Wednesday, October 1, 2014

एक ऐसा शब्द जिसका पूरा दुरूपयोग हो रहा है, अध्यात्म और अध्यात्मिक

हिन्दू धर्म में यदि कभी कोइ गलती से ऐसा प्रश्न पूछ ले जिसमे धर्मगुरु असमंजस्य में आ जाय, उत्तर ना मालूम हो, तो बहुत सहज तरीका है, अध्यात्म की बात शुरू कर दीजिये, बस धर्मगुरु का काम बन जाएगा, प्रश्न पूछने वाला धर्मगुरु महाराज के गूढ़ ज्ञान की तारीफ करेगा, और अपनी कर्महीनता को छिपा कर ध्यान मग्न मुद्रा में बार बार सर हिलाएगा, यह बताने के लिए कि अब उसे सब समझ में आ रहा है, और धर्मगुरु भी अध्यात्म और अध्यात्मिक शब्द का प्रयोग करके अपने ज्ञान का सिक्का मनवा लेंगे |
आप चाहे तो इस फोर्मुले को स्वंम अजमा सकते हैं | 

धर्मज्ञाता और ज्ञानी बनने और दिखने के लिए ‘अध्यात्म और अध्यात्मिक’ शब्द अति आवश्यक हैं | थोडा सा प्रयास करें, इन शब्दों को सही समय सही प्रयोग आपको आ जाएगा |

‘अध्यात्म और अध्यात्मिक’ शब्द के दुरूपयोग के बिना आप समाज का पूरी तरह से शोषण नहीं कर सकते, उसको सनातन धर्म कितना गूढ़ है, यह आभास भी नहीं दिला सकते|
वास्तव में सनातन धर्म बहुत आसान है, कोइ गूढता नहीं है, तथा इस विषय पर अनेक पोस्ट ब्लॉग मैं उपलब्ध हैं, इसलिए इस विषय पर इस पोस्ट पर बात नहीं होनी है|
रही अध्यात्मिक व्यक्ति की परिभाषा, यह भी ब्लॉग मैं उपलब्ध है, परन्तु यह पोस्ट की आवश्यकता इसलिए समझी गयी ताकी समाज तक इस विषय पर पूर्ण सूचना पहुच जाए | अध्यात्मिक व्यक्ति की परिभाषा भी यहाँ पर देदी जायेगी | परन्तु पहले साधारण भाषा मैं यह समझ लीजिये की ‘अध्यात्म और अध्यात्मिक’ क्या है |
संसार सांसारिक नियमो से ही चलता है, और ‘अध्यात्म और अध्यात्मिक’ उससे हट कर है | संसार मैं यह आवश्यक नियम है कि आपको हर काम का उचित परिश्रम शुल्क चाहिये; आप किसीसे काम करवाते हैं, तो उसे बदले मैं उचित धनराशी देते हैं, जो उस काम के लिए उस छेत्र मैं पर्याप्त आर्थिक प्रतिफल है, और इसी प्रकार आपको भी धन मिलता है, और इन्ही नियमो के तहत संसार चलता है | धार्मिक व्यक्ति उसको स्वीकार करता है, और यह आपको धार्मिक व्यक्ति की परिभाषा से विदित हो जाएगा|
परन्तु अध्यात्म और अध्यात्मिक इन सब सांसारिक नियमो को नहीं मानता, वोह संसार को कुछ देना के लिए इन सांसारिक नियमो को तोडता है, तथा सांसारिक नियम तोड़ने से जो कष्ट झेलने पड़ेंगे, इसको भी वोह स्वीकार करता है | अब आप बताएं जो व्यक्ति आपको अध्यात्मिक अनुभव बता रहा है वोह आपको ‘कष्ट झेलता हुआ’ लग रहा है? नहीं वोह भी इस संसार मैं सुख ढून्ढ रहा है |

प्राय आपको अध्यात्म के बारे मैं गरुए वस्त्र पहने हुए लोग ही बताएंगे; परन्तु साधू संत ही गरुए वस्त्र पहनते हैं, और ऐसी मान्यता है की ऐसे लोगो ने भौतिक सांसारिक सुख त्याग दिए हैं, फिर वे अध्यात्म की बात कैसे कर सकते हैं? 

