Friday, January 13, 2012

DEVON KE DEV – MAHADEV... A REVIEW IN HINDI

शिव से द्वेष के कारण, दक्ष, बार बार अधर्म की और बढते नज़र आयेंगे, जहां वोह रह रह कर इस बात पर जोर देंगे कि श्रृष्टि की रचना संघार रहित होनी चाहीये, अर्थात भगवान शिव का उसमें कोइ भाग नहीं होना चाहिये
एक अत्यंत ही रोचक धारावाहिक आ रहा है स्टार टीवी कि नई चैनल ‘लाइफ ओके’ पर, जिसका नाम है, “देवो के देव...महादेव” !
हिंदू धर्म, तथा देवी देवता पर धारावाहिक बनते ही रहते हैं !
समझना आपको यह है कि आप इन सब धारावाहिक को किस दृष्टि से देखते हैं ! चुकी जिसने भी यह धारावाहिक/सीरियल बनाया है वोह आपकी धार्मिक भावनाओं को मान्यता देकर आपसे यह अपेक्षा रखता है कि आप इसे देखें, तथा धर्म को समझे, और उसका अनुसरण करें !

यह सीरियल तथा अधिकतम हिंदू प्राचीन इतिहास से सम्बंधित सीरियल आपको बार बार यह जानकारी अवश्य देते हैं कि श्रृष्टि की रचना दोष रहित नहीं है ! दोष वहाँ भी हैं ! उद्धारण, इश्वर शिव ने ब्रह्मा जी का पांचवा सर काट दिया ! कथा बताती है कि ब्रह्मा ने प्रथम रचना ‘सतरूपा’ कि करी और उसके रूप से वे इतने मोहित हो गए कि वो उससे दृष्टि हटा नहीं पा रहे थे ! सतरूपा, ब्रह्मा कि दृष्टि से बचने के लीये जिधर जाती, ब्रह्मा उधर एक मुख् उत्पन्न कर लेते ! इस तरह से चारो दिशा में उनके चारों मुख् हो गये! सतरूपा अब ऊपर की और चली, तो ब्रह्मा ने एक मुख् ऊपर भी कर लिया ! भगवान शिव से यह देखा नहीं गया, उन्होंने ब्रह्मा का ऊपर का सर अलग कर दिया ! शिव के विचार से सतरूपा ब्रह्मा द्वारा रचित थी इसलिए वे ब्रह्मा कि संतान होई ! इसी सोच से उन्होंने ब्रह्मा को श्राप दे डाला कि पृथ्वीवासी ब्रह्मा कि उपेक्षा पूजा में करेंगे !
यदि पीछे कि कथा को छोड भी दें, तो भी इस सन्देश को नहीं भूलना चाहीये कि जो भी आपको धर्म या धर्म अनुसार कार्य समझाया जा रहा है, क्या वास्तव में समाज का उससे हित हो रहा कि नहीं ! अगर आप इतनी सी बात भी नहीं समझने का प्रयास कर रहे हैं, तो इन धार्मिक धारावाही को देखना अर्थहीन है ! यह इसलिए भी आवश्यक है कि कोइ धार्मिक गुरु तो आपको यह बात समझायेगा नहीं ! कोइ अपने पैर पर क्यूँ कुल्हाड़ी मारेगा ?
अब थोडा नीचे आते हैं ! श्रृष्टि की रचना का प्रारम्भ हो चूका है, और श्रृष्टि के लीये नियम बनाए जा रहे हैं, ताकि श्रृष्टि सुचारू रूप से चल सके ! उसी से प्रजापति को यह समझना है तथा निश्चित करना है कि भविष्य में श्रृष्टि की रचना के लीये क्या नियम होंगे !


