Sunday, October 26, 2014

क्या रामायण से गलत धर्म सिखाकर मेरे राम को पाखंडी साबित कर रहे हैं

मेरे राम पाखंडी नहीं हैं कि सीता को अग्नि देव को सौंप कर सीता के अपहरण को स्वीकृति देंगे, और फिर पूरी सेना के सामने उनकी अग्नि परीक्षा लेंगे| सिर्फ इतना ही नहीं, फिर एक धोबी के कहने पर सीता को त्याग दंगे ! ऐसा कुछ नहीं हुआ; श्री राम और माता सीता ने अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित करा |
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रामायण इतिहास है, और इतिहास का पूरे विश्व मैं एक ही अर्थ है, धर्मगुरुजनों के निजी स्वार्थ के लिए अलग नहीं हो सकता | इतिहास का क्या अर्थ होता है, ब्लॉग के मुख्य पेज पर दिया हुआ है, तबभी फिर से दे देते हैं|

इतिहास की परिभाषा शुरू से यही रही है कि वर्तमान समाज के हित को ध्यान मैं रख कर तथ्यों की प्रस्तुति | इसका जीता जागता उद्धारण है कि एक ही इतिहास हिंदुस्तान, पाकिस्तान और बंगलादेश का है, लकिन तथ्यों की प्रस्तुति ने तीनो देशों मैं इसका स्वरुप अलग कर दिया है |

अवतार के समय कोइ चमत्कार नहीं हुआ, क्यूँकी यदि अवतार चमत्कारिक शक्ति का प्रयोग करेंगे तो क्या धर्म स्थापित करेंगे, क्यूंकि मानव के पास तो कोइ चमत्कारिक शक्ति होती नहीं, तो वोह कैसे उस चमत्कारिक शक्ति से बताए हुए धर्म का प्रयोग करेगा? 

एक उद्धरण उपयुक्त रहेगा, आज के सूचना और विज्ञानिक युग मैं यदि समाज को यह बताया जाता है कि हनुमान जी लंका से छलांग लगा कर हिमालय पर्वत पहुचे, तो उसका कोइ उपयोग नहीं है, क्यूँकी मानव तो ४०-५० फूट की छलांग भी नहीं लगा सकता | जी हाँ यदि यह बताया जाता है कि एक विशेष विमान से वे हिमालय गए थे, तो इस विज्ञानिक युग मैं मानव उस विषय पर सोच सकता है, समाज हित मैं कुछ कर सकता है, धर्म का अनुसरण हो सकता है|
विश्व के विज्ञानिक कह रहे हैं की शिव धनुष जो की प्रलय स्वरूप, विनाशकारी था(WEAPON OF MASS DESTRUCTION), और जिसको बनाने के लिये विकसित विज्ञान की आवश्यकता थी , वोह श्री राम से पूर्व त्रेता युग मैं था !
क्या है चमत्कार ? न समझ मैं आने वाला विज्ञान को ढकने का तरीका , जिसकी आज आवश्यकता नहीं है !
अब प्रश्न यह है कि किसकी बात माने, रामायण की या इस ब्लॉग की?
पहले तो यह समझ लें की रामायण के पूरे विश्व मैं १०० से अधिक संस्करण उपलब्ध हैं, और हर युग मैं श्री राम के अत्यंत लोकप्रिय होने के कारण ऐसा स्वाभाविक भी है; लोकप्रिय व्यक्ति के इतिहास की, बार बार, समाज हित को ध्यान मैं रख कर प्रस्तुति होगी ही होगी| वेदों के साथ तो ऐसा कभी नहीं हुआ, जबकी वेद अत्यंत पुराने हैं | स्वंम सिद्ध पुरुष और महान संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने वाल्मीकि रामायण से हट कर ‘मानस’ की रचना करी, उस समय की आवश्यकताओ को समझ कर|
तो फिर आप और मैं समाज का अहित क्यूँ कर रहे है ? क्षमा करें लकिन ऐसा करके मैं और आप अपनी कर्महीनता का परिचय दे रहे हैं | और फिर आपको सही को गलत प्रस्तुति करने को नहीं कहा जा रहा है, गलत को सही करने को कहा जा रहा है ; देख लीजिये :-
मेरे राम पाखंडी नहीं हैं कि अकेले में (ध्यान रहे, अकेले में, जब लक्ष्मण भी नहीं थे) सीता को अग्नि देव को सौंप कर सीता के अपहरण को स्वीकृति देंगे, और फिर पूरी सेना के सामने उनकी अग्नि परीक्षा लेंगे| सिर्फ इतना ही नहीं, फिर एक धोबी के कहने पर सीता को त्याग दंगे ! ऐसा कुछ नहीं हुआ; श्री राम और माता सीता ने अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित करा |

कैसे करा श्री राम ने अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित ?