वे तो अध्यात्म से भी उपर निकल गए हैं, साधू संत है, फिर समाज मैं पकड़ बनाने के लिए अद्यात्म का सहारा क्यूँ ? और फिर यह भी गलत बताना पड़ता है की अध्यात्म का भौतिकता से कोइ सम्बन्ध नहीं है |

जो व्यक्ति भौतिक सांसारिक सुख त्याग चूका है वोह तो सत्यम, शिवम्, सुंदरम की श्रंखला मैं सुंदरम मैं पहुच चूका है, यानी की उच्चतम पर पहुच चूका है | फिर उसे संसार को समझाने के लिए ‘अध्यात्म’ का सहारा क्यूँ लेना पड़ता है, क्षमा करें, इस भौतिक संसार मैं क्या कोइ भी बात बिना भौतिकता के समझना आसान है ?

फिर 'अध्यात्म' क्या है यह कैसे कोइ समझेगा बिना भौतिक बिन्दुओं के?

नीचे अद्यात्मिक व्यक्ति की परिभाषा दी जा रही है, तथा धार्मिक व्यक्ति और साधू की परिभाषा भी दी जा रही है :
अध्यात्मिक व्यक्ति
धार्मिक व्यक्ति व् अध्यात्मिक व्यक्ति मैं अंतर केवल इतना ही है कि जहां धार्मिक व्यक्ति अपने धार्मिक प्रयास से धन अर्जित करता है, आद्यात्मिक व्यक्ति समाज को देनें मैं ज्यादा विश्वास रखता है न कि लेनें मैं! भौतिक संसार मैं यदी कोइ व्यक्ति देनें मैं ज्यादा विष्वास रखता हो न कि लेनें मैं, तो ऐसे व्यक्ति के लिये धन अर्जित करना कठिन हो जाता है! 
उसको जीवन मैं अपने इस अध्यात्म व्यवाहर के कारण अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं, समाज उसे असफल कहता है | परन्तु वोह अपनी ‘समाज को देनें मैं ज्यादा विश्वास रखता है’ वाली आदत सुधार नहीं पाता, वोह कष्ट झेलते हुए, असफल के ताने सुनते हुए, ना कभी साधू कहलाता है, ना ही धार्मिक व्यक्ति, तथा गुमनाम की जिन्दगी बिताता है |

अध्यात्मिक व्यक्ति सत्यम शिवम सुन्दरम जैसी पवित्र शब्दावली मैं शिवम है!


धार्मिक व्यक्ति: 
वह व्यक्ति जो की अपनी उन्नति के लिये, अपने परिवार, तथा अपने पूरे परिवार, तथा जिस समाज, मोहल्लें, या सोसाइटी मैं वो रह रहा है, उसकी उनत्ति के लिये पूरी निष्ठा व् इमानदारी से कार्यरत रहता है वो धार्मिक व्यक्ति है! ऐसा करते हुए वो समाज मैं प्रगती भी कर सकता है व् घन अर्जित भी कर सकता है !

यहाँ यह स्पष्टीकरण आवश्यक है कि निष्ठा व् इमानदारी से कार्यरत रहने का यह भी आवश्यक मापदंड है कि वह व्यक्ति समस्त नकरात्मक सामाजिक बिंदुओं का भौतिक स्थर पर विरोध करेगा , जैसे कि भ्रष्टाचार, कमजोर वर्ग तथा स्त्रीयों पर अत्याचार, पर्यावाह्रण को दूषित करना या नष्ट करना, आदी, ! ऐसा व्यक्ति सत्यम शिवम सुन्दरम जैसी पवित्र शब्दावली मैं सत्यम है!


साधू या संत
यहाँ त्याग पूर्ण है ! ऐसे व्यक्ति ने जीवन के समस्त भौतिक सुख त्याग दिये हैं! उसके जीवन का एक ही लक्ष्य है; वोह की संसार को और अधिक सुन्दर बनाना ; ऐसा व्यक्ति हर जीवन को सुखी बनाना चाहता है ! वोह सत्यम शिवम सुन्दरम जैसी पवित्र शब्दावली मैं सुन्दरम है!

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.