Monday, August 19, 2013

कामधेनु, ज्ञान जिससे प्राकृतिक सम्पदा बिना घटाए संसाधन का प्रयोग


पुराणों की माने तो कामधेनु एक गाय है, जो की समुन्द्र-मंथन के समय समुन्द्र से निकली थी, और वोह जितना आवश्यक होता है, या जरुरत होती है, उतना दूध दे सकती है, और कुछ पुराणों के अनुसार पूरा भोजन उपलब्ध करा सकती है | 
पुराण चुकी सांकेतिक भाषा मैं हैं तो, आज के ज्ञान के अनुसार, उसको समझना होगा|क्या अर्थ है कामधेनु का? 
क्या यह सांकेतिक भाषा मैं यह तो नहीं कहा जा रहा की गाय, जो की प्रकृति से जितना लेती है, उससे ज्यादा लौटाती है, कुछ उसी प्रकार का व्यवाहर मानव समाज को करना चाहिए? 
क्या मात्र यह धार्मिक शब्द है? 
या क्या यह एक ज्ञान है, की किस तरह से प्रकृती से उतना ही लिया जाय जिससे की प्राकृतिक सम्पदा क्ष्रीन ना हो ?

समुन्द्र-मंथन एक नए महा-युग का आरम्भ है, या यह भी कह सकते हैं, की एक नई श्रृष्टि का प्रारम्भ है, और जिस तरह से चक्रिये विकास और विशेषकर मानव का जन्म-चक्र(पुनर-जन्म) मानव को मोक्ष की और ले जाता है, लकिन मानव समाज हमेशा प्रलय की और ही अग्रसर होता रहा है, संभव है की यह ज्ञान है की कैसे मानव समाज भी वास्तविक प्रगति कर सकता है| यह भी आवश्यक शिक्षा है, मानव व्यवाहर के लिए, जब उसका आकलन समूह मैं होता है|

सबसे पहले इस बात को समझ लें की कामधेनु नाम की कोइ गाय नहीं है| यह इसलिए भी समझना आवश्यक है, क्यूँकी धर्मगुरु तो समझायेंगे नहीं, और उल्टा विरोध करेंगे की आपको क्या पता उस युग मैं क्या क्या होता था| और मात्र इतना कहने से, या इसपर संस्कृत श्लोक कहने से वे अपनी बात स्थापित कर लेना का प्रयास करते हैं, और हिन्दू समाज विश्व मैं और पीछे हो जाता है| काफी समय से प्रयास कर रहा हूँ, की कम से कम संस्कृत का दुरूपयोग समाप्त हो जाय, चुकी वोह देव-वाणी के नाम से हिन्दू समाज मैं प्रतिष्टित है, लकिन कोइ सफलता नहीं मिल रही है|
मैं यह मान कर चल रहा हूँ, की पाठको को कामधेनु को लेकर विश्वामित्र और महाऋषि वशिष्ट के बीच जो कटु घटना पुराण मैं है, सबको मालूम है, और यह भी, कि किस प्रकार भगवान् परशुराम के पिता के पास भी कामधेनु थी, जिसक वोह ‘सुरभी’ कहते थे, और जिसे राजा सहत्रार्जुन छीन कर अपने राज्य में ले जाना चाहते थे, लकिन परशुराम ने मार्ग मैं बलपूर्वक सुरभी को वापस ले लिया| क्या सुरुभी कामधेनु शास्त्र से सम्बंधित कुशल शिक्षक थी, या शास्त्र?
मेरे विचार से कामधेनु एक शास्त्र है, जो प्राकृतिक साम्प्रदा को बिना क्ष्रीन करे, संसाधन का कैसे प्रयोग करा जाय, उसकी विस्तृत जानकारी देता है| कष्ट इस बाद का है की आज पर्यावरण की रक्षा सम्बंधित शास्त्र विश्व के पास उपलब्ध है, लकिन वोह सफल नहीं है, और हमारा इस सम्बन्ध मैं ज्ञान कही लुप्त पड़ा हुआ है, और विशेष कष्ट का कारण यह है की धर्म-गुरुजानो की अज्ञानता सामने ना आ जाय, तो विश्व इतिहास जो हमारे पास पुराणों मैं उपलब्ध है, उसपर से मिथ्या की चादर तक नहीं हटाई जा रही है|
यह भी संभव है की उस समय अन्य सामाजिक परिस्थितियां, जिनके कारण, श्री विष्णु को अवतरित होना पड़ा, मैं पर्यावरण भी शामिल हो, और चुकी इसका उल्लेख बार बार है, और विकसित समाज मैं इसकी संभावना होती भी है, यह संभावना वास्तविक है, पर मैं अभी इसे ‘अवतार का कारण’ मान के और गतिरोध नहीं उत्पन्न करना चाहता|