पढ़ें पूरी पोस्ट लिंक पर क्लिक करके ...>>>
सीता का त्याग राम ने क्यूँ करा... सही तथ्य

‘दोनों पक्ष की लंबी बहस के बाद श्री राम ने यह निर्णय दिया कि सीता कोइ भी भौतिक प्रमाण नहीं दे पायी हैं कि वोह स्वेच्छा से नहीं गयी थी| बिना बल प्रयोग के सुरक्षा रेखा(लक्ष्मण रेखा) स्वंम पार करना और रावण को सुरक्षा रेखा के बाहर जा कर भिक्षा देने को स्वेच्छा से रावण के पास जाना भी माना जा सकता है | उन्होंने यह भी माना कि आज क्यूँकी वोह गर्भवती हैं तथा पूरी तरह से उनके नियंत्रण मैं हैं उनके किसी भी बयान को स्वतंत्र नहीं माना जा सकता ! श्री राम ने अग्नि परीक्षा के परिणाम को निरस्त करते होए सीता को त्याग दिया!’
कृप्या पूरी पोस्ट लिंक खोल कर पढ़ें:

Tuesday, October 21, 2014

नरकासुर कौन और क्या है, तथा उसका वध और नरकासुर चौदश कैसे मनाए

श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध करा जो की भूमिपुत्र थे, और तभी से दीवाली से पहली चौदश को नरकासुर चौदश या नरकाचौदश कहते हैं | भूमिपुत्र का वध होने के उपरान्त भी भूमिमाता की इच्छा अनुसार, नरकाचौदश दुःख का पर्व नहीं है, इसे हर्ष उल्लास से मनाया जाता है | इस वध का उल्लेख श्रीमद भागवत मैं है | 
यहाँ यह समझेंगे क्या है नरकासुर और क्यूँ और कैसे मनाएं नरकाचौदश|
पहले तो यह समझ लें की जहाँ सुर, असुर की बात हो रही हो, वहां कुछ भी व्यक्तिगत नहीं बचता, सबकुछ सामाजिक हो जाता है, जिसमें समस्त क्रिया समाज हित हेतु स्वंम से शुरू होती हैं |

सुर प्रकृति मैं हर वास्तु का स्वीकृत सामंजस्य है, जिसमें मानव भी है| असुर, सामंजस्य मैं जो नकारात्मक तथ्य या प्रवत्ति होती है, ‘उसके बढ़ जाने को’ पुराणों मैं कहा जाता है | पूरी तरह से समझने के लिएपढ़ें : आजकल वायु देवता बार बार असुरो से क्यूँ परास्त हो रहे हैं

नरकासुर मानव मैं गंभीर असुरी प्रवत्ति को कहते है, जिसके लिए स्वंम भूमिमाता ने भी माना की ‘नरकासुर वध हर्ष उल्लास से मनाया जाना चाहीये’| क्या और कौन हैं यह नरकासुर, जिसका वध करना आवश्यक है, तथा जिसके लिए स्वंम श्री कृष्ण, और भूमिमाता हमें प्रेरणा दे रहे हैं |संभव है... आज के संधर्भ मैं यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो !

विष्णु अवतार श्री कृष्ण ने अपने जीवन काल मैं अनेक युद्ध देखे और लड़े, और फिर अंत मैं विश्वयुद्ध, जिसको महाभारत भी कहते हैं, लड़ा और जीता | युद्ध मैं कुछ भी नहीं बदला; श्रृष्टि के आरम्भ से आज तक; वही चला आ रहा है, और २१ वी सदी के लोगो को सूचना के कारण बहुत कुछ मालूम है, तथा वर्तमान वर्ष अनेक समाज जो की युद्ध मैं घिर गए, उनके लिए नरक बन कर आया है| मुझे लगता है कि आप समझ गए होंगे, तबभी पोस्ट की आवश्यकता हैकी मैं भूमि पर नरक का विवरण यहाँ पर देदूं, हालांकि यह नरक का विवरण जोकी पृथ्वी पर वास्तव मैं असंख्यों बार हुआ है, आपको विचलित कर सकता है, तथा यह भी मन मैं बैठा लें की यह श्रृष्टि के आरम्भ से आज तक.... जी हाँ अभी तक और आगे भी चलता रहेगा !