दक्ष प्रजापति ब्रह्मा जी का कार्य ब्रह्मा के स्थान पर कर रहे थे, अर्थात उन नियमों की रचना करना उनका उद्देश था जिससे सृष्टि सुचारू रूप से आगे भी रचित हो सके ! इसी प्रतिबधता के साथ ही उन्हें इस यज्ञ(सामूहिक कठोर परिश्रम) को स्वरुप देना था ! परन्तु मन में उनके द्वेष है, और वोह भी देवो के देव, महादेव से ! तथा श्रृष्टि के लीये नियम बनाते समय वोह यह बात कभी भी भूल नहीं पाते ! यहाँ तक की समस्त निर्णय में इस बात की झलक नज़र आती है !
वोह यह भी बार बार भूल रहे हैं कि कर्म का न्यायउचित्त लाभ तो पृथ्वीवासिओं को देना ही है ! यह बात आपको इस धारावाहिक में बार बार विभिन् कथा प्रसंग से दिखाई जायेगी !
प्रजापति दक्ष, अपने निजी द्वेष के कारण भूलते नज़र आयेंगे, आप सब को बार बार, कि श्रृष्टि कि रचना के लीये तीन प्रमुख बिंदु हैं; संषेप में, रचना, पालन और संघार !
शिव से द्वेष के कारण, दक्ष, बार बार अधर्म की और बढते नज़र आयेंगे, जहां वोह रह रह कर इस बात पर जोर देंगे कि श्रृष्टि की रचना संघार रहित होनी चाहीये, अर्थात भगवान शिव का उसमें कोइ भाग नहीं होना चाहीये ! 
ध्यान रहे यज्ञ का अर्थ हवन नहीं होता, यज्ञ का अर्थ होता है सामूहिक कठोर प्रयास !
आपको महत्त्वपूर्ण बात यह समझनी है कि खोट ऊपर से नीचे तक है ! प्रजापति स्वयम ब्रह्मा का स्वरुप हैं; जब वे इतना गलत कर सकते हैं तो पृथ्वी पर जो धर्म सिखा रहे हैं उनका क्या हाल है, यह तो सब को समझ में जाना चाहीये !

यही सबसे अवाश्यक सीख है इन चित्रपट से ! इस बात को कभी मत भूले, तथा रह रह कर इसकी चर्चा करें , ताकि लोग अपना उत्तरदायित्व सदा याद रखें ! ६४ वर्ष आजादी के बाद, हिंदू समाज में गरीबी बढ़ी है, परन्तु हिंदू गुरुजनों की आर्थिक स्थिति में विशेष सुधार हूआ है ! संभवत: गलत धर्म की शिक्षा दी जा रही है ! यह सब बदलना है ! तभी हिंदू समाज आगे बढ़ेगा ! केवल मनोरंजन के लीये धार्मिक धारावाहिक ना देखे ! समाज को केंद्र बिंदु बना कर उसे देखे और महत्वपूर्ण प्रश्न उठाएं !
ॐ नमः शिवाय ! ॐ श्री दुर्गाय नमः !

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3 comments :

ajinkya9763620227 said...

MAHADEV KO TISARI AANKH KYON DIKHA NAHI DI.

Abhay Bajpai said...

आदरदिया कुलभूषण सिंघल जी,
नमस्कार ||

मेरे मॅन मे एक सवाल बार बार आता है और मुझे इसका जवाब नही मिलता .
आप का ब्लॉग देखा जो की बहुत अछछा लगा. मैं आपको बधाई देता हूँ.
आप के द्रस्तिकोड की तारीफ करता हूँ.
मुझे लगता है की आपसे जवाब मिल सकता है.
मेरा मॅन में भ्रम है क़ि ब्रम्‍हा, विष्णु और महेश तो भगवान है तो भगवान को
ईर्षा , द्वेष और सत्रुता कैसी हो सकती है.
भगवान तो सारी भावनाओ से परे होते है. उनको तो सब पता है.
तभी तो वो भगवांन है नहि तो मनुस्य और भगवान में क्या अंतर है.
क्र्पया कुछ प्रकाश डाले,
धन्यवाद
(sorry for typo)

Unknown said...

श्री अभय जी,

जिस तरह से एक मनुष्य के ही पेशे के हिसाब से अलग अलग स्वरुप होते हैं, पहचान भी अलग होती है, उसी तरह से एक ही परमात्मा के पेशे के अनुकूल अलग अलग स्वरुप हैं, और पहचान भी अलग अलग करदी| यह सनातन धर्म की विशेषता है|

अब ऐसे मैं किसी ने मित्रता, द्वेष से जोड़ कर कुछ कथा बनादी, और हो सकता है की उन कथाओं का सकारात्मक योगदान भी कभी रहा हो ,,,
तो बस इतनी से बात है

ABOUT ME:

A Consulting Engineer, operating from Mumbai, involved in financial and project consultancy; also involved in revival of sick establishments.

ABOUT MY BLOG: One has to accept that Hindus, though, highly religious, are not getting desired result as a society. Female feticide, lack of education for girls, dowry deaths, suicides among farmers, increase in court cases among relatives, corruption, mistrust and discontent, are all physical parameters to measure the effectiveness or success/failure of RELIGION, in a society. And all this, despite the fact, that spending on religion, by Hindus, has increased drastically after the advent of multiple TV channels. There is serious problem of attitude of every individual which need to be corrected. Revival of Hindu religion, perhaps, is the only way forward.

I am writing how problems, faced by Indian people can be sorted out by revival of Hindu Religion.