Wednesday, September 25, 2013

ईश्वर शिव ने गले मैं ही विष क्यूँ रखा, नीचे शरीर मैं क्यूँ नहीं जाने दिया ?

सतयुग के आरम्भ मैं समुन्द्र मंथन जब आरम्भ हो जाता है, तो विशेष विष जो स्थिर समुन्द्र मैं बना था, वोह बाहर निकल आता है, और उस विष से पूरी पृथ्वी लोक नष्ट होने की संभावना हो जाती है, तब ईश्वर शिव उस विष को ग्रहण कर अपने गले मैं रख लेते हैं| संकेत मैं मानव को क्या बताने का प्रयास करा जा रहा है ? सबसे पहले संषेप मैं यह समझ लें की होता क्या है, तथा यह विष आता कहाँ से है ?
इस विषय पर पोस्ट: कलयुग का अंत..एक नए कल्प का प्रारम्भ और मत्स्य अवतारLINK: http://awara32.blogspot.com/2011/12/blog-post_23.html से सीधे उद्धत होता हूँ:
“कलयुग के अंत में इस महायुग/कल्प के अंत का समय भी आयेगा.| अंत के प्रारम्भ होते ही पहले, मनुष्य द्वारा जो विपदा उत्पन्न करी गयी हैं, उससे विनाश होगा, फिर प्रकृति उस विनाश में सहायक होगी, और अंत में पृथ्वी जलमग्न होने लगेगी ! 

“उस समय जितने भी शक्तिशाली लोग हैं पूरे विश्व में, अर्थात जो सत्ता और सत्ता के निकट हैं, उनको यह अवसर मिलेगा कि वे समुन्द्री जहाजों में बैठ कर जल से होने वाली विपदा समाप्त होने का इंतज़ार करें | ऐसे अनेक जहाज पूरे विश्व से निकलेगें ; लेकिन उन्हे यह नहीं मालूम होगा कि यह एक लंबा सफर है, और उनके आने वाली सैंकडो, हज़ारो पीढीयाँ अब जीवित रहने का संघर्ष करती रहेंगी | 

“इसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथो में भी है, जहां मनु को यह आभास हो जाता है कि पृथ्वी जलमग्न होने वाली है | यह पोस्ट इसलिये भी आवश्यक है कि आप समझ सकें कि मनु शब्द का प्रयोग क्यूँ करा गया है ! मनु, मानव, मेंन, मादा, मनिटो, आदि अनेक शब्द विभिन् भाषा में प्रयोग करे जाते है, मनुष्य के लिये| चुकी विश्व भर से समुन्द्री जहाज़ निकले थे तो हर युग के वासियों को समझाने के लिये इससे उत्तम और कुछ नहीं था, कि जहाज़ के बेडे का नायक मनु था| 

“जरा देखें: पृथ्वी के जलमग्न होने के बाद कुछ पर्वत की चोटी ही बची थी ! धीरे धीरे सब कुछ स्थिर सा होता जा रहा था| यहाँ तक कि समुन्द्र भी अब शांत हो गया| लहरे अब समुन्द्र में नहीं उठ रही थी ! विज्ञानिक दृष्टी से इसका अर्थ होआ कि राहू और केतु समाप्त हो गए | अर्थात राहू और केतु, जो कि चन्द्र के कक्षीय नोड्स हैं वोह अब स्थिर हैं या यूँ कहीये कि चन्द्रमा अपनी धूरी सूर्य के संधर्भ में नहीं बदल रहा है | समुन्द्री जीवन भी धीरे धीरे लुब्ध होता जारहा था| पहले जितनी मछलीयाँ दिख रही थी, वोह धीरे धीरे कम होती जा रही थी, अब आसानी से मछली उपलब्ध नहीं थी ! भोजन की समस्या हो चली थी |”

पहले तो इस तथ्य को समझना होगा की पृथ्वी पर जितनी आबादी है, उसकी ९ गुना आबादी समुन्द्र मैं है| राहू, केतु के समाप्त होने पर समुन्द्र स्थिर होजाता है, जीवन भी समाप्त होजाता है| अनेक आपदाओ के कारण पृथ्वी की आबादी तो समाप्त होही चुकी है, और कलयुग का तथा एक महायुग का विधिवद अंत हो जाता है|

समुन्द्र मैं लाखो, अरबो टन खनिज है जो पानी के घोल मैं मिला हुआ है, वोह अब धीरे धीरे बैठना शुरू करता है, साथ मैं मृतक जीवजंतु भी समुन्द्र की सतह पर जाने लगते है| अधिकांश तो, खनिज जो समुन्द्र की सतह पर जा रहा था, उसके नीचे दब कर जमीन के सतह के नीचे चले जाते हैं, और खनिज और तेल के रूप मैं पृथ्वी की सम्पदा बन जाते हैं, और शेष जहरीली गैस बन कर किसे न किसी कारण से जल मैं फसे रह जाते हैं|
यह इसलिए भी संभव हो पाता है क्यूँकी कलयुग का अंत और नए सतयुग के बीच का अंतराल करीब ७,२०,००० वर्षो का है, पुराणों के हिसाब से| अगर यह भी मान लिया जाए की वर्षो के आकडे मैं कुछ त्रुटि है, चलिए यह मान लेते हैं की मात्र २,००,००० वर्ष का अंतराल था, तो भी विज्ञानिक दृष्टि से यही सब होगा|

