाज में रहने के नैतिक मूल्य शून्य के पास पहुच गए थे, तो विकास और आधुनिकरण में समन्वय नहीं बन पा रहा था , और यह अपने आप में गंभीर समस्या थी, जिसका समाधान भी अवतार को करना था |
नैतिक मूल्य शून्य पर पहुच गए थे, या नकारात्मक थे, उसके प्रमाणों से पूरी महाभारत भरी पडी है , इसलिए उसपर उद्धारण भी नहीं दे रहा हूँ !
3. धार्मिक शिक्षा पूरी तरह से धर्म का दुरूपयोग करने को प्रोहित्साहित कर रही थी; स्वंम धर्म के सबसे बड़े ठेकेदार, आचार्य द्रोण ने एकलव्य, जिसने उनसे शिक्षा तक नहीं ली थी, उससे गुरु-दक्षिणा मांग कर और गुरु-दक्षिणा में उसका अंगूठा मांग कर समस्त शक्तिशाली लोगो को यह सन्देश दिया की उचित मूल्य पर धर्म का दुरूपयोग किसी हद तक करा जा सकता हैं | और स्वंम श्री कृष्ण ने कहा है की जब धर्म की हानि होती है, वे अवतरित होते हैं, और विश्व के पूरे इतिहास में अवतरित इश्वर ने यदि किसी व्यक्ति को गन्दी मौत दी है तो वे है आचार्य द्रोण, और इसमें पूरा साथ श्री कृष्ण का दिया, धर्मराज युधिष्टिर ने !
सनातन धर्म प्राकृतिक विकास पर आस्था रखता है, ना की सर्जन पर | दोनों की सोच में अंतर है |
एक में पलक झपकते ही सब कुछ हो जाता है और दुसरे मैं स्वंम श्री विष्णु हज़ारो साल तक युद्ध करके मधु और कैटम्भ को परास्त नहीं कर पाते !
तो यह वाक्य “श्री कृष्ण ने अस्त्र नहीं उठाए, वर्ना युद्ध एक दिन में ही समाप्त हो जाता, पूरी तरह से गलत है|”
नहीं, श्री कृष्ण श्रृष्टि को सकारात्मक दिशा देने आए थे, लकिन मानव जन्म की मर्यादाओं में रह कर, वे अलोकिक शक्ति का प्रयोग तो कर नहीं सकते थे | समस्या इतनी अधिक थी की समय समाप्त हो चला, और महाभारत युद्ध के उपरान्त समाज नियंत्रित तक नहीं हो पाया| मानव समाज पतन की और बढ़ता गया, जिसका सम्पूर्ण विवरण इतिहास में भी उपलब्ध है | उस समय एक धोका हुआ; संस्कृत विद्वानों और धर्मगुरुजनो ने कुटिल और अधर्मी आचार्य द्रोण को वेद-ज्ञाता बताना शुरू कर दिया, और धर्म में उलट फेर करके समाज को गुलाम बना कर रखने का कार्यकर्म बना लिया, जो आज तक चल रहा है |
अब आगे समाज मैं सुधार कैसे हो, यह आप के हाथ में है! जय श्री कृष्ण !!
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