युद्ध मानव की प्रकृति है, इसलिए श्रृष्टि के आरम्भ से युद्ध भी आरम्भ हो गए, और आज तक चल रहे हैं, इसलिए मैं यह भावनात्मक ‘बकवास’ नहीं करूँगा, की हमें इसका समाधान निकालना चाहीये, चुकी जब अनेक बार इश्वर अवतरित होकर इसका समाधान नहीं निकाल पाए, तो मेरी, आपकी सामर्थ क्या है? युद्ध, और युद्ध के उपरान्त जो नरक होता है, उसे समझ लें, तथा उससे कैसे बचा जाए, यही नरकाचौदश का उद्देश है, और श्री कृष्ण का आदेश |

भारत ने आजादी से पहले १००० वर्ष की गुलामी देखी, और उस बीच हरेक ने अनेक युद्ध | युद्ध मैं एक सेना जीतती है और परास्त सेना और राज्य के कोइ अधिकार नहीं होते | मर्दों को मार दिया जाता है, या काम के लिए गुलाम बना लिया जाता है| परास्त राज्य के बच्चे किसी काम आ नहीं सकते इसलिए ऊची दीवार से फेक दिया जाता है, मारने के लिए, औरतो के साथ हर तरह का दुष्कर्म करा जाता है| इससे ज्यादा नरकासुर प्रवत्ति का विवरण मेरे से भी नहीं हो पायेगा, हालाकि कहने को बहुत कुछ बाकी है| 
REPEAT: युद्ध मैं परास्त उपरान्त मर्दों को काम के लिए गुलाम बना लिया जाता है, परास्त राज्य के बच्चे किसी काम आ नहीं सकते इसलिए ऊची दीवार से फेक कर मार देते हैं, औरतो के साथ हर तरह का दुष्कर्म करा जाता है
और आज, २०१४ के ओक्टूबर मैं यदि इस वर्ष का आकलन करें तो हर समाचार पत्रों मैं ऐसी अनेक घटना जो इस वर्ष होई हैं, विश्व भर मैं, उसका उल्लेख है| याद आता है मुख पर कपडा ढके हुए, और जंजीरों से बंधी होई महिलाएं जो गुलामी के लिए बेचने के लिए बलपूर्वक भेजी जा रही थी, तथा जिनकी मजबूर और विवशता भरी तस्वीर हर समाचार पत्र मैं थी, लकिन इतने आधुनिकरण के बाद भी बचाने कोइ नहीं गया| नरक, घनघोर नरक का क्या और विस्तृत विवरण दें ?

नरक की यह असुरी प्रकृति हर मानव मैं है, जिसे बदला नहीं जा सका, लकिन इससे निबटने के लिए मार्ग हर समाज को ढूँढना होगा, तथा इसके लिए कोइ क़ानून आपको रोक भी नहीं सकता| युद्ध मैं जिसकी विजय होती है वोह आपके क़ानून को तो मानता नहीं, इसलिए निबटने के लिए क्षमता तो हर समाज को विकसित करनी होगी |

तो अब आप कैसे नरकासुर को परास्त करेंगे ? 

इसके लिए अनेक विकल्प तो है नहीं | समाज को एकजुट करना होगा, अंदरूनी शोषण आप पूरी तरह तो समाप्त कर सकते नहीं, लकिन कम अवश्य कर सकते हैं, ताकी समाज मैं भाईचारा बढे, समाज मैं महिलाओ को शिक्षा, और सैन्य शिक्षा भी प्रदान करें, और मानसिक रूप से तथा सैन्य शिक्षा से समाज मैं क्षमता विकसित करें समाज के लिए मरने के लिए और मारने के लिए | कोइ आश्चर्य नहीं, यही सब उन समाजों मैं इस वर्ष हो रहा है जो युद्ध से त्रस्त हैं, आप मीडिया मैं देख सकते हैं, पढ़ सकते हैं | समाज महिलाओं को सैन्य शिक्षा दे रहा है, तथा पूरा समाज मारने और मरने के तैयार हो रहा है | 

और यही करके आप नरकासुर पर विजय प्राप्त कर सकते हैं | 

हिन्दू धर्म भौतिकता को विशेष महत्त्व देता है, इसलिए इस नरकाचौदश से पहले अपनी सोसाइटी/मोहल्ले मैं इस विषय पर विचार विमश अवश्य करें| कमसे कम आरंभिक कार्य समाज को एकजुट होने के लिए आरम्भ करें, और इस पोस्ट को लोगो तक पहुचाएं ...COPY करके ZEROX करके और PRINT करके |
माँ काली और श्री कृष्ण आपको आपके प्रयास के लिए अवश्य आशीर्वाद देंगे !
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Tuesday, October 14, 2014