आज भी हम कुछ उसी परिस्थिती से गुजर रहे हैं; स्वंम विज्ञानिक ही बताते हैं की हम प्रलय की और अग्रसर हैं, परन्तु सनातन धर्म के अनुसार, अभी पर्याप्त समय शेष है, यह मान लीजिये कम से कम एक लाख वर्ष ! इसका अर्थ यह नहीं हुआ की हम जीवन को और बेह्तर नहीं बनाए, क्यूँकी यदी प्रकृति स्वंम सब समस्याओं का समाधान ढूँढती है, तो वोह बहूत कष्टदायक होता है|


चलिए जीवन की गुणवक्ता से संभंधित वर्तमान परिपेक्ष मैं एक लेख से यह समाप्त करते हैं| पोस्ट:  सत्यम शिवम सुन्दरम से अपने जीवन को समझीये से यह लेख:
“कुछ चर्चा जीवन की गुणवत्ता पर कर ले ! इस शब्दावली को आज का संसार समझ नहीं पा रहा है ! विज्ञान अभी तक भौतिक मापदंड निर्धारित नहीं कर पारहा है कि जीवन की गुणवत्ता क्या होनी चाहिये !
इसे समझने के लिये आज के कुछ मानकों पर विचार करते हैं ! 
विज्ञान कि प्रगत्ति ने जीवन मैं अनेक सुधार करें हैं , यह प्रमाणित सत्य है ! यदी हरेक छेत्र को अलग अलग देखा जाय तो हम पाएंगे कि सब छेत्र मैं सुधार हैं ! 
स्वास्थ, संचार, परिवहन, मैं विशेष प्रगति है !निजी आराम और उपयोगिताओं, मनोरंजन, बुनियादी ढांचे, मैं भी प्रगति है ! 
"और अब अचम्भित कर देने वाला तथ्य !
विज्ञान की सहायता से जहां हर छेत्र मैं प्रगति होई है वही विज्ञानिक जब सम्पूर्ण प्रगति का आकलन करते हैं तो उनका यह मानना है कि २० वर्ष मैं हमें प्रलय समाप्त कर देगी ! कारण विज्ञानिक ही बताते हैं कि इन सब छेत्र मैं प्रगत्ती करने हतु संसाधनों के उपयोग से पर्यावार्हन बुरी तरह से नष्ट हो गया है ! 
हो सकता है कि जीवन की गुणवत्ता की परिभाषा ही हमारी गलत रही हो ? 
शायद पर्यावरण के अनुकूल व्यवहार जो कि हिंदू संस्कृति के अनुसार और युगों मैं होता रहा था वही विकल्प हो?”
संभावना है सामाजिक परिस्थितियां, जिनके कारण श्री विष्णु को अवतरित होना पड़ा, मैं पर्यावरण भी हो, और चुकी कामधेनु का उल्लेख बार बार है, और विकसित समाज मैं इसकी संभावना होती भी है, यह समस्या रही हो

No comments :

ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.