Wednesday, January 18, 2012

अवतार व भगवान और हिंदू समाज की प्रगति

आजादी के बाद हिंदू समाज की स्तिथि बिगड़ी है, और गुरुजनों की आर्थिक और अन्य स्तिथि में आश्चर्यजनक सुधार हूआ है| साफ़ है कि गलत धर्म बताया जा रहा है; अन्य कारण भी हैं जो इस निश्कर्ष को बल देते हैं
ईश्वर की मनुष्य रूप में या अन्य प्राणी के रूप में उत्पत्ति को अवतार कहा जाता है ! उद्देश श्रृष्टि को उस समय के घोर संकट से निकालने का होता है|लेकिन अवतार को लेकर विवाद भी हैं, कुछ हिंदू अवतार को मानते हैं, कुछ नहीं| अवतार को लेकर विवाद इस लीये भी है क्यूंकि कोइ निश्चित परिभाषा अवतार कि नहीं है |

चुकी परिभाषा हर युग के समाज के लीये प्रगतिशील होनी है, इसलिए अवतार के पास अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति होने कि कोइ संभावना नहीं है ! 

इस संधर्ब में, त्रेता युग के विज्ञान का उल्लेख करना चाहता हूं, जब विमान तक थे, लेकिन आज के सूचना युग में हमें उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है, क्यूँकी अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति की मिथ्या चादर बना कर उस विज्ञान को ढक दिया गया है !

और आज के गुरुजन ज्ञान और समाज हित व्यवाहर के अभाव में मिथ्या कि चादर उतारने के लीये तैयार नहीं हैं ! इसके कारण हिंदू समाज का नुक्सान ही नुक्सान होरहा है !

ध्यान रहे ऐसे अनेक समय हर युग में आये हैं जब अलोकिक और चमत्कारिक शक्ति की मिथ्या चादर के सहारे ही विज्ञान को उस समय के समाज को समझाया जा सकता था; और तो और १०० वर्ष पूर्व तक भारत में भी इस मिथ्या चादर ही एक मात्र साधन था त्रेता युग के विज्ञान को समझाने का, लेकिन आज तो यह अधर्म है और सामाजिक अपराध भी !

यह सत्य है कि ईश्वर सर्व शक्तिमान है, फिर क्या कारण है कि वोह अपनी शक्तियों पर अंकुश लगाता है, अवतार बन कर ? कोइ तो ऐसा व्याख्य होनी चाहीये जिससे उत्तर विवाद रहित हो !
धर्म शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया गया है कि अवतार जो उद्धारण प्रस्तुत करते हैं उसे दूसरा वेद मानना चाहीये ! क्या अर्थ हूआ इसका ?

विवाद रहित उत्तर भी हमें पुराणों में ही मिलेगा ! किसी भी पुराण को उठा लिजीये, एक बात हर पुराण में अवश्य मिलेगी, और वोह है कि प्राचीन काल में देवताओं का अभ्रद व्यवाहर तथा महान ऋषि, धार्मिक गुरु जनों का अधार्मिक कार्य ! भरे पड़े हैं समस्त पुराण इन कारनामो से ! उद्धारण: देवता, पृथ्वीवासीयो को कर्म का उचित फल ना मिले, उसके लीये अप्सराओं तक को तप भंग करने के लीये भेजना, मौकापरस्थ व्यवाहर, तथा छल ! और महान गुरु जनों की तो बात ही और है, उनके कुछ उद्धारण के लीये पढ़ें : राम से पूर्व... धर्म का उपयोग स्त्री जाती के शोषण के लिये

अफ़सोस यह है कि ये सब प्रसंग पुराण में आए क्यूँ यह कोइ बताने के लीये तैयार नहीं है ! स्थिति स्पष्ट है, यह सब प्रसंग सिर्फ एक सन्देश देते हैं कि धर्म को लेकर अवसरवाद, श्रोषण होता रहा है, तथा उससे बचा नहीं जा सकता ! एक ही विकल्प है , आप समाज को केंद्रबिंदु बना कर आगे बढ़े ! इसी संधर्भ में दुसरे वेद की बात भी समझ में आती है !

आप गहराई से सोचेंगे तो आपको यह बात समझ में आ जायेगी कि ऐसे अनेक समय आयेंगे जब गलत धर्म समाज को बताया जाएगा | प्रश्न यह उठता है कि क्या मापदंड हैं यह समझने के लीये कि गलत धर्म बताया जा रहा है ?

उत्तर बहुत साधारण है ! समाज में धर्म का प्रचार उसकी उनत्ती के लीये है ! यदी समाज कि प्रगति नहीं हो रही है, तो वेदिक धर्म के प्रचार में त्रुटियाँ हैं ! चुकी धर्म का प्रचार धर्मगुरु करते हैं, त्रुटियों को सही करना आसान नहीं है, समय लगेगा; इसलिए उस समय दुसरे वेद का प्रयोग व्यापक रूप से होना चाहीये !

अब आजादी के ६४ वर्ष के बाद कि स्थिति का आकलन करते हैं !आज यह सुलभ भी है क्यूँकी समस्त प्रमाणित आकडे नेट पर उपलभ्ध हैं ! ६४ वर्षों में हिंदू समाज की स्तिथि बिगड़ी है, और आश्चर्य कि बात यह है कि गुरुजनों की आर्थिक और अन्य स्तिथि में आश्चर्यजनक सुधार हूआ है ! साफ़ दिखाई दे रहा है कि गलत धर्म बताया जा रहा है ! अन्य बहुत से कारण हैं जो इस निश्कर्ष को बल देते हैं !

निर्णय आपको लेना है, क्यूँकी हिंदू समाज तो कभी जागता नहीं है ! वोह निंद्रा में ही दुबारा गुलामी में चला जाएगा ! लाभ कि बात यह है कि रामायण और महाभारत दोनों टीवी के माध्यम से अत्यंत लोकप्रिय हैं , तथा हिंदू समाज को आज उसे इतिहास मान कर समझना आसान है, सिर्फ मिथ्या कि चादर हटानी है और दुसरे वेद से धर्म उपयोगी प्रसंग तत्काल शुरू हो सकते हैं ! समस्या है तो इस बात कि; इस विषय पर व्यापक चर्चा; क्या आप तैयार हैं इसके लीये ?
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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.