Monday, July 10, 2017

गुरु पूर्णिमा पर जीवित गुरु कि वंदना समाप्त होनी चाहीये, यही सनातन है

समझिये, और यदि इसको अपनी सामाजिक जिम्मेदारी समझते हैं तो चर्चा, शेयर भी करीए !
गुरु पूर्णिमा पर गुरु वंदना का बहिष्कार होना चाहीये !
निर्णय कठिन है क्यूँकी अपने वर्षो से चले आ रहे संस्कार से लड़ना होगा !
पिछले ४० वर्षो से इसका दुष्यपरिणाम सरकारी संस्थानों मैं , विश्वविद्यालयों में और यहाँ तक निजी कम्पनीयों में मैं देख रहा हूँ !

गुरुकुल शिक्षा प्रणाली एक फ़ैल(भ्रष्ट) शिक्षा प्रणाली थी, और स्वंम युधिष्टिर ने अपने निहत्ते गुरु द्रोण का युद्धभूमि में वध करवा के यह सन्देश दिया है, तथा इस सन्देश में ईश्वर अवतार श्री कृष्ण का आशीर्वाद भी है | ध्यान रहे कि युद्धभूमि के नियमो के अनुसार किसी भी निहत्ते व्यक्ति को बंदी बनाया जा सकता है, मारा नहीं जा सकता; और गुरुद्रोण तो धर्मराज युधिष्टिर के गुरु थे | सोचीये, यह सन्देश भविष्य को देना कितना आवश्यक था, कि गुरु की वंदना नहीं होनी चाहीये, तथा गुरुकुल शिक्षा भ्रष्ट हो चुकी है, समाप्त होनी चाहीये |

परन्तु क्या ऐसा हुआ?
नहीं, किसने हेराफेरी करी, और धर्म को ही पलट कर रख दिया, ताकि समाज का शोषण होता रहे ?
क्या विदेशियों ने, क्या गैर सनातनियों ने ? 
या फिर संस्कृत विद्वानों ने और धर्मगुरूओ ने ?

जी हाँ हमारे पूजनीये और “वन्दानीये” विद्वानो और गुरुओ ने |

और इससे तो कोइ इनकार नहीं कर सकता कि,
यह ऐतिहासिक भौतिक तथ्य है कि गुरुकुल शिक्षा प्रणाली से भारत गुलाम बना, टुकड़े टुकड़े हुए !

रैगिंग, कमजोर का शोषण, गुरु वंदना की देन है !

कैसे हमलोग भूल जाते हैं इतिहास का सबक; द्रोण ने एकलव्य का अंगूठा गुरु-दक्षिणा में लिया था !

क्या है आपमें इतना साहस, इस संस्कारिक परंपरा का विरोध करने का ?

इस विषय पर विशेष विरोध है, क्यूंकि सनातन धर्म में शोषण बहुत ज्यादा है, और समाज कि मानसिकता ‘गुलाम-वाली’ करदी गयी है | संस्कृत विद्वान और धर्मगुरूओ ने मिल कर धर्म में हेराफेरी करके पिछले ५००० वर्षो से समाज की सोच कि दिशा बदली और इतिहास इसको प्रमाणित भी कर रहा है |

जीवित गुरु की वंदना बंद होनी चाहीये, उपर एक कारण दिया गया, नीचे और दो कारण भी समझ लें |
निर्णय आप लें !

एक विवाद रहित बात; ‘राष्ट्रीयता’ प्रथम धर्म है, और सर्वप्रथम चाणक्य ने २३०० वर्ष पूर्व इसकी बात करी | विद्वानों के विरोध के बाद भी सफल हुए, चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्य भारत और अफगानिस्तान तक था, और पूरे राज्य में ‘जय माँ भारती’ का नारा गूंजता था |

लकिन, विद्वानों/गुरुओ ने चाणक्य के समय से इसका विरोध करा, जिसके फल स्वरुप चन्द्रगुप्त वंशज अशोक को बौध धर्म बनाना पड़ा !
और 
चाणक्य के बाद सनातन धर्म के विद्वानों ने समाज-शोषण के लिए 'राष्ट्रीयता' को दफना दिया, 
जिससे छोटे छोटे राज्य/रजवाड़े हुए, समाज विदेशीयों का गुलाम रहा !

उस समय भी विदेशी, गैर सनातनी नहीं थे, 
जी हाँ,
विरोध संस्कृत विद्वानों ने और धर्मगुरूओ ने करा , ताकि समाज का शोषण जो चाणक्य समाप्त करना चाहते थे, वोह कभी ख़तम ना हो ! जी हाँ हमारे पूजनीये और “वन्दानीये” विद्वानो और गुरुओ ने |

अब जो बात हो रही है, बहुत पुराने इतिहास की नहीं हो रही है | कमजोर और शोषित भारत पर विदेशी अफगानिस्तान के मार्ग से अमृतसर तक आते, और फिर यहाँ वहां लूट मार करके, औरतो को गुलाम बना कर ले जाते थे | ऐसा अनेक बार हुआ, या यह कहीये कि कमजोर भारत में यह होता ही रहता था, हाँ इतिहास में सीमित बड़े हमलो का उल्लेख है |

कुछ हिन्दू गुरुओ ने इसका समाधान निकालने के बारे में सोचा, पर उस समय मुसलमानों का शाशन देश में भी था | अनेक कुर्बानिय इन गुरुओ को देनी पडी , फिर ‘सिक्ख’ करके एक ‘फौजी कौम’ का गठन करा गया, जिसके लिए कठोर धार्मिक नियम बनाए गए | और फिर अमृतसर में स्वर्ण मंदिर का निर्माण करके हमलावरों को चुनौती भेजी, कि हिम्मत हो तो लूट लो | 

सिखों ने अपने प्रथम दस गुरुओ की वाणी को 'गुरुग्रंथ साहीब' कह कर गुरु की तरह पूजा, 
और 
जीवित किसी भी व्यक्ति को 'गुरु' की उपाधि नहीं देते |
तथा, इतनी कुर्बानी देने वाले हिन्दू गुरुओ ने जो करा, उसको विद्वानों/धर्मगुरूओ ने समाज शोषण के लिए ठुकरा दिया, और वे भी सनातन से अलग हो गए |

ध्यान दे, आपके स्वंम के घर के बड़े , और माता पिता के अतिरिक्त कोइ जीवित व्यक्ति आपके लिए वन्दिनिये नहीं है !

अगर गुरु वंदना करना ही है तो, हनुमान जी को गुरु मान कर उनकी वंदना करीये !

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.