Friday, October 28, 2011

हिंदू आजादी के बाद भी घुट घुट कर जी रहा है

"अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं, सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं"
HINDUS IN INDIA ARE BEING SUFFOCATED~~ अगर आज भी हिंदू घुट घुट कर जी रहा है तो क्या उसकी कर्महीनता कम हो सकती है ? यह प्रश्न अब बहुत महत्वपूर्ण हो गया है क्यूँकी हम अब दुबारा गुलामी की तरफ बढ़ रहें हैं |कर्महीन ज़रूर हैं लेकिन अपनी आने वाली पीढ़ी को गुलाम नहीं होने देंगे
1000 वर्ष की गुलामी के बाद हमें आज़ादी मिली और आजादी के ६४ वर्ष पूरे हो चुकें हैं | वक्त आ गया है कि समीक्षा करी जाए कि हिंदू समाज इन ६४ वर्षों मैं कहाँ पहूँचा; तथा हमने क्या पाया और क्या खोया |
निम्लिखित तथ्य आप सबको भी मालूम है फिर भी एक बार गौर फर्मा लें :
1. पहले भ्रष्टाचार लाखों मैं होता था, फिर करोडों मैं पहूँचा, फिर सैंकडों करोड़, फिर हज़ार करोड़ मैं, और अब लाखों करोड़ मैं |
2. सज़ा आज तक किसी भ्रष्ट नेता/बड़े आदमी की नहीं होई, हाँ आम आदमी की परेशानेयाँ जरूर बढ रही हैं |
3. चुकी हर व्यक्ती के लिये धर्म का केंद्र बिंदु उसका घर है, और ना कि गुरु का आश्रम, पहले पंडित आ कर छोटी मोटी पूजा घर मैं करवा दिया करता था, इससे उसका भी गुजारा चलता था |घर मैं एक अजीब तरह की पवित्रता का हर वक्त अहसास होता था| अब उसका स्थान गुरु ने ले लिया है | लोग गुरु के आश्रम पर जा कर सेवा करते हैं और गुरु भी उसे यह सच कभी नहीं बताता कि धर्म का केंद्र हर व्यक्ती का घर है, न की गुरु का आश्रम|
4. आजादी की खुशी धीरे धीरे इस कड़वी सचाई मैं बदल गयी कि आज़ाद भारत के नेता हमें धर्म और जाती के नाम पर बाट कर हम पर राज करना चाहतें हैं | और यह राज्य प्रजातंत्र के नाम से चल रहा है, जिसमें भारत की आम जनता पिस रही है |
5. ६४ वर्ष की एक शर्मनाक उपल्भ्धी यह है की भ्रस्टाचार तो जबरदस्त रफ़्तार से बढा ही है, गरीबों की संख्या भी बढ़ गयी है |6. एक और आंकड्रा यह है की इधर हिंदू जनता मैं गरीबी बढ़ी है, लेकिन हिंदू जनता का धर्म मैं खर्चा जबरदस्त बढ़ा है | उधर हिंदू धर्म गुरुओं की आर्थिक, राजनीतिक स्थिती मैं जबर्दस्त सुधार हूआ है |
6. यदी केवल आंकडो से ही देखना है तो हिंदू धार्मिक नेता इस समय धन दौलत के हिसाब मैं पूरे हिन्दुस्तान मैं द्वित्य नंबर पर आतें है, तथा भारत के उद्योगिक घराने पहले नंबर पर |
7. ६४ साल बाद पूरा हिन्दुस्तान शिक्षित नहीं हो पाया है, गावों मैं सड़क,बिजली, स्वास्थ सम्बंधित कोइ सुविधा नहीं हैं |
8. दहेज के नाम पर अभी भी स्त्रियुओं पर दुर्व्यावाहर हो रहा है |
9. जिस देश के धार्मिक गुरुजनों के पास, धन और शक्ती दोनों ही उपलभ्ध हैं, उस देश मैं नवजात कन्या शिशु को गर्भ मैं मार दिया जाता है | गुरुजन धन कैसे कमाया जाए, यह तो जानते हैं लेकिन समाज के अंदर जो कमी है उससे निबटने का कोइ प्रयास नहीं कर पा रहे हैं|
10. आप कष्टों को ले कर रोते रहेंगें, लेकिन आपका रोना समाप्त नहीं होगा| समस्यां अनेक हैं और गंभीर भी हैं |
कुछ और शर्मनाक तथ्य :-
1)वोट बैंक राजनीती के चलते, सरकार, हिंदुओं को और हिंदू संगठनो को आंतंकवाद से जोड़ने मैं भी नहीं सकुचाती|
2)ऐसे अवसर भी आये हैं की ऐसा लगता है की केंद्र मंत्रालय पाकिस्तान और पकिस्तान आंतकवाद के साथ खड़ा है, दोनों परस्पर एक दुसरे को बधाई देते हुए दीखते हैं, और उसका परिणाम यह होता है की आंतकवाद गतिविधी बढ़ जाती हैं, और निर्दोष भारतीय इसके शिकार होते हैं|
अगर आज भी हिंदू घुट घुट कर जी रहा है तो क्या उसकी कर्महीनता कम हो सकती है ? क्या कर रहे हैं हमारे धर्म गुरु ?

यह प्रश्न अब बहुत महत्वपूर्ण हो गया है क्यूँकी हम अब दुबारा गुलामी की तरफ बढ़ रहें हैं |

कृपया कुछ समय इस गंभीर विषय पर नियमित तोर से दीजिये; यह आप, तथा आप की आने वाली पीढ़ी के लिये जरूरी है |

ध्यान रहे जब १००० वर्ष तक भारत गुलाम था उस समय सुचना का भी अभाव था तथा छोटे छोटे राजाओं की हुकूमत चलती थी|ऐसे मैं हमारे उस समय के पूर्वज्य कुछ नहीं कर पाये थे | लेकिन हम क्यूँ नहीं कुछ का पा रहे है, यह सोचने का विषय है, जिसका समाधान हमें निकालना ही पडेगा |
कर्महीन ज़रूर हैं लेकिन अपनी आने वाली पीढ़ी को गुलाम नहीं होने देंगे |अपनी कर्महीनता से भी लडेंगे ताकी आने वाली पीढ़ी आज़ाद हिन्दुस्तान की खुली हवा मैं सुख से रह सके |

कृपया पढ़ें :
You may also like to read:

No comments :

ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.