गुरुकुल शिक्षा से अधिकाँश सूचनाए गलत दी गयी हैं ;
आज भी और पिछले ५००० वर्षो से!
क्या कोइ बताएंगा , समाज के पास गुलामी के अतिरिक्त और क्या विकल्प था?
और गुरुकुल शिक्षा पर चर्चा भी अपराध माना जाता है !
जैसे की शीर्षक से समझ में आ रहा है, यह एक अत्यंत गंभीर विषय है, और आरोप भी |
इसलिए इस विषय पर पूरे तथ्य और सूचना निकालना हर हिन्दू का कर्तव्य है , क्यूंकि इस विषय से भागा तो नहीं जा सकता | समाज, विदेशी हमलावरों का १००० से अधिक वर्षो की गुलामी झेल चूका है |
इससे पहले की स्तिथि भी सामान्य नागरिक के लिए कष्टदायक और अंदरूनी शोषण से भरी हुई थे , तथा यह ऐतिहासिक सत्य है
|
और आज भी ,
प्रजातंत्र होने के पश्च्यात भी, बहुल हिन्दू समाज अपने ही देश में द्वित्य श्रेणी का नागरिक है |
चलिये, समझते हैं, हुआ क्या है, कैसे समाज को गुलामी की और नीतिवध तरीके से धकेला गया है|
ब्रह्मा जी के मुख से सदैव वेदों का उच्चारण होता रहता है, लकिन किसी भी विद्वान और धर्मगुरु ने ‘वेद’ को परिभाषित नहीं करा, न होने दिया |
जिस तरह से कुरान और बाइबिल की संशिप्त परिभाषा यह है ..
कि “कुरान और बाइबिल समाज में जीने के नियम है” ...
उसी तरह से वेद की संशिप्त परिभाषा है...
"वेद समाज में जीने का ज्ञान है "
कृप्या समझ लें :
ईश्वर और धर्म की आवश्यकता मानव को इसलिए पडी, क्यूंकि समाज में मिलजुल कर रहने के लिए भावनात्मक बंधन तो चाहीये ..!
और ईश्वर और धर्म इस आवश्यकता को पूरा करता है !
नियम और ज्ञान का अंतर तो आप सबको मालूम है,
सनातन धर्म नियम प्रधान धर्म नहीं है, लकिन बाकी सब नियम प्रधान धर्म है ..!
इसीलिये सनातन धाम मानने वाले समाज में बदलाव लाना भी आसान है, और अंदरूनी शोषण भी ..!
महाभारत युद्ध समाप्त होते होते सामाजिक ढांचा बहुत कमजोर हो गया था ,
और हर जगह अफरा-तफरी मच गयी, समाज का आक्रोश लूटमार में बदल गया..!
स्वंम द्वारिका में अर्जुन गांडीव के साथ भी कुछ ना कर पाए !
बहेह्र्हाल , महाभारत तो एक लम्बा इतिहास है..
निष्कर्ष सिर्फ इतना है , कि ईश्वर अवतार श्री कृष्ण ,
चुकी,
अलोकिक शक्ति का प्रयोग तो कर ही नहीं सकते थे, मानव अवतार में..
तो अनेक समस्याओं का वे समाधान नहीं कर पाए ..
मानव जीवन की अवधि भी निश्चित होती है..
और धार्मिक(संस्कृत)विद्वानों और धर्मगुरूओ ने
तभी से धर्म में हेराफेरी शुरू करदी..
प्रोग्राम यह बना लिया कि हिन्दू समाज की मानसिकता गुलाम की रखनी है..
ताकि अंदरूनी शोषण जो धर्म से सम्बंधित लोग करें..
वोह बे रोक-टोक हो सके..और इतिहास भी इस बात का गवाह है...!
किसने जानबूझ कर, सोची समझी नीति के तहेत समाज को गुलाम बना कर रखने का खेल खेला...?
वैसे वेद के परिभाषा आप इस पोस्ट से ले सकते हैं:
अब सीधे इसी पोस्ट से उपरोक्त विषय :
‘कथित वेद-ज्ञाता’, आचार्यद्रोण जिनके अवगुणों के कारण श्री कृष्ण ने , जब वोह निहत्ये थे , तब मरवा दिया | और यह ना सोच कर कि इस अधार्मिक व्यक्ति ने क्या क्या असामाजिक कार्य करें हैं, उसको संस्कृत विद्वानों ने वेद-ज्ञाता घोषित कर दिया |
तो क्या यह भगवान् के अवतार श्री कृष्ण पर प्रश्न चिन्ह लगाने का प्रयास नहीं है ?
लकिन,....
लकिन,..
आचार्य चाणक्य , जिन्होंने २३०० वर्ष पहले, राष्ट्रीयता का नारा दिया, और उससे भारत को जोड़ने का प्रयास भी करा, और काफी कुछ सफलता भी मिली वोह वेद-ज्ञाता नहीं कहलाते ! उनका ‘जय माँ भारती’ का नारा आज भी हमलोग गर्व से दोहराते हैं |’
यह तो एक बिंदु है, जिसका उत्तर कोइ नहीं देता,
सनातन धर्म कर्म प्रधान धर्म है, भौतिक मानक आधार है समाज को जीने का ज्ञान देने का,
लकिन कम से कम पिछले ५००० वर्षो से ऐसा नहीं हुआ !
उलटा समाज को शुरू में धीरे धीरे और फिर त्रीव गति से भावनात्मक बनाया गया, भक्ति की और मोड़ दिया गया , तथा धार्मिक प्रवचनों से कर्म का भाग घाटा कर भावना का भाग बढ़ा दिया गया |
समाज का बर्ताव एक छोटे बच्चे जैसा रह गया , जिसको कर्म से कुछ लेना-देना नहीं है |
और आजादी के बाद, जब सब संस्कृत विद्वान सरकारी अनुदान से चलने वाली विद्यालयों से शिक्षा ले रहे है, कर्म का भाग करीब करीब समाप्त कर दिया गया है |
यह एक सोची समझी साजिश है , विद्वानों द्वारा; जी हाँ संस्कृत विद्वानों द्वारा, समाज को गुलाम बना कर रखने के लिए |
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अवतरित ईश्वर और मानव में अंतर ?
मानव गलत निर्णय ले सकलता है, गलती कर सकता है ,
लकिन अवतरित ईश्वर के सारे निर्णय सही होते हैं, कर्म श्रृष्टि/समाज को समृद्धि/सकारात्मक दिशा की और ले जाने के लिए होते हैं..!
• युधिष्टिर की जूथक्रिया में छोटे भाईयों, द्रौपदी को हारना |
निष्कर्ष : मानव गलती कर सकता है...करेगा भी !
• श्री कृष्ण की बात मान कर युधिष्टिर का युद्धभूमि में निहत्ते द्रोण का वध करवाना ..!
निष्कर्ष :
अवतरित ईश्वर के सारे निर्णय सही होते हैं,
कर्म श्रृष्टि/समाज को समृद्धि/सकारात्मक दिशा की और ले जाने के लिए होते हैं |
यदि आचार्य द्रोण को वेद-ज्ञाता ना बताया गया होता, तो , आप ही सोचीये, और सही सूचना समाज तक पहुचने दी गयी होती कि गुरुकुल शिक्षा भ्रष्ट हो चुकी है, तो हिन्दू समाज का पिछले ५००० वर्षो में जो अंदरूनी और बाहरी शोषण हुआ है, वोह हो पाता ?
अब प्रश्न :
क्या इस गुलाम समाज की मानसिकता इतनी ‘सेट’ हो गयी है, कि चर्चा करने की हिम्मत भी नहीं रही..?
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