WHY SHIV RETAINED THE POISON IN THE NECK

SHIV the ESHWAR, is the universal power, the God, as we know HIM, and the reason why HE did not allow poison to go below his neck is a message to humanity. WHAT EXACTLY IS THAT MESSAGE? 
Before we go any further, let us get one thing absolutely clear, Shiv, the Eshwar, the God, is absolute, and poison or nectar makes no difference to HIM, and keeping the poison in the neck is a symbol, or a message for humanity, which we all must understand and appreciate.
But first let us understand from where this poison came. Remember the population of various living species in sea is at least nine times more that those that are on land. This is as per scientific estimates.

Now we will quote directly from earlier post: MATSYA AVTAR IN LIGHT OF GEOGRAPHICAL CONDITIONS
"ALL THIS HAPPENED AT LEAST 1,400,000 YEARS EARLIER>>>read on..

"The first thought that must immediately cross our mind when we are thinking of Matsya Avatar is that the entire earth had been engulfed by water. The sea water had risen significantly, destroying and wiping out the entire animal life and humans. Of course there were few ships, which had sailed from various places all over the world, to save what little human life could be saved. According to the Hindu belief of cyclic evolution, this happened towards the end of Kalyug. The end of the Kalyug brings in the dawn of new Kalp (Mahayug) which starts from Satyug.

"Slowly the churning of the water which we know as wave movement also stopped. Without knowing, the survivors in different ships were witnessing a rare phenomenon. They were towards the end of the Kalp and were entering the transitional phase required to carry them into the next Kalp. These survivors were ignorant of the fact that it was NOT a temporary phase, which will be over in a short time, but a long transitional journey to the next Kalp.

"What exactly will be the duration of this transitional phase can be visualized by us but not by people on board. They and their several hundred, or perhaps thousands, of generation would be fighting a very tough, long battle for survival. Let us visualize:

"1. The sea water had risen significantly, and a rare astronomical phenomenon occurred, unknown and unobserved by them. The lunar nodes, i.e. Rahu and Ketu are no longer moving in their retrograde motion, which means that moon has stopped changing the orbit, with reference to the apparent path of the Sun. This has resulted in cession of wave movement. The so called churning of sea water has stopped. Rahu and Ketu are dead. Another demon(or in scientific language, a set of astronomical points) will step in to replace the dead Rahu and Ketu during Kurma Avatar of lord Vishnu in the next Kalp. The wave movement will then once again start. But that is going to happen in the next Kalp, which was least 250,000 years away from the start of the transitional phase."
The stoppage of waves creates serious problem for survival of sea life. They too need oxygen, but without wave movement air would not mix with water to carry oxygen deep into sea. These species would die; and along with billions and trillions of tons of minerals available in sea water, these species will settle down on the bed of the sea . 

Most of these will be completely covered by sediments and form various resources, including oil resources for next Yug, others shall remain trapped in deep sea and with no air, slowly decompose and would convert into extremely deadly chemicals which would get the chance to escape and evaporate as poison when sea, once again, start having wave movement.Since oceans take about 500 to 600 years for one complete cycle to stir all water, one can expect this poison to trouble earth for at least this period.
What is the reason that moon’s axis of rotation stops its regular drift towards the end of Kalyug, remains stationary for a period of about 7,50,000 according to Surya Siddhant, and then restarts towards the beginning of next Mahayug, is for experts of astronomy to comment. Some say 7, 50, 000 is a bit too long a period. Ok, till it is reconciled with the present day science, let it be one-third or 2, 50,000 years. The result would be the same. But time has come for research to start in right earnest, on all information from ancient texts.
Problem with Hindu Texts is that Dharm Gurus DO NOT want society to become less emotional and thus less slavish. Correct information without supernatural power would improve the mentality of society. The society would then become less SLAVISH and will not then blindly follow Dharm Gurus.

After the advent of ‘new’ Rahu Ketu, the wave movement would once again start in the next Kalp/Mahayug, and this poisonous gas would then escape from sea bed into atmosphere. We now know why it is extremely poisonous, and why humanity starts worshipping Shiv, who alone can help. The escaped poison is quite concentrated at escape point but gets diluted as it mixes with more air, does create havoc and then gets more diluted and becomes insignificant. 

Why this is not forgotten is because of its mention in the ancient texts that this poison does come out, and today we know how and why it happens. It is also mentioned that Lord Shiv collected this poison and kept it in his neck.

