इस प्रश्न का संतोष-जनक उत्तर अभी तक किसी ने भी नहीं दिया, और उसके कारण भी हैं| सनातन धर्म के एक वर्ग ने मनुस्मृति को बहुत महत्वता दी होई है, जबकी अनेक विशेषज्ञों का मत है कि क्यूंकि मनुस्मृति जात और जाति समीकरण को बढ़ावा देती है, इसे समाप्त कर देना चाहिए |
दूसरा प्रमुख कारण यह भी है कि हिन्दू समाज मैं कोइ केंद्रीय समिति नहीं है, जो महत्वपूर्ण विषयों पर निर्णय ले सके|
मैं मिल जाएगा, जहाँ सनातन धर्म से सम्बंधित ग्रंथो से सारांश ले कर यह पोस्ट लिखी गयी है, और बहुत सराही भी गयी है | पढेंगे तो आपको समझ मैं आ जाएगा की हर बार जब पृथ्वी जल मग्न होती है, एक नया मनु ही बाढ़ से पहले के कुछ लोगो को बाढ़ के बाद की पृथ्वी तक ले जाने मैं सफल होते हैं, तथा यह मनुस्मृति लिखी क्यूँ गयी? फिर भी कुछ अंश उस पोस्ट से प्रस्तुत हैं |
‘अब कुछ लोग भोजन के आभाव में मनुष्यों को मार कर उनका मांस खाने लगे थे! उनको राक्षस कहा जाने लगा ! उनसे भी बचने का एक ही विकल्प था कि समुन्द्र में ही रहा जाय ! समुन्द्र में अन्य मित्र जहाजों के साथ वोह ज्यादा सुरक्षित थे ! इश्वर की कृपया कहीये, या प्रकृति का स्वरुप, भारत उपमहाद्वीप जो कि अब जल मग्न था, सिर्फ वहीं पर मछली उपलब्ध थी ! सारे समुन्द्री जहाज़ वहीं पर विचर रहे थे!
इसी संधर्भ में मत्स्य अवतार का अर्थ समझ में आता है !’
‘इतने लंबे समय कठोर परिस्थीतिओं में जीवित रहने के लिये नियम भी बनाए गए ! कठोर परिस्थीतिओं में जीवित रहने के लिये नियम और सामाजिक न्याय के परिपेक्ष में जो नियम बनते हैं उनमें अंतर होता है !
‘समुन्द्र में रहते होए कुछ लोग अपराध करते होए पकडे जाते थे, उन्हे मारने या कोइ अन्य दंड देने से अच्छा था कि जो काम कोइ नहीं करता था, दंड स्वरुप वोह कार्य इन दण्डित लोगो से करवाया जाय ! उनको शुद्र कहा जाने लगा !
‘इन्ही कठोर परिस्थीतिओं ने अन्य जाती भी उत्पन करी, तथा इन्ही कठोर परिस्थीतिओं के कारण यह जाती जन्म जाती भी बन गयी ! इसी परिपेक्ष में मनु स्मृति समझ में आती है !
‘वास्तव में मनु स्मृति उस लंबे और कठोर परिस्थीतिओं में जीवित रहने के लिये बनाए गए नियम थे ! उनका आज के सामाजिक न्याय के जीवन में कोइ अर्थ नहीं है ! वैसे भी स्मृति का अर्थ होता है LOG BOOK.; समुन्द्र में रहने के लिये बनाए गए नियमों को LOG BOOK ही कहा जाता है, अर्थात स्मृति, ना कि धार्मिक ग्रन्थ ! विशेष परिस्तिथी समाप्त होने पर स्मृति अर्थहीन होजानी चाहीये थी, लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि इस कठोर यात्रा के सफल यात्री में अन्य गुण के अतरिक्त अवसरवादी होना भी आवश्यक था ! ऐसी यात्रा वही सफलता पूर्वक कर सकता था जिसमें हर स्तिथि में जीवित रहने के गुण हों ! इसलिये संभवतः निजी स्वार्थ हेतु, जाती और मनुस्मृति समाप्त नहीं हो पाई!’
फिर से समझ लीजिये;
मनुस्मृति जब पृत्वी जलमग्न हो जाती है, तो चुकी दुनिया भर से समुंद्री जहाज इस विपदा से बचने के लिए निकलते है, इसलिए इस बेड़े के नायक को मनु कहा जाता है,
क्यूँकी ‘आवश्यक है कि आप समझ सकें कि मनु शब्द का प्रयोग क्यूँ करा गया है ! मनु, मानव, मेंन, मादा, मनिटो, आदि अनेक शब्द विभिन् भाषा में प्रयोग करे जाते है, मनुष्य के लिये ! चुकी विश्व भर से समुन्द्री जहाज़ निकले थे तो हर युग के वासियों को समझाने के लिये इससे उत्तम और कुछ नहीं था, कि जहाज़ के बेडे का नायक मनु था !’
हाँ एक प्रश्न है जिसका उत्तर आप से चाहिए | प्रश्न यह है :
उपर आपको बताया गया है कि मनुस्मृति किस परिस्थिति मैं लिखी गयी है, अब प्रश्न;
अगर सनातन धर्म समाजिक न्याय को प्रमुख धर्म मानता है तो शुद्र की संतान शुद्र कैसे हो सकती है ? यह तो घोर अन्याय है, जो सूचना के अभाव मैं तो हो रहा था, लकिन आगे हम सबको इसका विरोध करना होगा !
कितने कष्ट वाली बात है कि एक बच्चा पैदा होता है, और उसे उसके माता पिता की जात के कारण हीन भाव से देखा जाने लगे; समुन्द्र मैं काम करने वालो का आभाव था,
उस समय इस तरह के नियम बन सकते थे, लकिन अब तो इन्हें समाप्त करना ही होगा |
प्रश्न यह भी आता है कि जब मानव फिर से पृथ्वी पर रहने लगा तो इसे समाप्त क्यूँ नहीं करा गया?
उत्तर बहुत आसान है; क्या धर्म है, और क्या धर्म होना चाहिए, यह निश्चय समाज के शक्तिशाली लोग धर्मगुरुजानो के साथ बनाते है, और यही कारण है की धर्म का सही स्वरुप समाज के सामने नहीं आ पाता; पृत्वी पर अधिकाँश समय धर्म का उपयोग समाज के शोषण मैं सहायता के लिए ही करा गया है, इसीलिए अवतार आते हैं |
जय सियाराम ! जय राधा कृष्ण !!
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