Thursday, March 30, 2017

कथा और इतिहास में वास्तविक अंतर, इसको समाज सुधार हेतु समझना अपनाना है

मुझे तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘मानस’ में पूर्ण आस्था है, और मेरे घर पर सब शुभकार्यो का आरम्भ मानस के पाठ से ही होता है | छोटा शुभ कार्य हो तो, सुंदरकाण्ड का पाठ करके शुभ आरम्भ कर दिया, बड़े में, पूरे मानस का पाठ !
मानस एक कथा है, और राम का त्रेतायुग के काल का आकलन इतिहास से हो सकता है | उसी तरह से पुराण और महाभारत को भी, कथा के रूप में ही अब तक लोगो ने समझा है |
सिर्फ और सिर्फ भावनात्मक बोध है कि रामायण, महाभारत और समस्त पुराण इतिहास हैं, और चुकी समस्त ग्रन्थ संस्कृत में हैं, तो इसको इतिहास के रूप में प्रस्तुति करने का कार्य संस्कृत विद्वानों का था, जो नहीं हुआ
विद्वानों और धर्मगुरूओ ने निजी स्वार्थ कारण इसको MYTHOLOGY(यानि की मिथ्या) की संज्ञा से सुसज्जित होना स्वीकार करा, लकिन प्राचीन इतिहास के स्वरुप में प्रस्तुति नहीं करी; कथा के रूप में समाज के शोषण के लिए प्रस्तुत करा गया !
क्या है इतिहास और कथा में अंतर ?

प्रश्न बहुत ही साधारण है, और उत्तर भी सबको मालूम है, लकिन यहाँ तो विस्तार से बताना ही है |
कथा इतिहास की ही एक लघु प्रस्तुती होती है, जिसमें भावनात्मक भाव और विचार बढ़ा कर , उसका उपयोग पूजा, विधि या व्रत के लिए करा जाता है | 

कथा में आपको किसी भी बात को भौतिकता के आधार पर समझने की कोइ आवश्यकता नहीं है , लकिन इतिहास में आपको सभी बातें भौतिकता के आधार पर समझनी है | इसका और विस्तार करें, तो अर्थ हुआ कि इतिहास में एक कड़ी , दूसरी कड़ी से जुडती चली जाती है, जबकी कथा में ऐसा नहीं होता | 

उद्धारण; 
अगर रामायण काल का इतिहास पढ़ रहे हैं तो जो समस्या रामायण के समय थी, उसका विस्तार, कारणों समेत, सतयुग से रामायण काल तक तो आपको समझना होगा, तभी इतिहास की पूरी कड़ी मिलेंगीं , तभी आप समझ पायेंगे कि क्या क्या समस्या थी, और एक के बाद दुसरे अवतार को क्यूँ आना पड़ा | लकिन कथा में ऐसा कुछ नहीं करना !

परशुराम भी श्री विष्णु के अवतार थे, और श्री राम भी | अवतार अवतरित होते हैं समाज में जब घोर संकट आता है, धर्म में हेर-फेर के कारण | तब समाज और श्रृष्टि विरोधी बाते/नियमो से समाज प्रलय की और बढ़ता है, और अवतार को अवतरित होना पड़ता है, समाज को वापस सही दिशा की और ले जाने के लिए | 

पुराणिक इतिहास यह भी बहुत स्पष्ट कर रहा है, कि पूर्ण अवतार, जैसे की परशुराम, राम और कृष्ण जब अवतरित हुए थे, जब विज्ञान, विकास और आधुनिकरण आज से बहुत अधिक था |

अब बताईये , 
*क्या आज तक किसी ने आपको यह बताया कि परशुराम क्यूँ अवतरित हुए थे ? *क्या धार्मिक, सामाजिक दोष थे, जिसके कारण श्रृष्टि प्रलय की और बढ़ रही थी ?*कितना विज्ञानिक, सामाजिक विकास और आधुनिकरण था ?*क्यूँ तुरंत परशुराम उपरान्त श्री राम को अवतरित होना पडा ?

किसी का उत्तर आपके पास नहीं है, सूचना युग के कारण मात्र जानकारी है , क्यूंकि रामायण को इतिहास की तरह कभी प्रस्तुत ही नहीं करा गया |

यहाँ तक तो हो रहा है कि संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु दो-तरफ़ा बाते कर रहे हैं, 
एक तरफ तो कहते हैं, कि श्री राम, परशुराम वास्तव में अवतरित हुए थे, 
दूसरी तरफ इस सत्य को स्वीकार नहीं करते कि , 

इतिहास में किसी भी चरित्र के पास अलोकिक/चमत्कारिक शक्ति नहीं हो सकती , 

ताकि समाज भ्रमित रहे, और मिथ्या(MYTHOLOGY) का आभास रहे | 

अपनी इस उलझन और विभ्रांति में वोह अपने धर्मगुरु के पास जाएगा, 
और संस्कृत विद्वान द्वारा तैयार करे बकरे(हिन्दू समाज) को, 
धर्मगुरु आराम से काटेगा, शोषण करेगा !
तो यह सब कथा में ही संभव है, इतिहास में नहीं !