There are two messages from this==>

It is important to note that humans have glands in the neck called tonsils. They protect humans from outside bacterial attacks. If any bacteria do enter your body, these tonsils stop those bacteria and at times even these tonsils themselves get infected. Medical Science accepts them as guard against outside bacterial attack. This exactly is the message that we all get from why Shiv kept the poison in his neck.

The second message is conversion of this poison into nectar or amrit.
As said above ‘The escaped poison is quite concentrated at escape point but gets diluted as it mixes with more air, does create havoc and then gets more diluted and becomes insignificant. ‘
The message, loud and clear which we get from ‘poison staying in the neck of SHIV’ is that for God nothing is Poison or Nectar. God has ONLY positive to give to this earth. So this poison by this very message that it stayed in the neck of SHIV returns back to earth as nectar when te extreme diluted poison get converted into rains. This process too , IE raining of nectar continued for 500 to 600 years. 
Sanatan Dharm is Scientific !

The message is loud and clear. Shiv the Eshwar has given you protection from outside bacterial attack in the form of tonsils and POISON (bacteria) will not find easy to cross this REKHA.
OM NAMEH SHIVAY !

Friday, October 3, 2014

युद्ध मैं रावण की सुगमता से पूर्ण हार के कारण..एक विश्लेषण

जैसा की अन्य पोस्टो मैं भी बताया गया है, रावण एक कुशल राजनीतिगज्ञ और कूटनीतिज्ञ अवश्य था, लकिन वीरता की उसकी सारी गाथा झूटी हैं, और राम रावण युद्ध के परिणाम को देख कर ऐसा भी लगता है की वोह कुशल सेनापति नहीं था, तथा सैन्य अभियानों के बारे मैं उसके पास कोइ निपुणता भी नहीं थी | 
बस रावण को स्वांग रचना आता था, ब्राह्मणों मैं उसका प्रभाव था, अनेक झूटी कथाएँ उसकी शिव की सिद्धी की प्रचिलित थी, तथा चुकी लंका समुन्द्र से घिरा देश था, और यह बात तो सत्य थी की राक्षस मानवो का मॉस खाते थे, इसलिए चुकी रावण एक ब्राह्मण था, और विश्व के ब्राह्मण उसकी प्रसंशा करने मैं कोइ कमी नहीं करते थे, तथा धर्म के ठेकेदार या धर्मगुरु ब्राह्मणों से ही आते हैं, इसलिए कोइ उससे भिड़ता नहीं था| 

फिर राज्यों को रावण से लाभ भी था, क्यूंकि परशुराम के व्यापक कठोर प्रयासों के कारण कोइ भी राज्य वानरों का शिकार नहीं कर सकता था, तथा लंका एकमात्र सोत्र था, जहाँ से वानर को जानवरों की तरह खरीदा जा सकता था|

लंका से जानवरों की तरह वानरों का जो व्यापार होता था, वहां से समस्त राज्य वानरों को जानवरों की तरह से खरीदते थे, जिसमें हर राज्य के ब्राह्मण संस्थाओं को उचित धन रावण से मिलती थी, जिसके कारण धर्म संचालोको पर उसका विशेष प्रभाव था, तथा यही कारण था की अग्नि परीक्षा के बाद भी रावण के अयोध्या के भक्तो ने छोटी जाति के लोगो को भड़का कर सीता का त्याग करवाया |

आज भी इस बात के प्रमाण उपलब्ध हैं की अयोध्या के ब्राह्मणों ने राम का राजभिषेक करने से इनकार कर दिया था, तो बनारस से ब्राह्मण बुलाने पड़े और तब से बनारस के ब्राह्मणों को सरयूपारीण कहा जाने लगा, और अयोध्या के ब्राह्मणों को कान्यकुब्ज, तथा आपस मैं आज भी इनमें शादी विवाह नहीं होता, और यह बात पूर्वी उत्तर प्रदेश का कोइ भी ब्राह्मण आपको बता देगा |

पहले तो इस बात को समझ लें की रावण ने अपनी और लंका की युद्धछेत्र की कमजोरी को ध्यान मैं रखते हुए खर-दूषण की तरह युद्ध करके वीर गति को प्राप्त होना स्वीकार नहीं करा | 
परन्तु 
पूरे विश्व के, जैसा उपर कहा गया है, रावण धर्म के ठेकेदार बने हुए थे, 
और 
अब चुकी बाज़ी खर-दूषण के वीर गति को प्राप्त होने की कारण उल्टी पड़ गयी, और पूरा विश्व धर्म के ठेकेदार रावण से यह अपेक्षा कर रहा था, तथा कुछ लोग उसे उकसा भी रहे थे, जिसमें, चुकी सूर्पनखा लंका की बेटी थी, लंका की जनता भी शामिल थी, रावण की मजबूरी यह थी की उसे कुछ ना कुछ करना था | 

