Thursday, November 21, 2013

धर्मगुरु नहीं शोषणकर्ता, खराब सतयुग को अच्छा और कलयुग को खराब बताना

सत्य यह है कि सनातन धर्म के अनुसार कलयुग सबसे श्रेष्ट युग है और सतयुग सबसे खराब| गुलामी के समय चुकी हिन्दू समाज को बहुत अत्याचार सहने पड़ते थे, तो संत लोग कलयुग को खराब युग बता कर भावनात्मक संतुष्टी प्रदान करते थे, और यह भी सत्य है कि ऐसे अनेक अवसर पहले भी आयें हैं, इसीलिये पुराणों मैं कहीं कहीं संस्कृत श्लोक उपलब्ध हैं, जो इस बात का समर्थन करते हैं कि कलयुग खराब युग है|
लकिन संस्कृत भाषा मैं लिखा होना कोइ प्रमाण नहीं होता, यह तो हर कोइ जानता है, और अगर जानता है तो यह संस्कृत का दुरूपयोग है, जो किसी तरह से क्षमा करने लायक नहीं है | 

युगों को स्वीकार, इस सूचना युग मैं केवल सनातन धर्म ही करता है, तो जितने भी मापदंड हैं युगों का आंकलन करने के लिए, वे भी सनातन धर्म मैं उपलब्ध हैं, तो फिर यह ठगाई, झूट और मक्कारी क्यूँ?

क्या इतनी बात भी संस्कृत विद्वान नहीं जानते कि युगों का निर्माण , पुराणों की सूचना के अनुसार , एक मात्र तरीका है, जिससे यह ज्ञात हो सकता है कि कौनसा युग अच्छा है, कौनसा खराब | फिर से; संस्कृत श्लोक कोइ मानक नहीं है, यह निर्धारित करने के लिए कि कौन सा युग अच्छा है, कौन सा खराब~~और युगों का निर्माण विद्वान करेंगे नहीं, क्यूंकि समाज का शोषण तो नहीं रुकना चाहीये !

क्या ६५ वर्ष मैं सारे धर्मगुरु जो आयें हैं वे अज्ञानी थे, लकिन भगवान् की तरह अपने को पुजवाते रहे, या ठग? उत्तर इसलिए आवश्यक होजाता है क्यूँकी किसी ने यह नहीं कहा कि सतयुग खराब युग था, और कलयुग अच्छा|
अगर यह पोस्ट सत्य पर अधारित है, तो क्या कर्महीन हिन्दू समाज इस विषय पर कुछ करेगा, या जिस तरह से गुलामी मैं हमलावरों के जुल्म सहता रहा, आज अपनों के जुल्म सहेगा ? 
और अगर यह पोस्ट गलत है तो लेखक गंभीर अपराध कर रहा है, और उसकी कटु आलोचना होनी चाहिए|
यह तो सत्य है की या तो धर्मगुरु आजादी के बाद सिर्फ ठगाई मैं लगे हुए हैं, हिन्दू समाज का शोषण मैं लगे हुए हैं, या यह पोस्ट गलत है| इस सत्य को भी लेखक स्वीकार कर रहा है कि बीच का रास्ता कोइ नहीं है |

६५ वर्ष मैं हिन्दू समाज अत्यंग गरीब और कर्महीन हो गया, और इन धर्म गुरुजनों ने तथा ज्ञानी शिक्षित ब्राह्मण वर्ग ने स्वंम गरीब ब्राह्मण के मुह से रोटी छीन ली| 
कैसे कर्मकांडी ब्राह्मण जिसका गुजारा अपने समाज के घरो मैं जा कर पूजा कराने से होता था उसकी रोटी इनलोगों ने छीनी ? कैसे?
ठगाई की नियत से झूट बोल कर कि सामूहिक धार्मिक अनुष्ठान और धर्मगुरु के के आश्रम पर जाकर सेवा करना धर्म और धार्मिक व्यक्ति कहलाने के लिए पर्याप्त है, जो की एकदम गलत और ठगाई से प्ररित है|

