Friday, February 1, 2013

आपकी लड़ाई कोइ और क्यूँ लड़ेगा, आपको खुद ही लड़नी होगी

हर सार्थक प्रयास से, समाज का भावनात्मक भाग कम हो जाता है और कार्मिक भाग बढ़ जाता है, जो कि समाज के अंदर रह कर समाज को खोखला करने वाले शोषणकरता को पसंद नहीं है; इसलिए सार्थक प्रयास का विरोध होगा !
कितने हिंदू समाज मैं लोग हैं, जो की ‘कुछ गलत’ धर्मगुरुजनों, तथा हिंदू समाज के अंदर जो शोषण करता हैं, उनके द्वारा जो गलत कार्य हो रहा है, उसका विधीवध विरोध कर रहे हैं|

विधिवद विरोध का अर्थ है की ऐसे सकारात्मक प्रयास जिससे आज नहीं तो कुछ समय पश्यात, समाज कर्मठ होकर, हर गलत और शोषण पूर्ण कार्य, जो समाज को गुलामी की तरफ ले जा रहा हैं , उससे लड़ने की क्षमता विकसित कर सके; ध्यान रहे: “क्षमता विकसित कर सके”|
विधिवद विरोध का यह भी महत्वपूर्ण अर्थ है की मात्र इस प्रमाणित आकडे के पश्यात, कि आजादी के बाद हिंदू समाज गरीब होता जा रहा है, और हिंदू गुरुजानो की आर्थिक स्थिती, ज्यामितीय प्रगति(GEOMETRIC PROGRESSION) के आधार पर अनेक गुना बढ़ गयी है, हिंदू गुरुजनों और धार्मिक नेताओं, और संगठनो की गतिविधि, और कथन, सूक्ष्म समीक्षा का अधिकारी है|
परन्तु सफलता आपके सहयोग के बिना संभव नहीं है|
समझना यह है कि जब आप समाज में सही प्रश्न रखेंगे, जिससे समाज मैं दिशा परिवर्तन की संभावना हो , तो उसका विरोध भी होगा, क्यूंकि जो लोग धर्म के नाम पर या और किसी तरह से समाज के अंदर रह कर समाज को खोखला कर रहे हैं, वे तो इस संतुलन को बिगड़ने देंगे नहीं|
हर सार्थक प्रयास से, समाज का भावनात्मक भाग कम हो जाता है और कार्मिक भाग बढ़ जाता है; जो कि समाज के अंदर रह कर समाज को खोखला करने वाले शोषणकरता को पसंद नहीं है; इसलिए सार्थक प्रयास का विरोध होगा|
हिंदू शोषणकरता जिनके हाथ मैं समाज की कुंजी है, वोह नारेबजी चाहते हैं, जिससे समाज का भावनात्मक व्यवाहर नहीं बदले, क्यूंकि तभी शोषण समाज का हो सकता है| 
लेकिन वास्तविक कार्य नहीं, समाज मैं सुधार नहीं आना चाहिए|
इस विषय पर और चर्चा होनी चाहीये !
बताएं कैसा प्रयास आरम्भ करा जाय !

नीचे कुछ विचार जो की आपको सार्थक प्रयास करने मैं मदद करेंगे,
ध्यान रहे, इनको समझीये और अपने जीवन मैं अमल मैं लाएं>>
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||कलयुग सबसे श्रेष्ट युग है ||
क्या वजह है की कुछ हिंदू , अपने ही समाज को भावनात्मक तरीके से नुक्सान पहुचाने के लिए यह कहते हैं की कलयुग सबसे खराब युग है, जबकी बाकी युग अच्छे थे, जबकी यह एकदम गलत है और सचाई ठीक इसके विपरीत है|
सचाई यह है की कलयुग सबसे अच्छा युग है मानवता के लिए|
आज के सूचना युग मैं आप खुद हिंदू ग्रंथो मैं जो सूचना है, उसके आधार पर स्वंम निश्चय कर सकते हैं कि कलयुग सबसे श्रेष्ट युग और सतयुग सबसे खराब|
इस विषय पर आप चाहें तो चर्चा भी कर सकते हैं|
वास्तिविकता यह है की हिंदू समाज सदेव भावनात्मक रहे और दुबारा गुलाम हो जाए, इसलिए ईसाई और मुस्लिम काफी धनराशि खर्च कर रहे है, और धनराशि का लाभ कुछ धर्मगुरुओं, और धार्मिक संगठन के प्रमुख लोगो को मिल रहा है|
प्रमाणित आकडे भी यही दर्शाते है की आजादी के बाद हिंदू समाज गरीब होता जा रहा है, और धर्म गुरु अत्यंत धनवान, ऐसा तो किसी युग मैं नहीं हुआ; और युगों मैं धर्मगुरु कुटिया मैं रहते थे|
कृप्या अपना परिचय यह कह कर मत दीजिए की कलयुग खराब युग है, और यदी कोइ कह रहा है कि कलयुग खराब युग है, तो उसका विरोध करीए|
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ध्यान से पढ़े :
अवतार (उदहारण: श्री राम, श्री कृष्ण) का इतिहास यदि अलोकिक और चमत्कारिक शक्तिओं से भरपूर होगा, जैसा की आजादी से पहले था, तो हिंदू समाज को कर्महीन बनाएगा !
और यदि बिना अलोकिक और चमत्कारिक शक्तिओं के होगा तो हिंदू समाज को कर्मठ बनाएगा !
इस सत्य की जानकारी आपको कोइ भी समाज सम्बंधित विशेषयग्य दे देगा !
READ CAREFULLY ::
The history of Avatars with supernatural powers will increase the Emotional content of religion, while history of Avatars WITHOUT such powers will reduce the emotional content of religion and increase the Karmic content. 

INCREASE IN KARMIC CONTENT OF RELIGION WILL MAKE SOCIETY LESS PASSIVE, AND ABILITY TO FIGHT PROBLEMS (like corruption, atrocities) IN THE SOCIETY IMPROVES.
This FACT can be ascertained from any Social Scientist/expert.

कृप्या यह भी पढ़ें: 

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.