पहले तो यह समझ लें की अर्जुन अपने ही सौर्यमण्डल मैं बहुत दूर युद्ध करने गए थे जहाँ संचार की व्यवस्था भी नहीं थी, चुकी पांडव पक्ष मैं और किसी को चक्रव्यूह का तोड़ मालूम नहीं था, इसलिए इस युद्ध से कौरव की विजय निश्चित थी, ऐसी सोच कौरव पक्ष मैं अवश्य थी, और उसी जोश के साथ इस व्यूह को क्रियान्वित करा गया|
सूर्य, चन्द्र, मंगल, ब्रहस्पति, शनि, बुध, शुक्र, राहू, और केतु,
जो नवग्रह हैं उसकी गति के अनुपात मैं व्यूह की रचना को चक्रव्यूह कहते हैं; सिर्फ इतना ही नही वेदांत ज्योतिष के अनुसार बारह खंड या भाग/घर का क्रमांक भी निश्चित होता है|
चक्रव्यूह नवग्रह की उस समय की दिशा से ठीक विपरीत दिशा मैं चलता है, और पूरे सौर्यमण्डल मैं उसका फैलाव होता है| उसकी मार का कोइ तोड़ नहीं होता| वह बारह भाग या गृह मैं विभाजित करके बनता है, तथा उनका स्वरुप वही होता है, जो वेदांत ज्योतिष मैं, १ से १२ गृह का होता है,
अथार्त :
१. लग्न, युद्ध छेत्र मैं उसको कहा जाएगा, केंद्रीय दिशा निर्देश मंच,
२. कुटुंब या धन, जिसका अर्थ.. हुआ, तैनात और रिज़र्व सेना, अस्त्र,
३. संचार,
४. घर, अर्थ.. सेना जो सुरक्षा कवच के अंदर है,
५. उच्च शिक्षा, अर्थ.. आधुनिकतम अस्त्र के संचार का केंद्र
६. शत्रु, अर्थ.. सेना जो उस समय शत्रु से युद्ध लड़ने के लिए तैनात है
७. बहारी संपर्क और सम्बन्ध, अर्थ.. सेना, अस्त्र जो शत्रु से युद्ध कर रहे हैं,
८. जीवन, मृत्यु और कारण
९. से १२ ... वास्तव मैं ८ से १२ परिणाम है १ से ७ के |
वेदान्त ज्योतिष का यह आवश्यक सिद्धांत है कि हर मनुष्य अपने जन्म के साथ पहले ६ घरो का ज्ञान और कर्म शक्ति अपने साथ लाता है, और यहाँ पर आ कर मनुष्य शिक्षा से मात्र उस दिशा मैं निपुर्णता प्राप्त करता है|
पहले तो यह समझ लें की अर्जुन अपने ही सौर्यमण्डल मैं बहुत दूर युद्ध करने गए थे जहाँ संचार की व्यवस्था भी नहीं थी, चुकी पांडव पक्ष मैं और किसी को चक्रव्यूह का तोड़ मालूम नहीं था, इसलिए इस युद्ध से कौरव की विजय निश्चित थी, ऐसी सोच कौरव पक्ष मैं अवश्य थी, और उसी जोश के साथ इस व्यूह को क्रियान्वित करा गया|
चक्रव्यूह की रचना होई है, और किसी को इसका ज्ञान नहीं है, यह सोच कर ही पांडव पक्ष के हाथ पैर फूल गए, वे यह भी भूल गए की युद्ध मैं नायको का जोश और उत्साह आवश्यक है| युद्ध मैं शक्ति, जोश और युक्ति सबकी ही आवश्यकता होती हैं, और प्राय युक्ती के आभाव मैं शक्ती, धैर्य/जोश युद्ध भूमी मैं काम आ जाता है| उन्होंने बार बार व्यूह को भेदने का प्रयास भी करा, लेकिन निराशा हाथ लगी|
हार का डर महावीरो तक से क्या क्या करा देता है, यह चक्रव्यूह युद्ध से हर व्यक्ती को सीखना अवश्य चाहिए| निराश पांडव शिविर हार के बारे मैं सोचने लगा| अभिमन्यु यह सब देख रहे थे, उन्हें शिक्षा के अतिरिक्त युद्ध मैं प्रेरणा, साहस शौर्य का प्रदर्शन कितना आवश्यक है, इसकी शिक्षा स्वंम श्री कृष्ण से मिली थी| उन्हे यह भी मालूम था की चक्रव्यूह वेदान्त ज्योतिष के गृह के स्वरुप अनुकूल ही निर्मित होता है, इसलिए पूरे दिन मैं ६ घर ही सामने आयेंगे, जिन्हे अगर खंडित कर दिया गया, तो चक्रव्यूह खंडित हो जाएगा| युवा वीर ने इस बात को कोइ महत्त्व नहीं दिया कि इसके उपरान्त वे ज्ञान के आभाव मैं व्यूह से बाहर निकल पायेंगे की नहीं|