वोह युद्ध नहीं चाहता था, लकिन काम कुछ इस तरह से करना चाहता था की उसकी ख्याति बनी रहे और कुछ बढ़ भी जाए, तथा सूर्पनखा के नाक कान काटने का बदला भी हो जाय | उसे सीता का अपहरण, यह सब कुछ सोच कर ही करा|

सीता के अपहरण के पीछे क्या कारण थे, वोह पोस्ट अलग से उपलब्ध है लिंक दी जा रही है, उसे पढने के बाद इस पोस्ट को पढेंगे तो अधिक और पूर्ण सूचना मिलेगी |पढ़ें: सीता अपहरण के पीछे रावण की कूटनीति 

बहराल रावण को पूर्ण विश्वास था कि १३ वर्षो मैं राम की टीम ने वानरों को जो सैन्य प्रसिक्षण दिया था वोह कुछ लाभकारी नहीं था, और बाली-वध के बाद भी राम, जो सेना एकत्रित करके युद्ध करने आ रहे हैं, वोह पर्याप्त नहीं है| संभव है इस गलत धारणा के पीछे रावण का कमजोर या अ-सहयोगी खुफिया विभाग था, जो लंका के असंतुष्टो का साथ दे रहा था| 

लंका मैं व्यापक असंतोष रावण के प्रति था, इस बात का प्रमाण तो विभीषण ही हैं, जिसको की हनुमान ने (जब सीता की खोज के लिए लंका पहुचे थे), तुरंत(सीता से मिलने से भी पहले) पूर्व आधारित योजना के अंतर्गत संपर्क किया तथा विभीषण ने लंका छोड़ने से पहले लंका के कुछ महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों को नष्ट करने मैं हनुमान की सहायता करी| हर राजा को यह मालूम होता है की कुछ असंतोष है, लकिन रावण से लोगो को असंतोष बहुत अधिक था, जिसका अनुमान रावण नहीं लगा पाए, तथा उसके प्रमाण भी हैं :

1. रावण ने जब सीता का अपहरण करा तो यह सुनिश्चित कर दिया की युद्ध लंका की भूमि पर ही होगा; प्राय ऐसा देश जब करते हैं जब उन्हें यह विश्वास होता है की या तो दूसरा साहस करेगा नहीं या, और अगर आ भी गया तो बुरी तरह से मार खायेगा | रावण का यह अनुमान पूरी तरह से गलत निकला|

2. इसके उपरान्त भी रावण का सुगमता से श्री राम को रामेश्वरम मैं पुल निर्माण कर लेने देना, गलत सैन्य निर्णय ही कहा जाएगा, जिसका आधार गलत सूचना ही था |

3. रावण ने सीता अपहरण से पहले यह गलत अनुमान लगा लिया कि यदि राम वानरों की सेना के साथ युद्ध करने आते हैं, तो राम बहुत बुरी तरह से हारेंगे ! अब इस विश्लेषण मैं रावण के खुफिया विभाग का कितना हाथ था यह कहना मुश्किल है, लकिन हाथ होता अवश्य है |

4. युद्ध भूमि पर पहुचने के पश्च्यात रावण को पता पड़ता है की कुछ महत्वपूर्ण सैन्य उपकरण युद्ध के लिए तय्यार नहीं है, जिसका प्रमाण है पहले मेघनाथ और फिर रावण का उल्लेख है यज्ञ के लिए युद्ध के बीच मैं बैठना | यज्ञ का अर्थ होता है ‘सामूहिक कठोर प्रयास’’ तो जब आप अलोकिक शक्ति को निकाल देंगे तो आप पायेंगे कि रावण को लंका का पूर्ण समर्थन नहीं था, महत्वपूर्ण सैन्य उपकरण तक तय्यार नहीं थे | 

5. ऐसा भी प्रतीत होता हैकि सेना को उचित प्रेरणा युद्ध के लिए नहीं मिल पा रहा था, क्यूँकी पहले दिन भी लंका के कुछ सैनिक युद्ध भूमि छोड़ कर भाग रहे थे|

हलाकि लंका से युद्ध रावण की मृत्यु उपरान्त समाप्त होगया, लकिन स्त्रियों के शोषण के विरुद्ध युद्ध कुछ समय और चला| वानरों को लंका युद्ध के बाद समाज मैं प्रवेश कराना कुछ आसान हो गया, परन्तु धर्मगुरु, समाज मैं उन्हें जो शक्ति मिली थी उसे छोड़ने को तय्यार नहीं थे, राम को सीता का त्याग करना पड़ा लकिन अग्नि परीक्षा को धर्म स्वीकार नहीं करा | समय लगा, ब्राह्मणों को और धर्म गुरुओ को, वापस धर्म के मार्ग पर लाने मैं,... 

