यह पोस्ट मैंने आज तक क्यूँ नहीं लिखी, मुझे नहीं मालूम, लकिन आज जब लिख रहां हूँ तो रामायण वास्तविक इतिहास है, इस सूचना को समाज तक पहुचाने का संतोष अवश्य हो रहा है|
इसलिए भी क्यूकी ..
हिन्दू समाज को इश्वर अवतार श्री राम के समय के इतिहास और विज्ञान की आवश्यकता है, जो की स्वंम हमने अलोकिक शक्ति की चादर मैं छिपा रखा है, उसको भारत की विश्विद्यालय तक भी नहीं पहुचने दे रहे, और फिर इसके बाद हमसब अपनेआप को शिक्षित और धार्मिक कहते हैं !
नीचे जो भी मैं कहने जा रहा हूँ, वोह आप सबको आसानी से समझ मैं आएगा क्यूँकी कोइ ‘गूढ़’ प्रयास नहीं करा जाएगा और वैसे भी इतिहास कहानी जैसा होता है, खासकर अगर तारीख याद ना करनी हों |
मर्यादा का अर्थ सबको मालूम है, संषेप मैं ‘उस समय की अत्यंत कुलीन परम्पराएं’ या अंग्रेज़ी मैं ‘NOBLEST TRADITION OF THAT PERIOD’.
जो समय की सारी मर्यादा का पालन करता है उसे इतिहास और हमसब ‘मर्यादा पुरुष’ कहते हैं, मर्यादापुरुषोत्तम नहीं|
मर्यादापुरुषोत्तम, मेरा और आपका एक न्यायिक निर्णय(JURY'S VERDICT) है, यानी एक इतिहासिक चरित्र पर मेरा और आपका फैसला है, और वोह भी थोपा हुआ नहीं,
मेरा और आपका स्वंम का आकलन| इसलिए यदि आप श्री राम को मर्यादापुरुषोत्तम कहेंगे तो किसी और के कहने पर नहीं स्वंम के आकलन पर, और वोह आकलन निष्पक्ष होगा, मानवता और श्रृष्टि की प्रगति के अनुकूल होगा, यह स्वाभाविक है|
पहले तो यह समझ लें की श्री राम कोइ व्यक्तिगत उपलब्धियां प्राप्त करने के उद्देश से नहीं अवतरित हुए थे, वोह विनाश की और बढ़ती हुई श्रृष्टि की दिशा सही करने आए थे, मर्यादापुरुष या मर्यादापुरुषोत्तम कहलाने नहीं | संषेप मैं, राम समाज हित के लिए अवतरित हुए थे, और समाज हित के लिए वे मर्यादा तोड़ भी सकते थे, अगर कोइ और विकल्प उनके पास ना उपलब्ध हो तो|
यह भी समझ लें की पूर्ण अवतार जैसे राम और कृष्ण तब संभव है, जब समाज पूर्ण रूप से विकसित हो, कम से कम आज से तो अधिक; उस समय शिव धनुष(Weapon of mass destruction) का विघटन होने लगा था, जो आज के विश्व मैं नहीं हो पा रहा है |
‘शिव धनुष(Weapon of mass destruction) का विघटन होना है’, यह निर्णय विश्वामित्र, जनक और रावण ने ताड़का वध पश्च्यात समाज हित मैं लिया था, इसीलिये विश्वामित्र जनकपुरी गए थे|
परन्तु राम और सीता को, एक दुसरे से प्रेम हो गया, वोह भी स्वम्बर से पहले, और इधर राम ने अयोध्या का प्रितिनिधित्व और शांति संधि मैं मुख्य भूमिका निभाई थी, इसलिए वे यह अवश्य चाहते थे कि ज्यादा से ज्यादा राजा जो स्वम्बर मैं आऍ, वे इस संधि का अनमोदन करें | ध्यान रहे संधि का अनमोदन कोइ भी राजा बिना स्वम्बर मैं भाग लिए कर सकता था, लकिन जो भाग ले रहे थे, उनका संधि का अनमोदन स्वाभाविक हो गया|
तबभी और आजभी, राज्य घराने के व्यक्ति को इस मर्यादा को समझना आवश्यक है कि यदि समाज हित मैं संधि के अनमोदन के लिए कोइ आयोजन है तो अधिक से अधिक राज्य उस आयोजन मैं भाग लेकर संधि का अनमोदन करें | तो राम और सीता के बीच मैं मर्यादा आ गयी, और भले ही दोनों एक दुसरे से प्रेम करते थे, और इस प्रेम के सफलता के लिए माता पार्वती की पूजा करते रहे हों, लकिन श्री राम की टीम ने शिव धनुष के विघटन तब करा, जब बाकी सब राजा यह प्रयास कर चुके थे| कभी कभी मर्यादा अत्यंत कष्टदायक हो जाती है, जैसे की तब !