संशिप्त में, उद्धारण सहित कथा और इतिहास में अंतर :-
इतिहास में गलत प्रस्तुति पर विशेष विरोध हो सकता है, कथा में अगर विरोध हुआ भी तो “चुकी यह इतिहास नहीं है” , या और कोइ ‘भावनात्मक’ कारण बता कर पडला झाड़ा जा सकता है | 
श्री राम ने बाली को सभी मर्यादा तोड़ कर मल-युद्ध के बीच में बाहर से हस्ताषेप करके मारा , और एक अत्यंत सम्मानित रामकथा वाचक की टिप्पणी है कि क्या ईश्वर सबको सामने खड़े होकर मारते हैं ? जबकी यहाँ ईश्वर की नहीं अवतार की बात हो रही है, जो धर्म स्थापित करने के लिए अवतरित हुए हैं | कथा में आप यह कारण दे सकते हैं, इतिहास में आपको यह समझाना होगा कि अयोध्या के राजकुमार श्री राम ने मर्यादा तोड़ कर मलयुध में बाहर से हस्ताषेप क्यूँ करा |

यही कारण है कि आज तक समाज को यह भी नहीं बताया गया कि श्री राम मर्यादापुरुषोत्तम क्यूँ कहलाते हैं; सिर्फ और सिर्फ समाज को बेवकूफ बनाया जा रहा है |

आपसे यह तो कहा जाता है कि श्री राम और श्री कृष्ण वास्तव में अवतरित हुए थे, और फिर अनेक अधर्म उनके नाम से समाज को बता दिए जाते हैं | जी हाँ आपने ठीक समझा, मैं “अधर्म” ही कह रहा हूँ, और यह सब संस्कृत विद्वान आज के सूचना युग में कर पा रहे हैं ! और हिन्दू समाज की मानसिकता इतनी गुलामी की करदी गयी है, कि वोह विरोध भी नहीं करता |

कुछ उद्धारण कैसे धर्म को अधर्म बना कर गुलाम समाज के सामने प्रस्तुत करा जाता है:

श्री राम से सम्बंधित एक धर्म:
श्री राम ने अनुमान लगा लिया कि रावण सीता का अपहरण कर सकता है, और उस समय के धार्मिक आदेश के अनुसार सीता, राम के पास अग्नि परीक्षा में सफल होने के बाद ही वापस जा सकती थे | तो श्री राम ने चुपके से सीता को अग्नि परीक्षा पारित करने के कौशल में प्रशिक्षण दिया | 
ध्यान रहे शत्रु की सोच का पूर्व-अनुमान आज भी महत्वपूर्ण धर्म है , और उसके अनुसार स्वंम की योगता विकसित करना भी | 

अधर्म जो समाज को बताया गया:
श्री राम ने असली सीता को अग्निदेव के सुपुर्द कर दया और सिर्फ सीता की छाया रख ली | इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि आपको अपनी पत्नी, बहन या बेटी के स्थान पर किसी और के अपहरण की धार्मिक अनुमति है | 
कितना गलत, घिनोना अधर्म संस्कृत विद्वान श्री राम के नाम पर बताते हैं |
श्री कृष्ण से सम्बंधित एक धर्म:
द्वारिकाधीश श्री कृष्ण ने द्वारिका की प्रजा की इच्छा अनुसार यह निर्णय लिया कि द्वारिका कि सारी सेना कौरवो के साथ रहेगी, और वे अकले बिना अस्त्र पांडवो का साथ देंगे ! और यही धर्म भी है ; हर राजा के लिए, हर युग में यही धर्म है कि वोह अपने एक भी सैनिक का जीवन खतरे में नहीं डाल सकता, बिना समाज और जनता की पूर्ण सहमती के | 

अधर्म जो समाज को बताया गया:
श्री कृष्ण निंद्रा से उठे, चुकी दोनों अर्जुन और दुर्योधन उनसे सहायता मांगने आय थे, तो उन्होंने यह निर्णय लिया कि वे एक को पूरी सेना देंगे, और स्वाम बिना अस्त्र के दुसरे पक्ष के साथ रहेंगे | 
इससे अधिक घोर अधर्म और क्या हो सकता है ?

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.