उसके लिए रामराज्य मैं जाति प्रथा श्री राम को समाप्त करनी पडी, जिसके बिना सामाजिक न्याय संभव नहीं था |
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Wednesday, October 1, 2014

एक ऐसा शब्द जिसका पूरा दुरूपयोग हो रहा है, अध्यात्म और अध्यात्मिक

हिन्दू धर्म में यदि कभी कोइ गलती से ऐसा प्रश्न पूछ ले जिसमे धर्मगुरु असमंजस्य में आ जाय, उत्तर ना मालूम हो, तो बहुत सहज तरीका है, अध्यात्म की बात शुरू कर दीजिये, बस धर्मगुरु का काम बन जाएगा, प्रश्न पूछने वाला धर्मगुरु महाराज के गूढ़ ज्ञान की तारीफ करेगा, और अपनी कर्महीनता को छिपा कर ध्यान मग्न मुद्रा में बार बार सर हिलाएगा, यह बताने के लिए कि अब उसे सब समझ में आ रहा है, और धर्मगुरु भी अध्यात्म और अध्यात्मिक शब्द का प्रयोग करके अपने ज्ञान का सिक्का मनवा लेंगे |
आप चाहे तो इस फोर्मुले को स्वंम अजमा सकते हैं | 

धर्मज्ञाता और ज्ञानी बनने और दिखने के लिए ‘अध्यात्म और अध्यात्मिक’ शब्द अति आवश्यक हैं | थोडा सा प्रयास करें, इन शब्दों को सही समय सही प्रयोग आपको आ जाएगा |

‘अध्यात्म और अध्यात्मिक’ शब्द के दुरूपयोग के बिना आप समाज का पूरी तरह से शोषण नहीं कर सकते, उसको सनातन धर्म कितना गूढ़ है, यह आभास भी नहीं दिला सकते|
वास्तव में सनातन धर्म बहुत आसान है, कोइ गूढता नहीं है, तथा इस विषय पर अनेक पोस्ट ब्लॉग मैं उपलब्ध हैं, इसलिए इस विषय पर इस पोस्ट पर बात नहीं होनी है|
रही अध्यात्मिक व्यक्ति की परिभाषा, यह भी ब्लॉग मैं उपलब्ध है, परन्तु यह पोस्ट की आवश्यकता इसलिए समझी गयी ताकी समाज तक इस विषय पर पूर्ण सूचना पहुच जाए | अध्यात्मिक व्यक्ति की परिभाषा भी यहाँ पर देदी जायेगी | परन्तु पहले साधारण भाषा मैं यह समझ लीजिये की ‘अध्यात्म और अध्यात्मिक’ क्या है |
संसार सांसारिक नियमो से ही चलता है, और ‘अध्यात्म और अध्यात्मिक’ उससे हट कर है | संसार मैं यह आवश्यक नियम है कि आपको हर काम का उचित परिश्रम शुल्क चाहिये; आप किसीसे काम करवाते हैं, तो उसे बदले मैं उचित धनराशी देते हैं, जो उस काम के लिए उस छेत्र मैं पर्याप्त आर्थिक प्रतिफल है, और इसी प्रकार आपको भी धन मिलता है, और इन्ही नियमो के तहत संसार चलता है | धार्मिक व्यक्ति उसको स्वीकार करता है, और यह आपको धार्मिक व्यक्ति की परिभाषा से विदित हो जाएगा|
परन्तु अध्यात्म और अध्यात्मिक इन सब सांसारिक नियमो को नहीं मानता, वोह संसार को कुछ देना के लिए इन सांसारिक नियमो को तोडता है, तथा सांसारिक नियम तोड़ने से जो कष्ट झेलने पड़ेंगे, इसको भी वोह स्वीकार करता है | अब आप बताएं जो व्यक्ति आपको अध्यात्मिक अनुभव बता रहा है वोह आपको ‘कष्ट झेलता हुआ’ लग रहा है? नहीं वोह भी इस संसार मैं सुख ढून्ढ रहा है |

प्राय आपको अध्यात्म के बारे मैं गरुए वस्त्र पहने हुए लोग ही बताएंगे; परन्तु साधू संत ही गरुए वस्त्र पहनते हैं, और ऐसी मान्यता है की ऐसे लोगो ने भौतिक सांसारिक सुख त्याग दिए हैं, फिर वे अध्यात्म की बात कैसे कर सकते हैं? 