अब एक और अत्यंत कष्टदायक मर्यादा का उल्लेख करते हैं, जो श्री राम को निभानी पडी| मानव की नई प्रजाती वन मैं पनप रही थी, जिसको की समस्त राज्यों ने मानव मानने तक से इनकार कर रखा था, तथा उन्हें जानवरों की तरह से पकड़ा, खरीदा और बेचा जाता था, और काम लिया जाता था|
इस अत्यंत घृणित अमानवीय कार्य को समाप्त करने के लिए श्री राम यह निर्णय ले चुके थे कि वोह १२ से १४ वर्ष इस वानर समाज को सामाजिक नियम और सैन्य प्रशिक्षण देने के लिए वन मैं व्यतीत करना चाहते हैं, इसलिए वोह युवराज नहीं बनना चाहते थे, तथा पूरे राज्य परिवार को यह बात मालूम थी |
परन्तु राज्य परिवार जिसमें उसके सारे भाई भी शामिल थे, यह चाहता था की राम युवराज बने और वन जाने का काम तो बुढापे मैं भी हो सकता है| अब जब भरत भी नहीं थे, महाराज दशरथ ने यह घोषणा कर दी की तत्काल जो शुभ मुहूर्त है, उसमें वे राम को युवराज बना देंगे |
श्री राम पृथ्वी लोक का सुख भोगने के लिए तो अवतरित हुए नहीं थे| विष्णु अवतार श्री राम क्या करते, कमजोर वर्गके लोग(वानर) और महिलाओं पर जो अत्याचार हो रहा था, उसको उन्हें समाप्त करना था, वोह भी एक साधारण मानव के जीवन अवधी मैं, और बिना कोइ चमत्कार का प्रयोग कर के| इसलिए उन्हें तो तुरंत वन जाना था, युवराज बनने के बाद यह कार्य संभव नहीं रहता| ध्यान रहे वे यह अवश्य कर सकते थे कि कि अपने पिता के आदेश को अस्वीकार करदें, लकिन वोह कार्य तो मर्यादाहीन होता, इसलिए राम ऐसा भी नहीं कर सकते थे |
सत्य है कि राम समाज हित के लिए ही अवतरित हुए थे, और समाज हित के लिए वे मर्यादा भी तोड़ सकते थे, लकिन मर्यादा वे जब ही तोड़ते, या तोड़ेंगे जब कोइ और विकल्प उनके पास नाहो| और यहाँ उन्हें मर्यादा तोडना नहीं था, उन्होंने अपनी सबसे प्रिये माता कैकई को मना लिया, अपने काम के लिए |
चलीए मर्यादा का पालन तो हो गया, लकिन इस समाज हित कार्य के लिए पिता को खोना पड़ा, लकिन यह कहना संभव नहीं है की कारण क्या था| उसके लिए रामायण का निर्माण बिना अलोकिक शक्ति के वर्तमान समाज हित मैं करना होगा, तब उसपर विस्तृत विश्लेषण हो सकता है|
अब ऐसे तो बहुत सारी छोटी मर्यादाएं होंगी, लकिन अब सीधे चलते हैं सीता अपहरण के बाद बाली वध पर, जहाँ राम ने मल युद्ध करते दो योधाओ के बीच मैं मर्यादा तोड़ कर निर्णायक हस्ताषेप करा और बाहर से बाली का वध कर दिया|
अब सीधे मैं इसी पोस्ट से उद्धृत होता हूँ :
‘प्रश्न यह कि राम ने उस समय कि मर्यादा क्यूँ तोडी ? राम तब तक मर्यादा पुरुष के नाम से विख्यात हो चुके थे, फिर क्यूँ बाली को छिप कर मारने का मर्यादा रहित कार्य करा !
‘ध्यान रहे राम एक जुआ खेल रहे थे, वानर सेना का प्रयोग कर के, जब कि सीता कि जिंदगी दावं पर लगी थी ! निश्चय ही ज्यादा सुरक्षित विकल्प था अयोध्या सेना जिसका साथ जनकपुरी तथा अन्य मित्र राज्य भी करते, परन्तु उससे वानरों कि समस्या का समाधान तो नहीं होता ! राम का इसमें निजी स्वार्थ कुछ भी नहीं था ! और यही महत्वपूर्ण धर्म इस घटना से मिलता है !
