Wednesday, July 19, 2017

विद्वान परशुराम को नकारात्मक क्रोधित और घोर बदला लेते हुए क्यूँ दिखाते हैं?

मालूम नहीं क्यूँ संस्कृत विद्वान यह पूरी तरह से गलत सूचना विष्णु अवतार, भगवान् परशुराम जी के बारे में देते है, की क्षत्रियों का उनके पिता के साथ दुर्व्यवाहर के कारण , तथा क्षत्रियों की अन्य उद्दंडता के कारण , उन्होंने इक्कीस बार पृथ्वी को सारे क्षत्रिये मार कर शत्रिय-विहीन कर दिया |
ईश्वर अवतार तो दया के सागर होते हैं, वैसे भी सनातन में यह नियम है कि मानव रूप में प्रभु सदैव यह उद्धारण प्रस्तुत करते हैं कि यदि कोइ मानव ऐसा कार्य करे कि दण्डित करना आवश्यक है, तो मानव के पास इतना ही अधिकार है कि उस व्यक्ति को इतना ही दण्ड दिया जाय जिससे समाज आगे बढ़ता जाए, ना की अपराध के अनुसार ‘उचित दण्ड’ | 

उचित दण्ड देना का अधिकार मानव के पास नहीं है, हाँ कभी स्थिथि ऐसी अवश्य आती है कि एक व्यक्ति को बिना दंडित करे समाज आगे नहीं बढ़ सकता ! लकिन ऐसे समय में दण्ड कम से कम ही दिया जाता है !

इस आवश्यक नियम के बिना श्रृष्टि आगे नहीं बढ़ सकती और ईश्वर अवतार का उद्देश होता है वेद का ज्ञान उद्धारण से समाज तक पहुचाना, तो फिर उसमें बदले की भावना दण्ड का आधार कैसे हो सकता है ? 

न तो यह तर्क वेद के ज्ञान से मेल खाता है, ना ही ईश्वर को सकारात्मक दिखाता है | 

भगवान् परशुराम जी ने इक्कीस बार पृथ्वी को सारे क्षत्रिये मार कर शत्रिय-विहीन कर दिया , संस्कृत विद्वानों का समाज को शोषण हेतु गलत सूचना देने की एक चाल ही है, और कुछ नहीं |

दण्ड देना अगर बहुत आवश्यक हो तो ‘कम से कम दण्ड’ , यही नियम है ; और वैसे भी गलती तो हर मानव करता ही रहता है | 

चलिये भगवान् परशुराम से शुरू करा था,  वे क्षत्रियों को क्यूँ मार रहे थे |

मेरी अनेक पोस्ट हैं जिसमें इस बात पर विशेष बल दिया गया है कि ईश्वर अवतार का इतिहास मानव इतिहास की तरह ही समझना है, तभी वैदिक ज्ञान का आभास होगा, नहीं तो शोषण | अर्थात बिना अलोकिक/चमत्कारिक शक्तियों का प्रयोग करके |