क्या कारण हैं, की चन्द्र अपनी धूरी सूर्य के संधर्भ मैं बदलना बंद कर देता है, और सतयुग मैं फिर से शुरू हो जाता है, यह खुगोल का विषय है, इसपर शोघ होना चाहिए |हिन्दू संस्कृति और हिन्दू समाज का दुर्भाग्य यह है कि हमारी सरकार तो हिन्दू संस्कृति के लिए कुछ करेगी नहीं, और धर्मगुरु भी ‘कुछ करेंगे नहीं’ मैं समाज के विरुद्ध सहयोग देंगे|

राहू और केतु के पुन: जीवित होने पर समुन्द्र मैं मंथन शुरू हो जाता है, और यह जहरीली गैस जो समुन्द्र मैं फसी पडी थी, उसका रिसाव वातावरण मैं होने लगता है| कुछ स्थान पर यह घातक भी सिद्ध होती है, और चुकी मानव के पास कोइ इसका उपचार होता नहीं तो वोह तो ऐसे समय मैं इश्वर की शरण मैं जाता है, और उधर रिसाव की मात्र स्वाभाविक रूप से समुन्द्र मैं कम होती जाती है, मानव इसमें भी इश्वर की कृपा मान लेता है| चुकी समुन्द्र का एक चक्र जिससे मंथन द्वारा पूरा पानी उलट-पलट होता है, ५०० से ६०० वर्ष आ होता है, तो विष का रिसाव इतने से तो चलेगा ही !

यह तो हो गया इस स्थिति का विज्ञानिक आंकलन; परन्तु यह भी सत्य है की मान्यता है की शिव ने उस विष को ग्रहण कर लिया और अपने गले मैं रख लिया| गले के नीचे भी नहीं जाने दिया, क्यूँ?

हो सकता है की आपको उत्तर मिले की विष इतना जहरीला था की ईश्वर शिव भी उसको गले के नीचे नहीं ग्रहण कर सकते थे, परन्तु यह उत्तर गलत है| ईश्वर के लिए कोइ भी सीमाएं संभव नहीं हैं; विश्वास आपका पूर्ण होना चाहिए, वे इन सब सीमाओं से अलग हैं| फिर से प्रश्न विष को गले मैं ही ग्रहण क्यूँ करा?

इससे दो स्पष्ट संकेत मिलते हैं==>
एक स्पष्ट संकेत है की इश्वर ने आपको गले मैं दो(दोनों तरफ) ग्रंथियां(Glands) दी हैं जिन्हें
टॉन्सिल्स(TONSILS) कहते हैं |यह बहारी वातावरण मैं जो प्रदुषण हैं, उससे आपकी रक्षा करते हैं, तथा किसी प्रकार के रोग-कारक जीवाणु, रसायन के दूषित प्रभाव को गले मैं ही रोक लेते हैं, तथा शरीर मैं इसका असर नहीं होने देते| यह एक जैविक तथ्य है जिसे विज्ञान से मान्यता मिली होई है| 
 
ईश्वर शिव ने विष को ‘गले मैं ही रोक कर रखा’, मात्र इस तथ्य की पुष्टि करता है की ईश्वर ने आपकी सुरक्षा हेतु गले मैं टॉन्सिल्स glands दिए हैं ताकी रोग-कारक जीवाणु, रसायन के दूषित प्रभाव को गले मैं ही रोका जा सके, और यह पृथ्वीवासीयों को ईश्वर शिव की और से विशेष वरदान है| स्पष्ट संकेत मिल रहा है की इतना भयंकर विष भी इश्वर शिव के तोंसिल glands को पार नहीं कर पाए| 
दूसरा संकेत और भी स्पष्ट है; इश्वर के लिए क्या विष क्या अमृत !  
लकिन विष और अमृत दोनों इश्वर के सपर्क में आ कर सकरात्मक उर्जा ही दे सकते हैं, नकरात्मक नहीं |और यही विष , चुकी इश्वर के गले में रहा है, अब अमृत बन गया | 
होता क्या है रिसाव करा हुआ विष धीरे धीरे आकाश की तरफ बढ़ता है, हवा के मिश्रण से और कमजोर होता जाता है, और फिर बादल बन कर बरस जाता है----यही अमृत है जिसका संकेत है, 'लक्ष्मी अमृत-कलश ले कर जल से निकली'| यह क्रिया ५०० से ६०० साल तक चलती है|
कृप्या स्वस्थ रहें, निरोगी रहें, हमसब का सौभाग्य है की हम हिन्दू हैं, सनातन धर्म को मानते है, जो पूरी तरह से विज्ञान और प्रकृति के समन्वय को आप तक पहुचाता है|
ॐ नम: शिवाय ! जय माता पार्वती !!

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.