जैसा की अन्य पोस्टो मैं भी बताया गया है, रावण एक कुशल राजनीतिगज्ञ और कूटनीतिज्ञ अवश्य था, लकिन वीरता की उसकी सारी गाथा झूटी हैं, और राम रावण युद्ध के परिणाम को देख कर ऐसा भी लगता है की वोह कुशल सेनापति नहीं था, तथा सैन्य अभियानों के बारे मैं उसके पास कोइ निपुणता भी नहीं थी |
बस रावण को स्वांग रचना आता था, ब्राह्मणों मैं उसका प्रभाव था, अनेक झूटी कथाएँ उसकी शिव की सिद्धी की प्रचिलित थी, तथा चुकी लंका समुन्द्र से घिरा देश था, और यह बात तो सत्य थी की राक्षस मानवो का मॉस खाते थे, इसलिए चुकी रावण एक ब्राह्मण था, और विश्व के ब्राह्मण उसकी प्रसंशा करने मैं कोइ कमी नहीं करते थे, तथा धर्म के ठेकेदार या धर्मगुरु ब्राह्मणों से ही आते हैं, इसलिए कोइ उससे भिड़ता नहीं था|
फिर राज्यों को रावण से लाभ भी था, क्यूंकि परशुराम के व्यापक कठोर प्रयासों के कारण कोइ भी राज्य वानरों का शिकार नहीं कर सकता था, तथा लंका एकमात्र सोत्र था, जहाँ से वानर को जानवरों की तरह खरीदा जा सकता था|
लंका से जानवरों की तरह वानरों का जो व्यापार होता था, वहां से समस्त राज्य वानरों को जानवरों की तरह से खरीदते थे, जिसमें हर राज्य के ब्राह्मण संस्थाओं को उचित धन रावण से मिलती थी, जिसके कारण धर्म संचालोको पर उसका विशेष प्रभाव था, तथा यही कारण था की अग्नि परीक्षा के बाद भी रावण के अयोध्या के भक्तो ने छोटी जाति के लोगो को भड़का कर सीता का त्याग करवाया |
आज भी इस बात के प्रमाण उपलब्ध हैं की अयोध्या के ब्राह्मणों ने राम का राजभिषेक करने से इनकार कर दिया था, तो बनारस से ब्राह्मण बुलाने पड़े और तब से बनारस के ब्राह्मणों को सरयूपारीण कहा जाने लगा, और अयोध्या के ब्राह्मणों को कान्यकुब्ज, तथा आपस मैं आज भी इनमें शादी विवाह नहीं होता, और यह बात पूर्वी उत्तर प्रदेश का कोइ भी ब्राह्मण आपको बता देगा |
पहले तो इस बात को समझ लें की रावण ने अपनी और लंका की युद्धछेत्र की कमजोरी को ध्यान मैं रखते हुए खर-दूषण की तरह युद्ध करके वीर गति को प्राप्त होना स्वीकार नहीं करा |
परन्तु
पूरे विश्व के, जैसा उपर कहा गया है, रावण धर्म के ठेकेदार बने हुए थे,
और
अब चुकी बाज़ी खर-दूषण के वीर गति को प्राप्त होने की कारण उल्टी पड़ गयी, और पूरा विश्व धर्म के ठेकेदार रावण से यह अपेक्षा कर रहा था, तथा कुछ लोग उसे उकसा भी रहे थे, जिसमें, चुकी सूर्पनखा लंका की बेटी थी, लंका की जनता भी शामिल थी, रावण की मजबूरी यह थी की उसे कुछ ना कुछ करना था |
वोह युद्ध नहीं चाहता था, लकिन काम कुछ इस तरह से करना चाहता था की उसकी ख्याति बनी रहे और कुछ बढ़ भी जाए, तथा सूर्पनखा के नाक कान काटने का बदला भी हो जाय | उसे सीता का अपहरण, यह सब कुछ सोच कर ही करा|
सीता के अपहरण के पीछे क्या कारण थे, वोह पोस्ट अलग से उपलब्ध है लिंक दी जा रही है, उसे पढने के बाद इस पोस्ट को पढेंगे तो अधिक और पूर्ण सूचना मिलेगी |पढ़ें: सीता अपहरण के पीछे रावण की कूटनीति