‘दूसरा, नई सभ्यता जो पनप रही थी, जैसे की वानर, उसे यह समझाना आवश्यक था, की सामाजिक न्याय मल-युद्ध से नहीं मिल सकता था| यदी सुग्रीव हार जाते, जैसा की दिख रहा था, तो बाली ने, अपने छोटे भाई को दण्डित करने के लिए, उसकी पत्नी, और संतान भी रखली, वोह तो सामाजिक न्याय हुआ नहीं; तथा बिना बाली वध के यह बात नई सभ्यता को समझाई भी नहीं जा सकती थी|
‘जो व्यक्ति अपने समय कि समस्त मर्यादाओं का पालन करता है, उसको मर्यादा पुरुष कहते हैं, परन्तु जो व्यक्ति अपना निजी स्वार्थ भी दाव पर लगा कर समाज य देश के हित में मर्यादा का उलंघन करे वो मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाता है|’
परन्तु इस मर्यादा को तोडना व्यक्तिगत रूप से राम और सीता को कष्टदायक पड़ा, चुकी समाज यह अपेक्षा रखता है कि उनके नायक समाज की मर्यादाओं का पालन करेंगे| फल स्वरुप रावण की मृत्य पश्च्यात राम के पास जब सीता को लाया गया, तो राम ने उस समय की धार्मिक मान्यता प्राप्त परंपरा निभाने के लिए सीता को कहा, और वोह थी अग्नि परीक्षा|
लक्ष्मण तक ने इसका विरोध करा, लकिन अब राम और मर्यादा नहीं तोड़ सकते थे, और सीता ने सफलतापूर्वक जब अग्नि परीक्षा दे दी तो राम ने उन्हें स्वीकार कर लिया | कितने कष्ट की बात है, जो अवतार अग्नि परीक्षा जैसे धार्मिक मान्यता प्राप्त परंपरा को समाप्त करने आये थे, वे ही अपनी प्रिये पत्नी से अग्नि परीक्षा के लिए कहते हैं |
मुझे नहीं मालूम की इश्वर ने अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित करने के लिए यही मार्ग चुना था, या नियती ने उन्हें इस मार्ग को चुनने के लिए विवश कर दिया, लकिन यह मार्ग, दोनों राम और सीता के लिए सिर्फ व्यक्तिगत कष्ट के अतिरिक्त कुछ नहीं था | कैसे श्री राम ने अग्नि परीक्षा को अधर्म घोषित करा और सीता का त्याग करा, इसके लिए
पढ़ें: सीता का त्याग राम ने क्यूँ करा... सही तथ्य
कुछ अंश इस पोस्ट से :
'दोनों पक्ष की लंबी बहस के बाद श्री राम ने यह निर्णय दिया कि सीता कोइ भी भौतिक प्रमाण नहीं दे पायी हैं कि वोह स्वेच्छा से नहीं गयी थी| बिना बल प्रयोग के सुरक्षा रेखा(लक्ष्मण रेखा) स्वंम पार करना और रावण को सुरक्षा रेखा के बाहर जा कर भिक्षा देने को स्वेच्छा से रावण के पास जाना भी माना जा सकता है | उन्होंने यह भी माना कि आज क्यूँकी वोह गर्भवती हैं तथा पूरी तरह से उनके नियंत्रण मैं हैं उनके किसी भी बयान को स्वतंत्र नहीं माना जा सकता ! श्री राम ने अग्नि परीक्षा के परिणाम को निरस्त करते होए सीता को त्याग दिया!
'यह भी आदेश पारित करा कि अग्नि परीक्षा किसी तरह से भी किसी स्त्री की शुद्धता, सतित्व्, व् चरित्र का प्रमाण नहीं दे सकती, इसलिये भविष्य मैं उसके प्रयोग को अपराध माना जायेगा, तथा अग्नि परीक्षा और उसके इस दुरूपयोग को सदा के लिये अधर्म घोषित कर दिया !
'हम सब पूरी निष्ठां से श्री राम और माता सीता को इश्वर अवतार मानते हैं, और यह भी जानते हैं कि व्यक्तिगत कष्ट उठा कर वे दोनों समाज में सुधार करने के लिये अवतरित होए थे ! श्री राम और माता सीता ने घोर कष्ट सहे ताकी समाज को यह समझा सकें कि अग्नि परीक्षा एक क्रूर अपराध और अधर्म है !'
अब निर्णय आप करें की श्री राम मर्यादापुरुषोत्तम कहलाने लायक हैं की नहीं?
एक बात सदैव ध्यान रखीये, समाज स्त्रियों के कष्ट का विश्लेषण तो कर देता है, लकिन यदी साथ मैं पुरुष ने भी कष्ट उठाए हों, तो उसका विश्लेषण पूर्ण रूप से नहीं होता | श्री राम ने अवतरित होने के उद्देश को सफल करने मैं अत्यंत कष्ट उठाएं, और हो सके तो यह निर्णय भी आपको करना होगा कि उन कष्टों का पूर्ण आंकलन संभव है क्या ?
जय श्री राम, जय माता सीता !
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