उन्होंने अपने ताऊ और चाचा से बात करी, बताया, या यह भी कह सकते हैं, की सत्य को ज़रा खीच कर ताऊ और चाचा को यह समझा दिया कि पहले ६ गृह के बारे मैं तो उन्हें गर्भ से ही ज्ञान है, जोश मैं आकर भीम बोले की सातवे का मार्ग तो वे अपनी गदा से बना लेंगे| मरता क्या ना करता; तय हुआ, अभिमन्यु के नेत्रित्व मैं युद्ध के लिए पांडव पक्ष निकल पड़ा, लकिन सुबह की बार बार की हार अपने मस्तिक्ष से नहीं निकाल पाए, और अभिमन्यु तो चक्रव्यूह मैं प्रवेश कर गए, लकिन बाकी मुख्य पांडव असमर्थ रहे|
फिर से समझ लें, न तो अभिमन्यु को व्यूह कैसे भेदा जाएगा, इसका ज्ञान था, और ना ही पांड्वो को, लकिन अभिमन्यु मैं साहस था, और इस साहस के कारण उनके लिए इतना ज्ञान ही पर्याप्त था, की वेदान्त ज्योतिष के अनुसार सारे मुख्य गृह/भाग स्वंम दिन भर मैं उनके सामने आयेंगे, और आगे अपने शौर्य/वीरता से वे मार्ग निश्चित करेंगे |
पूरे दिन वीर अभिमन्यु, और उनकी टोली भीषण युद्ध करती रही, और वास्तव मैं शाम होते होते सातवे घर मैं प्रवेश करगई| युद्ध धीरे धीरे उग्र होता जा रहा था| युक्ती के आभाव मैं अभिमन्यु यह समझ रहे थे की निकलना आसन नहीं होगा, उन्होंने महत्वपूर्ण सैनिक ठीकाने विध्वंस करने शुरू कर दिए| अब उन्हें ना तो मौत का डर था, ना ही हार का| उन्होंने इतना भीषण युद्ध करा की कौरव युद्ध के सारे नियम भूल कर एक साथ अभिमन्यु से भीड़ गए|
लकिन अभिमन्यु के सामने एक संकल्प था; उनकी मार मैं चन्द्रमा पर कौरवो के ठिकाने आ गए, और उन्होंने आधुनिकतम अस्त्रों का प्रयोग करके सबको खंडहरों मैं बदल दिया| आज भी कुछ विश्व स्तर के विज्ञानिक इस बात को मानते हैं, कि चन्द्रमा मैं कुछ खंड मानव निर्मित हैं जो अत्यंत शक्तिशाली परमाणु अस्त्रों द्वारा करे गए हैं, और संभवत: महाभारत काल के हैं|
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इसका एक प्रमाण यह भी है, की इतने भीषण आक्रमण के पश्च्यात चन्द्रमा ने अपनी धुरी सूर्य के सन्दर्भ मैं बदल ली और सूर्य ग्रहण एक मॉस पहले हो गया, जिसके कारण जयदत्र को मारने मैं अर्जुन को सहायता मिली|
अनेक यानो से एक साथ आक्रमण बार बार हो रहा था, कौरव युद्ध के सारे नियम भूल चुके थे| अभिमन्यु बुरी तरह से घायल हो गए थे, और युद्ध के नियम के अनुसार उन्हें पृथ्वी पर उपचार के लिए लाया जा रहा था, की कौरवो के मुख्य नायको ने उन्हें घेर लिया| अत्यंत घायल अवस्था मैं जो भी उनकी हाथ मैं आया, उसी से वे लड़ते रहे, और अंत मैं वे गिर पड़े| तब जयद्रथ ने उनके सर पर वार करा; अभिमन्यु वीर गति को प्राप्त हो गए| कौरव वीरो ने, जिसमें द्रोणाचार्य, कर्ण भी शामिल थे, ने शव के चारो और नृत्य करा, जो किसी भी सभ्यता मैं शर्मनाक माना जाएगा|
१००० वर्ष की गुलामी के बाद भारत आज़ाद हुआ है, लकिन हमारे धर्मगुरु, हमारा प्राचीन गौरवपूर्ण इतिहास है, उसका लाभ हमें नहीं देना चाहते, क्यूँकी तब हिन्दू समाज को कर्मठ बनाना होगा, जो की इन धर्म गुरुजनों की दुकानदारी बंद करा देगा| निर्णय आपके ऊपर है, क्या हिन्दू समाज को दुबारा गुलाम बनाना है, या विश्व का शक्तिशाली समाज?
राधे राधे, जय श्री कृष्ण !!!
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