धर्म का स्थान घर है, और सनातन धर्म का एक और नियम है कि यदी कहीं कोइ शक या विवाद हो तो वेदान्त ज्योतिष का सहारा लिया जाना चाहिए| 

ब्रस्पति, जो की धर्मगुरु हैं, तथा धर्म के कारक हैं, उनको दिशाबल चोथे स्थान पर मिलता है और चौथा स्थान आपके घर का है| अर्थ स्पष्ट है धर्मगुरु को आपके घर मैं आकर ही धार्मिक अनुष्ठान करना है | किसी तरह का कोइ शक या विवाद न रहे इसलिए वेदान्त ज्योतिष यह भी बताती है की ब्रस्पति चौथी राशी यानी की कर्क मैं उच्च के होते हैं, और कर्क का मालिक चन्द्र है जो ज्योतिष मैं घर का कारक है और भौतिक सुख का भी |

स्पष्ट है कि धर्म का स्वरुप भौतिक है, और घर से शुरू होता है| 
धर्म और धार्मिक व्यक्ति की परिभाषा दी जा रही है, वैसे आप लिंक पर जा कर भी देख सकते हैं: 
युगों का निर्माण सनातन धर्म के मापदंडो के अनुसार कैसे होना है, इसके लिए पढ़ें:
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धर्म और धार्मिक व्यक्ति की परिभाषा:
सनातन धर्म :
सनातन धर्म समय समय पर समाज की अवस्था देख कर, समाज के लिए जो नियम व धार्मिक दिशा निर्देश देता है, जिससे : 
१) समाज की रक्षा हो सके,

२) समाज मैं आपसी प्रेम और भाईचारा बना रहे, और परस्पर सहयोग से हर समस्या से निबटने के लिए क्षमता विकसित हो सके,

३) धार्मिक प्रवचन मैं उचित अनुपात भावना और कर्म(भक्ति और कर्म) का सुनिश्चित करना, समाज की स्तिथी के अनुसार| 

जैसे की अभी हाल की १०००० वर्षों की गुलामी मैं समाज का स्वरुप एक अबोध बालक की तरह था, तो भक्ति भाग बढ़ा दिया गया, और यहाँ तक की कर्मवीर श्री कृष्ण को गोपियों के साथ रास रचाते दिखा दिया| 

ठीक उसी तरह आज समाज की क्षमता है, युवा व्यवस्था है, हिंदू समाज की , और अब भक्ति भाग घटा कर कर्म का भाग बढ़ना था, जो की नहीं हुआ, और हिंदू समाज कर्महीन हो गया ..

यह अति आवश्यक है|

४) समाज मैं हर व्यक्ति को सामान अवसर के आधार पर उनत्ति का अवसर प्रदान करने मैं सहायक होना|

ध्यान रहे यह सब करते हुए इस बात का विशेष ध्यान रखना है की पर्यावर्हन की रक्षा हो सके और प्राकृतिक संसाधन का प्रयोग इस प्रकार हो की वे समाप्त न होने लगे|

धार्मिक व्यक्ति: 
वह व्यक्ति जो की अपनी उन्नति के लिये, अपने परिवार, तथा अपने पूरे परिवार, तथा जिस समाज, मोहल्लें, या सोसाइटी मैं वो रह रहा है, उसकी उनत्ति के लिये पूरी निष्ठा व् इमानदारी से कार्यरत रहता है वो धार्मिक व्यक्ति है! ऐसा करते हुए वो समाज मैं प्रगती भी कर सकता है व् घन अर्जित भी कर सकता है !

यहाँ यह स्पष्टीकरण आवश्यक है कि निष्ठा व् इमानदारी से कार्यरत रहने का यह भी आवश्यक मापदंड है कि वह व्यक्ति समस्त नकरात्मक सामाजिक बिंदुओं का भौतिक स्थर पर विरोध करेगा , जैसे कि भ्रष्टाचार, कमजोर वर्ग तथा स्त्रीयों पर अत्याचार, पर्यावाह्रण को दूषित करना या नष्ट करना, आदी, ! ऐसा व्यक्ति सत्यम शिवम सुन्दरम जैसी पवित्र शब्दावली मैं सत्यम है!

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.