MAHASHIVRATRI IS NOT AN AUSPICIOUS TITHI FOR NORMAL HUMAN MARRIAGE~~महाशिवरात्रि, इश्वर शिव और माता पार्वती (जिसको प्रकृती भी कहते हैं), के विवाह का शुभ पर्व है| यह तिथी सांसारिक सुख की इच्छा रखने वाले मनुष्य के लिए नहीं है
यह प्रश्न इस लिए बार बार उठता है, क्यूँकी आज का युग सूचना का युग है, और बहुत बार किसी विषय पर पर्याप्त सूचना न होने से लोग गलत धारणा बना लेते हैं| सबसे पहले शुभ मुहूर्त कैसे निकाला जाता है, उसे समझते हैं| शुभ मुहूर्त या तिथी जिस अवसर के लिए निकाला जा रहा है, उसपर निर्भर करता है; और यहाँ हमें शुभ मुहूर्त विवाह के लिए चाहिए| विवाह भौतिक मिलन हैं, दो व्यक्तियों का, एक पुरुष और एक महिला, और ज्योतिष मैं समस्त भौतिक प्रयास मैं सफलता के लिए चन्द्रमा शक्तिशाली होना चाहिए| यह शुभ मुहूर्त के लिए अत्यंत आवश्यक है|
चन्द्रमा शक्तिशाली कब होता है, उसके लिए आपको ज्योतिष ज्ञान की भी आवश्यकता नहीं है, क्यूँकी चन्द्रमा हर व्यक्ती को दिखाई देता है| पूर्णमाशी को पूरा चन्द्रमा दीखता, है, पूरा प्रकाश देता है, और सबसे ज्यादा शक्तिशाली होता है| अमावास्य को चन्द्रमा नहीं दीखता, अथार्त पूरी तरह से श्रीण होता है, कोइ भी शुभ कार्य, जिसमें भौतिक सफलता चाहिए, वोह अमावास्य या उसके आस पास की तिथी मैं नहीं होता है...हाँ, मूर्ती स्थापना , इश्वर भक्ति से सम्बंधित कार्य आदि होते हैं| स्पष्ट है की चन्द्र जितना ज्यादा दिखाई दे रहा है, उतना ज्यादा शक्तिशाली है| डिग्री मैं पूर्णमाशी को चन्द्र सूर्य से १८० डिग्री दूर होता है, और अमावास्य को शून्य| चन्द्र, सूर्य से कम से कम ६० डिग्री दूर तो होना चाहिए, तभी चंद्रमा मैं कुछ शक्ति नज़र आती है| महाशिवरात्रि के दिन चन्द्र, सूर्य से अक्सर ज्यादा से ज्यादा १८ से ३० डिग्री दूर होता है|
अब अन्य ग्रहों पर आते हैं; चुकी प्रसंग है की महाशिवरात्रि विवाह के लिए शुभ मुहूर्त है की नहीं, न की शुभ मुहूर्त के लिए क्या क्या आवश्यकता है, और चुकी महाशिवरात्री को मनाने के लिए यह आवश्यक है की सूर्य कुम्भ मैं हो, और चन्द्रमा मकर राशी मैं और तिथि त्रियोदशी या चौदश हो, तो इस चर्चा मैं बाकी सब ग्रहों की उपेक्षा कर सकते हैं|
अब महाशिवरात्रि पर्व किस तिथी को मनाया जाता है, उसका चयन कैसे होता है, यह समझते हैं| महाशिवरात्रि को भक्त पूरी रात इश्वर शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करते हैं, और अगली सुबह सूर्य उदय के बाद चन्द्रमा के दर्शन, सूर्य के ऊपर (उस दिन चंदामा का, चांदी जैसा लघु स्वरुप, जैसा की भगवान शिव की छबी मैं हम सब देखते हैं) सूर्य उदय के तुरंत बाद, कुछ समय के लिए होता हैं| वोह मास का अंतिम चन्द्र होता है, जो पूर्व दिशा मैं दिखेगा| उसके बाद कम से कम दो दिन के लिए चन्द्रमा नहीं दीखता| नया चन्द्रमा दोयज को सूर्य अस्त के बाद पश्चिम दिशा मैं कुछ संमय के लिए दीखता है, जिसको देख कर मुस्लिम समाज अपना नया मास आरम्भ करता है|
आपको अब यह भी समझ मैं आ गया होगा की चन्द्र देखने की प्रथा शिवरात्रि की, हर मास पूजा होने के कारण, अत्यंत प्राचीन है, और मुस्लिम समुदाए ने उसे सरल बनाने के लिए दोयाज़ का नया चाँद को देखने की प्रथा शुरू कर दी, चुकी यदी किसी कारण दोयाज़ का चाँद नहीं दिखा तो अगली तिथी मैं तो अवश्य दिख जाएगा| शिवरात्रि की तरह एक महीना इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा|
वापस शुभ मुहूर्त पर; तो समझ मैं आ गया की महाशिवरात्रि को चन्द्रमा अत्यंत श्रीण है, विवाह के शुभ मुहूर्त के लिए उपयुक्त नहीं है| इसके अतरिक्त भी और भी कारण हैं की यह साधारण व्यक्ति के लिए शुभ मुहूर्त नहीं है|
कुम्भ राशी, जिसमें उस दिन सूर्य होता है, शनी की मूल त्रिकोण राशी है|
कुम्भ राशी को दर्शाता है, एक मट्टी का कच्चा घड़ा, यानी की जो अभी पक्का नहीं है, और खाली है| तुरंत आपके मन मैं यह ख्याल आएगा की यह तो वैराग अंकित करता है, और अत्यंत दरिद्रता| महाशिवरात्रि को इश्वर शिव का वर्णन करता है सूर्य| इश्वर शिव पूर्ण रूप से वैरागी हैं, उन्हें अपने लिए कुछ नहीं चाहिए, सब कुछ वापस संसार को दे देते हैं, इसीलिये इश्वर होते हुए भी, भिक्षा मांग कर भोजन की व्यवस्था होती है, पहनने के लिए कपडे नहीं है, इसलिए मरे हुए पशु की खाल लपेट ली है, वस्त्रों के आभाव मैं बाकी शरीर पर शमशान की राख लपेट ली है (क्यूँकी शमशान की राख पर किसी का अधिकार नहीं होता), आभूषण के आभाव मैं एक सर्प को गले मैं ड़ाल रखा है|
मकर राशी भी शनी की राशी है, जिसमें मंगल उच्च का होता है, और उच्च का मंगल त्याग से ही फल देता है| महाशिवरात्रि को चंद्र, माता पार्वती को दर्शाता है| एक अत्यंत संपन्न राज्य की राजकुमारी समस्त सुख त्याग कर, और स्वंम तप करके, शिव को प्ररित करती हैं, विवाह के लिए, एक ऐसे वैरागी को, जिसके पास रहने के लिए अपनी खुद की कुटिया भी नहीं है| माता पार्वती समस्त भौतिक सुख त्याग कर इश्वर शिव से विवाह करती हैं, और यही मकर का चन्द्र दर्शाता है|
महाशिवरात्रि, इश्वर शिव और माता पार्वती (जिसको प्रकृती भी कहते हैं), के विवाह का शुभ पर्व है| यह तिथी सांसारिक सुख की इच्छा रखने वाले मनुष्य के लिए नहीं है|
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