रामायण भारत मैं सब ने पढी है, और टीवी पर उसका सीरियल भी देखा है, इसलिए लोकप्रियता मैं कोइ कमी नहीं है;
और
हिन्दू समाज धर्म पर अटूट विश्वास रखता है, फिर श्री राम के आदर्शो से समाज पूरी तरह से अछूता क्यूँ हैं? अगर इस विषय मैं आप किसी से बात करें तो आपको बताया जाएगा कि हिन्दू समाज अब धर्म को कहाँ मानता है, जो जवाब एकदम गलत है|
प्रमाणित आकडे बताते हैं की आजादी के बाद हिन्दुओं का धर्म पर खर्चा जबरदस्त बढ़ा है, और हिन्दू समाज आज भी धर्म पर अटूट विश्वास रखता है, लकिन इसके बाद भी न तो हिन्दू समाज का कुछ भला हो रहा है और न ही हमारे नैतिक मूल्यों मैं कुछ सुधार हुआ है| क्या कारण हो सकता है?
धर्मगुरु झूट बोल सकते हैं, क्यूँकी भगवा वस्त्र पहेंन रखे हैं, और उनके मन मैं यह विचार है कि गेरुवे/भगवा वस्त्र पहने के बाद झूट बोला जा सकता है, जो की घिनोना पाप है, लकिन पाप पुन्न के चक्कर मैं धर्मगुरु तो नहीं पड़ते, वे तो धन और राजनैतिक शक्ती के पुजारी हैं, उसे ही उन्हें प्राप्त करनी है| इसलिए वे यह कभी नहीं बताएंगे कि रामायण को इतिहास माने बिना तो श्री राम के आदर्श क्या थे वे समझ मैं आयेंगे नहीं, तो समझाएगा कौन?
उल्टा उन्होंने रामायण और महाभारत के भावनात्मक भाग कोतो ज्यू का त्यूं रखा, लकिन धर्म का भावनात्मक भाग बढ़ा दिया; क्यूँ? ताकी हिन्दू समाज भले ही गुलाम बन जाय, लकिन धर्म के प्रचार से धन अर्जित ज्यादा होना चाहिए, राजनैतिक शक्ती भी बढनी चाहिए|
सत्य तो यह है कि सनातन धर्म मैं आवश्यक नियम है कि:
सनातन धर्म मैं अवतार का स्वरुप, कम विकसित और अशिक्षित समाज के लिए, अलोकिक शक्ती की चादर के साथ होता था, जैसा की आजादी से पहले था
और...
विकसित , शिक्षित समाज के लिए, बिना अलोकिक शक्ती और चमत्कारिक शक्ती के, जैसा की आजादी के बाद के समाज के साथ होना था, परन्तु नहीं हुआ|
इसका एक अर्थ यह भी है की आपको श्री राम के आदर्श जभी मिल सकते हैं, जब आप रामायण को इतिहास मान कर समझे, जो आजादी के बाद, सनातन धर्म के नियम अनुसार होना था, लकिन नहीं हुआ, तो यह सत्य है की श्री राम के आदर्श किसी को बताए ही नहीं गए| इस पोस्ट मैं कुछ आदर्श नीचे दिए जा रहे हैं|
तो स्पष्ट है की आजादी के बाद समाज को बुरे इरादे से धर्म गुरुजनों ने भावनात्मक बना के रखा, और उल्टा धर्म का भावनात्मक भाग और बढ़ा दिया, ताकी भले ही समाज दुबारा गुलाम बन जाय, लकिन धर्मप्रचार से धन और राजनैतिक शक्ती अवश्य अर्जित होनी चाहिए इन धर्म गुरुजनों को, और वे अपने अभियान मैं सफल भी हैं|
कुछ और विस्तार मैं जाते हैं; क्या आप बता सकते हैं कि :
श्री राम क्यूँ अवतरित हुए थे?
क्यूँ श्री परशुराम अवतरित हुए थे ?
क्यूँ श्री परशुराम के तुरंत बाद श्री राम को अवतरित होना पड़ा ?
नहीं होगा आपके पास उत्तर क्यूँकी इसका उत्तर देने के लिए धर्म का भावनात्मक भाग कम करना पड़ेगा, जिससे समाज सुधर जाएगा, और धर्मगुरु कभी ऐसा नहीं होने देंगे| अब आप ही बताएं, जब आपको इन मुख्य प्रश्नों का उत्तर नहीं मालूम, तो आप श्री राम के आदर्श क्या थे, यह कैसे जानेंगे? एक के बाद एक अवतार त्रेता युग मैं क्यूँ हुए, इसका उत्तर तो आवश्यक है| उत्तर के लिए लिंक: इश्वर परुशुराम अवतार तत्पश्चात् राम के रूप मैं क्यूँ अवतरित हुए
अब कुछ मुख्य आदर्श श्रीराम ने जो स्थापित करें, जिनका अनुसरण आवश्यक है, लकिन जिसके बारे मैं आपको किसी ने भी कभी कुछ नहीं बताया वोह इस प्रकार हैं:
१. श्री राम ने यह स्थापित करा कि राज्य करने वालो को, चाहे वोह राजा हो या आज के परिपेक्ष मैं नेता हो, उसके लिए क्या धर्म है|
उद्धरण: वानर मनुष्य की नई प्रजाती थी, जिसको उस समय के मानव समाज ने मनुष्य मानने तक से इनकार कर रखा था, उसके मुख्य समाज मैं निवेश के लिए श्री राम अपनी पत्नी और भ्राता के साथ १४ वर्ष वन मैं रहे, उनके बीच मैं, ताकी उनको शिक्षित कर सके, और फिर रावण के युद्ध के समय अयोध्या से सेना बुलाने का विकल्प होते हुए भी, बिना पूर्व प्रमाण के रावण और लंका की विशाल सेना से वानरों की सेना के साथ युद्ध करना, आज के समाज मैं नेताओ के व्यवहार और समाज हित मैं आरक्षण के लिए क्या नीती होनी चाहिए, उसपर नई प्रगतीशील दिशा दे सकती है|
ध्यान दे, आज आरक्षण की नीती को भी यह आदर्श सही दिशा दे सकता है|
२. श्री राम ने यह भी स्थापित करा की न्याय प्रणाली मैं भावनात्मक प्रमाण, जैसे की अग्नि परीक्षा, स्त्री के चरित के बारे मैं कुछ स्थापित नहीं कर सकता, और भौतिक प्रमाण ही न्यायधीश स्वीकार कर सकते हैं| यह कोइ सयोंग नहीं है, बल्की श्री राम के समय की न्याय प्रणाली जो की आज भी मान्य है, और जो आज पूरे प्रगतिशील देशो मैं और भारत मैं भी है, तथा उसी साक्ष्य विधि(LAW OF EVIDENCE) का प्रयोग महारानी सीता को त्यागने मैं करा गया| सोच लीजिये आज श्री राम के स्थापित आदर्श कितने महत्वपूर्ण हैं, लकिन कोइ धर्मगुरु तो बताता नहीं, वोह्तो मात्र भावनात्मक बाते करके समाज को वश मैं रखने का कार्य करते हैं|
ध्यान दे: आजादी के बाद समाज को धर्म गुरुजनों ने भावनात्मक बना के रखा, और भावनात्मक भाग और बढ़ा दिया, ताकी भले ही समाज गुलाम बन जाय, लकिन धर्मप्रचार से धन और राजनैतिक शक्ती अवश्य अर्जित होनी चाहिए|
जय श्री राम, जय माता सीता !!!
No comments :
Post a Comment