यह पोस्ट गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के अंदर महाभारत से पहले से जो दोष आ गए, और जो आज तक हैं, उनको ना सुधार कर गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को बिना दोष मुक्त करे अच्छा बताए जाने का विरोध करती है|
पोस्ट लिखते हुए अत्यंत कष्ट हो रहा है, क्यूंकि इससे पहले दो पोस्ट शिक्षा पर लिख चूका हूँ, जिसमें भौतिक तथ्यों के आधार पर यह प्रमाणित हो चुका है कि गुरुकुल शिक्षा प्रणाली से भारत नष्ट हुआ, गुलाम बना,
लकिन
एक ख़ास वर्ग यह अनुभव करने लगता है कि उसको समाज को भौतिक तत्यों से जो सत्य सामने आ रहा है, उसको नक्कारना है, समाज के सामने सत्य को नहीं आने देना है, और यहीं से समस्या बढ़ जाती है !
इस समाज को यह तो समझना होगा कि कोइ भी तथ्य छिपाया नहीं जा सकता , आज सूचना युग है, सबकुछ सामने आएगा ही |
समस्या यह भी है कि लोग अब सारे निर्णय भावनात्मक दृष्टिकोण से ले रहे हैं, जिसके लिए संस्कृत विद्वानों और धर्म गुरुजनों ने समाज को गुलाम रखने के लिए पूरी महनत करी है , सफल भी रहे है, आज़ादी के बाद की सरकारो ने इनकी, समाज को गुलाम बना कर रखने के प्रयासों की सहायता भी करी है | यह एक शर्मनाक परन्तु गंभीर विषय है, कैसे हुआ, इसपर जांच होनी चाहीये |
पहले तो यह समझ लें कि कौन सी शिक्षा अच्छी है, और कौन सी खराब, इसपर निर्णय आप इतिहासिक तथ्यों के आधार पर कैसे लेंगे |
बहुत कठिन बात नहीं कही जा रही है, जो समझ मैं ना आए ! उत्तर कोइ भी आज का नौजवान आसानी से दे सकता है; यदि उस शिक्षा के प्रयोग से देश और समाज उनत्ती करता गया तो आपको एक सकारात्मक बिंदु तो मिल गया| हाँ, यदि उस शिक्षा से समाज और देश के टुकड़े होते गए, समाज गुलाम होता गया तो यह एक नकारात्मक बिंदु है, अब आपको उस समय की शिक्षा प्रणाली का और गंभीरता से अध्यन करना होगा |
यह भी समझ लें की भावनात्मक बाते होती हैं, तथ्य नहीं; जिनका आधार मात्र भावना होता है |
गुरुकुल शिक्षा प्रणाली मैं महाभारत से पूर्व ही दोष आ गया था, और इसका सबसे बड़ा प्रमाण है आचार्य द्रोण, जिनके घृणित कारनामो के कारण श्री कृष्ण ने यह उचित समझा कि निहत्ते द्रोण को युद्धभूमि में ही मरवा दिया जाए| ध्यान रहे निहत्ते द्रोण, जो की युधिष्टिर के गुरु थे, उनको बंदी भी बनाया जा सकता था, लकिन कृष्ण ने ऐसा नहीं करा| और श्री कृष्ण इश्वर अवतार थे जो धर्म की स्थापना करने और अधर्मियों को दण्डित करने के लिए आए थे |
कष्ट इस बात का है कि कोइ धर्मगुरु इस विषय पर चर्चा नहीं करता; उल्टा श्री कृष्ण को बदनाम करने के लिए उनके निर्णय पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं|पढ़ें: द्रोणाचार्य वध...गुरु शिष्य परंपरा पर श्री कृष्ण का एक प्रहार
सारे प्रमाण यह बताते हैं कि महाभारत के समय सनातन अकेला धर्म था, और विश्व इसी धर्म को मानता था |सोलाह कलाओं के साथ अवतरित श्री कृष्ण उस समय की सारी जटिल समस्याओं के साथ झूझें, मुख्य समस्याओं का समाधान भी करा , लकिन यह सब करते हुए समाज युद्ध के कारण अत्यन कमजोर हो गया, आगे सुधार संभव नहीं रहा| स्वम द्वारिका मैं यादवो के युद्ध उपरान्त लूट मार करी, जिसे रोका नहीं जा सका|श्री कृष्ण, श्री राम की तरह कृष्ण राज्य की स्थापना नहीं कर पाए|
रामराज्य एक प्रमाणपत्र है कि राम पूरी तरह उस समय की सामाजिक समस्याओं का समाधान कर पाय थे | श्री कृष्ण ऐसा नहीं कर पाए, गुरुकुल शिक्षा प्रणाली पर द्रोणवध श्री कृष्ण का प्रमुख प्रहार था| द्रोण उन सबके गुरु थे, जो भरी राज्य सभा मैं राज्य की बड़ी बहु को दांव पर लगा रहे थे, या जुए मैं जीतना चाहते थे, तथा जिन्होंने द्रौपदी को अपमानित करा|
महाभारत के बाद समाज बिखरता गया टूटता गया, जबकी वोह अत्यंत विकसित समाज था, और शिक्षा गुरुकुल थी | पहले यहूदी धर्म बना, फिर इसाई और फिर इस्लाम |भारत मैं बुद्ध ने कुछ संभालने का प्रयास करा तो गुरुकुल शिक्षा के प्रमुखों ने उन्हें अलग कर दिया | चाणक्य ने विश्व मैं पहली बार राष्ट्रीयता का नारा दिया, सफल भी हुए, लकिन उनके बाद, इन्ही गुरुकुल के आचार्यो ने उनको भी दफना दिया |
भारत पर बाहरी हमले बढ़ते गए, लुटता राह बिखरता रहा, इस गुरुकुल शिक्षा प्रणाली मैं|
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