Sunday, October 18, 2015

शिव ने दुर्गा मन्त्र कीलक करे...अर्थ भूविज्ञान समझें प्रकृति कि रक्षा करें

कीलक, मान्यता है कि एक कुंजी है, और पार्वती प्रकृति, तथा दुर्गा, माता पार्वती का वोह रूप है जो असुरो का नाश करता है | 
स्वाभाविक है कि सूचना-युग में आपको इस कुंजी का उपयोग करके वोह सारी भूविज्ञान, तथा सौर्यमंडल और पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बंधित सूचना समाज तक पहुचानी होगी जो दुर्गासप्तशती और पुराणों में कोडित भाषा में है तथा जो सूचना संस्कृत विद्वानों की सहायता से विदेशी विज्ञानिको के पास पहुच रही है तथा उसमें कुछ हेराफेरी करके वे विश्व के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं | 

संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु यह सब सूचना हिन्दू समाज तक नहीं पहुचने देंगे, क्यूंकि फिर धर्म का भावनात्मक भाग स्वंम कम हो जाएगा, कार्मिक भाग बढ़ जाएगा, और शोषण मुश्किल हो जाएगा |

ब्रह्मा जी और श्री विष्णु पृथ्वी पर नहीं रहते, क्यूंकि ब्रह्मलोक और विष्णुलोक पृथ्वी पर नहीं हैं, परन्तु ईश्वर शिव सदा पृथ्वी पर वास करते हैं हिमालय उनका निवास है | यह भी अविवादित और स्वीकृत मान्यता है कि माता पार्वती, और माता सति का मूल स्वरुप प्रकृति है, और प्रकृति के बिना पनपे श्रृष्टि शब्द ही अर्थहीन हो जाता है , तथा इश्वर का अस्तित्व भी कोइ माएने नहीं रखता ! स्वाभाविक है कि शिव ने पार्वती से विवाह करा और यदि इसे संकेत माना जाए, तो इश्वर की दिलचस्पी है, वचंबधता है कि प्रकृति फले-फूले |

मान्यता है और विश्वास भी, कि इश्वर शिव ने दुर्गा पूजन के सभी मंत्रो को कीलक कर रखा है, यानी कि ताले में बंद जिसकी चाबी शिव के पास ही है | कीलक का अर्थ जो अब तक मुझे समझाया गया है वोह है, कि यह एक प्रकार के मन्त्र हैं जिनको पढने के बाद ही ताला खुलता है, अनुमति मिलती है दुर्गा पूजन के मंत्रो को पढने/उच्चारण करने का, तथा लाभ लेने का |
माँ दुर्गा की विधिवत पूजा अर्चाना हर छह मॉस पश्चात होती है, पूरे नौ दिन की |

उस समय सूर्य विषुव में होता है, यानी की दिन और रात करीब करीब बराबर होते हैं | मार्च-अप्रैल(चैत्र नवरात्र) में सूर्य मीन मैं होता है, तब यह पूजन होता है, जिसका एक अर्थ यह भी समझ लें कि साल का अंतिम मॉस, जिसमें हmमसब इश्वर को धन्यवाद, सफलतापूर्वक वर्ष गुजरने के लिए देते हैं, तथा नए वर्ष के लिए आशीर्वाद और प्रार्थना करते हैं | चैत्र नवरात्र से दिन बड़े होने लगते हैं और राते छोटी |

चुकी यह मान्यता है कि दिन में सुर बलवान होते हैं और रात को असुर; और चुकी दिन बड़े होने लगते हैं, तो उन नवरातो का पूजन अधिक लाभदायक है |

और इसके उपरान्त सूर्य जो की उत्तरायण रहता है करीब १६ जुलाई तक हिन्दू केलेंडरो के अनुसार और २३ जून, ईसाई(अंग्रेजी) कैलेन्डर से, अब दक्षीण की और अग्रसर हो जाता है |

और दूसरी तरफ शार्दिये नवरात्र, जो अक्टूबर के महीने में पड़ते हैं | उस समय सूर्य कन्या राशि में होताहै और विषुव उपरांत दिन छोटे होने लगते हैं, राते बड़ी| स्वाभाविक है कि एक तो सूर्य दक्षिण की और जा रहा है, और राते आगे दिन से बड़ी होती जायेंगी तो असुरी शक्ति बलवान रहती हैं | इसलिए इस समय का पूजन अधिक महत्वपूर्ण है|

चैत्र नवरात्र और शार्दिये नवरात्र में अंतर को समझने के पश्च्यात अब समझते हैं कि इश्वर शिव ने दुर्गा पूजन के मंत्रो को कीलक क्यूँ कर रखा है |

कीलक, मान्यता है कि एक कुंजी है, और पार्वती प्रकृति, तथा दुर्गा, माता पार्वती का वोह रूप है जो असुरो का नाश करता है | 

स्वाभाविक है कि सूचना-युग में आपको इस कुंजी का उपयोग करके वोह सारी भूविज्ञान, तथा सौर्यमंडल और पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बंधित सूचना समाज तक पहुचानी होगी जो दुर्गासप्तशती और पुराणों में कोडित भाषा में है तथा जो सूचना संस्कृत विद्वानों की सहायता से विदेशी विज्ञानिको के पास पहुच रही है तथा उसमें कुछ हेराफेरी करके वे विश्व के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं |

संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु यह सब सूचना हिन्दू समाज तक नहीं पहुचने देंगे, क्यूंकि फिर धर्म का भावनात्मक भाग स्वंम कम हो जाएगा, कार्मिक भाग बढ़ जाएगा, और शोषण मुश्किल हो जाएगा | कोइ अपने पैरो पर क्यूँ कुल्हाड़ी मारेगा | 

कुछ छोटे प्रयास इस ब्लॉग ने करें हैं, और समाज ने सरहाया भी है, इसलिए यह विषय एकदम नया भी नहीं है ....आसान है |
उनमें से कुछ पोस्टो की लिंक दे रहाहूं जिससे आपको समझना आसान हो जाए(और भी अनेक पोस्ट हैं, आप प्रश्न पूछ सकते हैं लिंक भी मांग सकते हैं) !

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