आज़ाद भारत, जो श्री राम को तरह तरह से पूजता है , वह यह कैसे स्वीकार करलेता है कि समस्त क्लेश का नाश करने वाले श्री राम के स्वंम के निवास पर कोइ विघ्न बाधा , वह भी माता सरस्वती , हेरफेर कर के उत्पन्न कर सकती थी ? संभवत: यह कुछ उसी प्रकार है , जिस तरह से शोषण का विरोध न हो पाय , इसलिए समाज को पूरी तरह से यह समझाया जा रहा है कि कलयुग सबसे खराब युग है और सतयुग सबसे अच्छा युग | जबकी सत्य ठीक इसका उल्टा है |
सत्य तो यह है की यह संभव ही नहीं है | इसके दो कारण है , एक भौतिक और एक भावनात्मक |
तथ्य यह है कि कैकई ने राम के लिए वनवास कि मांग करी | यह इतिहासिक तथ्य है | अब व्याख्या का प्रयोग करके आप इसमें कुछ जोड़ सकते हैं , जैसे कि मंथरा की बुद्धी माता सरस्वती भ्रष्ट कर गयी |लकिन व्याख्या का प्रयोग जो आजादी से पहले हुआ है, वह आज के समाज के लिए उपयुक्त है कि नहीं यह तो सोचना पडेगा
आज के समाज को इससे नुक्सान ही नुक्सान है | तो फिर हम क्यूँ तथ्यों को जोड़ तोड़ के समाज के सामने रख रहे हैं ? ध्यान रहे रामायण जो कि इतिहास है , वह उस समय की एक झलक भी दिखाता है | विश्व उस समय अत्यंत विकसित था, उस समय विमान भी थे ; संषेप मैं आज का समाज उस समय के इतिहास को ग्रहण करने की क्षमता रखता है | तो फिर समाज का नुक्सान , तथ्यों का हेर-फेर कर के क्यूँ किया जा रहा है ? ज्यादा जानकारी के लिए आप पढ़ें : वन जाने में कैकई ने राम की सहायता क्यूँ करी
अयोध्या मैं राम स्वंम उपस्थित थे, और मंथरा की बुद्धी भ्रष्ट हो गयी | आजादी से पहले ऐसी विचारधारा चलती थी, आज नहीं | यदि आप राम को पूजते हैं तो ऐसी विचारधारा से अलग होना होगा |
और स्पष्ट करने के लिए मैं ऊपर संदर्भित पोस्ट “वन जाने में कैकई ने राम की सहायता क्यूँ करी” से उद्धृत कर रहा हूँ :
“प्राय हर इंसान अपनी माता को समझाना जानता है, और वोह तो राम थे! माता को राजा के कर्तव्य की याद दिलाई जो की व्यक्तिगत कष्ट से ऊपर हैं ! एक इंसान को अगर जानवर समझ कर दुर्व्यवाहर करा जाय, तो राजा का कर्तव्य होजाता है कि न्यायउचित कार्य करे, और यहाँ तो पूरी वानर जाति को पशु समझा जा रहा है ! मार्ग कष्टदायक है, लेकिन राजा और रानी को तो कर्तव्य पालन के लीये उसपर चलना ही पड़ता है , राम ने याद दिलाया ! कैकई के पास उसका कोइ उत्तर नहीं था ! राम ने कैकई को यह भी याद दिलाया कि उनके विचार विभिन् सामाजिक बिन्दों पर क्या है !”अब समय आ गया है कि समाज और परिवार धर्म में से एक को चुनने का” राम ने कहा ! ‘एकाधिक विवाह’ का विरोध, अर्थात एक व्यक्ति एक पत्नी को भी चर्चा में लाया जा सकता है, राम ने बताया
सब कैसे होना है, राम ने यह भी समझाया ! कैकई घबरा गयी ! “पूरे परिवार और अपने पुत्र भरत की दृष्टि में भी मैं गिर जाउंगी” कैकई ने विरोध करा !
लेकिन राम ना सुनने तो आए नहीं थे ! कैकई उनकी प्रिय माता थी ; माता को पुत्र ने मना लिया ! कैकई राजा दसरथ से दो वर मांगने के लीये तैयार हो गई !”
यह भी समझना होगा कि सीता को तो वनवास मिला नहीं था, तथा श्री राम की चरण पादुका अयोध्या के सिंघासन पर विराजमान थी, ऐसे मैं सीता अपहरण उपरान्त अयोध्या राज्य का क्या उत्तरदायित्व था | जिस युग मैं विज्ञान इतना विकसित था कि विमान तक थे, उस युग मैं , रावण की सेना पत्थर फेकने वाली वानर सेना, या बंदरों की सेना से युद्ध नहीं हारी, वह युद्ध इसलिए हारी की वानर सेना के पास सैन्य प्रशिक्षण था , तथा रावण की सेना जो की आधुनिकतम अस्त्र प्रयोग कर रही थी , उससे टक्कर लेने की पूरी क्षमता थी |जब हम यह मान लेते हैं कि राम की चरण पादुका अयोध्या के सिंघासन पर विराजमान थी, तो श्री राम का वानर सेना के साथ युद्ध मैं जाने का निर्णय सूक्ष्म संवीक्षा का अधिकारी हो जाता है | अब आप ही बताएं बिना सैन्य प्रशिक्षण के वानर सेना लंका से युद्ध कर सकती थी ?
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