Thursday, January 12, 2017

सत्य को मत दबाओ...सनातन में गुरु नहीं, भौतिक मानक और मापदंड आदर्श हैं

मालूम नहीं क्यूँ संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु वोह सब भी समाज को गलत बता पा रहे हैं, जिसपर की एक शिक्षित समाज को सवाल पूछने चाहीये |
लकिन समाज की मानसिकता तो पूरी तरह से ‘गुलामी’ की होगयी है, इसलिए समाज शिक्षित होने पर भी गलत बाते भी स्वीकार कर लेता है , जिसका परिणाम भौतिक स्तर पर आप भारत के अंदर देख सकते हैं |

बहुल हिन्दू समाज भारत में ही द्वित्य श्रेणी का नागरिक है, उसकी कोइ भी बात मानी नहीं जाती, उसके देवी देवताओ के अभ्रद्र चित्र और चरित बनाया/बताया जा सकता है | जबकी अल्पसख्यक अन्य धर्मों/मजहबो के समाज और लोगो के साथ ऐसा दुसाहस कोइ नहीं कर सकता |

इसके पीछे प्रमुख कारण है की सबकुछ गलत बताया गया है; हिन्दू समाज की मानसिकता को गुलामी की रखने के लिए, ताकि विद्वान और धर्मगुरु समाज का आसानी से शोषण कर सकें |

गलत का अर्थ यहाँ पर बहुत स्पष्ट है | जो पुराण विरोधी है, वेद विरोधी है और हेरा-फेरी करके, समाज को गुमराह करने के लिए, और शोषण के लिए बताया गया है , वोह पूरी तरह से गलत है |

लकिन इसके पीछे हिन्दू समाज की भी कमजोरी है; शिक्षित होते हुए भी कोइ प्रश्न कभी नहीं पूछता ! यह तक भी नहीं समझता या पूछता कि ईश्वर अवतार तो कोइ गलत निर्णय ले नहीं सकते, तो फिर श्री कृष्ण ने निहत्ते द्रोण को युद्धभूमि मैं किस कारण मरवाया ?

फिर से: यह प्रश्न यह मान कर और पूर्ण विशवास के साथ पूछना है कि ईश्वार अवतार श्री कृष्ण का तो कोइ निर्णय गलत हो नहीं सकता |

अगर आप पूछते तो आपको समझ में आता कि गुरुकुल शिक्षा पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुकी थी, और चूकी मानव अवतार की भी अन्य मानव की तरह सीमित आयु होती है, और समय बचा नहीं था, इसलिए यह सन्देश, भविष्य के समाज को देना आवश्यक था, कि, भ्रष्ट गुरुकुल शिक्षा छोड़ो, इसमें सुधार नहीं हो सकता, तथा गुरु को कभी भी आदर्श मत मानो |
अगर निहत्ते द्रोण वध , जिसमें धर्मराज युधिष्टिर ने पूरा साथ दिया, से आपको यह सन्देश नहीं मिल पा रहा है कि गुरु कभी भी भविष्य में आदर्श नहीं होगा, तो आपकी आस्था ईश्वर अवतार में पूर्ण नहीं है |
और फिर महाभारत तो मात्र ५००० वर्ष पुराना इतिहास है | विश्व के पास लिखित इतिहास करीब ३००० वर्षो का है, और उससे पूर्व का इतिहास खुदाई, आदि से बैठाया जा सकता है | आप पायेंगे कि गुरुकुल शिक्षा से कभी भी पूर्ण समाज को ना तो जोड़ा गया, न शोषण समाप्त करने का कोइ प्रयास करा गया | यहाँ तक तो हुआ कि भारत की अखंडता और एकता के लिए जिसने पूरा जीवन लगा दिया, आचार्य चाणक्य, उसके इतिहास को भी विद्वानों ने दफनाने का पूरा प्रयास करा , उनको वेद-ज्ञाता तक नहीं माना | जबकी पापी, दुष्कर्म से भरे हुए रावण और द्रोण को यह विद्वान वेद-ज्ञाता बताते हैं | पढ़ें: वेद भौतिक ज्ञान है..द्रोण रावण जैसे अधर्मी और कपटी वेदज्ञाता नहीं हैं

तो, “हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या”; आप सब शिक्षित हैं, समझीये, पिछले ५००० वर्ष के इतिहास से एक ही निष्कर्ष निकल रहा है | ”गुरुकुल शिक्षा से हिन्दू समाज का शोषण होता रहा, गुलाम बनता रहा, टुकड़े होते रहे” !

और अगर इतने से भी संतुष्ट ना हों तो पुराण सारे कि सारे भरे पड़े हैं, प्राचीन धर्मगुरुओ के अभ्रद व्यवाहरो से |

तो आदर्श और मानक गुरु तो बिलकुल नहीं है | लकिन चुकी सनातन धर्म नियम प्रधान धर्म नहीं है, वेद समाज में जीने के नियम नहीं है, मात्र ज्ञान है , ज्ञान का प्रयोग आप कैसे करेंगे ?

ज्ञान के प्रयोग, बदलती हुई सामाजिक जीवन शैली मैं सिर्फ भौतिक मानक और मापदंड से हो सकता है, और समाज शास्त्रियों की सहायता से हो सकता है ; न की धर्मगुरुओ से |
हमारे आदर्श भौतिक मानक और मापदंड हैं, गुरु नहीं |

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ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.