शिव ने इस पृथ्वी को अपना निवास बना कर धन्य कर रखा है, और यही कारण है कि मानव अपनी अनेक त्रुटियों के उपरान्त भी इसका सुख भोग रहा है| परन्तु मानव स्वभाव, हमारा, हमें यह नहीं समझने देता की ईश्वर शिव ने माता पार्वती से विवाह करा है, और माता पार्वती का मुख्य स्वरुप प्रकृति है, यानि पृथ्वी पर जो प्राकृतिक सम्पदा आपके भोगने के लिए बिखरी पडी है, उसकी रक्षा और उसमें सामंजस्य बना के रखना भी मानव कर्तव्य है और उद्देश भी, जो की हम मानव कर नहीं रहे हैं|
ब्रह्मा जी ब्रह्मलोक मैं वास करते हैं, जो की पृथ्वी पर नहीं है, और श्री विष्णु शीरसागर मैं, वोह भी पृथ्वी पर नहीं है, परन्तु ईश्वर शिव पृथ्वी पर वास करते हैं, और उनका प्रमुख उद्देश हमसब की रक्षा और प्रगति है, जो की वास्तव मैं मानव के हाथ मैं है, लकिन मानव कभी भी अपना उत्तरदायित्व पूरा नहीं कर पाता और स्वंम भी प्रलय की और बढ़ता है, और श्रृष्टि को भी प्रलय की और ले जाता है|
मानव ना तो प्रकृति की रक्षा करता है, और ना ही उसमें बना हुआ आवश्यक संतुलन को स्थिर रखने का प्रयास करता है| आज इस समय भी प्रदुषण इतना बढ़ा हुआ है की पुराणों की सांकेतिक भाषा मैं यह कहा जाएगा की असुर धीरे धीरे शक्तिशाली होते जा रहे हैं, और आगे प्रलय भी आ सकती है|
ईश्वर शिव ने आपको अनेक विकल्प दिए हैं, ताकि समय रहते आप आवश्यक सुधार, अपनी त्रुटियों मैं कर लें| उसमें से एक हैं स्वास्थ संबंधी उपचार, जिसका प्रयोग मानव स्वस्थ रहने के लिए कर सकता है, और यह भी हर व्यक्ती को मालूम है, स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है प्रदुषण रहित वातावरण; परन्तु यह सब हो कहाँ रहा है ?
समस्त पुराण आपको बार बार बताते हैं की मृत्य संजीवनी विद्या देवताओ के गुरु के पास नहीं है, यह विद्या मात्र शुक्रदेव के पास है, जो असुरो के गुरु हैं| क्या समझा आपने इससे? नहीं यह मत कहीये की हमारे धर्मगुरु ने कुछ नहीं बताया, क्यूँकी आपके भी कुछ उत्तरदायित्व हैं जिनको न करना अधर्म है, और उसकी कोइ और कहीं भी क्षमा नहीं है|
सत्य तो यह है की औषधी मैं अनेक पदार्थो का प्रयोग होता है, जिसे हम जहर और नशीले पदार्थो के नाम से जानते हैं, और यह तो आपको इससे पहले भी पोस्ट मैं बताया जा चूका है , की असुर जहाँ जहर, नशीली और प्रदूषित करने वाले पदार्थो को कहते हैं, सुर वास्तव मैं उनका स्वीकृत सामंजस्य है| जैसे वायु मैं मुख्य प्रयोग ऑक्सीजन का है, लेकिन उसमें नाइट्रोजन की प्रमुख्य मात्रा होती है, तथा अन्य प्रदूषित करना वाले पदार्थ की सीमा मात्र १% होती है जो हमें स्वीकार है, और वायु को देवता मान लेते है, जो की शक्तिशाली हैं| लकिन जब प्रदूषित गैस की मात्रा बढ़ जाती है, तो असुर वायु देवता पर हावी होने लगते हैं, और देवता निर्बल हो जाते हैं|
उद्धारण:
1. सदा स्वस्थ रहना, और ऐसे आचरण को प्रोहित्साहित करना जिससे आप, और आपका परिवार, समाज स्वस्थ रहे| क्या ऐसा आप कर पा रहे हैं? बिलकुल नही, नहीं तो पूरी तरह से प्रदूषित वायु और जल न होता, जो की भारत मैं होता जा रहा है| घोर पाप कर रहे हैं हमलोग, जिसके लिए मुझे और आपको ईश्वर कभी क्षमा नहीं करेगा|
2. प्रदुषण के अनेक मापदंडो मैं से एक है, मानव द्वारा प्रकृती मैं आसंतुलन उत्पन्न करना| भारत से अधिकाँश जंगल काट दिए गए हैं, वन जीवन समाप्त हो रहा है, तो असंतुलन तो बहुत बड़ा है| क्या हम और हमारा हिन्दू समाज पिछले ६५ वर्षो से माता पार्वती को अपमानित नहीं कर रहा है, क्यूँकी माता पार्वती का दूसरा नाम प्रकृति है|
इस असुर समाज का प्रतिनिधित्व करता है भांग और धतुरा, जो की आवश्यक औषधी भी है, और अनेक रोगों के उपचार मैं इनका प्रयोग होता है, और इसे सांकेतिक रूप मैं ईश्वर शिव को चढ़ाया जाता है, ताकी मानव सदा याद रखे की इनका आवश्यक उपयोग प्राण रक्षा और स्वस्थ रहने के लिय औषधी के रूप मैं होता है| इसका अर्थ कदापि यह नहीं हुआ की यह शिव प्रसाद समझ कर इसका उपयोग नशे के लिए कर सकते हैं; नहीं यह तो घोर पाप हो गया ईश्वर शिव के नाम का दुरूपयोग हो गया| इससे बचीये, ईश्वर शिव को समझीये, वे नशे के समर्थक नहीं हैं| भांग धतूरे का चढ़ाव मात्र एक सन्देश है की जहरीली वस्तु का भी प्रकृती मैं महत्त्व है|
भांग और धतुरा, जो की आवश्यक औषधी भी है, रोगों के उपचार मैं इनका प्रयोग है, इसे सांकेतिक रूप मैं ईश्वर शिव को चढ़ाया जाता है, ताकी मानव याद रखे की इनका आवश्यक उपयोग प्राण रक्षा और स्वस्थ रहने के लिय है |
ॐ नमः शिवाय ! जय माता पार्वती !!
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