सतयुग की आरम्भ से, अर्थात नए महायुग के प्रारम्भ से कुछ नई समस्या आई, जिसमें अनेक का समाधान तो समय के साथ हो गया , लकिन कुछ समाज-विरोधी समस्याओं ने धर्म का सहारा लेकर फलना फूलना शुरू लकर दिया | इसमें दो प्रमुख थी :
१. छोटे छोटे राज्य थे, आपस में विस्तार के लिए युद्ध होते रहते थे , लूट मार भी होती रहती थी, जिसमें औरतो को भी लूट कर ले आया जाता था | सैनिक(क्षत्रिय) इनको अपने सुख की वास्तु समझते थे, और उस समय अनेक स्त्रियाँ इनके पास होती थी | इनसे यह सैनिक(क्षत्रिय) विवाह भी नहीं करते थे , कुछ समय बाद इनको छोड़ देते थे | 
इससे समाज में विशेष समस्या हो गयी, जिससे निबटने के लिए धर्म ने भी उलटे-सीधे नियम बनाए, जिसमें अग्नि परीक्षा एक नियम था | अग्नि परीक्षा धार्मिक नियम में ऐसी अपहरण स्त्री अपने पति के पास तभी वापस जा सकती थी, जब वोह अग्नि परीक्षा में सफल हो | इससे भी शोषण और बढ़ा ; और इसी अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित करने के लिए श्री राम ने सीता का त्याग करा | 
२. सतयुग में प्रकृति, अमृत बरसने के बाद बहुत तेज़ी से बढ़ती है; मानव की अनेक प्रजाति भी वन में उत्पन्न होती हैं, जिसमें वानर प्रमुख थी | और भी अनेक मानव की प्रजाति उत्पन्न हुई, जो या तो पनप नहीं पाई, या अन्य मानव प्रजाति में समा गयी | 
नरसिंह भगवान्(श्री विष्णु अवतार) भी इन्ही एक प्रजाति में से थे |  
खैर, इन वानरों को पुराने मानव जो पिछले कलयुग से आए थे, और जो राक्षस और आर्य की तरह अलग अलग रह रहे थे, ने कभी भी मानव नहीं माना, तथा जानवरों की तरह ही उनको जंगल से शिकार करके बाँध कर लाते और काम कराया जाता | कोइ भी राज्य इनको मानव मामने के लिए तय्य्यर नहीं था, तथा इसका समाधान श्री राम ने करा |
यह समस्या सतयुग की थी, जो त्रेता युग में विज्ञानिक और सामाजिक विकास के बाद और भयंकर रूप में हो गयी | प्रलय का डर मंडराने लगा | स्त्री पूरी उपभोग की वास्तु बनती जा रही थी, और धर्म उसमें अग्नि-परीक्षा जैसे नियम बना कर सहायता कर रहा था | वानर को मानव मानने के लिए कोइ राज्य तैयार नहीं था |

श्री विष्णु अवतार परशुराम ने ‘वानर के शिकार और पकड़ने की रोक’ पर अनेक राज्यों से युद्ध करे, और युद्ध जीतने के बाद वे विरोध पक्ष के सैनिको(क्षत्रियों) को तभी जीवित छोड़ रहे थे, जो उनके घर में स्त्रियाँ रह रही थी, उनसे विवाह करने को तैयार थे , नहीं तो मार दे रहे थे | इससे काफी अंकुश लगा, समाज में सुधार आया |

वानरों के सम्बन्ध में कोइ भी राज्य वानर को मानव मानने के लिए तैयार नहीं हुआ | बस ईश्वर अवतार को इतनी सफलता मिली कि ‘आर्य’ राज्यों ने यह स्वीकार कर लिया कि उनके नागरिक वानरों को वन से पकड़ कर नहीं लायेंगे, हां बाज़ार में खरीदने-बेचने पर कोइ पावंदी नहीं होगी | राक्षस राज्यों ने यह भी स्वीकार नहीं करा |

मानव अवतार में ईश्वर की सीमाएं होती हैं | एक ब्राह्मण कुल में पैदा हुए परशुराम को शक्ति और सामर्थ बनाने में पर्याप्त समय लगा , जो की बिना अलोकिक शक्ती के समझा जा सकता है | इसके बाद इक्कीस बार युद्ध की तय्यारी और व्यवस्था कोइ आसान नहीं होती, और फिर युद्ध | इन सबमें उनका समय समाप्ती की और बढ़ने लगा , और उन्होंने , चुकी केवल आर्य क्षत्रिय राज्यों ने उनकी बात स्वीकार करी थी , उन्होंने सामूहिक विनाश का हथियार , शिव-धनुष राजा जनक के पास रख कर अपने अवतरित कर्तव्यों से मुक्ती ली |

स्वाभाविक है कि अधूरे कार्य को पूरा करने के लिए श्री विष्णु को तुरंत श्री राम के रूप में अवतरित होना पड़ा , तथा बाकी समस्याओं का समाधान उन्होंने करा |

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A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.