फिर से: आधुनिकरण और फैशन तो विकास के साथ साथ आता ही है, लकिन वोह अश्लील नहीं होना चाहीये, तथा परिवार मैं आपसी सहयोग, प्रेम दिखाने का नहीं वास्तविक होना चाहीये |
कुल मिला कर समाज अपनी दिशा बदल रहा है, जिसमें गुलामी के समय ठहराव था; जो की अब शिक्षा, विश्व भर से सूचना, विकास और आधुनिकरण के कारण बदल रहा है|
अब समस्या यह है की दोशार्पण की आदत हमें संस्कार और विरासत में मिली है, जिसे हमलोग छोड़ना नहीं चाहते | इसका समाधान भी कोइ नहीं है, सिर्फ और सिर्फ अपने आपको बदलने के अतिरिक्त |
पहले यह अच्छी तरह से समझ लें की ठहराव गुलामी के कारण था, जिसमें विकास नहीं हुआ | विकास के साथ साथ आप पूरी दुनिया से जुड़ें भी हैं , विश्व भर की सूचना का आदान प्रदान हो रहा है, और हमारी संस्कृति ही बताती है की विकास के साथ सदेव आधुनिकरण हुआ है, समाज में महिलाओ और पुरुषो के चरित्रों पर प्रश्न उठे हैं, या दवाब पड़ा है |
पुराणिक इतिहास जो की केवल हिन्दू समाज की धरोहर है, जिसका उद्धारण दे कर हम युवा पीढी को झूट बोल कर धमकाते हैं; वही पुराणिक इतिहास प्राचीन समय में विकास के साथ समाज में महिलाओ और पुरुषो के चरित्रों पर प्रश्न जो बार बार उठे हैं, या दवाब पर भी प्रकाश डालता है |
शायद मैं, जो आज हमसब झूट बोलते हैं, उसपर पर्दा डालने का प्रयास कर रहा हूँ, क्यूंकि पुराणिक इतिहास महिलाओ और पुरुषो के चरित्रों पर प्रश्न जो बार बार उठे हैं, या दवाब पर मात्र प्रकाश नहीं डालता, पूरी की पूरी सूर्य की रौशनी से उनको निहला दे रहा है, ताकि बुरे से बुरा व्यक्ति झूट न बोल सके की विकास के साथ आधुनिकरण और चरित्र हनन नहीं होता है |
लकिन हमारे संस्कृत विद्वान और धर्मगुरूओ ने सिर्फ झूट बोला है, और वोह आदत अब समाज की भी हो गयी है |
हमारी आदत पड़ गयी है की युवा पीढ़ी के सामने झूटे आदर्शो की बात करना और संस्कृति का हवाला दे कर बेशर्मी से झूट बोलना |
सत्य तो यह है की पुराणिक इतिहास में किसी भी पुराण को उठा लीजिये, ऋषि, महाऋषि, उनके चरित्र के हनन से भरा पडा है | जैसा की मैंने पहले कहा है, गलत से गलत समाज भी इतना झूट नहीं बोल सकता जितना की में और मेरा समाज बोल लेता है | में इस तथ्य का और विस्तार भी कर सकता हूँ, लकिन इस सत्य का विस्तार करने से कडवाहट और बढ़ेगी , क्यूंकि हमसब को झूट के सहारे जीने की आदत पड़ गयी है, इसलिए उससे कोइ लाभ नहीं है |
लकिन तबभी संशिप्त में उसका उल्लेख इस पोस्ट की मांग है, इसलिए कर रहा हूँ |
त्रेता युग में तो एक प्रमुख समस्या स्त्रियों का शोषण था | गौतन ऋषि ने अपनी पत्नी को मार ही डाला, गौतम ऋषि की पुत्री अनजानी महाराज केसरी को चाहने लगी, गर्भवती हो गयी, और माता अनजानी को पहाडो में रहने के लिए भेज दिया | स्वंम विष्णु अवतार परशुराम के पिता चाहते थे की उनकी पत्नी का वध उनके पुत्र करदे | परन्तु विकास आज से ज्यादा था, माता सीता शिव धनुष(WEAPON OF MASS DESTRUCTION) का आधिकारिक रूप से देखरेख कर रही थी | परशुराम ने २१ बार युद्ध करा राज्यों को जीतने के लिए नहीं, सैनिको को मारने के लिए, जो बिना शादी करे अनेक स्त्रियों को रख रहे थे |
पढ़ें: राम से पूर्व... धर्म का उपयोग स्त्री जाती के शोषण के लिये
द्वापर युग के बारे में तो क्या कहा जाय ? उस समय तो विकास बहुत ही अधिक था | भरी राज्य सभा में पितामह और बड़े पिता के आगे बहु के वस्त्र उतारने का प्रयास हुआ | जो अपनी पत्नी को जुए में लगा रहे थे, और जो जुए में जीतना चाहते थे, भाई थे | उस समय एक स्त्री अनेक पति रखती थी, जिसका प्रमाण है अतिसंवेदनशील समय में यानि की अज्ञातवास में द्रौपदी का निर्णय की वोह सबको यह बताएगी की उसके पांच पति हैं |
समाज से एक विनती है, कम से कम सनातन के इस सत्य को तो मान लो; विकास और आधुनिकरण एक ही सिक्के के दो पहलु हैं, उनको अलग नहीं करा जा सकता |
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