बहराल रावण को पूर्ण विश्वास था कि १३ वर्षो मैं राम की टीम ने वानरों को जो सैन्य प्रसिक्षण दिया था वोह कुछ लाभकारी नहीं था, और बाली-वध के बाद भी राम, जो सेना एकत्रित करके युद्ध करने आ रहे हैं, वोह पर्याप्त नहीं है| संभव है इस गलत धारणा के पीछे रावण का कमजोर या अ-सहयोगी खुफिया विभाग था, जो लंका के असंतुष्टो का साथ दे रहा था|
लंका मैं व्यापक असंतोष रावण के प्रति था, इस बात का प्रमाण तो विभीषण ही हैं, जिसको की हनुमान ने (जब सीता की खोज के लिए लंका पहुचे थे), तुरंत(सीता से मिलने से भी पहले) पूर्व आधारित योजना के अंतर्गत संपर्क किया तथा विभीषण ने लंका छोड़ने से पहले लंका के कुछ महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों को नष्ट करने मैं हनुमान की सहायता करी| हर राजा को यह मालूम होता है की कुछ असंतोष है, लकिन रावण से लोगो को असंतोष बहुत अधिक था, जिसका अनुमान रावण नहीं लगा पाए, तथा उसके प्रमाण भी हैं :
1. रावण ने जब सीता का अपहरण करा तो यह सुनिश्चित कर दिया की युद्ध लंका की भूमि पर ही होगा; प्राय ऐसा देश जब करते हैं जब उन्हें यह विश्वास होता है की या तो दूसरा साहस करेगा नहीं या, और अगर आ भी गया तो बुरी तरह से मार खायेगा | रावण का यह अनुमान पूरी तरह से गलत निकला|
2. इसके उपरान्त भी रावण का सुगमता से श्री राम को रामेश्वरम मैं पुल निर्माण कर लेने देना, गलत सैन्य निर्णय ही कहा जाएगा, जिसका आधार गलत सूचना ही था |
3. रावण ने सीता अपहरण से पहले यह गलत अनुमान लगा लिया कि यदि राम वानरों की सेना के साथ युद्ध करने आते हैं, तो राम बहुत बुरी तरह से हारेंगे ! अब इस विश्लेषण मैं रावण के खुफिया विभाग का कितना हाथ था यह कहना मुश्किल है, लकिन हाथ होता अवश्य है |
4. युद्ध भूमि पर पहुचने के पश्च्यात रावण को पता पड़ता है की कुछ महत्वपूर्ण सैन्य उपकरण युद्ध के लिए तय्यार नहीं है, जिसका प्रमाण है पहले मेघनाथ और फिर रावण का उल्लेख है यज्ञ के लिए युद्ध के बीच मैं बैठना | यज्ञ का अर्थ होता है ‘सामूहिक कठोर प्रयास’’ तो जब आप अलोकिक शक्ति को निकाल देंगे तो आप पायेंगे कि रावण को लंका का पूर्ण समर्थन नहीं था, महत्वपूर्ण सैन्य उपकरण तक तय्यार नहीं थे |
5. ऐसा भी प्रतीत होता हैकि सेना को उचित प्रेरणा युद्ध के लिए नहीं मिल पा रहा था, क्यूँकी पहले दिन भी लंका के कुछ सैनिक युद्ध भूमि छोड़ कर भाग रहे थे|
हलाकि लंका से युद्ध रावण की मृत्यु उपरान्त समाप्त होगया, लकिन स्त्रियों के शोषण के विरुद्ध युद्ध कुछ समय और चला| वानरों को लंका युद्ध के बाद समाज मैं प्रवेश कराना कुछ आसान हो गया, परन्तु धर्मगुरु, समाज मैं उन्हें जो शक्ति मिली थी उसे छोड़ने को तय्यार नहीं थे, राम को सीता का त्याग करना पड़ा लकिन अग्नि परीक्षा को धर्म स्वीकार नहीं करा | समय लगा, ब्राह्मणों को और धर्म गुरुओ को, वापस धर्म के मार्ग पर लाने मैं,...
उसके लिए रामराज्य मैं जाति प्रथा श्री राम को समाप्त करनी पडी, जिसके बिना सामाजिक न्याय संभव नहीं था |
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