वे तो अध्यात्म से भी उपर निकल गए हैं, साधू संत है, फिर समाज मैं पकड़ बनाने के लिए अद्यात्म का सहारा क्यूँ ? और फिर यह भी गलत बताना पड़ता है की अध्यात्म का भौतिकता से कोइ सम्बन्ध नहीं है |

जो व्यक्ति भौतिक सांसारिक सुख त्याग चूका है वोह तो सत्यम, शिवम्, सुंदरम की श्रंखला मैं सुंदरम मैं पहुच चूका है, यानी की उच्चतम पर पहुच चूका है | फिर उसे संसार को समझाने के लिए ‘अध्यात्म’ का सहारा क्यूँ लेना पड़ता है, क्षमा करें, इस भौतिक संसार मैं क्या कोइ भी बात बिना भौतिकता के समझना आसान है ?

फिर 'अध्यात्म' क्या है यह कैसे कोइ समझेगा बिना भौतिक बिन्दुओं के?

नीचे अद्यात्मिक व्यक्ति की परिभाषा दी जा रही है, तथा धार्मिक व्यक्ति और साधू की परिभाषा भी दी जा रही है :
अध्यात्मिक व्यक्ति
धार्मिक व्यक्ति व् अध्यात्मिक व्यक्ति मैं अंतर केवल इतना ही है कि जहां धार्मिक व्यक्ति अपने धार्मिक प्रयास से धन अर्जित करता है, आद्यात्मिक व्यक्ति समाज को देनें मैं ज्यादा विश्वास रखता है न कि लेनें मैं! भौतिक संसार मैं यदी कोइ व्यक्ति देनें मैं ज्यादा विष्वास रखता हो न कि लेनें मैं, तो ऐसे व्यक्ति के लिये धन अर्जित करना कठिन हो जाता है! 
उसको जीवन मैं अपने इस अध्यात्म व्यवाहर के कारण अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं, समाज उसे असफल कहता है | परन्तु वोह अपनी ‘समाज को देनें मैं ज्यादा विश्वास रखता है’ वाली आदत सुधार नहीं पाता, वोह कष्ट झेलते हुए, असफल के ताने सुनते हुए, ना कभी साधू कहलाता है, ना ही धार्मिक व्यक्ति, तथा गुमनाम की जिन्दगी बिताता है |

अध्यात्मिक व्यक्ति सत्यम शिवम सुन्दरम जैसी पवित्र शब्दावली मैं शिवम है!


धार्मिक व्यक्ति: 
वह व्यक्ति जो की अपनी उन्नति के लिये, अपने परिवार, तथा अपने पूरे परिवार, तथा जिस समाज, मोहल्लें, या सोसाइटी मैं वो रह रहा है, उसकी उनत्ति के लिये पूरी निष्ठा व् इमानदारी से कार्यरत रहता है वो धार्मिक व्यक्ति है! ऐसा करते हुए वो समाज मैं प्रगती भी कर सकता है व् घन अर्जित भी कर सकता है !

यहाँ यह स्पष्टीकरण आवश्यक है कि निष्ठा व् इमानदारी से कार्यरत रहने का यह भी आवश्यक मापदंड है कि वह व्यक्ति समस्त नकरात्मक सामाजिक बिंदुओं का भौतिक स्थर पर विरोध करेगा , जैसे कि भ्रष्टाचार, कमजोर वर्ग तथा स्त्रीयों पर अत्याचार, पर्यावाह्रण को दूषित करना या नष्ट करना, आदी, ! ऐसा व्यक्ति सत्यम शिवम सुन्दरम जैसी पवित्र शब्दावली मैं सत्यम है!


साधू या संत
यहाँ त्याग पूर्ण है ! ऐसे व्यक्ति ने जीवन के समस्त भौतिक सुख त्याग दिये हैं! उसके जीवन का एक ही लक्ष्य है; वोह की संसार को और अधिक सुन्दर बनाना ; ऐसा व्यक्ति हर जीवन को सुखी बनाना चाहता है ! वोह सत्यम शिवम सुन्दरम जैसी पवित्र शब्दावली मैं सुन्दरम है!

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A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.